त्वचा – रचना व कार्य भाग ३

dermis

हम हमारी त्वचा के बारे में अध्ययन कर रहे हैं। कल के लेख में अंत में थोडा विषयांतर हो गया। परंतु वह महत्त्वपूर्ण विषयांतर था। आज हम त्वचा के दूसरे स्तर डरमिस के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। साथ ही साथ त्वचा के केश, सिवॉसिअस ग्रंथी पसीने की ग्रंथी इत्यादि की भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

डरमिस स्तर विभिन्न पेशियों का मिश्रण हैं। मुख्यतः यह स्तर दो प्रकार के तंतुओं से बना होता हे। ये तंतु है कोलॅजोन व इलस्टीक कोलेनस के कारण त्वचा में कडकपन आता है तथा इलहटीक के कारण त्वचा में लचीलापन आता है। चमड़ी का लचीलापन यानी यदि हम अपनी चमडी को उंगलियों से पकडकर खीचें और छोड दें तो चमड़ी पूर्ववत हो जाती है। त्वचा का यह लचीलापन इन दो तंतुओं के अलावा इस स्तर में उपस्थित संवदेनशील तंतुओं, रक्तवाहिनयों, —- बहाकर ले जानेवाली बाहनियों के सिबॉसिअस तथा पसीने की ग्रंथियों इत्यादि के कारण भी होता है।

डरमिस में पेशियों के दो स्तर होते हैं :

१) पॅपिलरी स्तर – जो एपिडरमिस को लगकर ही होता है। इसका मुख्य कार्य एपिडरमिस की पेशियों को अन्न व रक्त प्रदान करना है। क्योंकि हमारी बाह्यत्वचा में रक्तबाहिनयॉं नहीं होती है। इस स्तर में संवेदनशील तंतुओं के सिरे भरपूर मात्रा में होते हैं – जो विविध प्रकार के संवेदनों को ग्रहण कर सकते हैं। (सेविसरी नर्व्ह एडिंग)

२) रेटिक्युलर स्तर – इसमें कोलमेन तंतुओं की मात्रा पॅपिलरी स्तर की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है। यह स्तर चमडी को शक्ती अथवा कडकपन प्रदान करता है।

त्वचा में संवेदन तंतुओं की मात्रा काफी होती है। छोटी छोटी संवदेन तंतुओं की नाली तैयार हो जाती है। इस प्रकार की जाली डरमिस के उपरोक्त दोनों स्तरों में होती है। त्वचा को अन्न की आवश्यकता कम होती है। इसकी तुलना में रक्तप्रवाह ज्यादा होता है। आवश्यकता होने पर यह रक्तप्रवाह हमेशा की तुलना में दस गुना बढ़ जाता है। डरमिस की पॅपिलरी स्तर में एडिडरमिस के नीचे रक्तबाहनियों की असंख्य जालियॉं होती है। इनके अलावा त्वचा में अन्य पूरक चीजें होती हैं। वे कौन सी है, अब हम देखेंगे।

१) पायलोसिबॉसिअस संच ( Pilosebaceous unit ) केश, केशों के चारों ओर पतली थैली अथवा आवरण, अरेक्तरपाइली स्नायु व सेबॉसिअस ग्रंथी से मिलकर यह संच बनता है।

अ) केशः अन्य प्राणियों की तुलना में मानव विकसित होते गया वैसे वैसे उसके शरीर के केशों की मात्रा कम कम होती गयी। हमारे शरीर के केशों की रचना हमेशा थोडी डेढ़ी होती हैं। हाथ-पैर तलुओं तथा तलुओं की ओर उंगलियों के भाग पर केश नहीं होते। इसके अतिरिक्त सिर, बगल तोंडी के नीचे का हिस्सा इत्यादि पर केश विपुल मात्रा में होते हैं। केश शरीर के तापमान नियंत्रण के कुछ मददगार साबित होते हैं। सिर के बाल चोट से सिर की रक्षा करते हैं। साथ ही साथ सूर्यप्रकाश के दुष्परिणामों से भी संरक्षण करते हैं। सामान्यतः केशों में संवेदना होती है।

अब हम केशों की संख्याशास्त्र देखेंगे। हमारे शरीर पर केशों की मात्रा देखें तो चेहरा व सिर पर प्रति चौरस सें.मी. ६०० बाल होते हैं। यहीं मात्रा शरीर के अन्य भागों में ६० केश प्रति चौ.सें.मी. होती है। बालों की लंबाई कम से कम १ मि.मि. से ज्यादा से ज्यादा एक मीटर तक होती है तथा मोटाई ०.००५ मिमि से ०.०६ मिमि तक होती है। केश सीधे अथवा घुंघराले होते हैं। घुंघराले बाल शक्ती में थोडा कमजोर होते हैं। सबसे मोटे बाल व लंबे बाल कॉकेशियन वंश के लोगों में मिलते हैं। तथा सबसे छोटे व पतले बाल मंगोलियन वंश में पाये जाते हैं।

केसों का रंग उनके मेलॅनीन रंगद्रव्य के अनुसार तय होता है। बढती उम्र के अनुसार बालों की मेलॅनीन पेशी की संख्या कम कम होती जाती है तथा केस पकने लगते हैं (बाल सफेद होने लगते हैं) गर्भावस्था के पॉंचवे महीने में ही गर्भ के संपूर्ण शरीर पर बालों की सतह दिखायी देने लगती है। केस जिन आवरण पिशवी में (हेअर—–) तैयार होते हैं, वो फॉलिकल्स इस कालावधी में पूर्णरुपेण कार्यरत हो जाते हैं। इसीलिये यह सतह जन्म से पहले अथवा जन्म के बाद कुछ दिनों में ही समाप्त हो जाती है। जन्म के बाद नवीन हेअर फालिकल्स त्वचा में नहीं बनते।
बालों के दो प्रकार होते हैं। पहले प्रकार के बालों को व्हॅलस केस कहते हैं। यह केश त्वचा के ऊपर यदाकदा ही दिखायी देते हैं।

त्वचा के ऊपर आने पर सिर्फ उनके बारीक सिरे ही बाहर दिखायी देते हैं। दूसरे प्रकार के केशों को टरमिनल केश अथवा अंतिम केश कहते हैं। यह केश लंबे व मोटे होते हैं। ये सिर पर, शरीर पर, दाढ़ी, मूँछ, पलकों के बाल, भौहैं इत्यादि स्थनों पर होते हैं। केशों की रचना, रंग, मोटाई, लंबाई, कड़कपन इत्यादि चीजें अनुवांशिकता पर तय होती है। साथ ही साथ शरीर के कुछ संप्रेरक भी इसको नियंत्रित करते हैं। उम्र बढ़ने पर प्रत्येक लड़का, लड़की में तोंदी के नीचे जॉंघों में व बगलों में केश आ जाते हैं। यह स्त्री व पुरुष संप्रेरकों के कारण होता है। पुरुषों में ऍन्ड्रोजेन के प्रभाव के कारण चेहरे पर व छाती पर भी बाली आते हैं। उम्र के तीसवें साल तक ऍन्ड्रोजन केसों की वृद्धि में मदद करते हैं। तीस वर्ष की उम्र के बाद सिर के टर्मिनल केसों का रुपांतर ठहॅलस केसों में होने लगता है। यह भी संप्रेरको का ही परिणाम है। फलस्वरुप धीरे-धीरे सिर पर बाल कम – कम दिखायी देने लगते हैं व इसका प्रमाण बढा तो संपूर्ण अथवा अंशतः टक्कल पड़ जाता है। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के सिर की त्वचा पर बाल होते ही हैं। सिर्फ वे बाहर दिखायी नहीं देते। स्त्रियों में इस्ट्रोजन के शरीर पर काफी स्थानों पर केस ठहॅलस केस के रुप में ही रहते हैं। मेनोपॉज के बाद जब इस्ट्रोजन की मात्रा कम होती है तभी स्त्रियों के चेहरे पर व अन्य स्थनों पर कभी कभी बाल बढ़ जाते हैं।

वृद्धावस्था में पलकों के बाल, नाक के बाल व बाह्यकर्श के केस लंबाई में बढते जाते हैं तथा अन्य शरीर के बाल कम होते जाते हैं।

प्रतिदिन केसों की बाढ़ कितनी होती है – प्रत्येक चौबीस घंटे में केस ०.०२ मिमि ०.४४ मिमि बढते हैं। सिर के बालों की बाढ़ इसकी अपेक्षा ज्यादा होती है। दाढी करने से कसों की बाढ़ पर कोई भी परिणाम नहीं होता है। मरणोपरांत केसों की बाढ नहीं होती। अपने यहॉं कुछ चित्रपटों में हम देखते हैं कि किसी व्यक्ति को मृत्यु के बाद दफनाया जाता है। कुछ दिनों के बाद वह दफनाया गया प्रेम, प्रेतात्मा बनकर कब्र से बाहर निकलता है परंतु उसके पहले उसके पूरे शरीर पर लंबे लंबे बाल उग जाते हैं । वगैरे वगैरे। यह सब बचपना है , बकवास है। आजकल अपने यहॉं ज्यादातर चित्रपट बकवास ही होते हैं। यहॉं पर हम आज का लेख समाप्त करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.