समारोप करते हुए…

समारोप करते हुए…

    राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६४ जिसका प्रारंभ हुआ, उसका अन्त भी तो होना है| ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ के ‘चालता बोलता इतिहास’ में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ पर की लेखमाला शुरू होकर एक साल बीत गया| दरअसल देशविदेशों में विस्तार हो चुके और ९० वर्षों का इतिहास रहनेवाले संघ के बारे में कितना भी […]

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आख़िरी श्‍वास तक का ध्यास

आख़िरी श्‍वास तक का ध्यास

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६३ दिसम्बर १९९२ में छेड़े गये रामजन्मभूमि आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार ने संघ पर पाबंदी लगायी| सरसंघचालक बाळासाहब देवरस ने इस पाबंदी का कड़े शब्दों में निषेध किया| सरकार को इस मामले में उन्होंने पत्र भी लिखा| ‘देश बहुत ही मुश्किल हालातों का सामना कर रहा है| ऐसे समय […]

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तीसरी पाबंदी

तीसरी पाबंदी

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६२  ईमर्जन्सी पश्‍चात् के समय में संघ देशभर में सेवाकार्य को बढ़ाता रहा| इसलिए संघ का विरोध करनेवाले भी, संघ के सेवाकार्य की प्रशंसा कर रहे थे| आगे चलकर तो कुछ विरोधक, संघ के सेवाकार्य की प्रशंसा करते करते संघ की भी प्रशंसा करने लगे| इसका कारण यह था […]

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एक लाख सेवाप्रकल्पों की घोषणा

एक लाख सेवाप्रकल्पों की घोषणा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६१ भयानक रक्तपात घटित होने के बाद पंजाब धीरे धीरे शांत होने लगा। पंजाब का जनजीवन सुचारु रूप से चलने लगा। कट्टरपंथियों के हिंसाचार से त्रस्त हुई पंजाब की जनता ने ही दरअसल इस समस्या को एकता से सुलझाया। इसका एक ज़बरदस्त उदाहरण देता हूँ। एक जगह कट्टरपंथियों ने […]

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सेवाकार्य का विस्तार

सेवाकार्य का विस्तार

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ६० राष्ट्र सेविका समिति, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विवेकानंद केंद्र, विश्‍व हिंदु परिषद, दीनदयाल शोध संस्थान ये संघ द्वारा स्थापन किये गये संगठन देशभर में सेवाकार्य कर रहे थे। उनके कार्य पर बाळासाहेब की नज़र रहती थी। इस सेवाकार्य का हालाँकि बड़ा विस्तार हो रहा था, […]

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बाळासाहब की दूरदृष्टि

बाळासाहब की दूरदृष्टि

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५९ सामाजिक समरसता के बग़ैर एकता संभव नहीं है। समाज संघटित हुए बग़ैर राष्ट्र बलशाली नहीं होगा। इसीलिए बाळासाहब ने सामाजिक समरसता पर सर्वाधिक ज़ोर दिया। संघ द्वारा स्थापन किया गया ‘सामाजिक समरसता मंच’ फुरती के साथ यह कार्य करने लगा। देश के हर एक प्रांत में ‘सामाजिक समरसता […]

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अनेकता में एकता…

अनेकता में एकता…

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५८ खलिस्तान की माँग करनेवाले कट्टरपंथियों को ‘संघ’ यह उनका दुश्मन प्रतीत हो रहा था। उन्होंने कई स्वयंसेवकों की जान ली। लेकिन ‘देशहित के लिए बलिदान देने की तैयारी रखना’, यह पूजनीय सरसंघचालक का आदेश था। ‘चाहे अपने प्राण भी क्यों न चले जायें, लेकिन देश का दूसरा बँटवारा […]

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देश-विदेश

देश-विदेश

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५७ विराट हिन्दु सम्मेलन सफल रूप में संपन्न हुआ। इससे संघ का प्रभाव और क्षमता फिर एक बार सबकी नज़र में आ गयी। इंदिराजी ने स्वयं होकर बाळासाहब का शुक्रिया अदा किया था। इस सम्मेलन के बाद संघ ने पुनः अपने कार्य की ओर ध्यान केंद्रित किया। विराट हिन्दु […]

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विराट हिन्दु सम्मेलन

विराट हिन्दु सम्मेलन

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५६ सरसंघचालक ने फ़ौरन संघ तथा विश्‍व हिन्दु परिषद के ज्येष्ठ कार्यकर्ताओं की दिल्ली में बैठक बुलायी। इस बैठक में ‘विराट हिन्दु सम्मेलन’ के सूत्र हाथ में लेने का निर्णय किया गया और कार्य का नियोजन भी किया गया। मेवाड के महाराणा भगवतीसिंहजी, जो विश्‍व हिन्दु परिषद के अध्यक्ष […]

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संघ का प्रभाव

संघ का प्रभाव

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५५ सरसंघचालक का देशभर में प्रवास शुरू हो गया। इमर्जन्सी का दौर ख़त्म होकर देश में चुनाव संपन्न हुए थे और जनता पार्टी की सरकार सत्ता पर आयी थी। इमर्जन्सी के दौर में जो कुछ भी हुआ, उसे पीछे छोड़कर संघ पुनः अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित करें, इसके […]

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