अस्थिसंस्था भाग – १५

types-of-joints

सायनोवियल जोड की रचना हमने देखी। सांधों में उनके जोड़ और गति के आधार पर इनका वर्गीकरण किया जा सकता है। रचना के अनुआर इसके तीन उपप्रकार हैं –

१)सर्वसाधारण अथवा सिंपल सांधा :- जिस सांधे में सिर्फ  दो हड्डियाँ ही सहभागी होती हैं उसे सिम्पल सांधा कहते हैं। इस में एक हड्डी का उभरा हुआ भाग दूसरी हड्डी के गहरे भाग में घुसने से सांधा बनता है।

२)संयुक्त अथवा कंपाऊंड सांधा :- जिस सांधा में दो से अधिक हड्डिया सहभागी होती हैं उसे संयुक्त सांधा कहा जाता है। उदा. – कोहनी का सांधा।

३)मिश्र अथवा कॉम्प्लेक्स सांधा :- जिस सांधा में दोनों हड्डियों के बीच में मेनिस्कस चकती होती हैं उसे मिश्र सांधा कहते हैं। इस सांधे में दोनों हड्डियाँ अलग-अलग सायनोवियल पोकली में होती हैं। उदा.- घुटने का सांधा।

सायनोवियल सांधे की गति कुछ विशिष्ट दिशाओं में होती हैं। यदि संदर्भ के रूप में अपने शरीर को लें तो अगले ती अक्षों (axis) में सांधे के गति होती है।

१)व्हर्टिकल(सिर से लेकर पाँव तक)
२)होरिझॉटल (शरीर की मोटाई में वांयी से दांयी ओर जाने वाला)
३)ऑटॉरोपोस्टिरिअर (अथवा पीछे से आगे और आगे से पीछे)

कुछ सांधे एक ही अक्ष में गति करते हैं। उन्हें युनि ऑक्सिअल(uni axial) सांधे कहा जाता है। कुछ सांधे दो अक्षों में कार्य करते हैं उन्हें बाय ऑक्सिअल (bi axial) तथा कुछ सांधे तीनों अक्षों में गति करते हैं उन्हें मल्टि ऑक्सिअल(multi axial)सांधे कहते हैं।

सांधो की रचना व गति पर आधारित प्रत्येक के तीन उपप्रकार हमने देखें। यह सब टेक्निकल अथवा तांत्रिक जानकारी थी। सादी भाषा में सांधों की आकृति के आधार पर सर्वसामान्य की समझ में आने वाले नाम दिये गये है। जो इस प्रकार हैं –

अ)सरल सांधा :- इस में हड्डियों के सपाट भाग के एकत्र आने से यह सांधा बनता है। इस में हड्डियां सिर्फ  एक-दूसरे के ऊपर सरकती हैं या घूमती हैं। ऐसे सांधे हाथों के पंजे में (कलाई) और पैरों के तलवे (एड़ी) में पाये जाते हैं। इन्हें सरकता सांधा भी कहते हैं।

ब)विजागरी सांधा :- दरवाजों के बिजागरों (hold fast) की तरह इनकी गति सिर्फ  एक ही दिशा में ही होती है। ये सांधे युनिऑक्सिल – एक अक्षीय होते हैं। उदा.- कोहनी का सांधा

क)कील का सांधा (pivot joint) – इस में एक हड्डी का खड़ा कीला जैसा भाग दूसरी हड्डी के गहरे गोलाकार भाग में बैठ जाता है। इस सांधे की गति सिर्फ  गोलाकार ही होते है (rotation)। यह गति दो प्रकार से होती है –

१)कीला जैसा भाग दूसरी हड्डी के रिंग में घूमता है। रिंग स्थिर रहती है।

२)कीला के चारों ओर दूसरी हड्डी की रिंग घूमती है।
उदा.- गर्दन के पहले दो मणिकायें। दूसरी मणिका का कीला जैसा भाग (axis) के चारों ओर पहली मणिका (atlas) की रिंग घूमती हैं। फलस्वरूप खोपड़ी घूमती है।

ड)बाय काँडिलर सांधा – एक हड्डी के दो उभरे हुये भाग तथा दूसरी हड्डी का एक ही गहरा भाग मिलकर यह सांधा बनता है। उदा.- गुडदा।
इ)लंबवर्तुलाकारसांधा – इस में एक हड्डी का उभरा भाग, दूसरी हड्डी के लंबवर्तुलाकार गहरे भाग में जुड़ा होता है। उदा.- हाथ व कलाई की हड्डियों के जोड़।

फ)सॅडल सांधा – इस सांधे की प्रत्येक हड्डी में उभार व गहरे भाग होते हैं। ऐसा सांधा हाथ के अंगूठें व पंजा को जोड़ने वाला होता है।

ज)बॉल अँड सॉकेट सांधा – अंग्रेजी में इसे (ball and socket) सांधा कहते हैं।

इस में एक हड्डी का गेंद जैसा गोल अथवा सिर दूसरी हड्डी के गहरे भाग में बैठा रहता है। उदा.- कंधा और कमर के सांधे।

सायनोवियल सांधा में और अन्य सांधों में भी किस-किस प्रकार की गति होती है वह संक्षेप में देखेंगे। मानवी शरीर के सांधों में कुल चार प्रकार की मुख्य गतियां होती हैं। ये सभी प्रकार की गतियाँ सभी प्रकार के जोड़ों में नहीं होती। ये गतियाँ निम्नलिखित हैं –

१)ट्रान्सलेशन, ग्ल्यायडिग अथवा सरकना : – इस में सांधे में सहभागी होने वाली दोनों हड्डियां, एक-दूसरे पर अथवा बाजू से सरकती हैं। उपर बताये गये सभी प्रकार के सरकने वाले जोड़ो में यह गति होती हैं।

२)अ‍ॅम्युलेशन अथवा कोणीय गति :- इस प्रकार के सांधों की दोनों हड्डियाँ गति के समय एक दूसरे के साथ कुछ कोण बनाती है। इस में चार प्रकार की गतियाँ होती हैं। समझने के लिये आसान हो, इसलिये हम अपने हाथ का उदाहरण लेते हैं। हमारी कोहनी में हम हाथ मोड़ते हैं अथवा नजदीक लाते हैं। इसे (flexion) अथवा मोड़ना कहते हैं। जब हम कोहनी की गति इसके विपरीत करते हैं तो हाथ सीधा अथवा लम्बा हो जाता है। इसे (extension) कहते हैं। ये दो तरह की गतियां हुयी। अब हम कंधे का उदाहरण लेते हैं। अपने कंधों के सांधों का उपयोग करके हम अपना हाथ शरीर से दूर ले जा सकते हैं। इसे (abduction) कहते हैं। इसी तरह हम हमारा हाथ शरीर के पास अथवा मध्य तक ला सकते हैं। इसे (adduction) कहते हैं । ऐसा हैं यह कोणीय गति का समूह।

३)सरकमडक्सन :- यह गति ऊखली के सांधों में होती हैं (कंधा और कमर)। इसमें ऊपर बतायी गयी चारों गतियां, इस क्रम से होती हैं। फ्लेक्शन, अ‍ॅबडक्शन, एक्सटेन्शन व अ‍ॅडक्सन।

संक्षेप में क्रिकेट के खेल में गेंदबाज के हाथों की जो गति गेंद फेंकते  समय होती है।

४)रोटेशन अथवा गोलाकार घूमना : – इसका वर्णन हमने पहले देखा ही है।

ऐसा है यह सांधा पुराण। परन्तु शुरुआत के विनोदी किस्से को तो पूरा ही करना चाहिये। टेनिस एल्बो का क्या तात्पर्य है? यह विकार कोहनी के जोड़ो में होता हैं। यदि कोहनी के जोड़ पर लगातार अतिरिक्त तनाव पड़ता जाये तो उसके कुछ लिगामेन्टस् चोटिल हो जाते हैं। इसके कारण कोहनी के सांधे की गति करते समय कष्ट होता है। सांधे में सूजन आ जाती है और वह दुखने लगती है। प्राय: यह तकलीफ  लॉन टेनिस के खिला़डियों को होती है। यह तकलीफ  सबसे पहले टेनिस के खिलाड़ी को हुई इसलिए इसका नाम ‘टेनिस एल्बो’ रखा गया। परन्तु यह विकार किसी को भी हो सकता है, जिसकी कोहनी के जोड़ पर अतिरिक्त तनाव पड़ता हो।

ऐसी है यह टेनिस एल्बो की कथा।
(क्रमश:)

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