अस्थिसंस्था भाग – ३४

एड़ी और पंजा

पैर के बारे में दो महत्त्वपूर्ण बातें हमें ध्यान में रखनी चाहिए। माँ के उदर में गर्भ के विकास के समय हाथों और पैरों की जगह कलियों जैसी रचना (limbuds) दिखायी देती है। आगे चलकर विकसित होकर हाथों की कलियां बाहर की ओर मुड़ती हैं तथा पैरों की कलियां अंदर की ओर मुड़ती हैं। शरीर रचना के अनुसार (anatomy) अंदर इस शब्द से अभिप्रेत अर्थ है- शरीर के मध्य की दिशा में और बाहर यानी शरीर से दूर की दिशा में। फलस्वरूप अपनें हाथों का अंगूठा शरीर से दूर तथा पैरों का अंगूठा शरीर के मध्य के पास आता हैं।

panja - एड़ी

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे पैर शरीर के समकोण पर होते हैं। (९०° कोण)। शरीर के भार का वहन व गति के लिये मानवों में यह बदलाव हुआ। फलस्वरूप कुछ संज्ञायें यहाँ बदल जाती हैं। उदा.-कलाई की गति का फ्लेक्शन व एक्सटेंन्शन होता है। यहाँ पर वैसा नहीं होता। हमारे पैरों का तलुआ जो जमीन पर टेकता है उसे प्लॅन्टर बाजू कहते हैं। पैर के ऊपरी हिस्से को डॉरमस या डॉरसल बाजू कहते हैं। यदि पैर को तलवे की ओर मोडे तो उसे डॉर्सीफ्लेक्शन कहते हैं। यदि इसे ठीक से समझ लें तो ऐड़ी की गतिविधियां समझना आसान होगा।

टारसस (tarsus) – कलाई की हड्डियों को जिस प्रकार कारपस अथवा कारपल कहते हैं उसी प्रकार ऐडी की हड्डियों को थरपस अथवा टारसल अस्थि कहते हैं। पैरों की शुरुवात की अथवा ऐड़ी की तरफ के भाग में कुल सात टारसल अस्थियां होती हैं। तुलनात्मक दृष्टि से टारसल अस्थियां कारपल अस्थियों की अपेक्षा बड़ी होती हैं क्योंकि भार वहन का मुख्य कार्य उन्हें करना पड़ता है। इन अस्थियों को भी दो कतारों में बांटा गया है। पहली ऐड़ी की ओर कतार में दो तथा अगली अंगुलियों की ओर की कतार में चार अस्थियां होती हैं। एड़ी की अंदर की ओर एक ही टारसल अस्थि होती है। पहली कतार में टॅलस व कॅलकेनियस नामक दो अस्थियां होती हैं तथा अगली कतार में अंदर की ओर तीन क़्यूनिफॉर्म अस्थि तथा बाहर की ओर क्युबॉइड अस्थि होती हैं। अंदर की तरफ नेविक्युलर अस्थि (सातवी अस्थि) टॅलस व क़्यूनिफॉर्म के बीच में होती हैं। बाहर की ओर कॅलकेनियस व क्युबॉईड़ के बीच के जोड़ बनता है।

प्रत्येक टारसल अस्थि क्युबॉइड यानी छ: बाजू काली होती है। अब हम प्रत्येक टारसल अस्थि के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेंगें।
१)टॅलस (talus) :- यह अस्थि पैर व पंजा के बीच का जोड़ है। सिरा, गर्दन, टिबिया व लॅटरल मॅलिओलस के लिये बने आर्टिक्युलर सरफ़ेस इसका महत्त्वपूर्ण भाग है। इसका सिरा अंगुलियों की दिशा में होता है। सामने व नीचे नेविक्युलर के साथ तथा नीचे की ओर कॅलकेनियम के साथ इसका जोड़ बनता है।

सिरा व शरीर के बीच के नाजुक भाग को इसकी गर्दन कहते है। गर्दन हड्डी शरीर के साथ १५०° का कोण बनाती है। नवजात अर्भक में यह कोण कम अर्थात १३° अंश होता है। जिसके कारण नवजात शिशु के पैर अंदर की ओर मुडे (inver-sion) होते हैं।

इसकी बॉडी साधारण क्युबॉइड़ल होती हैं। पैरों की तरफ की बाजू टिबिया के संपर्क में आती है। दोनों ओर मिडिअल व लॅटरल मॅलीओलस के संपर्क में आते हैं। नीचे की बाजू कॅलेकेनियस के संपर्क में आती है।

२)कॅलकेनियस :- यह एड़ी की सबसे बड़ी हड्डी है। टिबिया व फ्युबुला के भी पीछे यह प्रोजेक्ट होती है। इसे ही हम एड़ी की हड्डी कहते हैं। ऐड़ी को इसकी वजह से ही गोलाई आती है। एडी का यह भाग पोटरी के स्नायुओं के साथ मिलकर पैरों की (पंजों की) गतिविधियों को पूरक साबित होने वाला उत्तोलक (level) तैयार करता है।

३)नेविक्युलर :- ऐडी की ओर की टॅलस् व अंगुलियों की ओर की क़्यूनिफॉर्म अस्थियों के बीच में यह हड्डी होती है। इसके पीछे की ओर एक ही आर्टिक्युलर सरफ़ेस होता है। टॅलस के लिये तथा सामेन की ओर तीन क़्यूनिफॉर्म अस्थियों के लिये तीन आर्टिक्युलर सरफ़ेसेस होते हैं। ४ से ६ तीन क़्यूनिफॉर्म अस्थियों की पांवो में उनकी स्थिती के अनुसार अंदरुनी, बीच की और बाहरी क़्यूनिफॉर्म नाम दिये गये है। हम सब लोग पाचर के बारे में जानते हैं। दो लकड़ियों को आयस में मिलने से रोकने के लिये उनके बीच पाचर लगायी जाती है। साधारणत: इसी के आकार की ये हड्डियां होती है। इस में अंदर की अस्थि सबसे बड़ी तथा बीच की हड्डी सबसे छोटी होती है। नेविक्युलर अस्थि के साथ जोड़ बनाने के लिये तीनों को मिलाकर एक अंर्तवक्र कमान बनता है। तथा इसी कमान का सामने का बहिर्वक्र भाग पहली तीन मेटाटारसल अस्थि के साथ जोड़ा जाता है। पंजो की आड़ी कमानी की रचना में ये तीनों हड्डियां समाविष्ट होती हैं।

४)क्युबॉइड :- यह टारसल अस्थि के अगली कतार की सबसे बाहरी अस्थि है। ऐड़ी की ओर कॅलकेनियस व अंगुलियों की दिशा में चौथे व पाँचवे मेटाटारसल हड्डियों से यह जोड़े गये हैं। इसकी बाहरी ओर सेसमॉइड अस्थि के लिये एक आर्टिक्युलर फ़ैसेट होती है। टारसल अस्थि की जानकारी हमने देखी। अब हम एड़ी के जोड़ के बारे में हम जानकारी प्राप्त करेंगे।

एडी का जोड़ :- टिबिया का एड़ी के पास का सिरा, मिडीअल व लॅटरल मॅलिओलाय और टॅलस के बीच यह जोड़ बनता है। यह जोड़ एक अक्षीय, विजागरी होने के बावजूद ये थोड़ा अलग होता है क्योंकि इस में कुछ हद तक रोटेटरी गतियां होती हैं।

आर्टिक्युलर सरफ़ेस पर हायलाईन कुर्चा का स्तर होता है। सभी आर्टिक्युलर सरफ़ेसेस एक दूसरे से जुड़े होते हैं। जोड़ की सभी हड्डियों को एक साथ बांधकर रखने का काम फाइब्रस कॅप्यूसल व चार विभिन्न लिंगामेंटस करते हैं। जोड़ के अंदर सायनोवियल परदा होता है।

जोड़ की गतियाँ :- जब हम जमीन पर पाँवों को टिकाकर सीधे खड़े होतेहैं। तो डार्सीफ्लेक्शन १०० डिग्री व फ़टरफलेक्शन २०० संभव होता है। डॉर्सिफ्लेक्शन में जोड़ के सभी लिंगामेंटस् पूरी तरह खिंचाव की स्थिती में होते हैं। हमारा चलना, दौड़ना, छलांग लगाना इत्यादि के लिये सर्वप्रथम डार्सिफ्लेक्शन आवश्यक होता है। इसके फलस्वरूप इस गति के लिये जो जोर (thrust) आवश्यक होता है, वो प्राप्त हो जाता है। इस जोड़ के जो चार लिंगामेंटस् हैं वे इस जोड़ का निकलने से संरक्षण करते हैं। मॅलिओलस का अस्थिभंग होने पर ही यह जोड़ निकल सकता है। बहुधा अति तनाव के कारण ankle sprain ज्यादा दिखायी देता है।

आज हमने एड़ी के जोड़ की जानकारी प्राप्त की। इसकी दो गतियों को हमने देखा परन्तु हमारे पैरों में और भी कई प्रकार की गतियां होती हैं। वे कौन सी हैं तथा कहाँ पर होती है, यह हम अगले लेख में देखेंगे।

(क्रमश:)

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