अस्थिसंस्था भाग – १८

अब तक हमने अ‍ॅपेन्डीक्युअर पिंजरे की सर्वसाधारण जानकारी प्राप्त की अथवा यह कहें कि सिंहावलोकन किया। हमारे चलने, दौड़ने, खड़े रहने में हमारे हाथों का सहभाग नहीं होता।

dehgram-अस्थिसंस्थापरन्तु आवश्यकतानुसार इन क्रियाओं में सहायता कर सकते हैं। हमारे शरीर व हाथ के पंजे में हाथ के भाग में स्वतंत्र हलचल कर सकनेवाले सांधे व इसमें सहायता करनेवाले तरफा के विविध प्रकारों के कारण हमारे हाथ विविध दिशाओं में घूम सकते हैं। इतनी गतिशीलता (हलचल) की स्वतंत्रता हमारे पैरों को नहीं हैं।

कंधे से लेकर उंगलियों तक हमारे हाथ को तीन भागों में बांटा गया है। कंधे से लेकर कुहनी तक बाँह (दंड), कोहनी से लेकर कलाई तक हाथ तथा कलाई के आगे का भाग पंजा। अब इन सब में हड्डियों की जानकारी हम प्राप्त करेंगे।

स्कॅप्युला :- यह हमारे पेक्टोरेल गर्डल की महत्त्वपूर्ण हड्डी है। बाँह की ह्युमरस अस्थि के साथ इसका सांधा बनता है। स्कॅप्युला का आकार त्रिकोणीय होता है। यह थोड़ी बड़ी परन्तु सपाट हड्डी छाती के पिंजरे पर पीछे की ओर होती हैं। साधारणत: दूसरी पसली से लेकर सातवी पसली तक इसकी व्याप्ती रहती हैं। इसके दो बाजू होते हैं। पसलियों के पास कॉस्टल बाजू व पीछे के ओर डॉरसल बाजू होती हैं। किसी भी भूमितीय त्रिकोण की तरह इसके भी तीन बाजू होते हैं। ऊपर की बाजू, शरीर के मध्य की ओर की बाजू व बाहर की बाजू । उसी तरह तीन कोण होते हैं – निचला कोण, ऊपरी कोण व बाहर का कोण। इसके बाहरी कोने के पास ग्लीनॉईड़ कॅव्हिटी नामक उथला-गहरा भाग होता है। इस भाग पर ह्युमरस हड्डी का ऊपरी सिरा अथवा सिर स्थिर होता है व कंधे का उखळी सांधा बनता है। स्कॅप्युला हड्डी पूरी तरह स्नायुओं की सहायता से छाती के पिंजरें पर पीछे से जकड़ी रहती है।

अ‍ॅबरोमियन, कोरकॉइड व स्पायमस, ये तीन प्रोसेस मोटी होती है। इस में टॅबॅक्युलर अस्थि होती हैं। शेष हड्डियां कॉम्पॅक्ट अस्थि को बनी होती हैं।

कुल आठ ओसिफिकेशन  केन्द्रों की मदद से इन हड्डियों की रचना पूरी होती हैं। कोरकॉईड प्रोसेस में ओसिफिकेशन  जन्म के बाद पहले वर्ष में शुरु होता है और यह भाग मुख्य हड्डी से पंद्रहवे वर्ष में जुड़ता है। ग्लीनॉइड कॅव्हिटी – जो कंधो के जोड़ का एक मुख्य भाग है, बचपन में काफी सपाट होती है। किशोरावस्था में आने तक लड़कियों में चौदहवें वर्ष व लड़कों में सत्तरहवें वर्ष इसके ऊपरी भाग का ओसिफिकेशन  पूर्ण होता है। इस दौरान यह कॅव्हिटी गहरी होती है।

क्लॅव्हिकल अथवा कॉलर बोन : हमारी गर्दन के निचले भाग में छाती पर सामने की ओर स्टरमन के दोनों बाजू में दो आड़ी अस्थियाँ हैं। जो शरीर के मध्य से लेकर कंधे तक जाती हैं। ये दोनों ओर की हड्डियां अर्थात कॅलव्हिकल्स जो शरीर में आड़ी होती है। इन हड्डियों के बाहरी अथवा कंधें की ओर का एक तृतीयांश भाग सपाट, किसी फूट्पट्टी जैसा, होता है। यह भाग शरीर के सामने से अंतर्वक्र होता है। कंधों में स्कॅप्युला के अ‍ॅबरोमियन भाग से इसकी संधि होती है। फूट्पट्टी जैसा यह भाग आड़ा होता है। फलस्वरूप  इसे ऊपर व नीचे सपाट भाग होता है व सामने व पीछे दो कड़े होते हैं। सामने का कड़ अंतर्वक्र तो पीछे की कड़ बहिर्वक्र होता है। इसका ऊपरी भाग कड़े के पास ऊबड-खाबड परन्तु मध्यभाग में चिकना होता है। इसके नीचे भाग पर बाहरी एक चतुर्थांश भाग हड्डी के अन्य भाग से जहाँ पर जुड़ता है वहाँ पर एक छोटा सा ऊंचा स्थान होता है। इसे कोनॉईड ऊंचवटा कहते हैं। यह उंचवटा एक काफी महत्त्वपूर्ण काम करता हैं। कंधो के ऊपर के भार का वहन, यह उभार छाती के पिंजरे की ओर यानी ऑक्सिअल पिंजरे की ओर करता है। इस उंचवटे से छाती के मध्य की ओर जाने वाले किसी भी भाग में यदि इस हड्डी में फ्रैक्चर अथवा अस्थिभंग हो जाये तो यह वहन पूरी तरह रुक जाता है। ऐसी अवस्था में भार के कारण कंधा नीचे झुक जाता है अथवा गिर जाता है।

क्लॅविकल के शरीर के मध्य की ओर दो तृतीयांश भाग दंडगोलाकार अथवा प्रिझम जैसा होता है। सामने से यह भाग बहिर्वक्र होता है। इसके ऊपरी, सामने की, नीचे की, पीछे की, ऐसी चार बाजुएं होती हैं। शरीर के मध्य की ओर यह भाग मॅन्युप्रियम नामक स्टरनम के भाग से जुड़ती हैं। यहाँ पर यह हड्डी अन्य भागों की अपेक्षा मोटी होती हैं। मॅन्युवियम व प्रथम पसली, दोनों से इसकी संधि होती है। (पहला कॉस्टल कार्टिलेज)।

इस हड्डी के आधार पर व्यक्ति के लिंग को पहचानना आसान होता है। स्त्रियों में यह हड्डी पतली, थोड़ा आखूड़, ज्यादा चिकनी होती हैं। तथा इसके दोनों घुमाव छोटे होते है। फलस्वरूप  यह ज्यादा सीधी मालूम होती है।

इसका अ‍ॅक्रोमियन की ओर का सिरा, स्टरनम की ओर के सिरे की अपेक्षा थोड़ा नीचे होता है। पुरुषों में यह ज्यादा मोटा, लम्बा एवं घुमावदार होता है। शारिरिक मेहनत करनेवाले व्यक्तियों में यह ज्यादा ही मोटा होता है। इसका अवरोमियन की ओर का भाग स्टरमन की ओर के भाग की सरल रेषा अथवा थोड़ा ऊपर होता है।

क्लॅलविकल में ट्रॅवॅक्युलर अस्थि होती है। परन्तु अन्य लम्बी अस्थियों की तरह हड्डी के मध्यभाग में अस्थिमज्जा की पोकळी नहीं होती है।

ओसिफिकेशन  के चार केन्द्र होते हैं। शरीर की सभी अस्थियों में से इस अस्थि में ओसिफिकेशन  सर्वप्रथम शुरु होता है। वो भी गर्भ के सातवे-आठवे सप्ताह में ओसिफिकेशन  शुरु होता है। बाह्रर का १/३ भाग व बीच का १/३ भाग, इसके दो अलग-अलग केन्द्र होते हैं। दो सिरों पर दो केन्द्र होते हैं। हड्डी की वृद्धि – लम्बाई में – स्टरनम के नज़दीक के केन्द्र के कारण होती हैं। उम्र के अठ्ठारहवें से बीसवें वर्ष तक इसकी वृद्धि पूरी होती हैं।

इस हड्डी का स्टरनम के साथ जो सांधा बनता है उसे स्टरनोक्लॅविक्युलर सांधा कहते हैं। स्टरनम के साथ का सांधा कभी भी निकलता नहीं है परन्तु वहाँ पर अस्थिभंग हो सकती है। बाह्रर का जोड़ बहुधा निकल जाता है व ऐसा होने पर उस तरफ  की स्कॅप्युला नीचे सरक जाता है। इस हड्डी का अस्थिभंग सबसे ज्यादा बार, उसको दो भागों के बीच में होता है। बाहर का एक तृतीयांश भाग जहाँ पर शेष हड्डी से जुड़ता है, उस वक्र भाग में, अस्थिभंग होता है। ऐसा होने पर बाहर की भाग कंधे के भार से नीचे सरकता है।

उपरोक्त आकृति से इस अस्थि की ठीक-ठीक कल्पना आ जायेगी। इसके बाद हम बाहों की हड्डियों की एवं कंधों का जो सांधा है, उसकी विभिन्न गतियों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

(क्रमश:)

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