सातारा भाग-२

समर्थ रामदासजी अर्थात् रामदासस्वामीजी ये महाराष्ट्र के एक अग्रसर संतपुरुष थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। विदेशी आक्रमकों की ग़ुलामी में रहनेवाली और इस ग़ुलामी के कारण ही दुर्बल बन चुकी उस समय की जनता को जगाने का कार्य समर्थजी ने किया। समर्थजी का अध्यात्म यह निवृत्तिवादी न होते हुए कर्मयोग का था। महाराष्ट्र के युवाओं में चेतना निर्माण करके उन्हें दुश्मन के खिलाफ जंग के लिए तैयार करने का बहुत बड़ा काम रामदासस्वामीजी ने किया।

ShreeRam_SamarthMandirसमर्थ रामदासजी के आराध्य थे श्रीराम और हनुमानजी। पुरुषार्थ के स्वामी श्रीराम और अतुलितबलधाम हनुमानजी इनकी उपासना के द्वारा समर्थ रामदासजी ने लोगों को मानसिक तथा शारीरिक रूप से सुदृढ़ बनाया। स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिये सुदृढ़ शरीर का होना जरूरी है, यह ध्यान मे रखते हुए समर्थ रामदासजी ने युवाओं को बल का प्रशिक्षण दिया और इसीसे निर्माण हुआ, स्वराज्य के लिए अपनी जान की बाजी लगानेवाले कई मावळों (सैनिकों) का। गृहस्थी में फँसे हुए भोले-भाले लोग भी अध्यात्म को आसानी से समझ सकें, उसपर अमल कर सकें, इसीलिये रामदास स्वामीजी ने ‘मनाचे श्लोक’ (मनोबोधक काव्य) तथा ‘दासबोध’ की रचना की। इनके अलावा और भी कई रचनाएँ उन्होंने की। साथ ही गाँव गाँव में बलदाता हनुमानजी के मंदिरों की स्थापना की। इस तरह उन्होंने भक्ति और शक्ति इन दोनों की सहायता से एक चैतन्यदायक, आत्मसम्मान की भावना से परिपूर्ण तथा कर्मयोगी समाज का निर्माण किया।

सातारा के पास के परळी गाँव का एक क़िला, जो परळी का क़िला इस नाम से पहचाना जाता था, जो आगे चलकर समर्थ रामदासजी का निवास इस गढ़ पर होने के कारण यह ‘सज्जनगढ़’ इस नाम से जाना जाने लगा। इस गढ़ पर समर्थ रामदासजी का मठ, श्रीराम का मंदिर और समर्थजी की समाधि है। इस मठ की पुरानी वास्तु का निर्माण छत्रपती शिवाजी महाराज द्वारा किया गया। यहाँ पर श्रीसमर्थरामदासजी  के शयनकक्ष में उनके द्वारा इस्तमाल की जानेवाली कईं वस्तुएँ सँभालकर रखी गयी हैं। यहाँ के श्रीराममंदिर की श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी की मूर्तियों का निर्माण समर्थरामदासजी ने करवाया है। विदेशी आक्रमणों के समय सुरक्षा की दृष्टी से इन मूर्तियों को ‘वासोटा’ नामक क़िले पर रखा गया था। राजाराम महाराज के कार्यकाल में सज्जनगढ़ पर नये मंदिर का निर्माण करके उन मूर्तियों को पुन: स्थापित किया गया। इसी सज्जनगढ़ पर समर्थरामदासजी की पादुका भी हैं।

सातारा की एक और विशेषता है, यहाँ की फौजी स्कूल। यह स्कूल ‘सातारा फौजी स्कूल’ या आसान शब्दो में कहना हो तो ‘सातारा मिलिटरी स्कूल’ इस नाम से पहचानी जाती है।

भारत की फौजी स्कूलों में से यह सबसे पहली फौजी स्कूल है। २३ जून १९६१ को इस स्कूल की शुरुआत हुई। फ़ौज में भर्ती होने की इच्छा रखनेवाले छात्रों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से सक्षम बनाना, यह इस स्कूल का उद्देश्य है। वैसे ही एक अच्छे नागरिक का निर्माण करने के साथ साथ आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग के बच्चोंको उच्च शिक्षा का अवसर प्रदान करने का काम भी यह स्कूल करती है। लेकिन मुख्य तौर पर इस स्कूल में हमारे देश के भावी फ़ौजियों को प्रशिक्षित किया जाता है। अर्थात् इसके लिए आवश्यक रहनेवाला सभी प्रकार का प्रशिक्षण इस स्कूल में छात्रों को दिया जाता है ।

‘रयत शिक्षण संस्था’ नाम की एक शिक्षासंस्था की स्थापना कर्मवीर डॅा. भाऊरावजी पाटील ने की। समाज के दुर्बल वर्ग के छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था करने के उद्देश से इस संस्था की स्थापना की गयी। इसवी. १९२४ में इस संस्था का मुख्यालय सातारा बन गया। महाराष्ट्र के कई विभागों में शिक्षासंस्थाओं की स्थापना करके उनके द्वारा ज्ञानदान का कार्य यह संस्था कर रही है।

सातारा शहर और सातारा ज़िला एक और बात के लिए मशहूर है और वह है सातारा की वीरसैनिकों की परंपरा। भारतीय फ़ौज की सेवा के कई वीर इस शहर और ज़िले के निवासी हैं। यहाँ  की मिट्टी की शान को क़ायम रखते हुए युद्ध के दौरान इन शूर वीरों द्वारा किये गये पराक्रम के लिए उन्हें शौर्यपदक भी प्राप्त हो चुके हैं।

Sataraमहाराष्ट्र की कला, शिक्षा, संस्कृति, साहित्य आदि क्षेत्रों के विकास में सातारा शहर और उसके आसपास के इला़के ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। शिक्षा, साहित्य, कला आदि क्षेत्रों में अग्रसर रहनेवाले कईं व्यक्तित्वों के  सातारा के साथ घनिष्ठ संबंध है।

मराठी साहित्य क्षेत्र में सुविख्यात रहनेवाले आचार्य काका कालेलकर, ना. ह. आपटे, न. चिं. केळकर, कवी यशवंत, बा. सी. मर्ढेकर आदि व्यक्तित्वों का सातारा के साथ दृढ़ संबंध है। महाराष्ट्र के जानेमाने विद्वान् तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशीजी का भी संबंध सातारा के साथ है।

मराठी रंगमंच और फ़िल्मी जगत् की हस्तियों का संबंध सातारा के साथ है। चिंतामणराव कोल्हटकर, स्वरराज छोटा गंधर्व, राजा गोसावी, इनके अलावा गोपाळ गणेश आगरकर, लोकहितवादी गोपाळ हरि देशमुख इनजैसे समाजसुधारकों के नाम भी सातारा के साथ जुड़े हुए है। इन व्यक्तित्वों का सातारा के साथ जन्मभूमि या कर्मभूमि के रूप में संबंध रहा है।

यहाँ  पर दो उल्लेखनीय व्यक्तित्वों का निर्देश करना ज़रूरी है। मेरी झांसी नही दूँगी यह अंग्रेज़ सरकार से कहनेवाली ‘झांसी की रानी लक्ष्मीबाई  का जन्मस्थान है, सातारा जिले का ‘धावडशी यह गाँव। दूसरा नाम है रामशास्त्री प्रभुणेजी का। रामाशास्त्री प्रभुणेजी की जन्मस्थली है सातारा के पास में  स्थित माहुली। रामशास्त्री प्रभुणेजी पेशवों के कार्यकाल में न्यायाधीश पद पर काम करतें थे। नि:स्पृहता और अचूक न्यायदान के लिए वे मशहूर थे। सत्य के प्रति रहनेवाली निष्ठा के कारण ही उन्होंने रघुनाथराव पेशवा को उनके भतीजे नारायणराव के खून के इलज़ाम में दोषी क़रार देते हुए देहान्त प्रायश्‍चित्त की सजा सुनाई थी।

सातारा शहर यह यदि पठार अर्थात समतल प्रदेश है, फिर भी वह उँचाई पर बसा हुआ पठार है। सातारा से कुछ ही दूरी पर स्थित हैं, महाराष्ट्र के दो प्रमुख हिल स्टेशन्स- महाबलेश्‍वर और पांचगणी।

महाबलेश्‍वर की शीत जलवायु के कारण अग्रेंज़ो ने उसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा दिया था। इससे आप महाबलेश्‍वर के मौसम के बारे में समझ ही गये होंगे। सर्दियों के मौसम में कभी कभी महाबलेश्‍वर में छोटे छोटे कणों के रूप में बर्फ  गिरती है और वहाँ के खेत, स्ट्रॅाबेरी की बागानें मानो बर्फ  की चादर ओढ लेते हैं।

पांचगणी यह भी सातारा से कुछ ही दूरी पर स्थित हिलस्टेशन है। यह पाँच पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहाँ की पहाड़ियों की विशेषता यह है कि उनका निर्माण कईं ह़जार वर्ष पूर्व ज्वालामुखी के उद्रेक के कारण हुआ है।

प्रकृति के जल, वायु इन तत्त्वों का मनुष्य के जीवन के साथ काफी क़रिबी रिश्ता है। दरअसल आधुनिक युग में इन दो तत्त्वों का मनुष्य के जीवन को अधिक सुखी बनाने में काफी सहयोग रहा है। जल से बिजली का निर्माण किया जाता है, यह बात तो हम सभी जानते ही हैं। हवा यह भी ऊर्जानिर्माण का एक प्रमुख साधन बन सकता है।

आप पवनचक्की (विंडमिल) के बारे में जानते ही होंगे। शायद आपने उसे देखा ही होगा। इस पवनचक्की की रचना कैसी होती है? खुले समतल प्रदेश में उचित दूरी पर स्थित बड़े बड़े खम्भों पर धातुओं से बनी ब्लेड्स रहती हैं। बहती हुई हवाओं के कारण इन पवनचक्कियों द्वारा बिजली का निर्माण किया जाता है।

सातारा से कुछ ही दूरी पर स्थित ‘चाळकेवाडी’ में इस तरह की कुल सौ पवनचक्कियों को कार्यान्वित किया गया है और उनकी सहायता से ऊर्जा का निर्माण किया जाता है। कोयना और कृष्णा ये महाराष्ट्र की दो प्रमुख नदियाँ हैं। इन दोनों नदियों के सान्निध्य का लाभ सातारा जिले को हुआ है और इसीलिए यहाँ बसनेवालों की जल एवं बिजली की जरूरत को पूरा करने का काम ये दोन प्रमुख नदियाँ करती हैं।

सातारा से १० कि.मी. की दूरी पर ‘पाटेश्वर’ नाम की एक हरीभरी पहाड़ी है। यहाँ पर साल, बरगद, कारवी जैसे वृक्षों का एक सुन्दर जंगल है। यहाँ की एक और ख़ासियत है, यहाँ पर स्थित कईं प्राचीन मन्दिर और कईं प्राचीन शिल्प। यहाँ के शिवमन्दिर में एक बहुत बड़ा शिवलिंग है और इस प्रमुख शिवलिंग पर ५५१  शिवलिंग कुरेदे गये हैं। यह स्थान बहुत ही प्राचीन समय से अस्तित्व में है और इस प्रकार के सन्दर्भ प्राचीन ग्रन्थों में मिलते हैं, यह मत इस विषय में व्यक्त किया जाता है।

सातारा में प्राकृतिक सुन्दरता का एक और अनोखा ऩजारा हम देख सकते हैं। यह ऐसा ऩजारा है, जो देखनेवालों के होश उड़ा देता है, उन्हें संमोहित कर देता है और देखनेवाले बस उसे देखते ही रह जाते हैं। सातारा से कुछ ही दूरी पर स्थित है, ‘कास’ नाम का एक गाँव। यहाँ पर बरसात के मौसम के बाद खिलनेवाले कईं प्रकार के बनफूल  और घास के फूल हम देख सकते हैं। बहती हुई हवाओं के कारण मानो रंगबिरंगी, विभिन्न आकार के फूलों  से बनी एक चद्दर ही लहरा रही हो, ऐसा लगता है। विशाल पठारक्षेत्र पर खिले हुए ये कोमल सुन्दर फूल देखनेवालों को मोहित कर देते हैं। लेकिन यदि आप फूलों के इस ऩजारे को देखना चाहते हैं, तो आपको यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि प्रकृति की सुन्दरता का यह ऩजारा बस कुछ ही दिनों के लिए वहाँ पर रहता है।

सातारा के केन्द्रस्थान में विराजमान क़िला अजिंक्यतारा और वहीं से कुछ ही दूरी पर खिले ये बनफूल। मानो शूरता और सुन्दरता का लाजवाब मेल!

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