जबलपुर

Bedaghat

मध्यप्रदेश इस नाम से ही हमारी समझ में आता है कि यह प्रदेश भारत के मध्य में स्थित है। मध्यप्रदेश में प्राकृतिक सुन्दरता से सम्पन्न बहुत सारे स्थान हैं। जबलपुर यह उनमें से ही एक है। जबलपूर शहर उसकी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए तो मशहूर है ही, लेकिन साथ ही नर्मदा नदी के पात्र में स्थित संगेमरमर के पत्थरों के लिए भी यह मशहूर है।

नर्मदा नदी के सान्निध्य में बसा हुआ यह जबलपुर शहर मध्यप्रदेश के महाकोशल, इस प्रान्त में स्थित है। मध्यप्रदेश के आग्नेय दिशा के विभाग को ‘महाकोशल’ कहते हैं और इस विभाग में नर्मदा का पूर्वी घाटी और सातपुड़ा पर्बत का पूर्वी हिस्सा समाविष्ट होता है। जबलपुर शहर कईं सरोवर और हरियाली इनसे सम्पन्न है।

ऋषि जाबालि के कारण इस शहर को जबलपुर यह नाम प्राप्त हुआ, ऐसा कुछ लोगों का मानना है। यह शहर प्राचीन समय में जाबालि ऋषि की तपश्‍चर्या का स्थान था, ऐसा भी मान्यता है और इसीलिए इस स्थान को ‘जबलपुर’ यह नाम प्राप्त हुआ है। दूसरी राय ऐसी भी है कि ‘जबल’ अर्थात् पर्बत या टीलें और इसी वजह से इस शहर को ‘जबलपुर’ कहते हैं। दूसरे शहरों की तरह इस शहर का नामकरण भी अंग्रेज़ों ने ‘जबलपोर’ ऐसा किया था।

जबलपुर का अस्तित्व सम्राट अशोक के समय से है। यहॉं सम्राट अशोक के समय के कुछ अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसके बाद ९वी और १०वी सदी में यह शहर विख्यात त्रिपुरी राज्य की राजधानी के तौर पर जाना जाता था। इसवी ८७५ में इस शहर पर कलचुरी राजाओं ने अपनी सत्ता स्थापित की और जबलपुर को उनकी राजधानी का दर्जा प्रदान किया। ११वी और १२वी सदी में यहॉं हैहय वंश का शासन था। १३वी सदी में गोण्ड राजाओं ने इस शहर पर कब्ज़ा जमा कर जबलपुर को अपनी राजधानी का दर्जा दिया। इन गोण्ड राजाओं में से गर्ह मण्डल के गोण्ड राजा ने १६वी सदी में अपने साम्राज्य को जब अधिक शक्तिशाली बनाया, तब जबलपुर यह गोण्ड साम्राज्य का ही एक हिस्सा था। मुग़लों ने जब गोण्ड साम्राज्य पर आक्रमण करना शुरू किया, तब गोण्ड साम्राज्य की रानी दुर्गादेवी ने मुग़लों को मुँहतोड़ जवाब तो दिया, मगर इस संग्राम में वे शहीद हुई।

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अन्त में इसवी १७८१ में गोण्ड राजाओं की सत्ता समाप्त हुई। मराठों ने उन्हें परास्त कर दिया। इसवी १७९८ में पेशवाओं ने नागपुर के शासक भोसलेजी को नर्मदा की घाटी का कारोबार सौंप दिया। जबलपुर पर इसवी १८१८ तक मराठों का शासन था। इसवी १८१८ में अंग्रेज़ों ने मराठों को परास्त करके जबलपुर पर अपना कब्ज़ा जमाया। सेना के बल पर अपने साम्राज्य का विस्तार करनेवाले अंग्रेज़ों ने जबलपुर में अपनी सेना की छावनी का निर्माण किया और इस शहर को ‘कमिशन हेड क्वार्टर’ का दर्जा दिया।

अंग्रेज़ों ने अपने कारोबार की सहुलियत के लिये विभिन्न प्रान्तों का निर्माण किया। सागर और नर्मदा इस प्रान्त की राजधानी जबलपुर यह शहर बना। आगे चलकर सागर-नर्मदा विभाग को नये रूप से निर्मित मध्य प्रान्त में समाविष्ट किया गया और इसका नामकरण मध्य प्रान्त और बेरर इस तरह से किया गया।

भारत की आज़ादी के बाद मध्य प्रान्त और बेरर इस विभाग को भारत के राज्य का दर्जा दिया गया। इस तरह से विभिन्न मोड से गुजरते हुए आख़िर इसवी १९५६ में मध्यप्रदेश राज्य की निर्मिति होने के बाद जबलपुर का समावेश मध्यप्रदेश में किया गया।

प्राकृतिक सुन्दरता के वरदान के साथ-साथ जबलपुर में खनिज सम्पत्ति भी विपुल मात्रा में है। अश्मीभूत डायनॉसोर के अवशेष प्राप्त होने के बाद यह स्थान भूगर्भशास्त्रज्ञ, पुरातत्त्वशास्त्रज्ञ एवं अश्मीभूत जीव-अवशेषों का अध्ययन करनेवालों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।

भौगोलिक दृष्टि से तो यह शहर महत्त्वपूर्ण है ही, साथ ही इसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व भी है। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रसर नेता लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस इनके कदम इस शहर की भूमि पर पड़े हैं। लोकमान्य तिलक यहॉं तीन बार आ चुके हैं, वहीं महात्मा गांधी यहॉं चार बार आ चुके हैं। इसवी १९३९ में इस शहर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस शहर को त्रिपुरी भी कहते हैं, अत एव इसवी १९३९ के कांग्रेस के अधिवेशन को त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन भी कहा जाता है। सुभाषचन्द्र बोस इस अधिवेशन के अध्यक्ष थें।

यह शहर भेड़ाघाट के ‘मार्बल रॉक्स्’ के लिए मशहूर है। प्राकृतिक चमत्कार एवं प्राकृतिक सुन्दरता के लिए मार्बल रॉक्स् मशहूर हैं। जबलपुर शहर से लगभग २०-२५ कि.मी. की दूरी पर स्थित भेड़ाघाट में ये मार्बल रॉक्स् पाये जाते हैं। मार्बल रॉक्स् अर्थात् संगेमरमर के पत्थर। इस पत्थर की चट्टानें किसी चहारदिवारी की तरह नर्मदा के तट पर स्थित हैं। इस संगेमरमर की सुन्दरता दिन के उजाले में जितनी मोहक है, उतनी ही रात में चन्द्र के प्रकाश में भी मन को लुभाती है। प्रकृति के इस चमत्कार को हम नर्मदा में से नौका के द्वारा भेड़ाघाट जाकर बड़ी आसानी से देख सकते हैं। संगेमरमर पर पड़नेवाली सूर्य एवं चन्द्र की किरनें और हमेशा उनका साथ देनेवाला नर्मदा का बहता नीला जल, इस दृश्य कोदेखकर दर्शक मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।

Madan-Mahal-Fortइन मार्बल रॉक्स् के पास ही एक प्रपात है, जो ‘धुँवाधार’ इस नाम से जाना जाता है। इस प्रपात के तेज़ी के साथ नीचे आनेवाले पानी के तुषार कोहरेजैसे वातावरण का निर्माण करते हैं।
जबलपुर में हम कुदरत का एक और करिश्मा देख सकते हैं – ‘बॅलन्सिंग रॉक्स्’। यहॉं दो पत्थर इस प्रकार से स्थित हैं कि उनका बहुत ही कम हिस्सा आपस में जुड़ा हुआ है; मगर इस स्थिति में भी वे एक दूसरे पर इस तरह से विद्यमान हैं कि जैसे दोनों ने एक-दूसरे को बॅलन्स् कर रहे हैं।

मदनशाह नामक गोण्ड शासक ने १२वी सदी में बनाया हुआ मदनमहल फोर्ट नाम का राजमहल जबलपुर में है।

जबलपुर की एक और विशेषता यह है कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के कईं अभिनेता एवं अभिनेत्रियॉं जबलपुर से जुड़े हुए थें।

इन सब बातों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी जबलपुर का अपना महत्त्व है।

जबलपुर इंजिनियरिंग कॉलेज की स्थापना इसवी १९४७ में की गयी। यह भारत में स्थापित किया गया दूसरा इंजिनियरिंग कॉलेज है। इस कॉलेज का मूल नाम रॉबर्टसन इंजिनियरिंग कॉलेज था, जो आगे चलकर गव्हर्नमेंट इंजिनियरिंग कॉलेज बन गया और आज वह जबलपुर इंजिनियरिंग कॉलेज इस नाम से जाना जाता है।

इस कॉलेज की विशेषता है, इस कॉलेज की इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट की हाय व्होल्टेज लॅबोरेटरी। भारत में इस तरह की सुविधा मात्र ५ स्थानों पर है और उनमें से एक है, यह कॉलेज।

इसवी १८३६ में गव्हर्नमेंट मॉडेल सायन्स कॉलेज की स्थापना की गयी। जबलपुर में शिक्षा की नींव रखनेवालीं संस्थाओं में से यह एक संस्था है।

देश की सुरक्षा में इस शहर का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसवी १९०४ में यहॉं गन कॅरिएज फॅक्टरी की स्थापना की गयी। इस प्रकार की युद्ध सामग्री एवं सेना से सम्बन्धित सामग्री का निर्माण करनेवालीं अन्य तीन फॅक्टरियॉं भी जबलपुर में हैं।

जाबालि ऋषि की इस भूमि को मध्यप्रदेश की ‘संस्कारधानी’ भी कहते हैं।

संगेमरमर के पहाड़ों का प्राकृतिक आविष्कार जहॉं है, उस जबलपुर शहर को इन संगेमरमर के पहाड़ों ने, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर बनाया है।

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