नेताजी-९२

अत्यवस्थ पिताजी से मिलने हेतु हवाई जहाज़ से निकल चुके सुभाषबाबू पहले रोम में रुके और बाद में कैरो में। मन में बार बार पिताजी की याद आ रही थी और उनसे मिलने की उत्कटा से वे व्याकुल हो रहे थे। बीच बीच में एमिली की भी याद आती थी। फिर वे उसे खत लिखते थे। जहाँ जहाँ हवाई जहाज़ रुकता था, वहाँ से वे एमिली को लिखे हुए खत पोस्ट करते थे। क्योंकि उनसे विदा लेते हुए बड़े बड़े खत लिखने का वादा उनसे करवानेवाली एमिली ही उनकी आँखों के सामने आ जाती थी।

अब अगला पड़ाव था, कराची। ३ तारीख को वे कराची पहुँच गये। इतने दिनों बाद पुन: मातृभूमि के दर्शन होने की खुशी से वे झूम उठे। अब एकाद दो आख़िरी पड़ावों को पार करने के बाद पिताजी से मुलाक़ात होगी, इस सोच से तनाव भी कुछ हलका हो गया था। हॉटेल में से दूसरे दिन वे हवाई अड्डे पर गये और तब….

….सीने में जैसे किसी ने खंजर भोक दिया हो, इस तरह वह खबर उनका दिल चीरते हुए उन्हें घायल कर गयी।

सुभाषबाबू‘सुभाषचंद्र बोस के पिताजी का देहान्त।’
….  ….  ….

सब कुछ ख़त्म हो गया था। सुभाषबाबू के नाम का जाप करते करते ही उनके पिताजी परलोक सिधारे। पिताजी के अन्तिम दर्शन करने का सन्तोष तक उन्हें नसीब नहीं हुआ। मैं अपने पिता को जीवन भर मानसिक पीड़ा के अलावा और कुछ भी न दे सका, यह बात उनके मन को खाये जा रही थी। का़फी देर तक ख़ामोशी से वे पिताजी ने उन्हें युरोप जाने से पहले दी हुई रिस्ट वॉच को देख रहे थे। समय आगे बढ़ रहा था और हवाई अड्डे की पुलीस यंत्रणा अपना काम कर रही थी- सुभाषबाबू को दिल खोलकर रोने तक की फुरसत न देते हुए। दर असल भारत में जहाँ जहाँ उनका हवाई जहाज़ रुकता था, वहाँ वहाँ पुलीस युद्धजन्य हालात में बजाये जानेवाले ‘पॅनिक अलार्म’ को बजाते हुए हवाई जहाज़ को घेर लेती थी। सुभाषबाबू किस मानसिक अस्वस्थता के दौर से गुज़र रहे हैं, इस बारे में वह बेपरवाह थी।

जोधपूर, लखनौ रुकते हुए सुभाषबाबू ५ दिसंबर की शाम को जब कोलकाता पहुँचे तो उनका स्वागत कर्णकर्कश पुलीस सायरन से किया गया। हवाई जहाज़ से बाहर निकलते ही उनपर चारों ओर से बंदूकें तानी गयी। उन्हें उनके सामान के साथ एक जीप में ठूसा गया और जीप उनके घर की ओर तेज़ी से रवाना हुई। दोरत़फा रास्ते में कड़ा पुलीस बंदोबस्त था। लेकिन कोलकाता के चहीते सुभाषबाबू आज आ रहे हैं, इसकी खबर वहाँ की जनता को पता चल जाने के कारण आवाम पहले से ही सड़कों पर उतरी हुई थी। रास्ते में ‘वंदे मातरम्’ के जयघोष में सुभाषबाबू की जीप पर पुष्पमालाएँ फेंकी जा रही थीं। अपने लाड़ले नेता की एक झलक पाते ही लोगों को संतोष हो रहा था।

दर असल अत्यवस्थ पिताजी से मिलने सुभाषबाबू पुन: भारत आयेंगे, इसकी भनक सरकार को थी ही और इसीलिए उन्हें आते ही युरोप वापस भेजने की दृष्टि से सरकार कोशिशों में जुटी हुई थी। लेकिन ऐसा भला वह किस बुनियाद पर कर सकती थी? क्योंकि सुभाषबाबू को युरोप जाने की इजाज़त देते समय पासपोर्ट पर ‘भारत में पुन: प्रवेश करने पर पाबन्दी’ ऐसा कुछ लिखा नहीं गया था। दर असल उस समय सरकार ने इस तरह की टिप्पणी जानबूझकर नहीं की थी। क्योंकि सरकार को यह डर था कि यदि मुझे भारत पुन: आने ही नहीं दिया जायेगा, यह यदि सुभाषबाबू को पता चल जाता है तो शायद वे युरोप नहीं जायेंगे; और सरकार उन्हें किसीभी हालत में देश के बाहर भेजना चाहती थी। लेकिन यह बात सुभाषबाबू के फायदे की साबित हुई और इसी वजह से सरकार उन्हें भारत में प्रवेश करने से रोक नहीं सकी। लेकिन उन्हें महज़ सात दिन तक भारत में रहने की इजाज़त देकर सरकार ने प्रतिशोध ले ही लिया।

दर असल सुभाषबाबू जैसे ही कोलकाता में कदम रखते हैं वैसे ही उन्हें गिऱफ़्तार करके प्रेसिडेन्सी जेल में रवाना करना चाहिए, ऐसी राय कुछ सरकारी अ़फसरों ने ज़ाहिर की थी। लेकिन इस बात की भनक लोगों को लग जाने के कारण निषेध मोर्चा, आन्दोलन आदि द्वारा कोलकाता का माहौल का़फी गरमाया था। इसी वजह से यदि ऐसी नाज़ुक घड़ी में हम सुभाषबाबू को घर जाने से रोकते हैं, तो पहले से ही गरमाया हुआ माहौल विस्फोटक स्वरूप धारण कर लेगा और उसके लिए हमें ज़िम्मेदार ठहराया जायेगा, यह सोचकर बंगाल सरकार की सुभाषबाबू को गिऱफ़्तार करने की हिम्मत ही नहीं हुई। लेकिन सुभाषबाबू के यहाँ आते ही बंगाल में क्या क्या उत्पात हो सकते हैं, यह बढ़चढ़ाकर बयान कर सरकार ने एक रिपोर्ट तैयार करके उसे अँग्रेज़ सरकार के पास भेज दिया। उससे स्तिमित हुई सरकार ने सुभाषबाबू को नज़ऱकैद में रखने का हु़क़्म फौरन जारी कर दिया, जिसे सुभाषबाबू को हवाई अड्डे से जब घर ले जाया जा रहा था तब पुलीस की गाड़ी में ही उनके हाथों में सौंप दिया गया।

उन्हें एल्गिन रोड स्थित उनके निवासी घर में ही स्थानबद्ध किया गया। परिवारसदस्यों के अलावा अन्य किसीको भी उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी। एक स्पेशल पुलीस अ़फसर को वहाँ चौबीस घण्टे तैनात किया गया था। आनेवाले या भेजे जानेवाले हर खत पर पुलीस की कड़ी नज़र थी और पुलीस की शर्तों का भंग हो जाने पर नये क़ानून के अनुसार सात साल तक की कैद की सज़ा भुगतनी पड़ेगी, यह भी उनसे कहा गया था।

आख़िर जीप उनके घर पहुँच गयी। घर पर छायी मायूसी सा़फ सा़फ दिखायी दे रही थी। सभी व्यवहार यंत्रवत् चल रहे थे। जेल में रहनेवाले मेजदा को पिताजी के गुज़र जाने के कुछ दिन पहले वहाँ लाकर वहीं पर स्थानबद्ध कर रखा गया था। मेजदा को देखते ही सुभाषबाबू ने दुख के आवेग से दहाड लगाते हुए उन्हें आलिंगन दिया। का़फी देर तक वे दोनों भी शोकसागर में डूबे हुए थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published.