श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३७)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३७)

जब हम परमेश्‍वरी कार्यहेतु, साईदर्शनहेतु, भक्तिसेवाहेतु निकलते हैं, तब ये साई कोई भी संकट आने ही नहीं देते और मान लो, यदि कोई संकट आ ही जाता है तब उसे दूर करने के लिए उसका रूपांतर अवसर के रुप में देकर वे हमें प्रगतिपथ पर ही चलाते रहते हैं। —————————————————————– ——- ‘तत्काल शिरडी के लिए […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३६)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३६)

काकासाहब दीक्षित के आग्रह करने पर हेमाडपंत ने शिरडी जाने का निश्‍चय तो किया था, परन्तु अपने मित्र के जीवन में हुई घटना के कारण ‘आख़िर गुरु की आवश्यकता ही क्या है’ यह प्रश्‍न मन में उठते ही उन्होंने शिरड़ी जाने का विचार रद कर दिया। परन्तु साईबाबा की इच्छा थी कि वे हेमाडपंत को […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३५)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३५)

हेमाडपंत लिखते हैं- काकासाहब भक्त-प्रवर (भक्तश्रेष्ठ)। नानासाहब चांदोरकर। इनका ऋणानुबंध यदि न होता। तो कैसे पहुँच पाता शिरडी में यह हेमाडपंत॥ ‘पहली बार मैं शिरडी कैसे आया’ इस बात का वर्णन करते हुए, जिन लोगों ने उन्हें शिरड़ी की राह दिखाई थी उनके ऋणों का निर्देश हेमाडपंत यहाँ पर कर रहे हैं और साथ ही […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३४)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३४)

हेमाडपंत अपने प्रथम शिरडी-आगमन के समय होने वाली घटनाओं का उल्लेख यहाँ पर इस कथा के माध्यम से कर रहे हैं। हेमाडपंत के मन में पूरा विश्‍वास है कि बाबा ही इस चिड़ी के पैर में डोर बाँधकर उसे शिरडी खींच लाये यानी मुझे शिरडी ले आये। परन्तु बाबा की इस योजना में जिनकी अहम […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३३)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३३)

ना चाहूँ स्वपक्ष-स्थापन। ना चाहूँ परपक्ष-निवारण। ना चाहूँ पक्षद्वयात्मक विवरण। निरर्थक हैं विवाद॥ साईबाबा कहते हैं कि वाद-विवाद का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। ‘अपना स्वयं का पक्ष ही सच्चा है’, इस बात का दुराग्रह करके अपनी ही राय प्रस्तुत करना और ‘सामनेवाले का पक्ष झूठा है’, यह साबित करने के लिए तर्क-कुतर्क द्वारा उसकी […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३२)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३२)

जहाँ पर वादविवाद की बुद्धि। वहाँ पर अविद्या-माया-समृद्धि। नहीं वहाँ पर स्वहित-शुद्धि। सदैव दुर्बुद्धि तर्क-कुतर्क॥ साईनाथ ने हेमाडपंत को चरित्रलेखन की अनुमति प्रदान करते हुए कहा कि बेकार की बातों का सर्वथा त्याग करके शुद्ध प्रेम की कथाओं का संग्रह करो, क्योंकि जहाँ पर वाद-विवाद की बुद्धि होती है, वहाँ पर सुबुद्धि अर्थात विवेक का […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३१)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३१)

अवश्य ही तुम बस्ता रख दो। घर-बाहर चाहे जहाँ भी हो। स्मरण रखना हर पल। मन को विश्राम मिलेगा ॥ ‘विश्राम’ की प्राप्ति करने के लिए भला इससे भी अधिक आसान रास्ता क्या हो सकता है? चाहे मैं घर में रहूँ या बाहर रहूँ, मग़र यदि ‘मैं इस साईनाथ का हूँ और मुझे यह कार्य […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ : भाग-३०

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ : भाग-३०

गेहूँ पीसने वाली कथा में हमने देखा कि बाबा ने जाते में गेहूँ को पीसकर महामारी को दूर कर दिया। आटे से महामारी नामक काँटा निकाल फेंका। उस कथा में क्या हम उस जाते को शाबासी देते हैं कि क्या बात है, इस जाते ने महामारी को दूर भगा दिया? नहीं। महामारी का नाश करने […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २९)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २९)

ठीक है अब कार्य शुरू हो जाने दो। उसे मेरा पूरा साथ है। वह तो केवल निमित्त मात्र है। लिखना तो मेरा चरित्र मुझे ही है। मेरी कथा मुझे ही कहनी है। भक्त की इच्छा भी मुझे ही पूरी करनी है। उसमें अहम्-वृत्ति नहीं होनी चाहिए। अहम् को मेरे चरणों में विसर्जित कर देना है। […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २८)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग- २८)

जानकर मेरी मनोकामना। कृपा उत्पन्न हुई साईसमर्थ के मन। कहा मन:पूर्वक लिख सकोगे। मैंने चरणों में माथा टेक दिया। दिया मुझे उदी का प्रसाद। सिर पर रखते हुए वरदहस्त। साई सकलधर्म विशारद। भाव जानते भक्त के मन का। हेमाडपंत के मन की इच्छा सुनकर साईनाथ ने उन पर कृपा की और कहा, ‘तुम्हारी इच्छा सफलतापूर्वक […]

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