पोर्ट ब्लेअर

अन्दमान-निकोबार द्वीपसमूह। बंगाल के उपसागर में बसा हुआ कई द्वीपों का समूह। एक समय ऐसा था, जब अन्दमान-निकोबार का नाम सुनते ही लोगों के होश उड़ जाते थे। क्योंकि इस द्वीपसमूह का और प्रमुख तौर पर अन्दमान का नाम जुड़ा हुआ था, ‘काले पानी’ की स़जा के साथ। वह समय था, भारत की आ़जादी के पूर्व का। लेकिन आज काले पानी की स़जा और अन्दमान का सम्बन्ध केवल इतिहास के पन्नों में ही है और अन्दमान के चारों ओर फ़ैला हुआ वह नीला सागर पर्यटकों को इशारा कर रहा है।

पोर्ट ब्लेअर

‘पोर्ट ब्लेअर’! अन्दमान-निकोबार की राजधानी। यह सम्पूर्ण द्वीपसमूह केन्द्रशासित प्रदेश है। ‘पोर्ट ब्लेअर’ यह राजधानी का शहर अन्दमान द्वीप में बसा हुआ है।

हमारे भारत की प्रमुख भूमि से दूर बंगाल के उपसागर में बसे हुए इस पोर्ट ब्लेअर तक कैसे पहुँच सकते हैं, यह सवाल शायद आपके मन में उठ रहा होगा। पोर्ट ब्लेअर या तो आप समुद्री रास्ते से जा सकते हैं या फ़िर हवाई जहा़ज से। समुद्री मार्ग से जाने के लिए चेन्नई, कोलकाता और विशाखापट्टणम् से आप समुद्री स़फ़र शुरू कर सकते हैं। अन्दमान-निकोबार के द्वीपसमूहों में एक हवाई अड्डे का निर्माण भी किया गया है। स्वातन्त्र्यवीर सावरकरजी का नाम इस हवाई अड्डे को दिया गया है।

‘पोर्ट ब्लेअर’ इस नाम का इतिहास ईस्ट इंडिया कंपनी के अ़फ़सर के नाम से जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में समुद्री मार्ग से स़फ़र करनेवाले यात्री अथवा व्यापारी इन द्वीपों के बारे में जानते थे, ऐसा एक मत है। समुद्री मार्ग से यात्रा करनेवाले व्यापारी अथवा यात्री इन द्वीपों पर कुछ समय तक के लिए रुकते भी थे। उस जमाने में और उसके बाद भी समुद्री मार्ग से कई बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार किया जाता था। इस व्यापार के साथ ही उन व्यापारी जहा़जों को लूटनेवाले डकैतियों की टोलियाँ भी बढ़ने लगीं। इन डकैतियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाक में दम कर रखा था। अत एव अन्त में लूटमार करनेवाले इन डकैतियों का बन्दोबस्त करना ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए जरूरी बन गया। इसी सिलसिले में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने इसवी १७८९ में लेफ्टनंट आर्चिबल्ड ब्लेअर नाम के अ़फ़सर को नौसेना के एक दल के साथ अन्दमान भेज दिया। इस अ़फ़सर ने अन्दमान जाकर वहाँ पर कुछ समय तक रहने की कोशिश भी की, लेकिन उसमें वह असफ़ल रहा। लेकिन लेफ्टनंट ब्लेअर ने अन्दमान के जिस भूप्रदेश पर डेरा डाला था, उसे उसकी स्मृति में उसका नाम दिया गया और यहीं से आगे चलकर अन्दमान का यह भूप्रदेश ‘पोर्ट ब्लेअर’ (ब्लेअर जिस बन्दरगाह में उतरा था, वह बन्दरगाह) इसी नाम से पहचाना जाने लगा और वही है, आज का ‘पोर्ट ब्लेअर’ यह शहर।

और एक बात का जिक्र यहाँ पर करना जरूरी है, जिससे हमारी समझ में यह आ जाता है कि इन द्वीपों का अस्तित्व बहुत ही प्राचीन समय से है। इतिहासकारों का ऐसा अनुमान है कि हनुमानजी के नाम से इन द्वीपों का नाम ‘अन्दमान’ हुआ होगा, क्योंकि मलायावासी हनुमानजी को ‘हन्दुमान’ कहते हैं।

पोर्ट ब्लेअर के बारे में जानकारी प्राप्त करते हुए हमें अन्दमान के बारे में जानना जरूरी है, क्योंकि पोर्ट ब्लेअर यह अन्दमान की ही एक प्रमुख भाग है और दोनों का विकास साथ साथ हुआ है। अत एव पोर्ट ब्लेअर की जलवायु, भूगोल और कई बातें अन्दमान की इस जानकारी में से ही सामने आती हैं।

आज भी अन्दमान में कई आदिवासी जनजातियों का निवास है। लेकिन उनमें से कुछ की पहचान आज मिटने की कगार पर है। आज पोर्ट ब्लेअर शहर एवं अन्य विभागों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में से उद्योग-व्यवसाय के सिलसिले में जा चुके लोग रहते हैं। अंग्रे़जो के जमाने में इस पोर्ट ब्लेअर में भारत की आ़जादी की जंग लड़नेवाले स्वतन्त्रतासेनानी बड़ी संख्या में रहते थे।

अन्दमान-निकोबार द्वीपसमूह सैंकड़ों छोटे छोटे द्वीपों से बना हुआ है। उनमें से ३०० द्वीप का़फ़ी बड़े (जिनकी गिनती कर सकते हैं, ऐसे) हैं। लेकिन इन 300 में से केवल ३९ द्वीपों पर ही लोगों का निवास है।

चारों तऱफ़ से सागर से घिरा हुआ होने के कारण स्वाभाविक तौर पर यहाँ की जलवायु में नमीं और गर्मी दोनों भी हैं। हालाँकि यहाँ की ठण्ड़ साधारण रहती है, लेकिन बारिश भारी मात्रा में होती है। ऐसी इस जलवायु के तथा यहाँ की जमीन के कारण यहाँ पर घने जंगल पाये जाते हैं और यहाँ चारों ओर हरियाली फ़ैली हुई है।

अन्दमान द्वीप के मूल निवासी जंगल में रहकर मछली पकड़ना और शिकार करना इनपर ही अपना गु़जारा करते हैं। अन्दमान में रहनेवालीं आदिवासी जनजातियों में जारवा, ओंगी, ग्रेट अन्दमानीज्, शोंपेन, सेंटिनेलेस और लुप्त हो चुकी जंगली इन जनजातियों का समावेश होता है। मानववंशशास्त्र की दृष्टि से अन्दमान के मूल निवासी ‘नेग्रिटो’ वंश के हैं। मानववंशशास्त्र की राय में इन मूल निवासियों के अध्ययन से मानव ने प्राचीन समय में अफ़्रीका से अन्य भूप्रदेशों की ओर किस प्रकार से स्थलान्तरण किया, इसके इतिहास पर रोशनी पड़ती है।

अन्दमान के मूल निवासियों ने पिछले कई दशकों में बाहरी दुनिया के संपर्क में आने के बावजूद भी आधुनिक बदलावों को नहीं अपनाया है। वहीं, इनमें से कुछ जनजातियों ने इस परिवर्तन का स्वीकार किया है और बदन ढकने के लिए कपड़े पहनना, यही इस परिवर्तन की मुख्य पहचान है। इन जनजातियों की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति और बोलीभाषा भी है। लेकिन आज इन जनजातियों के लुप्त होने के साथ साथ उनकी संस्कृति और बोलीभाषा भी आज लुप्त हो रहे हैं।

तो ऐसा है यह अन्दमान द्वीप और पोर्ट ब्लेअर शहर यह भी उसीका एक हिस्सा है। लेफ्टनंट आर्चिबल्ड की असफ़ल कोशिशों के बाद पोर्ट ब्लेअर पर फ़िर एक बार बहुत बड़े पैमाने पर गतिविधियों की शुरुआत हुई, वह इसवी १८५८ में – १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतन्त्रतासेनानियों को बंदी बनाकर रखने के लिए। उन्हें ‘वायपर आयलंड’ नाम के द्वीप पर शुरुआत में रखा गया, बाद में उन्हें ‘रॉस आयलंड (द्वीप)’ पर जेल का निर्माण कर उसमें रखा गया। लेकिन भारतीय स्वतन्त्रतायुद्ध का जुनून बरक़रार था और अंग्रे़जी हुकूमत के लिए घातक साबित हो रहे कई स्वतन्त्रतासेनानियों को भारत की प्रमुख भूमि पर रखना अंग्रे़जों को खतरे से खाली नहीं लग रहा था। इसीलिए आख़िर १९वी सदी के उत्तरार्ध में पोर्ट ब्लेअर में एक ख़ास जेल का निर्माण किया गया, जिसका नाम था ‘सेल्युलर जेल’। यहीं पर ‘काला पानी’ अथवा ‘स़जा-ए-काला पानी’ इस संज्ञा का जन्म हुआ।

ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रे़जों ने पोर्ट ब्लेअर को कैदियों को रखने की एक जगह इसी दृष्टि से देखा और उसी ऩजरिये से उन्होंने पोर्ट ब्लेअर को विकसित किया। इसलिए उस जमाने में नागरीकरण और नागरीकरण के साथ आनेवाली सुविधाएँ पोर्ट ब्लेअर को नसीब नहीं हुईं।

गत दो सदियों में यह पोर्ट ब्लेअर देख चुका है, स्वतन्त्रतासंग्राम में लड़नेवाले सेनानियों के साथ किया जानेवाला अमानवीय सुलूक और उनपर ढाये जानेवाले ज़ुल्मों का कहर। पोर्ट ब्लेअर के इस सेल्युलर जेल का नाम सुनते ही उस जमाने में लोगों के दिल दहल जाते थे, क्योंकि जिस किसी को भी सेल्युलर जेल भेजा जाता था, उसके लौट आने की कोई गुंजाइश नहीं रहती थी।

इसवी १८९६ में सेल्युलर जेल का निर्माणकार्य शुरू हुआ और इसवी १९०६ में वह पूरा हो गया। यहाँ पर हर एक कैदी के लिए एक स्वतन्त्र कोठरी होती थी। पूरे कैदखाने में इसी प्रकार की व्यवस्था-एक एक कोठरी (सेल) – होने के कारण इसे ‘सेल्युलर’ कहा जाने लगा। इस जेल में कुल सात विंग्ज हैं और बीचोंबीच एक बड़ा मीनार है, जहाँ से जेल के कैदियों पर ऩजर रखी जाती थी। ४.५ मीटर की लंबाई और २.७ मीटर की चौड़ाई वाली जगह और जमीन से ३ मीटर ऊँचाई पर एक झरोखा, ऐसा हर कोठरी का स्वरूप है। यहाँ पर कुल मिलाकर ६९८ कोठरियाँ हैं।

जिन्हें इस जेल में रखा जाता था, उनकी मृत्यु ज़ुल्म, भूख, बीमारी या फ़िर फाँसी की स़जा से होती थी। इसीलिए सर्वसामान्य धारणा ऐसी ही थी कि एक बार जो सेल्युलर जेल चला गया, उसका वापस जीवित लौटना नामुमक़िन है। मग़र इस प्रकार के अत्यधिक निराशाजनक और अस्वाथ्यकारक हालात होने के बावजूद भी स्वतन्त्रता के कई चिराग हिम्मत से जलते रहे। इनमें स्वातन्त्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकरजी का नाम अग्रणी है। सावरकरजी के अलावा भाई परमानंदजी, सोहनसिंगजी, नंदगोपालजी जैसे कई स्वतन्त्रतासेनानियों ने इस काले पानी की स़जा का अनुभव किया है। इसी सेल्युलर जेल की दीवार पर सावरकरजी ने ‘कमला’ जैसा काव्य लिखा और उसे कण्ठस्थ भी किया।

लेकिन आज सेल्युलर जेल पर होनेवाला काले पानी का ठप्पा अतीत की कोठरी में बन्द हो चुका है। स्वतन्त्रतावीरों को जहाँ पर नरकयातनाएँ भुगतनी पड़ती थीं, वह जेल आज सैलानियों को देखने के लिए खुला है। यहाँ के परिसर में अस्पताल शुरू किया गया है।

इसवी १९४२ में जपान ने अन्दमान पर कब़्जा कर लिया। भारत को आ़जाद करने के लिए भारत के बाहर से आ़जादी की जंग लड़नेवाले नेताजी सुभाषचंद्र बोसजी ने ‘आ़जाद हिंद सेना’ का मुख्यालय इसवी १९४३-४४ में पोर्ट ब्लेअर में था। लेकिन द्वितीय विश्‍वयुद्ध के समाप्त हो जाते ही इसवी १९४५ में अंग्रे़जों ने उसे पुनः अपने कब़्जे में कर लिया।

आज अन्दमान-निकोबार की और साथ ही पोर्ट ब्लेअर की पुरानी पहचान मिट चुकी है। पोर्ट ब्लेअर की प्राकृतिक सुन्दरता ही उसे आज एक नयी पहचान दे रही है। हरेभरे जंगल, दूर दूर तक फ़ैले हुए नारियल के बाग, कई संग्रहालय, खास किस्म के प्राणि और वनस्पतियाँ ये सभी पोर्ट ब्लेअर के विकास में एक बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।

आज के ऐसे इस अत्यधिक सुन्दर पोर्ट ब्लेअर को इसवी २००४ की त्सुनामी की विध्वंसक आपत्ति ने हिलाकर रख दिया। केवल पोर्ट ब्लेअर ही नहीं, बल्कि अन्दमान के अन्य विभाग और निकोबार को भी त्सुनामी से का़फ़ी नुकसान हुआ। इस त्सुनामी के कारण इस द्वीपसमूह को जीवितहानि, प्राकृतिक सुन्दरता की हानि तथा आर्थिक नुकसान सहना पड़ा।

आज पोर्ट ब्लेअर में पर्यटन को बढ़ावा देने की दृष्टि से कई कोशिशें की जा रही हैं। इसीके तहत यहाँ पर दिसम्बर अथवा जनवरी में एक महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

यहाँ की प्रचुर मात्रा में उपलब्ध प्राकृतिक सम्पत्ति का उपयोग करके विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। यहाँ के एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक जाने के लिए समुद्री मार्ग ही प्रमुख साधन है। संक्षेप में, यहाँ आपकी सागर से बार बार मुलाक़ात होती रहती है।

आसमान की ऊँचाई से देखा जाये, तो ऐसा लगे कि मानो जैसे नीले समुद्र में हरा पन्ना (एमराल्ड) ही रखा गया है! इतना सुन्दर है यह पोर्ट ब्लेअर। किसी जमाने में यह काले पानी के लिए जाना जाता था, लेकिन आज उसका पानी बन चुका है, पारदर्शक नीले रंग का! इसे समय की महिमा भी कह सकते हैं और क्या!

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