अस्थिसंस्था भाग – ३५

 

पैंर का पंजा

   अपने पैरों के बारे में जानकारी लेते-लेते हम अब अंतिम चरण तक आ पहुँचे हैं। अपने पंजे की अस्थियों व जोड़ों के बारे में हम जानकारी प्राप्त कर रहें हैं। एड़ी की जानकारी हमनें कल प्राप्त की। आज हम टारसल अस्थि के जोड़ से शुरुआत करेंगें। सर्वप्रथम हम इन जोड़ों के बारे में जानेंगें और बाद में उनकी गतिविधियों का अध्ययन करेंगे।

asthisanstha-35 - पंजे की अस्थियाँ

१)सबटॅलर अथवा टॅलोकॅलकेनिअल जोड़

   टॅलस के पीछे की ओर अंतर्वक्र फॅसट और कॅलकेनिअस के ऊपरी भाग का बहिर्वक्र फॅसट के बीच यह जोड़ बनता है। यह मल्टीएक्सियल जोड़ है। चार लिंगामेंटस् और जोड़ के कॅपसूलों द्वारा यह जोड़ मजबूती से जकड़ा रहता है।

२)टॅलोकॅलकेनिओनेविक्युलर जोड़ – इसके नाम से हा पता चलता है कि इस जोड़ में कुल तीन अस्थियां साथ-साथ होती हैं। टॅलस का सिरा, नेविक्युलर का एड़ी की तरफ का हिस्सा तथा कॅलकेनिअस का टॅलर फॅसेट्स के बीच यह जोड़ बनता है। यह मिश्र और मल्टीएक्सियल जोड़ है। इसे कॅपसूल व बाजू के तीन लिंगामेंट्स एकत्रिक रखते हैं।

३)कॅलेकेनिओक्युबॉइड – जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह क्युबॉइड व कॅलकेनिअम इन दो अस्थियों के बीच बनता है।

४)क्युनिओ नेविक्युलर जोड़ – यह मिश्र जोड़ तीन क्युनिफॉर्म अस्थियां व नेविक्युलर के बीच बनता है।

५)क्युबायडो नेविक्युलर जोड़ – यह फायबरस जोड़ अथवा सिन्डेसमोसिस प्रकार का जोड़ हैं।

६)क्युनिओक्युबॉइड व क्युनिफॉर्म अस्थियों का जोड़ – यह सायनोवियल जोड़ है।

   प्लॅन्टर व डार्सीफ्लेक्शन की गतियों के अलावा अन्य जो भी गतियाँ (क्रियायें) हमारे पंजों में होती हैं वे उपरोक्त दिये गये पहले दो जोड़ों में होती है। शेष जोड़ उस में कुछ हद तक सहभागी होते हैं। परन्तु अन्य जोड़ों में ज्यादा कुछ गतियां नहीं होती।

   अस्थियों का एक दूसरे पर सरकना और एक-दूसरे के चारो ओर घूमना ये दो प्रमुख गतियां सबटॅलर व टॅलोकॅलकेनिओनेविक्युलर इन दो जोड़ों में होती है। ये क्रियायें दो भिन्न स्थितियों में भिन्न होती हैं।

   जब पंजा जमीन से ऊपर उठा हुआ होता है अथवा जब भार वहन नहीं कर रहा होता है तो पैर का तलुआ अंदर की ओर घूमता है। पंजो का अंदरूनी किनारा ऊपर उठता है और बाहरी किनारा नीचे की ओर जाता है। इस दौरान थोड़ा प्लॅन्टर फ्लेक्शन भी होता है। इन क्रिया को इनव्हरर्जन (inversion) कहते हैं तथा इस स्थिती को पैर की इनव्हरटेड़ फूट अथवा पंजा कहते हैं। संक्षेप में यह स्थिती है जब हम पालथी मारकर बैठते हैं। इसके विपरित क्रिया को इव्हर्जन (eversion) कहते हैं। इव्हर्जन की क्रिया इनव्हर्जन की तुलना में काफी कम होती हैं।

   जब हमारे पैर जमीन पर टिके होते हैं तथा भार वहन का काम करते हैं तब इस गति में बदलाव होता है। इस स्थिती में पैर का अंगूठा व अंदरुनी किनारा जमीन की ओर यानी नीचे मुड़ता है। इसे प्रोनेशन कहते हैं तथा इसके विपरीत जब अंगूठे का अंदरूनी किनारा ऊपर उठता है तो उसे सुपायनेशन कहते हैं। पंजे की इस क्रिया में टिबिया, फ्युबुला व फीमर इन तीन अस्थियों में रोटेटरी गति होती हैं। अब हम पंजे के अगले हिस्से की तरफ मुड़ते हैं।

मेटाटारसल अस्थि :- पंजे की मेटाकारपल की तरह इस में पाँच मेटाटारसल अस्थियां होती हैं। पंजे के अंदर की तरफ से बाहर की ओर इन्हें एक से पाँच नंबर दिया गया है। यानी पैर के अंगूठे की रेषा में पहली मोटाटारसल हड्डी तथा छनगुनियां की रेषा में पाँचवी मेटाटारसल हड्डी आती है। प्रत्येक मेटाटारसल के मध्य भाग में शॅफ्ट होता है। टारसल अस्थि के पास इसका चौड़ा बेस अथवा पाया होता है । तथा अंगुलियो की फॅलेंजियल अस्थि के पास इसका सिरा होता है। प्रथम व पाँचवे मेटाटारसल का शॅफ्ट काफी मोटा होता है तथा छोटा भी होता है। शेष तीनों मेटाटारसल लम्बी होती हैं तथा शॅफ्ट पतला होता है। इनमें भी दूसरी मेटाटारसल सबसे लम्बी होती है। तीसरे व चौथी अनुक्रमें छोटी होती जाती है। मेटाटारसल के बेस का टारसल अस्थि (दूसरी कतार की) के बीच टासोंमेटाटारसल जोड़ बनते हैं। पाँचवे मेटाटारसल के बेस पर बाहर की ओर एक उभार होता है। छनगुनियां के नीचे पंजे के बाहरी किनारे पर यह उभार हाथों में सहजता लगता है।

टासोंमेटाटारसल जोड़ :- इसका संबंध इस प्रकार होता है, पहली मेटाटारसल व अंदर की क्युनिफॉर्म, दूसरी मेटाटारसल व बीच की क्युनिफॉर्म, तीसरी मेटाटारसल व बाहरी क्युनिफॉर्म, चौथी मेटाटारसल तथा बाहरी क्युनिफॉर्म व क्युबॉइड और पाँचवी मेटाटारसल व क्युबॉइड । साधारणतया में पाँचों जोड़ एक ही आडवी सरल देखा में तो होते हैं। यहाँ पर ही पंजों की आडवी कमान बनती है। (transverse arch) । ये सभी जोड़ सायनोवियल जोड़ हैं। इन जोड़ों में तथा दो मेटाटारसल अस्थियों के जोड़ों में अतिअल्प गति होती है।

ऑसिफिकेशन :- प्रत्येक मेटाटारसल के शॅफ्ट में सबसे पहले ऑसिफिकेशन होता है। पहली मेटाटारसल के बेस में तथा अन्य मेटाटारसल के सिरों में दूसरा ऑसिफिकेशन केन्द्र होता है। शफ्ट का केन्द्र गर्भ नववें से दसवें सप्ताह में दिखायी देता है। प्रथम मेटाटारसल के बेस में केन्द्र उम्र के तीसरे वर्ष तथा अन्य मेटाटारसल के सिरो में केन्द्र तीन से पाँच वर्ष के दरम्यान दिखायी देने लगते हैं। उम्र के १७ से २० वर्ष के दौरान ये भाग मुख्य शफ्ट के साथ जुड़ते हैं।

फॅलेंजेस अथवा अंगुलियों की अस्थि :- हाथों की तरह यहाँ भी अंगूठें में दो व अन्य अंगुलियों में तीन-तीन फॅलेंजेस होती हैं। हाथों की अंगुलियों की तुलना में ये छोटी परन्तु मोटी व चौड़ी होती हैं। इनमें भी बीच की फॅलॅन्क्स ज्यादा मोटी होती हैं। भार वहन का कार्य करने के लिये तथा गति में ताकत लाने के लिये यह बदलाव आवश्यक होता है। पैरों की सभी फॅलेंजेस व मोटाटारसल अस्थियों के शॅफ्टस् पंजे के ऊपरी भाग की ओर उभारे होते हैंतथा तलुवे की ओर अंर्तवक्र होते हैं। मेटाटारसल के सिरे तथा प्रथम फॅलेंजेस का बेस के बीच मेटाटार्सोफॅलेंजियल जोड़ बनता है। तथा दो फलेंजेस् के बीच इंटरफॅलेंजियल जोड़ बनते हैं। प्रत्येक जोड़ में फायबरस कॅपसूल होता है तथा दोनो बाजू में लिंगामेंट्स होते हैं।

   मेटाटार्सोफॅलेंजियल जोड़ में हाथ की तरह ही फ्लेक्शन व एक्सटेंशन दो मुख्य क्रियायें होती हैं। परन्तु यहाँ पर फलेक्शन की तुलना में एक्सटेंशन ज्यादा मात्रा में होता है। अंगूठे में लगभग ९०° अंश तक एक्सटेंशन संभव होता है। फलस्वरूप पैरो की सभी क्रियायें सुलभ हो जाती हैं।

   इंटरफॅलेंजियल जोड़, बिजागरी जोड़ होते हैं। फ्लेक्शन और एक्सटेंशन ये दो क्रियायें ही संभव होती हैं। यहाँ पर फ्लेक्शन एक्सटेंशन की अपेक्षा ज्यादा होता है। पहले और पाँचवे फॅलेंजेस के बीच इन गतियों का रेंज ज्यादा होती है। वहीं बीचकी व तीसरी फॅलेंजेस के बीच इन गतियों का रेंज ज्यादा होती है। वहीं बीच की व तीसरी फॅलेंजेस के बीच रेंज कम होती है।

   अब तक हमने पंजों के बारे में जानकारी हासिल की। इसकी रचना का व प्रतिदिन की गतिविधियों का संबंध तथा उससे संबंधित अन्य चीजों के बारे में हम कल के लेख में जानकारी प्राप्त करेंगे।

(क्रमश:)

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