नेताजी-९४

नेताजी-९४

सुभाषबाबू के ‘द इंडियन स्ट्रगल: १९२०-१९३४’ इस पुस्तक का युरोप में अच्छा-ख़ासा स्वागत किया गया। ‘भारतीय राजनीति के तीन सर्वोच्च महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्त्वों में से एक के द्वारा यह ग्रन्थ लिखा जाने के कारण इसकी काफी अहमियत है। लेखक द्वारा निर्भयतापूर्वक अपना मन्तव्य प्रस्तुत करते हुए किसी के साथ भी नाइन्सा़फी नहीं की गयी है। हालाँकि […]

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नेताजी-९३

नेताजी-९३

पिताजी के अन्तिम दर्शन न करने का सुभाषबाबू को का़फी दुख हो रहा था। उसमें भी, पिताजी के आख़री दिनों में वे सुभाषबाबू के नाम का ही मानो जाप कर रहे थे, यह मेजदा से समझने के बाद तो उनपर ग़म का पहाड़ ही टूट पड़ा। पचास वर्ष के सहजीवन में जिसने हमेशा साथ निभाया, […]

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नेताजी-९२

नेताजी-९२

अत्यवस्थ पिताजी से मिलने हेतु हवाई जहाज़ से निकल चुके सुभाषबाबू पहले रोम में रुके और बाद में कैरो में। मन में बार बार पिताजी की याद आ रही थी और उनसे मिलने की उत्कटा से वे व्याकुल हो रहे थे। बीच बीच में एमिली की भी याद आती थी। फिर वे उसे खत लिखते […]

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नेताजी-९१

नेताजी-९१

१९३४ का नवम्बर। सुभाषबाबू के ग्रन्थलेखनकार्य ने समय के साथ अब गति पकड़ ली थी। मॅटर में कई बार परिवर्तन कर अन्तिम ड्रा़फ़्ट तैयार किये जाने के बाद ही वह कागज़ पास होकर फाईल किया जाता था। एमिली को बार बार टाईप करना पड़ता था, इसका सुभाषबाबू को दुख तो ज़रूर होता था, लेकिन हमेशा […]

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नेताजी-९०

नेताजी-९०

रोम में मिली क़ामयाबी से सन्तुष्ट होकर सुभाषबाबू ने व्हाया मिलान व्हिएन्ना लौटने की बात तय की। लेकिन उसी दौरान जर्मनी के म्युनिक से वहाँ के भारतीय छात्रों द्वारा भेजा गया, वहाँ फौरन आने का टेलिग्राम प्राप्त होने के कारण अपने नियोजित कार्यक्रम में परिवर्तन कर वे म्युनिक के लिए रवाना हुए। जर्मनी में अध्ययन […]

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नेताजी-८९

नेताजी-८९

अपनी सारी जायदाद देशकार्य के लिए दान कर देने की इच्छा प्रदर्शित किये हुए, विठ्ठलभाई के वसियत नामे की ‘उस’ कलम को पढ़कर सुभाषबाबू अचंभित हो गये। उस कलम में सुभाषबाबू का विशेष उल्लेख कर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम को आंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए उनके द्वारा विदेश में की जा रही कोशिशों में सहायता करने […]

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नेताजी-८८

नेताजी-८८

किट्टी और अ‍ॅलेक्स कुर्टी दम्पति के साथ हुई पहली मुलाक़ात के बाद सुभाषबाबू का उनसे तीन-चार बार मिलना हुआ। किट्टी मानसशास्त्र का अध्ययन कर रही थीं। मानसशास्त्र में भी सुभाषबाबू को मुझसे अधिक ज्ञान है, यह देखकर वे दंग रह गयीं। मानसशास्त्र पर उनकी बातचीत कई घण्टों तक चलती थी। शुरुआती दौर के मानसशास्त्रज्ञों द्वारा […]

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नेताजी-८७

नेताजी-८७

भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम के लिए मदद माँगने हेतु सुभाषबाबू लगभग डेढ़ महीने तक जर्मनी में थे। लेकिन यह केवल सहायता है, प्रमुख जंग तो भारत को ही और वह भी अपने बलबूते पर लड़नी है, इस बात का उन्हें एहसास था। वहाँ उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम को सहायता मिलने की दृष्टि से कइयों से मुलाक़ात की। कई […]

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नेताजी-८६

नेताजी-८६

रशिया में प्रवेश करने की कोशिशें नाक़ाम होने पर सुभाषबाबू ने अब जर्मनी पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जर्मनीप्रवेश की अनुमति तो उन्हें इंडिया ऑफिस से बाक़ायदा मिल ही चुकी थी। १७ जुलाई १९३३ को सुभाषबाबू ने बर्लिन में कदम रखा। उनके आगमन की ख़बर वहाँ की इंडो-जर्मन सोसायटी को दी गयी थी। प्रथम विश्‍वयुद्ध […]

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नेताजी-८५

नेताजी-८५

आसमान को मुठ्ठी में समेटने निकले सुभाषबाबू को एक पल भी आराम नहीं था। उनके पैरों को मानो पहिये ही लगे थे। उन्होंने व्हिएन्ना में ‘ऑस्ट्रियन इंडियन सोसायटी’ की स्थापना की। यह सोसायटी व्याख्यानों तथा चर्चासत्रों का आयोजन करती थी। ख़ास कर भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम के बारे में जनजागृती करने के लिए आयोजित किये गये इन […]

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