दृष्टिपटल और आँखों के कार्य

अब तक हमने आंखों के बारे में सविस्तर जानकारी प्राप्त की। आज हम कुछ महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प चीजों का अध्ययन करेंगे। दृष्टिपटल का महत्त्व हमने देखा है। आँखों के दो महत्त्वपूर्ण गुणधर्म हैं – रंगों की पहचान व रंगों की अलग अलग पहचान करना तथा अंधेरे में दृष्टि दौड़ाना। ये कार्य दृष्टिपटल की कुछ विशिष्ट पेशियों के कारण होती हैं।

दृष्टीपटल और ऑंखो के कार्य

दृष्टिपटल में रॉडस् और कोन्स नायक पेशियां होती हैं। अपनी रंगदृष्टि अथवा रंगज्ञान कोन्स पर अवलंबित होता है। तथा अंधेरे में दृष्टि दौड़ाने का काम रोड्स करती हैं। दृष्टिपटल में कुछ दस पतले पापुडे होते हैं। यदि अंदर की ओर से बाहर की ओर देखते जाए तो अंतिम से दूसरा अर्थात नवॉं पापुद्रा रॉडस् व कोन्स का होता है। अंतिम दसवॉं पापुद्रा पिंगमेंट पापुद्रा होता है इसमें मेलॅनीन नामक काले रंग का द्रव पदार्थ पेशियों में होता हैं। अब हम इन दो पापुद्रों के महत्त्व की जानकारी लेंगे।

आंखों के भिंग से दूसरी ओर जानेवाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल के अंदर के पापुद्रा पर पड़ती है तथा अंदर प्रवेश करती हैं। प्रकाश किरणें जब अंतिम पिंगमेंट पापुद्रा पर पहुँचती हैं तब वहॉं के मेलॅनीन द्रव द्वारा इन किरणों को शोषित किया जाता है। इस तरह आँखों के अतिरिक्त प्रकाश को शोषित किया जाता है। यदि अंतिम पापुद्रा में मेलॅनीन नहीं होता जो सोचो क्या होगा ? प्रकाश किरणों का वहॉं से परावर्तन हो जायेगा व सारा प्रकाश फिर से आंखों में सभी दिशाओं में फैल जायेगा। इसके अलावा अतिरिक्त प्रकाश के कारण हम कोई भी चीज स्पष्ट रुप से नहीं देख पायेंगे। सारी वस्तुएं, चीजें दृष्य हमें धूमिल दिखायी देंगे।

रॉडस् और कोन्स दोनों में कुछ रासायनिक पदार्थ होते हैं ये रसायन प्रकाश संवेदनक्षम होते हैं। प्रकाश किरणों से इन रसायनों का विघटन होता है। रॉडस् के रसायन को व्होडाप्सिन कहते हैं। कोन्स के रसायन को रंगद्रव्य कहा जाता है। रॉडस् में प्रवेश के बाद प्रकाश किरणों का विघटन स्कोटाप्सिन रसायन में होता है। स्कोटाप्सिन का फिर से व्होडाप्सिन में रुपांतर होने के लिये ‘अ’ जीवनसत्त्व की आवश्यकता होती है। ‘अ’ जीवनसत्त्व (व्हिटॅमिन ए) इस रासायनिक क्रिया में भाग लेता है जिससे स्कोटाप्सिन का रुपांतर व्होडाप्सिन में हो जाता है। अ जीवनसत्त्व का काफी बड़ा भंडार अपने यकृत में होता है। यदि अन्न, भोजन में ‘अ’ जीवनसत्त्व की कमी भी हो तो भी कुछ महीनों तक इसका अहसास नहीं होता। परंतु ६ महीनों तक कुपोषण शुरु रहने पर धीरे धीरे ‘अ’ जीवनसत्त्व का भंडार समाप्त हो जाता है। यदि समय पर भोजन अथवा दवाईयों के माध्यम से ‘अ’ जीवनसत्त्व नहीं दिया गया तो उस व्यक्ति को रातौंधी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को धुंधले प्रकाश में या अंधेरे में बिल्कुल नहीं दिखायी देता। इससे हम यह जान सकते हैं कि आंखों के लिये ‘अ’ जीवनसत्त्व कितना महत्त्वपूर्ण है !

हमें अंधेरे में दिखायी देता है ,इससे क्या तात्पर्य है ? हम सबने इस बात का अनुभव किया है कि जब हम प्रकाश से अंधेरे में जाते हैं तो कुछ समय तक हमें कुछ भी दिखायी नहीं देता। धीरे धीरे हमारी दृष्टि अंधेरे में फैलने लगती है व हमें अंधेरे में भी दिखायी पड़ने लगता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में डार्क अडोप्टेशन कहते हैं। इसके विपरित काफी समय अंधेरे में रहने के बाद जब हम अचानक प्रकाश में आते हैं तो भी शुरुआत में हमें कुछ भी नहीं दिखाई देता। धीरे धीरे प्रकाश में भी दिखायी देने लगता है। इसे हमें लाईट अडोप्टेशन कहते हैं। अब हम देखेंगे कि इन दोनों अवस्थाओं में दृष्टिपटल में कौन से बदलाव होते हैं।

प्रखर प्रकाश में जाने पर आँखों में घुसनेवाली प्रकाश किरणों के कारण बहुतांश न्होडॉप्सिन का विघटन होता है तथा —- न्होडॉप्सिन तैयार नहीं होते। फलस्वरुप न्होडॉप्सिन युक्त रॉड्स की संख्या कम हो जाती है। इसके कारण दृष्टिपटल की प्रकाश संवेदन क्षमता कम हो जाती है। इसीके साथ आँखों की पुतलियों में भी आकुंचन होता है। जिसके कारण दो चीजें होती हैं। हम चाहे जितने भी प्रखर प्रकाश में क्यों न हो फिर भी पुतलियों से काफी कम मात्रा में प्रकाश आंखों में प्रवेश करता है और इससे से भी काफी कम प्रकाश कमा संवेदन पेशियों द्वारा होता है। अर्थात काफी मात्रा में प्रकाश शोषित हो जाता है। इसीलिये अलग बगल प्रखर प्रकाश होने के बावजूद अपनी आँखों के लिये सामान्य प्रकाश का ही वातावरण तैयार हो जाता है तथा हमें दिखायी पड़ने लगता है।

अंधेरे में जाने पर ठीक इसके विपरित होता है। प्रकाश की कमी के कारण रॉड्स के न्होडॉप्सिन का पर्याप्त विघटन नहीं होता है। फलस्वरुप दृष्टिपअल की प्रकाश संवेदन ब़ढ़ जाती है। साथ ही साथ आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं जिसके कारण अधिक प्रकाश आंखों में प्रवेश करता है।

रंगदृष्टी – दृष्टिपटल की कोन्हा नामक पेशी में रंगद्रव्य होते हैं। तीन भिन्न भिन्न रंगद्रव्यों वाली तीन भिन्न भिन्न प्रकार के कोन्स होती हैं। नीले, हरे, व काले। यहीं तीन रंगद्रव्य सभी प्रकार के कोन्स में होते हैं। प्रकाश की विभिन्न लम्बाई वाली प्रकाश किरणों का शोषण कितनी मात्रा में होता है यह अवलंबित रहता है। जब सारी प्रकाश किरणें सभी कोन्स में समान मात्रा में शोषित की जाती हैं तो हमें सफेद रंग दिखायी देता है।

रंग का अंधापन (कलर ब्लाईंडनेस)

कलर ब्लाईंडनेस का क तार्त्पय है ? तीन प्रकार के रंगद्रव्य वाले कोन्स में से यदि कियी प्रकार के कोन्स दृष्टिपटल पर नहीं होंगे तो हमें उन पर आधारित रंगों का ज्ञान नहीं होता। उदा. यदि लाल और हरे दोनो कोन्स दृष्टिपअल पर नहीं होंगे तो वह व्यक्ति लाल, हरा, पीला, नारंगी, चारो रंग नहीं पहचान सकता। इस प्रकार के रंग का अंधापन बहुतांश में दिखायी देता है। यह रंगाधापन रंगसूत्रों से आता है। लिंगदर्शक एक्स रंगसूत्र के दोष के कारण इस प्रकार का रंगाधपन होता है। यह दोष सिर्फ पुरुषों में पाया जाता है। क्योंकि पुरुषों में एक ही रंगसूत्र होता है। जाहिर है यह रंगसूत्र मॉं से आता है। अर्थात स्त्री ही इस दोष की वाहक होती है। यानी इस दोष की बाहक स्त्रियां होती हैं और दोष पुरुषों में निर्माण होता है। स्त्रियों में यह दोष नहीं आता क्योंकि उनके दो एक्स रंगसूत्रों में से एक ही रंगसूत्र दोषयुक्त होता है।

अब तक हमने अपनी आंखों के बारे में सविस्तर जानकारी हासिल की। अब हम अपनी अन्य ज्ञानेंद्रियों की जानकारी हासिल करेंगे।

ऑंखे :

भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४,

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