सातारा भाग-१

कुछ सदियों पूर्व पूरे भारतवर्ष में कईं छोटे-बड़े साम्राज्य फैले हुए थे। अधिक से अधिक प्रदेश पर कब़्जा करने के उद्देश्य से इन साम्राज्यों में कईं बार टकराव हो जाता था। बाद में विदेशी लोग इन साम्राज्यों पर आक्रमण करने लगे और उनके इस आक्रमण में इनमें से कईं राज्यों का नामोंनिशान तक नहीं रहा। उन विदेशी आक्रमणों को मुँहतोड़ जवाब देनेवाले एक अत्यन्त बुद्धिमान, दूरदर्शी, पराक्रमी और प्रखर नररत्न का जन्म इस महाराष्ट्र में हुआ। ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ नाम के इस नरसिंह ने समूचे महाराष्ट्र को एक ही छत्र में ले आने का पुरुषार्थ किया। इन्हीं शिवाजी महाराज के वंशजों ने आगे चलकर ‘सातारा’ को राजधानी का दर्जा देकर वहाँ से सत्ता की बाग़डौर को सँभाला।

सातारासातारा। महाराष्ट्र का एक शहर। ‘सातारा’ यह पहले मराठाशाही की राजधानी के तौर पर जाना जाता था। आज भी सातारा जिले के मुख्यालय के रूप में ‘सातारा’ शहर की पहचान है। यह पूरा का पूरा सातारा जिला ही ‘दख्खन के पठार’ के विभाग में आता है। दख्खन का पठार यानि कि दक्षिण में स्थित समतल भूप्रदेश।

इसवी पूर्व २०० के एक शिलालेख में सातारा जिले के ‘कराड’ इस शहर का उल्लेख ‘कर्‍हाकड’ इस नाम से किया जाता है। इतिहासकारों की यह राय है कि सातारा यह शहर भी प्राचीन समय से अस्तित्व में था। इस सातारा शहर पर बदामी के चालुक्य राजा, राष्ट्रकूट राजा, शिलाहार राजा, देवगिरी के यादव इस क्रम से राजवंशों का शासन था। इसके बाद कुछ समय तक सातारा पर मुग़लों की हुकूमत थी। लेकिन शिवाजी महाराज के समय सातारा पर रहनेवाली मुग़लों की हुकूमत ख़त्म हो गयी और मराठों की सत्ता स्थापित हो गयी। वैसे देखा जाये, तो शिवाजीमहाराज के वंशजों ने सातारा को राजधानी का दर्जा देने से पहले ही शिवाजीमहाराज ने उसपर अपनी सत्ता स्थापित की हुई थी।

शिवाजीमहाराज ने पुणे और उसके आसपास के मावळ इला़के के साथ ही सातारा तथा उससे सटे इस इला़के के राजकीय तथा भौगोलिक महत्त्व को पहचानकर वहाँ अपनी सत्ता प्रस्थापित की थी। सातारा जिले के पश्चिमी विभाग में घना जंगल तथा ऊँची पहाड़ियाँ  थीं। दुश्मन को शह देने के लिए इनका उपयोग हो सकता है, यह ध्यान में रखकर शिवाजी महाराज ने इस इला़के में लगभग २५ क़िलों का निर्माण किया। इस तरह सातारा यह शहर उस समय के मराठा साम्राज्य का हिस्सा था।

शिवाजी महाराज के बाद उनके पुत्र राजारामजी और राजारामजी के पश्‍चात् राजारामजी की पत्नी ताराबाई ने सातारा इस राजधानी में रहकर शासन किया।

शिवाजी महाराज के बड़े बेटे थे संभाजी महाराज और संभाजी महाराज के पुत्र थे शाहू राजा। शाहू राजा लंबे अरसे तक मुग़लों की कैद में थे। वहाँ से मुक्त हो जाने के बाद शाहू राजा ने सातारा को अपनी राजधानी बनाकर वहाँ रहकर शासन-व्यवस्था को सँभाला। इन्हीं शाहू राजा ने पहले बाजीरावजी को पेशवा पद पर नियुक्त किया। आगे चलकर मराठाशाही की शासनव्यवस्था को पेशवा सँभालने लगे और उन्होंने पुणे को अपनी राजधानी बना लिया।

अंग्रे़जों ने धीरे धीरे संपूर्ण भारतवर्ष में अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू किया और एक के बाद एक प्रदेश पर वे अपना कब्जा जमाने लगे। मुंबई पर कब्जा करने के बाद उन्होंने धीरे धीरे महाराष्ट्र के सभी प्रदेशों को एक एक करके अपने कब्जे में कर लिया। जिन पर उन्होंने कब्जा कर लिया था, उन प्रदेशों का उन्होंने ‘बॉम्बे प्रेसिडन्सी’ में समावेश कर लिया। लेकिन इस दौरान उन्होंने सातारा के शाहू महाराज के वंशजों की रियासत को बरकरार रखा था । लेकिन जब सातारा की राजगद्दी को कोई वारिस नहीं रहा, तब अंग्रे़जों  ने सातारा को निगल लिया और उसका समावेश ‘बॉम्बे प्रेसिडन्सी’ में कर दिया। उस तरह सातारा भी अंग्रे़जों की हुकूमत में आ गया।

अंग्रे़जों के खिलाफ छिड़ी स्वतन्त्रता की जंग में सातारा एक विशेष संघर्ष के लिए मशहूर हो गया था ।

‘चले जाव’ आंदोलन के समय स्वतन्त्रता सेनानियों ने एक अभिनव योजना कार्यान्वित की थी, जिसे ‘प्रतिसरकार’ कहा जाता था। अंग्रे़जों की शासनव्यवस्था  को  समानान्तर रहनेवाली शासनव्यवस्था का निर्माण करके उसके द्वारा उस संबंधित इला़के का कारोबार चलाना, ऐसा उस योजना का  स्वरूप था। यह व्यवस्था अंग्रे़जों  की सरकार की विरोधी होने के कारण उसे ‘प्रतिसरकार’ यह नाम दिया गया था। इस तरह जहाँ जहाँ प्रतिसरकार की स्थापना की जाती थी, वहाँ की संपूर्ण  शासन व्यवस्था इस ‘प्रतिसरकार ’ व्दारा चलायी जाती थी। सातारा के ग्रामीण इलाकों मे इस तरह प्रतिसरकार की स्थापना करके वहाँ की अंग्रे़जी शासनव्यवस्था  को क्रियाशून्य कर दिया गया। ग्रामीण इलाक़ो में लगभग साढ़े चार वर्षों तक प्रतिसरकार का शासन रहा। इस प्रतिसरकार के प्रमुख नेता के तौर पर नाना पाटिलजी का नाम लिया जाता है।

इस तरह स्वतन्त्रता को अबाधित रखने के लिए सातारा ने विभिन्न कालखण्डों में किये हुए संघर्ष को इतिहास में दर्ज किया गया है।

भारत आ़जाद हो जाने के बाद सातारा का समावेश महाराष्ट्र में किया गया और आज सातारा यह शहर महाराष्ट्र का कईं पहलुओं से महत्त्वपूर्ण रहनेवाला एक शहर माना जाता है।

सातारा एक और ची़ज के लिए मशहूर है। बताऊँ किसके लिए? पेढ़े के लिए। सातारा का ‘कंदी पेढ़ा’ उसके अपने एक विशेष स्वाद के कारण बहुत ही मशहूर है।

ऐसा कहा जाता है कि सातारा यह नाम उस शहर के इर्दगिर्द रहनेवाली सात पहाड़ियों के कारण शायद उसे प्राप्त हुआ है।

सातारा के आसपास के इलाक़ों में कईं क़िले हैं। इनमें से कुछ क़िलों का निर्माण शिवाजी महाराज ने किया था। फिर भी सातारा का नाम लेते ही दो प्रमुख क़िलें याद आते हैं – एक है ‘अजिंक्यतारा’ और दूसरा ‘सज्जनगढ़’। अजिंक्यतारा राजकीय दृष्टिकोन से महत्त्वपूर्ण है, वहीं सज्जनगढ़ आध्यात्मिक दृष्टिकोन से महत्त्वपूर्ण है। इनमें से अजिंक्यतारा यह क़िला सातारा शहर में ही स्थित है, वहीं सज्जनगढ़ सातारा से कुछ ही दूरी पर है। शिवाजी महाराज और उनके वंशजों का सम्बन्ध अजिंक्यतारा इस क़िले के साथ है। सज्जनगढ़ के साथ भी शिवाजी महाराज का क़रीबी रिश्ता है और साथ ही शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास स्वामीजी का तो यह गढ़ निवासस्थान रहा है।

अजिंक्यतारा यह सातारा शहर में स्थित पहाड़ी क़िला है। दरअसल सातारा यह शहर इसी पहाड़ी क़िले की ढलान पर बसा हुआ है। इस क़िले पर से इस पूरे के पूरे सातारा शहर को देख सकते हैं।

अजिंक्यतारा की ऊँचाई है,  ३३००  फ़ीट और क़िले की दीवारों की ऊँचाई है, ४ मीटर्स। जब इस क़िले में बसती थी, तब क़िले की सुरक्षा करनेवाले म़जबूत चहारदीवारी और बु़र्ज भी यहाँ थे।

इस क़िले के बारे में यह कहा जाता है कि जब इस प्रदेश पर शिलाहारों का राज था, उस समय के शिलाहार राजा ‘भोज-दूसरे’ इन्होंने इस इला़के में कईं क़िलों का निर्माण किया। यह क़िला पहले ‘समर क़िला’ नाम से जाना जाता था। बाद में बहामनी सुलतान ने इसपर कब़्जा कर लिया। आगे चलकर शिवाजी महाराज ने इस क़िले को जीत लिया। इस क़िले की उस अवधि में बड़ी अहम भूमिका रही है। शिवाजी महाराज का कुछ समय तक इस क़िले पर वास्तव्य था। आगे चलकर मुग़लों ने इस क़िले पर कब़्जा कर लिया और इसका नाम बदल दिया। बाद में जब राजारामजी की पत्नी ताराराणी ने इस क़िले को वापस अपने कब़्जे में कर लिया, तब उसे ‘अजिंक्यतारा’ यह नाम दिया। उसके बाद फिर ताराराणी से मुग़लों ने पुनः इस क़िले को छीन लिया और अन्त में अठारहवी सदी की शुरुआत में ही सम्भाजीराजा के बेटे शाहूराजा ने इस क़िले को जीत लिया और सातारा में अपनी राजधानी स्थापित कर दी। शाहूराजा के बाद इस क़िले का स्वामित्व स्वाभाविक रूप से पेशवों के पास चला गया और अंग्रे़जों ने आख़िर इसपर अपना झण्डा फहराया। अजिंक्यतारा के इतिहास के बारे में कुछ इस तरह की जानकारी प्राप्त होती है।

इस वर्णन से एक बात हमारी समझ में आ जाती है कि यह क़िला महाराष्ट्र के महत्त्वपूर्ण क़िलों में से एक है। शिलाहारों से लेकर अंग्रे़जों के समय तक इस क़िले ने कईं शासक देखे और सबसे अहम बात यह है कि इस क़िले पर लोग बस रहे थे। महाराष्ट्र के पठारीय प्रदेश में शासन करने के लिए हर एक शासक इस पहाड़ी दुर्ग के महत्त्व को जानता था, यह बात निश्चित है। इसी क़िले की ढलान पर अर्थात् क़िले की तलहरी में आज का सातारा यह शहर बसा हुआ है। अर्थात् हर एक कालखण्ड में ‘अजिंक्यतारा’ यह इस शहर का केन्द्रबिन्दु रहा है।

हालाँकि आज लोग इस क़िले पर नहीं रहते, लेकिन फिर भी क़िले के सुस्थिति में रहनेवाले हिस्से को हम आज भी देख सकते हैं।

अजिंक्यतारा के साथ तो हमारा परिचय हो गया। अब जानकारी प्राप्त करते हैं, सज्जनगढ़ के बारे में। एक योद्धाओं का क़िला है, तो दूसरा सन्तों का आवासस्थल। सातारा के पास ही ‘परळी’ नाम का एक गाँव है और वहीं पर यह सज्जनगढ़ स्थित है। इस सज्जनगढ़ पर समर्थ रामदास स्वामीजी की समाधि है। अत एव इस सज्जनगढ़ के बारे में जानकारी प्राप्त करने से पहले समर्थ रामदास स्वामीजी के विषय में भी थोड़ी-बहुत जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन अब नहीं, तो अगले भाग में।

One Response to "सातारा भाग-१"

  1. onkar wadekar   September 17, 2016 at 5:30 am

    “सातारा” शहर के सदियोंका प्रवास पढ़ते वक्त पर्वतस्थित नदी के प्रवास की अनुभूति मिलती है।

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