वैभवलक्ष्मी का व्रत – ५

वैभवलक्ष्मी का व्रत – ५

वैभवलक्ष्मी के व्रतों का अचूकता से पालन करनेवाले अनेक लोग हम हमेशा ही देखते हैं, लेकिन अधिकांश बार कई साल गुज़र जाते हैं, फिर भी माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हुई दिखायी नहीं देतीं। फिर स्वयं के नसीब को अथवा ग्रहों को अथवा जादू-टोने को दोष दिया जाता है। लक्ष्मी माता यक़ीनन ही कृपालु, दयालु और […]

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वैभवलक्ष्मी का व्रत – ४

वैभवलक्ष्मी का व्रत – ४

उम्र के ५८वें साल में रिटायर होनेवाले अनेक तंदुरुस्त एवं हट्टे-कट्टे लोग भी, ‘अब इस उम्र में हम भला नया क्या कर सकते हैं?` इस विचार से क्रियाशून्य होकर बैठे हुए दिखायी देते हैं। परन्तु आज की यह कथा इन सभी धारणाओं को आरपार छेद देने वाली है। मेरे एक पेशंट, जिनके साथ काफ़ी मित्रता […]

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वैभवलक्ष्मी का व्रत-३

वैभवलक्ष्मी का व्रत-३

मेरी उम्र कुछ १२-१३ साल की रही होगी। हम सभी छोटे बच्चे मेरी नानी के परेल स्थित घर (जहाँ मेरा जन्म हुआ और जहाँ में बड़ा हुआ) के पास की पहाड़ी पर खेल रहे थे।  वहीं पर एक बोरियों से बनाया गया छोटा सा झोपड़ा था। वहीं पर वेणूबाई नाम की एक महिला अपने ५-६ […]

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वैभवलक्ष्मी का व्रत-२

वैभवलक्ष्मी का व्रत-२

श्री. विश्राम सावंत और सौ. नलिनी सावंत यह पतिपत्नी (उनका नाम बदला हुआ है) बचपन से मेरे पिताजी के पेशंट्स्‌‍ थे और कई सालों से उनके माता-पिता के साथ परिचय होने के कारण, उनके साथ घनिष्ठ संबंध थे। श्री. विश्राम सावंत के पास पैतृक पाँच दुकानें थीं और तीनों भाइयों की एक पूरी बिल्डींग थी। […]

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वैभवलक्ष्मी का व्रत – १

वैभवलक्ष्मी का व्रत – १

मैं जब परेल के शिरोडकर स्कूल में पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था, तब नरे पार्क मैदान के पास एक चौदह-पंद्रह साल का उत्तर भारतीय लड़का चने की टोकरी लेकर, दर असल उस टोकरी को गले में डालकर रिसेस (मध्यन्तर) के समय खड़ा रहता था। कोई भी उसे उसके ‘रामनिवास` इस नाम से नहीं बुलाता […]

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समर्थ इतिहास- २१

समर्थ इतिहास- २१

अगस्त्य ये भारतीय संस्कृति के एक सर्वश्रेष्ठ द्रष्टा, सबसे श्रेष्ठ एवं ज्येष्ठ ऋषि थे और पवित्र समन्वय की नीति को अपनाकर भारतीय संस्कृति की गुणवत्ता और संख्याबल का विकास करनेवाले प्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ धर्मप्रसारक थे। अगस्त्य मुनि के जीवन में घटित हुई विभिन्न घटनाओं और उनके कार्य का अध्ययन हमने किया। इस समग्र अगस्त्य-इतिहास के […]

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समर्थ इतिहास-२०

समर्थ इतिहास-२०

अगस्त्य ऋषि के जीवन में उनके द्वारा दंडकारण्य में किया गया निवास यह एक विलक्षण खंड है। उस काल में दंडकारण्य में सुसंस्कृत एवं नीतिमान समाज का बड़े पैमाने पर बसेरा था। वाकाटक, मधुमंत, शैवल ऐसे तीन सुसंस्कृत राज्य दंडकारण्य में थे। कृष्णा नदी के किनारे तक यह दंडकारण्य फैला हुआ था और इसका कुछ […]

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समर्थ इतिहास-१९

समर्थ इतिहास-१९

अगस्त्य मुनि का नाम लेते ही कथा-कीर्तनों में से एक ही कथा मुख्य रूप से बतायी जाती है और भारत का बच्चा बच्चा तक इस कथा को जानता है। समुद्र का पानी खारा क्यों है? इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यही कथा सर्वत्र बतायी जाती है। अगस्त्य मुनि ने एक आचमन में पृथ्वी […]

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समर्थ इतिहास-१८

समर्थ इतिहास-१८

लोपामुद्रा ये विदर्भ देश की राजकन्या थीं। ये दिखने में अत्यंत सुंदर, अप्सरा के समान और गुणों में भी अत्यंत पवित्र तथा मर्यादाशील थीं। अदिति माता नेे (अगस्त्य ऋषि की दादी – पितामही) लोपामुद्रा से विवाह करने की अगस्त्य ऋषि को आज्ञा दी। परन्तु ये तो ठहरें नैष्ठिक ब्रह्मचारी, पारिवारिक सुख का बिलकुल भी आकर्षण […]

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समर्थ इतिहास-१७

समर्थ इतिहास-१७

महर्षि अगस्त्य चिकित्साशास्त्र में भी अत्यंत निपुण थे और अनुसंधान करने की उनकी प्रवृत्ति के कारण अनेक अनुसंधान कर वे चिकित्साशास्त्र को प्रगतिपथ पर ले गये। ऋग्वेद में इसका पहला संदर्भ प्राप्त होता हैे (ऋग्वेद १/११८/८)। ‘खेल` नामक सम्राट ने इनके चरणों में अपनी निष्ठा अर्पण की और इन्हें अपने धर्मगुरु का स्थान दिया। आगे […]

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