श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०८)

जो मेरे प्रति अनन्य शरण हो जाता है। विश्‍वास के साथ मेरा भजन करता है। मेरा भजन, मेरा ही चिन्तन, मेरा ही स्मरण। उसका उद्धार करना मेरा बिरुद है॥ साईनाथ स्वयं ही अपने स्वयं के बिरुद के बारे में बता रहे हैं। अन्य मार्गों से भक्तिमार्ग यह सहज एवं सरल क्यों है, इस प्रश्‍न का […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०७)

और जो गाये उलटे-सीधे। मेरा चरित्र मेरे पँवाड़े। उन्हीं के आगे-पिछे। चहुँ ओर मैं खड़ा ही रहता हूँ॥ यदि हम सभी भी यही चाहते हैं कि साईनातह मेरे भी आगे-पिछे, चहुँ ओर खड़े ही रहें तो हमें भी बाबा का चरित्र बाबा के पँवाड़े आदि जैसे भी आये उनका गुणगान करते रहना चाहिए। हम यदि […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०६)

मेरा चरित्र, मेरे पोवाड़े (यशगान)। जो कोई शुद्ध भाव के साथ गायेगा। फिर चाहे उसकी वाणी अशुद्ध भी क्यों न हो। मैं उसके आगे-पीछे, चारों ओर खड़ा ही रहूँगा॥ इस एक छोटी सी ओवी (पद्यरचना) में भावार्थ का अपरंपार संचय है, मथित-अर्थ का अनंत भांडार है। यहाँ पर बाबा जो भरोसा दे रहे हैं, उसका […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०५)

फिर जो कोई भी गायेगा उलटे-सीधे। मेरा चरित्र, मेरा पँवाड़ा (यशगान)। उसके आगे-पिछे चहुँ ओर। मैं रहूँगा खड़ा॥ ये पंक्तियाँ अर्थात साक्षात् साईनाथ द्वारा दिया गया भरोसा ही है। ये भरोसा हमें बताता है कि मेरी आवाज में कर्कशता है अथवा मधुरता, मैं कथा कहते समय कितने बड़े-बड़े गिने-चुने शब्दों का उच्चारण कर सकता हूँ […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०४)

मेरा चरित्र, मरे पोवाड़े (यशगान)। जो कोई शुद्ध भाव के साथ गायेगा। फिर चाहे उसकी वाणी अशुद्ध भी क्यों न हो। मैं उसके आगे-पीछे, चारों ओर खड़ा ही रहूँगा॥ यह अभिवचन साईनाथ स्वयं दे रहे हैं। ‘जो कोई भी मेरा चरित्र गायेगा, मेरी लीलाओं का यशगान करेगा, फिर भले ही उसमें उसके उच्चारण अशुद्ध होंगे, […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०३)

इसी में तुम्हारा कल्याण है। मेरे भी अवतार की सार्थकता है। जो अनन्यरूप से नित्य मेरा ध्यान करता है। उसका ध्यान मैं सदैव रखता ही हूँ॥ साईबाबा ‘निज-दासों का ध्यान मैं रखता ही हूँ’ इस बात की गवाही देते हैं। निज-दासों के योगक्षेम का ध्यान रखने के लिए बाबा सदैव तत्पर हैं ही और वे […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०२)

ये शब्द आ जाते ही बाबा के होठों पर। उसे ही शुभचिह्न मान लिया। होगा यह चरित्रलेखन अपने आप। मैं तो ठहरा बंधवा मजदूर॥ हेमाडपंत का ‘भक्त’ से ‘दास’ तक का प्रवास बाबा ने किस तरह करवाया, यह तो हम पिछले अध्याय में देख ही चुके हैं। बाबा ने हेमाडपंत को उदी लगाकर, उदी-प्रसाद देकर […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-०१)

पढ़ा हमने गत अध्याय में। दिया संपूर्ण अनुमोदन साई ने। कहा मेरी पूरी अनुमति है। चरित्र-लेखन करने के लिए॥ तृतीय अध्याय के आरंभ में हेमाडपंत हमें द्वितीय के विषय का स्मरण कराते हुए यह बता रहे हैं कि बाबा ने हेमाडपंत को चरित्र-लेखन करने की अनुमति देते हुए कहा, ‘‘मेरी ओर से तुम्हें पूर्णत: अनुमति […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-६०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-६०)

‘कथा-प्रयोजन एवं नामकरण’ इस बारे में विवेचन करनवाले द्वितीय अध्याय का हम अध्ययन कर रहे हैं। हेमाडपंत नामकरण कथा को हम देख रहे हैं। बाबा के द्वारा ‘क्या चल रहा था वाड़े में, किस बात पर लड़ रहे थे’ यह पूछे जाते ही हेमाडपंत ने यही अनुमान लगाया कि मानवीय शक्ति और ईश्‍वरी शक्ति में […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-५९)

द्वितीय अध्याय में हेमाडपंत ने अपनी पहली शिरडी यात्रा का वर्णन किया है। इस द्वितीय अध्याय का महत्त्व यही है कि इसमें हमें हेमाडपंत एक महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहते हैं। ‘अण्णासाहब दाभोलकर’ से लेकर ‘हेमाडपंत’ तक का उनका यह प्रवास बाबा ने उनसे कैसे करवाया, इसी बात का एक वर्णन इस अध्याय के अन्तर्गत किया […]

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