श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ४८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-  ४८)

हमने बाबा के दर्शन से जो तीन महत्त्वपूर्ण बदलाव जो हमारे जीवन में आते हैं, उसका अध्ययन किया। १) मन का पलट जाना २) प्रारब्ध का नाश हो जाना ३) विषय-वासनाओं का नष्ट हो जाना इसके साथ ही हेमाडपंत यहाँ पर हमें यही बताते हैं कि पूर्वजन्म में हम ने जो पाप किया होता है, […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ४७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ४७)

साई-दर्शन की यही महिमा। दर्शन से ही पलट जाये वृत्ति। पूर्वकर्मों का भी क्षय हो जाये। विषयों की पकड़ भी घटने लगे॥ पूर्वजन्म का पापसंचय। कृपावलोकन से हुआ क्षय। आशा खिल गयी आनंद अक्षय। देंगे चरण साई के॥ साई के दर्शन एवं साई के चरण भला क्या कुछ नहीं कर सकते हैं? सब कुछ कर […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ४६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ४६)

हेमाडपंत की साईचरणधूलि-भेट यह अत्यन्त अद्भुत घटना है, जिस घटना के कारण हेमाडपंत के जीवन में आमूलाग्र परिवर्तन आ गया। इस घटना का वर्णन पढ़ते समय हर एक श्रद्धावान के मन में यही भाव उत्पन्न होता है कि मेरे जीवन में ऐसा कब घटित होगा? मुझे बाबा की चरणधूल की भेंट कब नसीब होगी? सच […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- ४५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- ४५)

जिनके द्वारा प्राप्त हुआ परमार्थ मुझे। वे ही हैं सच्चे आप्त-भ्राता। हितैषी नहीं है कोई दूजा उनके समान। ऐसा ही दिल से मैं मानता हूँ॥ कितने उपकार हैं उनके मुझपर। नहीं फेर सकता हूँ मैं उनके उपकार। इसी खातिर केवल हाथ जोड़ कर। चरणों में यह माथा टेकता हूँ॥ काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर इन […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- ४४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- ४४)

जिनकी कृपा से प्राप्त हुआ यह सत्संग। पुलकित हो उठा मेरा अंग-प्रत्यंग। उनका वह उपकार अव्यंग। बना रहे अभंग मुझ पर॥ श्रद्धावान का सबसे बड़ा गुणधर्म है ‘कृतज्ञता’। हेमाडपंत में यह गुणधर्म प्रखर रूप में दिखाई देता है और वह भी जान बूझकर दिखावे के लिए नहीं है, बल्कि उनमें यह भाव सहज ही जागृत […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- ४३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- ४३)

नानासाहब से जो था सुना। उस से भी कहीं अधिक ‘प्रत्यक्ष’ में पाया। दर्शन पाकर मैं धन्य हुआ। नयन भी हो गए धन्य॥ हेमाडपंत को प्रथम मुलाकात में ही याद आती है नानासाहेब चांदोरकर की। ‘चांदोरकरजी बारंबार बता रहे थे, उसकी प्रचिति तो आज मुझे मिल ही गयी, परन्तु साथ ही उससे भी अधिक अनुभव […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-४१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-४१)

नानासाहब से जो था सुना। उससे भी कहीं अधिक ‘प्रत्यक्ष’ में पाया। दर्शन पाकर मैं धन्य हुआ। नयन भी हो गए धन्य॥ कभी सुना था ना देखा था। ऐसा साईरूप देख दृष्टि निखर गई। भूख-प्यास आदि सब कुछ मैं भूल गया। इन्द्रियाँ तटस्थ हो गयीं॥ होते ही साई चरणों का स्पर्श। प्राप्त हुआ जो परामर्श। […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-४०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-४०)

तात्यासाहब की बात सुनते ही तुरंत (तेज़ी से)। दौड़ पड़ा मैं वहाँ बाबा थे जहाँ। चरणधूलि में लोटांगण किया। आनंद न समा रहा था मन में॥ कल हमने हेमाडपंत के प्रथम शिरडीगमन में हुई श्रीसाईनाथ की चरणधूल भेट वाले प्रसंग के बारे में अध्ययन करते हुए तीन बातों पर प्रकाश डाला। सुनना, तेज़ी (उत्कटता) एवं […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३९)

तात्यासाहब की बात सुनते ही तुरंत। दौड़ पड़ा मैं वहाँ बाबा थे जहाँ। चरणधूलि में लोटांगण किया। आनंद न समा रहा था मन में॥  हेमाडपंत की यह साईचरणधूली-भेंट हमारे जीवन में भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। ‘साईबाबा साठेजी के वाडे के कोने तक आ गये हैं’, यह सुनते ही हेमाडपंत तेज़ी से दौड़ते हुए बाबा […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३८)

हेमाडपंत शिरडी जा पहुँचे और साठेजी के वाडे के सामने ताँगे से उतरते समय, ‘कब मैं साईबाबा के चरणों पर माथा रखूँगा, कब बाबा का दर्शन करूँगा’ ऐसा उन्हें लग रहा था। हेमाडपंत कहते हैं कि अब बाबा के प्रत्यक्ष दर्शन होंगे, इस विचार से मेरे चित्त में आनंद की लहरें उठ रही थीं। जल्द […]

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