हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – ३२

हृदय एवं रक्ताभिसरण कार्य की जानकारी लेते समय हम ने अनेक बातों की जानकारी प्राप्त कर ली। हमने देखा कि रक्तदाब (रक्तचाप) क्या होता है? उसका क्या महत्त्व है? रक्तदाब पर नियंत्रण कैसे किया जाता है इत्यादि के बारे में हम ने जानकारी प्राप्त की। रक्ताभिसरण का अर्थ है- संपूर्ण शरीर में होनेवाला रक्त का प्रवास या प्रवाह। इस रक्तप्रवाह के माध्यम से ही सभी पेशियों (सेल्स) को उनके कार्यों के लिये आवश्यक घटक मिलते हैं। रक्तप्रवाह ही जीवन है, जिंदगी है।

स्कूल में हमनें पढ़ा कि विल्यम हार्वे नामक वैज्ञानिक ने रक्ताभिसरण का आविष्कार किया। शरीर में रक्तप्रवाह कैसे होता है, इसका विस्तृत वर्णन सर्वप्रथम विल्यम हार्वे ने ही किया। स्कूल में हमने पढ़ा था कि शरीर के शुद्ध रक्त को ले जानेवाली रक्तवाहिनियों को ‘रोहिणी’ और अशुद्ध रक्त को ले जानेवाली रक्तवाहिनियों को ‘नीला’ कहते हैं। वर्तमान समय में ये संज्ञायें बदल गयी हैं। नयी संज्ञाओं में हमने देखा कि हृदय की ओर रक्त लानेवाली वाहिनियों को ‘वेन्स’ और हृदय से बाहर रक्त ले जानेवाली वाहिनियों को ‘आरटरीज्’ कहा जाता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि रक्त के प्रवाह में हृदय यह एक महत्त्वपूर्ण अवयव है। विभिन्न वेन्स के द्वारा एकत्रित किया हुआ रक्त हृदय में आता है और हृदय से यह रक्त पुन: रक्तवाहिनियों में पहुँचाया जाता है। हृदय से रक्त को बाहर निकालने की क्रिया को कार्डिअ‍ॅक पंपिंग कहते हैं। हृदय से प्रति मिनट बाहर निकलने वाले रक्त की मात्रा को ‘कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट’ कहते हैं। शरीर में प्रति मिनट बहनेवाले रक्त की मात्रा कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट पर निर्भर होती है। तात्पर्य यह है कि रक्ताभिसरण और कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट का सीधा एवं घनिष्ठ संबंध हैं।

वेनस रिटर्न : वेनस रिटर्न का तात्पर्य है मुख्य वेनाकॅवा में से दाहिने अ‍ॅट्रिअम में प्रतिमिनट पहुँचनेवाला रक्त। हृदय के ज़्यादातर स्पंदनों के दौरान वेनस रिटर्न और कारडिअ‍ॅक आऊटपुट की मात्रा समान होती है।

रक्ताभिसरण

कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट : प्रत्येक व्यक्ति में इसकी मात्रा अलग-अलग हो सकती है। साथ ही साथ एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर इसकी मात्रा भी अलग-अलग हो सकती है। उदाहरणार्थ – व्यवसाय के अनुसार ज्यादा श्रम करनेवाले व्यक्तियों में इसकी मात्रा ज्यादा होती हैं। बै़ठकर काम करनेवाले व्यक्तियों में कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट कम होता है। एक ही व्यक्ति में व्यायाम करते समय इसकी मात्रा ज्यादा तथा आराम करते समय कम होती हैं। उम्र के अनुसार भी कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट की मात्रा बदलती रहती है। इसका कारण यह है कि अन्नघटकों के चयापचय (Metabolism) की मात्रा बढ़ जाती है। उनकी अन्नघटकों एवं प्राणवायु की आवश्यकता बढ़ जाती है।

प्रौढ़ पुरुषों में साधारणत: कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट की मात्रा ५ लीटर प्रति मिनट होती हैं। प्रौढ़ स्त्रियों में इसकी मात्रा ४ स ४ १/२ लीटर/मिनट होती है। बढ़ती उम्र में इसकी मात्रा घट जाती है क्योंकि शरीर की पेशियों में मेटाबोलिझम का प्रमाण कम होता है। उदाहरणार्थ – ८० वर्ष की आयुवाले व्यक्ति में यह मात्रा २.४ लीटर्स तक कम हो जाती है।

वेनस रिटर्न का महत्त्व: निरोगी प्रौढ़ व्यक्ति का कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट उस व्यक्ति के हृदय के नियंत्रण में नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों में कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट निश्‍चित करनेवाला महत्त्वपूर्ण घटक होता है वेनर्स रिटर्न। वेनस रिटर्न जितना ज्यादा होता है कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट भी उतना ही ज्यादा होता है।

दाहिनी एट्रिअम में आनेवाले रक्त की मात्रा (वेनस रिटर्न) बढ़ने पर एट्रिअम की दीवार के स्नायु तन जाते हैं। इसके दो मुख्य परिणाम होते हैं। इसकी जानकारी हमने पहले ही प्राप्त की है (हृदय के कार्य)। इसका पहला परिणाम – हृदय के स्नायुओं में तनाव बढ़ जाने पर उसके आकुंचन का ज़ोर बढ़ जाता है। फलस्वरूप हृदय की पंपिंग बढ़ जाती है और जितना रक्त हृदय में पहुँचता है, उतना पूरा का पूरा बाहर निकाल दिया जाता है।

जब दाहिनी एट्रिअम के स्नायुओं में तनाव आता है तो उसका असर ‘सायनो-एट्रिअल नोड’ पर होता है। इस तनाव के कारण इसके स्पंदनों की गति बढ़ जाती है और हृदय के स्पंदन (हार्ट रेट) बढ़ जाते हैं। इन ब़ढ़े हुये स्पंदनों के कारण कार्डिअल आऊटपुट बढ़ जाती हैं। साथ ही साथ तनाव के कारण वासोमोटर सेंटर में संदेश पहुँचते हैं औरा सिंपथेटिक चेतातंतु कार्यरत होकर हार्ट रेट बढ़ जाती हैं। इसे बेनब्रिज रिफ्लेक्स कहते हैं।

पेरिफेरल रेझिस्टन्स का महत्त्व : रक्तवाहिनियों द्वारा रक्तप्रवाह का किया जानेवाला विरोध कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट कम होता है। इसके कार्य वेनस रिटर्न के ठीक विरुद्ध चलते हैं।

किसी भी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक तनाव से रहित पूरी तरह नॉर्मल स्थिति में प्रौढ़ व्यक्ति में कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट वेनस रिटर्न पर तय होता है। तात्पर्य यह है कि वेनस रिटर्न नियंत्रित करनेवाले सभी घटक अप्रत्यक्ष रूप से कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट भी नियंत्रित करते हैं। परन्तु हृदय के कार्यों की भी मर्यादा है। हृदय अपनी क्षमता से ज्यादा रक्त बाहर नहीं फेंक सकता। इसीलिए जब वेनस रिटर्न हृदय की क्षमता से ज्यादा हो जाता है तो हृदय की क्षमता पर कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट तय होता है।

प्रत्येक नॉर्मल प्रौढ़ व्यक्ति में प्रति मिनट पाँच लिटर रक्त हृदय से बाहर निकाला जाता है। ऐसे व्यक्तियों में वेनस रिटर्न बढ़ने पर कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट भी बढ़ जाता है। हृदय की क्षमता के अनुसार इसकी सीमा तय होती है। हृदय एक मिनट में ज्यादा से ज्यादा १३ लीटर रक्त बाहर निकाल सकता है। यानी नॉर्मल स्तर से लगभग ढ़ाई गुना ज़्यादा। नॉर्मल स्थिति में इस से ज्यादा रक्त, हृदय बाहर नहीं निकाल सकता। परिस्थितिवश और कुछ बीमारियों के चलते इसमें अंतर होता है। कभी कभी अपनी मर्यादा से ज्यादा रक्त हृदय बाहर निकालता है। इसे Hypereffective हृदय कहते हैं। तो कई बार अपनी मर्यादा से कम रक्त हृदय बाहर निकालता है, इसे Hypoeffective हृदय कहते हैं।

हायपरअ‍ॅक्टिव हृदय :- यानी अपनी नॉर्मल क्षमता से ज्यादा रक्त बाहर निकालनेवाला हृदय। ऐसे हृदय की पंपिंग ज्यादा शक्तिशाली होती है। निम्नलिखित दो घटकों के कारण हृदय की क्षमता बढ़ जाती हैं –

१) चेतासंस्था की उत्तेजना – पिछले कुछ लेखों में हमने देखा की सिंपथेटीक चेतासंस्था से आनीवाली उत्तेजना हृदय के कार्यों में दो बदलाव लाती है।
अ)हृदय के स्पंदन की रेट बढ़ जाती है। नॉर्मल ७२ स्पंदनों से १५० स्पंदन प्रति मिनट।
ब) हृदय के स्नायु ज्यादा ज़ोर से आकुंचित होते हैं। उनकी आकुंचन शक्ति बढ़ जाती है।
इन दो बातों से कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट में पाँच गुना वृद्धि होती है। यानी प्रति मिनट २५ लिटर रक्त बाहर निकाला जाता है।

२)हृदय के स्नायु की हायपरट्राफी – हैपर ट्राफी का अर्थ है स्नायुओं की मोटाई व वजन में होनेवाली वृद्धि। जिस प्रकार नियमित व्यायाम करनेवाले व्यक्तियों में स्केलेटन स्नायु की वृद्धि होती है। वैसी ही बाढ़ हृदय के स्नानुओं में होती हैं। इस प्रकार की बाढ़ सर्वसाधारणत: लम्बी दूरी की दौड़ में सहभागी होनेवाले धावकों में होती हैं। उदा. ‘मॅरेथॉन’ में दौड़ने वाले धावक।

जब उपरोक्त दोनों घटक (चेतासंस्था उत्तेजना + हायपरट्रॉफी) साथ-साथ कार्यरत होते हैं तो कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट लगभग ३०-४० लीटर तक पहुँच जाता है। धावक को दौड़ की प्रतियोगिता पूरी करने में कितना समय लगेगा, यह हृदय की बढ़ी हुयी पंपिंग पर निर्भर रहेगा।

हायपोइफेक्टिव हृदय – जो घटक हृदय की पंपिंग को कम करते हैं। वही घटक हायपोइफेक्टिव हृदय के लिये कारणीभूत होते हैं। ये घटक निम्नलिखित हैं।
१) चेतासंस्था से ही हृदय को मिलनेवाली उत्तेजना कम हो जाता है।
२) हृदय के स्पंदनों में बदलाव करनेवाली बीमारियाँ।
३) हृदय के झड़पों के विकार अथवा दोष।
४) उच्च रक्तदाब।
५) हृदय के जन्मजात दोष
६) मायोकारडायटिस (Myocarditis) हृदय के स्नायुओं की कमजोरी।
७) हृदय के स्नायुओं को प्राणवायु का ना मिलना।
८) घटसर्प अथवा इसके बीमारियाँ, जो हृदय के स्नायुओं को निष्क्रिय बना देती हैं।

उपरोक्त सभी बीमारियों (विकरों) में हृदय की पंपिंग का ज़ोर कम हो जाता है। फलस्वरूप कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट भी कम हो जाता है। आज यहीं पर रुकते हैं। कार्डिअ‍ॅक आऊटपुट के बारे में अधिक जानकारी अगले लेख में देखेंगे।

(क्रमश..)

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