अस्थिसंस्था भाग – २४

हमारे हाथ का महत्त्वपूर्ण भाग है हमारा पंज़ा। आज हम इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं। हाथ के पंजे में कुल पाँच हड्डियां होती हैं। इन्हें कोई नाम तो नहीं दिया गया है परन्तु नंबर अवश्य दिये गये  हैं। अंगूठे से लेकर छोटी ऊँगलि तक इन्हें क्रमश: एक से पाँच नम्बर दिये गये हैं। ये हड्डियां लंब अस्थियाँ है परन्तु छोटी लंब अस्थि बोनसाय पौधे की तरह हैं। इन अस्थियों को ऊंगलियों के पास गोल सिरा होता है।

Wrist and hand claw- पंज़ा

बीच में पतला रहनेवाला शाफ्ट कलाई के पास चौड़ा रहता है। अपने पंजे के पीछे की ओर, उंगलियों के निचले भाग पर जो उभार होता है, उन्हें इन अस्थियों का सिर कहा जाता है। इनका उपयोग हम अंग्रेजी महीनों के दिन गिनने के लिये करते हैं।

ये सभी हड्डियां पंजे के सामने की ओर अंतर्वक्र होती हैं। दो से पाँच नंबर की हड्डियाँ एक-दूसरे के समांतर होती हैं। पहले नम्बर के अंगूठे की हड्डी थोड़ा सामने की ओर होती है तथा अंदर की ओर ९०° में मुड़ा होता है। फलस्वरूप     इसकी सभी बाजुयें बदल जाती हैं। इसकी सामने की बाजू इसकी अंदर की बाजू बन जाती हैं। अंदर की बाजू-पीछे की, पीछे की बाजू बाहर की तथा बाह्र की बाजू सामने की बाजू बन जाती हैं। इन सभी बदलाओं का फ़ायदा अंगूठे की अतिरिक्त गतियों को मिलता है। मुड़ा हुआ अंगूठा अन्य उंगलियों के साथ ९०° का कोण बनाता है। फलस्वरूप पकड़ना, प्रत्येक उंगली तक अंगूठे का पहुँचना जैसी क्रियायें सुलभ हो जाती हैं।

पाँचो मेटॅकारपल हड्डियां, लंब अस्थियां होती हैं। इनमें से अनामिका के नीचे की हड्डी सबसे ज्यादा लम्बी होती है तथा इनका बेस सबसे ज्यादा लम्बी होती है तथा इनका बेस सबसे ज्यादा चौड़ा होता है। इसके बाद क्रमानुसार तीन नंबर से पाँच नंबर की मेटॅकारपल की लम्बाई कम-कम होती जाती है। पहले अंगूठा की मेटॅकारपल भी छोटी होती है।

ओसिफिकेशन     :

सभी मेटॅकारपल के शाफ्ट में गर्भ के नौवें सप्ताह से ओसिफिकेशन केन्द्र का निर्माण जो जाता है। अंगूठे के मेटॅकारपल में उसके निचले भाग में दूसरा केन्द्र होता है। जो लड़कियों में दूसरे वर्ष की शुरुआत में तथा लड़कों में तीसरे वर्ष की शुरुआत में दिखायी देने लगते हैं। लड़कियों में पंद्रहवें तथा लड़कों में सतारहवें वर्ष में शफ्ट से जोड़े जाते हैं। शेष मेटॅकारपल्स के ऊपरी भागों में उम्र के दूसरे वर्ष में ये केन्द्र तैयार होते हैं। लड़कियों में सतारहवें और लड़कों में उन्नीसवें वर्ष ये शाफ्ट से जुड़ते हैं।

अब हम इस भाग के जोड़ों के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे।
१)कलाई और पंजे की हड्डियों के जोड़ (कार्पो – मेटाकार्पल सांधा)
२)पंजे की हड्डियों के जोड़

पहले प्रकार के जोड़ों में दो अलग-अलग प्रकार के जोड़ों का हम अध्ययन करेंगे। अंगूठें के साथ कलाई का जोड़, अन्य उंगलियों के जोड़ों से अलग होता है। अत: इसके बारे में हम अलग से अध्ययन करेंगे।
अ)अंगूठा व कलाई का जोड़ –

प्रथम मेटॅकारपल का निचला भाग और ट्रॅपझियम के बीच यह जोड़ बनता है। दोनों हड्डियों के जोड पर एक दूसरे के सम्पर्क में आने वाला भाग काफी  बड़ा होने के कारण इस जोड़ की गतियाँ एकरुप होती हैं। इस में मोटी व फ़ैल  हुयी फ़ायब्रस कॅपसूल होती है। अंदर सायनोवियल मेंब्रेन होती है। तीन लिंगामेंटस इस की शक्ती बढ़ाते हैं।

इस जोड़ में कुल छ: प्रकार की गतियाँ संभव होती हैं। फ्लेक्शन- एक्सटेंशन, अ‍ॅडक्शन-अ‍ॅबडक्शन, रोटेशन और सरकमडक्शन इत्यादि छ: गतियाँ हैं। जब अंगूठा हथेली के साथ ९०°अंश का कोण बनाता है तो वो पूर्ण अ‍ॅबडक्शन, तथा जब अंगूठा उंगलियों की रेषा में अनामिका के पास लाया जाता है तो यह अडॅक्शन होता है। अंगूठे को हथेली की ओर मोड़ना फ्लेक्शन तथा उसके विरुद्ध एक्सटेशन होता है। इसके अलावा अंगूठा व आम उंगलियों को एक दूसरे के पास लाने की क्रिया हम करते हैं। इस में उंगलियां थोड़ा मुड़ी हुयी होती है। अंगूठें में अग्रलिखित तीन क्रियायें होती हैं। अ‍ॅबडक्शन, अंदर जुड़ना व फ्लेक्शन। इनकी एकत्रित क्रिया ही अंगूठे को उंगलियों तक ले जाती है। अन्न का निवाला उठाना, पेन, पेन्सिल  पकड़ना, मणी, सुई जैसी छोटी चीज उठाना इत्यादि क्रियायें उपरोक्त गतियों के फलस्वरूप     संभव होती हैं।

शेष चार मेटॅकारपल अस्थियों का कॉरपल अस्थि के साथ जोड़ बनता है। साथ ही साथ ये चारों मेटॅकारपल हड्डियाँ एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। इन सभी जोड़ों का सायनोवियल परदा एक दूसरे व कारपल अस्थि की सायनोवियल येब्रेन एक साथ ही एकरूप होती है। अत: इनकी गति का विचार भी एक साथ करना पड़ता है। वैसे यहाँ पर गतियाँ काफी  कम ही होती हैं। परन्तु अंगूठें के साथ ऑपोझिशन की गति महत्त्वपूर्ण साबित होती हैं। इसके कारण किसी चीज को पकड़ना आसान हो जाता है। साथ ही साथ पियानो, हारमोनियम, तबला इत्यादि बजाने वाले वादकों के लिये ये गतियाँ आवश्यक होती हैं।

हमारे प्रत्येक पंजे में पाँच ऊंगलियां होती हैं। ऊंगलियों की हड्डियों को फेलेजस कहते हैं। हमारी प्रत्येक ऊंगली में जितने पोढ़ होते हैं उतनी ही फेलेजस उस ऊंगली में होती हैं। इस आधार पर हम यह संख्या आसानी से निकाल सकते हैं। हमारी पाँच उंगलियों में कुल मिलाकर चौदह फेलेंनस् होती हैं। चार उंगलियों में प्रत्येक में तीन व अंगूठे में दो। प्रत्येक फेलेंनस् में चौ़ड़ा तल, ऊपरी भाग में सिरा व मध्य भाग नीचे से ऊपर की ओर पतला होते जाने वाला शाफ्ट इस तरह तीन भाग होते हैं। प्रत्येक ऊंगली का पहला फेलेंनस् अपनी अपनी मेटॉकारपल अस्थि के सिरे के साथ सायनोवियल तरीके के  सांधे से जुड़ा होता है। दूसरा अथवा बीच का पहले से व ऊपरी का बीच वाले से, इसी प्रकार के सांधे से जुड़ा होता है।

प्रत्येक का ओसिफिकेशन दो केन्द्रो से होता हैं। शाफ्ट व निचले भाग पर ये केन्द्र होते हैं। शफ्ट के केन्द्र इस क्रमानुसार दिखायी देने लगते हैं। ऊपरी हड्डी में आठवें से नववें सप्ताह में, पहले में दसवे सप्ताह व बीच की हड्डी में ग्यारहवे महीने में। निचले हिस्सों के केन्द्र जन्म के बाद दिखायी पड़ने लगते हैं। पहले में दूसरे वर्ष तथा बीच व ऊपरी सीरे की हड्डियों में तीसरे वर्ष।

मेटाकार्पोलेंजियल सांधा :

मेटॉकारपल का सिरा और पहला फैलेंक्स का तल इनके बीच यह जोड़ बनता है। इसमें मुख्यत: चार प्रकार की गतियां होती हैं। फ्लेक्शन, एक्सटेंशन, अ‍ॅबडक्सन व अ‍ॅडक्शन। ऊंगलियों को लगभग ९०° अंश पर जोड़ने पर फ्लेक्शन होता है और एक्सटेंशन बिलकुल ही कम होता है। इसी तरह अ‍ॅबडक्शन एवं अ‍ॅडक्शन भी थोड़ा ही संभव होता है।

दो फैलेंक्स के बीच का जोड बिजागरी जोड की तरह होता है। अत: इस प्रत्येक जोड में सिर्फ  दो प्रकार की ही गतियाँ संभव होती हैं- फ्लेक्शन और एक्सटेंशन।

(क्रमश:)

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