श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५८)

मैं था ऐसा अहंकारी। हो गया नि:शब्द शर्मसार। पहली मुलाकात में ही यह अनुचित। आचरण हुआ था मुझसे॥ साईनाथ के मुख से ‘क्या कहा इन ‘हेमाडपंत’ ने’ ये उद्गार निकलते ही हेमाडपंत को अपनी गलती का एहसास हो गया। हेमाडपंत कहते हैं कि बाबा ने जब स्वयं अपने मुख से उस वाद-विवाद का उल्लेख किया […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५७)

‘हेमाडपंत’ इस नामकरण के द्वारा वाद-विवाद से बाबा ने जिस तरह हेमाडपंत को दूर किया उसी तरह जिस विषय पर विवाद उठ खड़ा हुआ था, उसका भी समाधान बाबा ने किया। ‘गुरु की आवश्यकता ही क्या है? गुरु की आवश्यकता है या नहीं?’ इस विषय पर उनका भाटे के साथ वाद-विवाद छिड़ा हुआ था। आते […]

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श्रीसाईसच्चरित: अध्याय-२ (भाग-५६)

श्रीसाईसच्चरित: अध्याय-२ (भाग-५६)

‘हेमाडपंत’ की कथा एक अन्य मर्म को भी उद्घाटित करती है और वह मर्म है, सद्गुरु अपने भक्तों में उचित परिवर्तन कराने के लिए ही लीला करते हैं, भक्तों के मन को बदलने के लिए ही सद्गुरु इस प्रकार की लीला करते हैं। सबसे बड़ा चमत्कार कौनसा? तो मानवी मन को बदलना, और केवल बदलना […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५५)

वाडे में क्या चल रहा था। किस बात पर बहस चल रही थी। क्या कहा इन ‘हेमाडपंत’ ने। मेरी ओर देखते हुए कहा॥ ऊपर लिखित पंक्तियों के माध्यम से श्री. गोविन्द रघुनाथ दाभोलकरजी हमें उनके ‘हेमाडपंत नामकरण के प्रसंग’ को पूरी तरह स्पष्ट कर रहे हैं। शिरडी में आते ही श्रीसाईसच्चरितकार ने बाबा के चरणों […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५४)

अपनी वाणी का उचित उपयोग करना अर्थात इस साईनाथ का गुणसंकीर्तन करने का ध्यान सदैव बना रहे। इसी लिए दाभोलकर ने ‘हेमाडपंत’ यह बाबा के मुख से निकले हुए नामाभिधान को हमेशा के लिए स्वीकार किया। वे उस गलती को छिपाने की कोशिश करने की बजाय पुन: वही गलती न होने पाये इस बात का […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५३)

हेमाडपंत अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं- ‘वाडे में क्या चल रहा था। किस बात पर बहस चल रही थी। क्या कहा इन ‘हेमाडपंत’ ने। मेरी ओर देखते हुए कहा॥ हमने यह देखा की बाबा ने ‘वाडे में किस बात पर बहस चल रही थी’ यह पूछते समय दाभोलकरजी की तरफ इशारा करते हुए काकासाहब […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५२)

शिरडी आते ही उसी दिन हेमाडपंत का बालासाहेब भाटे के साथ विवाद छिड़ गया और विषय भी था- ‘गुरु की आवश्यकता ही क्या है?’ हेमाडपंत का पक्ष यह था कि जो स्वयं कुछ नहीं करता, उसकी सहायता भला गुरु क्या करेंगे? जिसका जो कर्तव्य होता है, वह उसे स्वयं ही पूरा करना होता है। ‘जैसी […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय – २ (भाग-५१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय – २ (भाग-५१)

आते ही शिरडी में पहले दिन। बालासाहब भाटे के साथ। आरंभ हुआ वाद-विवाद (बहस) का। क्या है गुरु की आवश्यकता॥ शिरडी में आते ही पहले ही दिन हेमाडपंत और बालासाहेब भाटे इनके बीच वाद-विवाद आरंभ हो गया और उसका विषय था कि गुरु की आवश्यकता ही क्या है? बालासाहेब भाटे की राय यह थी कि […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय – २ (भाग – ५०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय – २ (भाग – ५०)

शिरडी में साईनाथ से हुई अपनी पहली मुलाक़ात की कथा बताते समय हेमाडपंत सर्वप्रथम साईनाथ की चरणधूलि-भेंट का वर्णन करते हैं। साई के चरणस्पर्श से, दर्शन से एवं बाबा की चरणधूल में लोटकर लोटांगण करने से उन्हें किस तरह अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुई, इस बात का वर्णन भी वे करते हैं। बाबा की इस […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग- ४९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय- २ (भाग- ४९)

हेमाडपंत की शिरडी में श्री साईनाथ से हुई पहली मुलाकात यह उनके जीवन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। इस पहली मुलाकात में ही उन्होंने भक्तिमार्ग का बहुत महत्त्वपूर्ण मकाम प्राप्त कर लिया। शिरडी में कदम रखते ही सर्वप्रथम उन्हें इस तत्त्व का अनुभव हो गया कि भक्तिमार्ग में भक्त यह भगवान के पास नहीं जाता […]

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