श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ६) – फलाशा का पूर्णविराम

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ६) – फलाशा का पूर्णविराम

फलाशेचा पूर्ण विराम । काम्य त्यागाचें हेंची वर्म। करणे नित्य नैमित्तिक कर्म ।‘शुद्धस्वधर्म’ या नांव॥’ श्रीसाईसच्चरित (१/१००) (फलाशा का पूर्णविराम । काम्यत्याग का यही वर्म। करना नित्यनैमित्तिक कर्म ।‘शुद्ध स्वधर्म’ इसी नाम॥) फलाशा का पूर्ण विराम यही काम्यत्याग का वर्म है अर्थात कर्म का त्याग न करते हुए फलाशा नष्ट करके पूरी दक्षता के साथ […]

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निष्काम कर्मयोग

निष्काम कर्मयोग

फलाशेचा पूर्ण विराम । काम्य त्यागाचें हेंची वर्म। करणे नित्य नैमित्तिक कर्म ।‘शुद्धस्वधर्म’ या नांव॥’ – श्रीसाईसच्चरित (१/१००) (फलाशा का पूर्णविराम । काम्यत्याग का यही वर्म। करना नित्यनैमित्तिक कर्म ।‘शुद्ध स्वधर्म’ इसी नाम॥) फलाशा का पूर्ण विराम यही काम्यत्याग का वर्म है अर्थात कर्म का त्याग न करते हुए फलाशा नष्ट करके पूरी दक्षता के […]

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भक्ति का अर्थ

भक्ति का अर्थ

प्रथम अध्याय के मुख्य कथा का आरंभ करने से पहले हेमाडपंत भक्ति की व्याख्या एवं शद्ब स्व-धर्म का विवेचन करते हैं। शास्त्र में ‘अनुबन्धचतुष्टय’ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। अभिधेय, प्रयोजन, संबंध एवं अधिकारी इन चार बातों को अनुबन्धचतुष्टय कहते हैं। अभिधेय यानी मुख्य विषय, जिसके बारे में बात करना है वह होता है मुख्यार्थ। […]

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श्रीसाईसच्चरित – सद्गुरुवन्दना

श्रीसाईसच्चरित – सद्गुरुवन्दना

श्रीसाईसच्चरित के पिछले लेख में हमने देखा ‘ये साई ही गजानन गणपती’ ‘ये साई ही भगवती सरस्वती’ हैं यह कहकर (इसी प्रकार) (यही मानकर) मंगलाचरण में हर एक रूप के साईनाथ को ही हेमाडपंत वंदन करते हैं। ‘अनन्यता’ यह एक सच्चे भक्त का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण गुणधर्म(विशेषता) का अनुभव हेमाडपंत के पास (प्रति) हम अनुभव […]

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मंगलाचरण

मंगलाचरण

गत लेख में हम ने अध्ययन किया कि ‘अथ’ शब्द के द्वारा हेमाडपंतजी ने साईसच्चरित में मंगलाचरण किस तरह किया है। साथ ही हेमाडपंतजी के ‘पंचायतन’–नमन का भी अध्ययन किया। पानी को हम जिस प्याले में डालते हैं, वह उस प्याले के आकार का बन जाता है, पानी की टांकी में डाला गया जल उस […]

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श्री साईसच्चरित – ०१

श्री साईसच्चरित – ०१

आतून सकळ खेळ खेळिसी। अलिप्ततेचा झेंडा मिरविसी। करोनि अकर्ता स्वये म्हणविसी। न कळे कवणासी चरित्र तुझे ॥ साईनाथजी, आप ही सकल (सारे) खेल खेलते हो। और साथ ही अलिप्तता का ध्वज भी फहराते रहते हो। कर्ता होकर भी स्वयं को अकर्ता कहलवाते हो। न जान सके कोई चरित्र आपका ॥ अर्थ: साईनाथजी, आप ही सारी […]

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