त्वचा – रचना एवं कार्य भाग ४

dermis

हम त्वचा के पायलोसिबॉसिस संच के बारे में अध्ययन कर रहे हैं। हमने बालों के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली। अब हम देखने जा रहे हैं-

मिलॉसिअस ग्रंथी

हाथ और पैरों के तलुओं और तलुओं की तरफ का ऊंगलियों का हिस्सा छोडकर शरीर की संपूर्ण त्वचा में ये ग्रंथियां पायी जाती हैं। इनमें में स्रवित होनेवाले को सीबाय कहा जाता है। केशयुक्त त्वचा में ये ग्रंथियां अपना द्रव केशनलिकाओं में छोडती हैं। वहॉं से यह त्वचा से बाहर आता है। अन्य जगहों पर जहॉं केश नहीं होते वहॉं इन ग्रंथियों की नलिकायें छोटे छिद्र द्वारा त्वचा पर यह द्रव छोडती है। शरीर के ऐसे स्थान है ओठ, ओठों के किनारें, मुँह का भीतरी आवरण, स्तनों का ऊपरी भाग, आँखों की पुतलियों के किनारे इत्यादि त्वचा पर साधारणतः प्रत्येक चौ.से.मि. में १०० सिबॉसिअस ग्रंथियां होती हैं। कुछ भागों में इनकी संख्या ४०० से ९०० ग्रंथी/चौ.से.मी. होती हैं। चेहरा , सिर व पीठ की मध्य रेषा पर इनकी संख्या ज्यादा होती है।

सिब्रम एक प्रकार का स्निग्ध पदार्थ है। केस व त्वचा पर इनका आवरण वातावरण से केश व त्वचा का संरक्षण करता है। साथ ही साथ रक्त चूसने वाले कीटकों से भी कुछ हद तक संरक्षण मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में एक खास गंध होती है। यह गंध इस सीबम के कारण होती है। जनम के समय ये ग्रंथियां आकार में बडी होती है। आगे चलकर उनका आकार छोटा होता जाता है। उम्र बढने पर किशोरावस्था में ऍड्रोजन संप्रेरक के कारण इनका आकार फिर बढ जाता है।

ऍपोक्राइन ग्रंथी

डरमिस और हायपोडरमिस के बीच में आकार में बडी , ये ग्रंथियां होती हैं। वास्तव में ये पसीने की ही ग्रंथियां होती हैं। परंतु हेअर फॉलिकन में इनकी वृद्धि होती हैं। तथा ये ग्रंथियां भी अपना स्राव केशनलिकाओं में ही करती हैं। अतः यहॉं पर हमने उनका समावेश किया है। ये ग्रंथियां शरीर के कुछ विशिष्ट हिस्सों में ही होती हैं। इनका कार्य किशोरावस्था में ही शुरू होता है। इनमें से होनेवाला स्राव पूरी तरह गंधहीन एवं रंगहीन होता है। परंतु त्वचा के बाहर आने पर जीवाणुंओं के द्वारा इनका विघटन होता है और इनसे अत्यंत तीव्र गंध निकलने लगती है। इस गंध का संबंध लैंगिकता से होता है। इस ग्रंथी के कार्य भी लैंगिक संप्रेरक-ऍड्रोजेन के कारण ही नियंत्रित होते हैं।

ऍरेक्टर पाइली स्नायु – त्वचा के हेअर फॉलिकन्स व डरमिस पॅपलरी स्तर को जोडनेवाला यह स्नायु अत्यंत पहले तंतु की तरह होता है। प्रत्येक केश की फॉलिकल का एक-एक अलग स्नायु होता है।

त्वचा पर जिस तरफ केश बना हुआ होता है। उसी तरफ त्वचा के नीचे यह झुका हुआ होता है। इस स्नायु के आकुंचन के कारण ही त्वचा पर बाल खड़े रहते हैं तमथा उनके आसपास की त्वचा थोड़ी उठ जाती है। अपनी दैनंदिन भाषा में हम इसे ही रोंगटे खड़ा होना अथवा सिहर उठना कहते हैं। हमारा चेहरा, भौंहें पलकों के बाल, बगल तथा कमर के नीचे के भा में ये स्नायु नहीं होते हैं।

कुछ अन्य स्तनधारी प्राणियों में त्वचा पर बालों का खड़ा होना भय अथवा आक्रमण का लक्षण माना जाता है। उदा. जब बिल्ली फुंफारती है तो उसके शरीर के बाल सीधे खड़े हो जाते है। पायलोसिबांसिरा की जानकारी यहॉं पर पूरी होती है। अब हम त्वचा की दो महत्त्वपूर्ण चीजों की जानकारी लेंगे।

इकराइन पसीने की ग्रंथी

शरीर पर सभी जगहों पर ये ग्रंथियां होती हैं। डरमिस के नीचे का स्तर या हापोडरमिस में ये ग्रंथियां होती हैं। प्रत्येक ग्रंथी से इसकी नलिका निकलती है और वह वक्राकार घूमकर छोटे छिद्र के द्वारा त्वचा पर खुलती हैं। ये ग्रंथियां शरीर का तापमान नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाथों से पॉंवों के तलुओं तक इसका स्राव, पकडने की क्षमता व संवदेन क्षमता दोनो बढाता हैं। बगल जॉंघ, ओठ, इ. जगहों पर यह ग्रंथी नहीं मिलती| त्वचा के एक चौ. सेमी क्षेत्र में लगभग ९० से ६०० ग्रंथियां होती है। इन ग्रंथियों के स्राव को हम पसीना कहते हैं। हमें पसीना आता है या पसीना छूटता (स्वेटींग) है तो पसीने के माध्यम से अनेक पदार्थ एवं विषैले पदार्थ शरीर के बाहर निकल जाते हैं। सोडियम, क्लोराईड, पोटॅशिअम, युरीया, लॅक्टीक, आम्ल, अमिनो आम्ल इत्यादि पदार्थ पसीने के साथ बाहर निकल जाते हैं। शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में पसीना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिए आवश्यकता पडने पर २४ घंटों में दस लीटर तक पसीना ये ग्रंथियां तैयार करती हैं।

नाखून: हमारी ऊंगलियों के नाखून भी त्वचा का एक हिस्सा हैं। नाखून साधारणतः आयताकार होते हैं और थोडे बर्हिगोल (कॉन्केव्ह) होते हैं| नाखूनों की मोटाई साधारणतः ०.७ मिमि से १.६ मिमि तक होती है। नाखूनों की जड़ ऊंगलियों की त्वचा में होती है। नाखून अपनी जड़ों से दूर ऊंगलियों के बाहर बढ़ते हैं। नाखून की वृद्धि का प्रकार ऊंगलियों की लंबाई पर निर्भर करता है। ज़ाहिर है कि बीच की उंगली का नाखून सबसे ज्यादा एवं जल्दी बढता है, वहीं सबसे छोटी उंगली का नाखून धीर-धीरे बढ़ता है। हाथों के नाखून पैरों के नाखूनों की तुलना में जल्दी जल्दी बढ़ते हैं। साथ ही साथ ङ्मुवावस्था में इनकी वृद्धि ज्यादा ओर बुढापे में कम होती है। सर्दियों की तुलना में गर्मियों में नाखून ज्यादा बढते हैं। नाखून २४ घंटों में ज्यादा से ज्यादा १ मि.मि. बढते हैं। शरीर के विभिन्न रोगों के लक्षण नाखून पर दिखायी देते हैं, इसीलिये डॉक्टर हमेशा मरीज़ के नाखून देखते हैं।

अब हम उम्र के अनुसार हमारी त्वचा में होनेवाले बदलाव देखेंगे। ये बदलाव हमारे आरोग्य एवं स्वास्थ्य दोनों दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। ये बदलाव दो प्रकार के होते हैं। पहला है- अंतस्रावों (हार्मोन्स) के कारण होनेवाले बदलाव वहीं दूसरा है- बाह्य कारणों से होनेवाले बदलाव।

गर्भावस्था में ही हमारी त्वचा परिपूर्ण अवस्था तक पहुँच जाती हैं। जन्म के बाद पहले तीन दशकों में होनेवाले बदलाव हैं – शरीर की वृद्धि के अनुसार त्वचा भी बढती है, डरमिस , एपीडरमिस की मोटाई बढती है व तरुणावस्था में आते समय कुछ विशिष्ट बदलाव होते हैं जिनके बारे में हमने पहले ही जानकारी प्राप्त कर ली है। उम्र के तीस साल बाद त्वचा में बदलाव आने लगते हैं।

त्वचा का अंतर्गत वार्धक्य (बुढापा)

बढ़ती उम्र के अनुसार त्वचा के दोनों स्तर डरमिस व एपिडरमिस घिसने लगते हैं। फलस्वरूप त्वचा पतली होती जाती है, सूखती जाती है। उसका लचीलापन कम होता जाता है। फलस्वरूप यह सिकुडन लगती है। त्वचा पर काले नीले दाग पड़ने लगते हैं।

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