आँखों की रचना – भाग २

आज हम आँखों से संबंधित परंतु आँख के गोलों से बाहर रहनेवाले भागों की जानकारी हासिल करेंगे। ये अवयव कौन कौन से हैं? ये अवयव निम्नलिखित हैं:

१) आँखों के बाहरी स्नायु
२) भौहें और पलकें
३) कंजंक्टाचव्हा
४) अश्रुग्रन्थियां
५) लॅक्रीमल सॅक (अश्रु थैली) व नासोलॅक्रीमल नलिका।

अब इनकी सविस्तर जानकारी लेते हैं।

१) आँखों के बाहरी स्नायु

आंखों के चारों ओर कुल सात स्नायु होते हैं। सात में से एक स्नायु ऊपरी पलकों से ज़ुडा रखता है। इससे आंखें खुली रखने में मदत होती हैं। अन्य छः स्नायु आंखों के दीदों को अलग अलग दिशाओं में घुमाने में मदत करते हैं। इनकी सहायता से ही हम आँखों को विभिन्न दिशाओं में घुमा सकते हैं। हम उनके नामों की जानकारी लेंगे और यह भी देखेंगे कि वे आँख की किस हलचल के लिये कारणीभूत होते हैं। सुपिरिअर व इनफिरिअर, मिडीयल व लॅटरल रेक्टाय इन चारों और सुपिरिअर व इनफिररिअर आँबलिक नामक दो स्नायुओं के फलस्वरुप अपनी आँखें ऊपर, नीचे, नाक की दिशा में, बाहर की ओर व गोलाकार अथवा वर्तुलाकार ऐसी विभिन्न दिखाओं में घूमती हैं। इन गतिविधियों पर ये स्नायु नियंत्रण रखते हैं। किन स्नायुओं के कारण कौन सी गतिविधि होती हैं, यह हम नीचे दी गयी आकृति से तुरंत समझ सकते हैं।

eyes
सुपिरिअर रेक्टस् व इनफिरिअर ऑबलिक स्नायुओं के आकुंचन से आंख ऊपर की ओर घूमती हैं।

इनफिरिअर रेक्टस् व सुपिरिअर ऑबलिक स्नायुओं के आकुंचन के कारण आंख नीचे की ओर घूमती हैं।

मिडियल रेक्टस् के आकुंचन से आँख नाक की ओर घूमती है और लैटरल रेक्टस् के आकुंचन के कारण बाहर की ओर घूमती है।

उचित गतिविधि होने के लिये उचित स्नायुओं का सिर्फ आकुंचित होना ही पर्याप्त नहीं होता। बल्कि उन गतिविधियों में विरुद्ध गतिविधि करनेवाले स्नायुओं का प्रसरण अथवा उनका फैलना भी आवश्यक होता है।

यह सब समझने का महत्व क्या है ? आँखों का तिरछापन अथवा कानापन से सभी परिचित हैं। यह तिरछापन इन स्नायुओं की खराबी के कारण होता है। उदा. यदि हमें हमारी ही नाक की दिशा में देखना हो तो दोनों आँखों की मिडिअल रेक्टस् स्नायुओं का आकुंचित होना आवश्यक है। समझो दाहिनी आँख का यह स्नायु किन्हीं कारणों से आकुंचित नहीं हो रहा होगा तो दाहिनी आँख नाक की दिशा में नहीं घूमेंगी परंतु बांयी आँख की ओर घूम जायेगी। फलस्वरुप सामने से देखनेवालों को ऐसा लगेगा कि दोनों आँखें एक ही दिशा में न मुडकर दो अलग अलग दिशाओं में घूमी हैं। इसको ही हम तिरछापन (भेंगापन) कहते हैं। तिरछापन स्नायुओं की खराबी के कारण होता है। अतः आँख के दीदों को बिना धक्का लगाये उचित शल्यक्रिया करके यह दोष दूर किया जा सकता है।

२) भौंहें: आँखों के ऊपर बालों की पट्टी।

पलकें: पलकें दो होती हैं। ऊपर व नीचे की पलकें। इन पलकों के किनारे पर बारीक जाल होते हैं। उपर की पलक को खोल मूंद करके हम आँखे बंद या खुली रख सकते हैं । यदि आँखें लगातार खुली रखी गयी तो सतत हवा के संपर्क में आने के कॉरनिया के शुष्क पडने का भय रहता है। इसीलिये पलकों का खुलना, बंद होना लगातार होता रहता है। फलस्वरुप दो चीजें होती हैं| पहली यह कि उस क्षण कारनियां का संबंध हवा से टूट जाता है और उसी क्षण आँखों के आँसू कारनिया के सामने का भाग स्वच्छ कर देते हैं। जैसे गीले कपड़े से लादी (फर्श) साफ की जाती है।

३) कंजक्टायव्हा : यह पलकों के अंदर रहनेवाला पारदर्शक पर्दा है। यह आँखों के गोलाकार सामने के रक्तेए — पर फैलता है तथा कॉरनिया से एकरुप हो जाता है।

४) अश्रुग्रंथियां : आँखों में अश्रुग्रन्थियां आँखों के ऊपरी, बाह्य भाग पर होती हैं। (नाक के विरुद्ध दिशा में तथा ऊपरी पलकों के नीचे ) सामान्यतः इनका आकार बादाम की तरह होता है।  इनका काम आंसुओं को तैयार करना होता है। इसको साथ ही पलकों के अंदर भी छोटी छोटी अश्रुग्रन्थियां होती हैं। इनकी मात्रा ऊपरी पलकों में ज्यादा होती हैं।

५) अश्रु की थैली व नासो ऍक्टिमल नलिका : हमारी आँखों में आंसू सतत तैयार होते रहते हैं। आँखों में नाक के बाजू में (बगल में ) थैली जैसे भाग में ये आंसू जमा होते रहते हैं। वहॉं से ये लॅक्रिमल नली द्वारा नाक में छोडे जाते हैं। इस नली की लम्बाई साधारणतः १८ मिमि होती है।

आज तक हमने आँखों की रचना उसके विभिन्न भाग के बारे में अध्ययन किया। अब आगे हम आँखों के कार्य के बारे में सविस्तर जानकारी ग्रहण करेंगे। (क्रमशः)

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