नैनीताल भाग -१

‘नयन’ या ‘नैन’ इस शब्द को हम मराठी या हिन्दी भाषा में कईं बार सुनते हैं। ‘नयन’ या ‘नैन’ यानि कि आँखें। हमें दुनिया दिखानेवाली आँखें। इस दुनिया के हर एक शहर या गाँव का संबंध किसी ना किसी बात के साथ रहता ही है। लेकिन यहाँ पर आप सोच रहे होंगे कि नयन या नैन का किसी शहर या गाँव के नाम के साथ भला क्या संबंध हो सकता है? ‘नैनीताल’ नामक हिल स्टेशन का ‘नैन’ इस शब्द के साथ का़फ़ी करीबी रिश्ता है। दरअसल नैन इस शब्द से ही इस हिल स्टेशन का नाम ‘नैनीताल’ हुआ है। इस नैनीताल का जो मुख्य ताल या सरोवर है, ऊँचाई से देखने पर उसका आकार हूबहू मानवी आँख की तरह ही दिखाई देता है। लेकिन स़िर्फ़ यहीं पर इस हिल स्टेशन के ‘नैनीताल’ इस नाम की कहानी ख़त्म नहीं होती॥ इस विषय में एक और भी कथा कही जाती है।

‘नैनीताल’ नामक हिल स्टेशन

पुराणों में यह कथा कही जाती है – सत्ययुग में दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का प्रारंभ किया। लेकिन उसने इस यज्ञ में उसकी बेटी सति (पार्वतीजी) और दामाद शिवजी को निमन्त्रित नहीं किया। अपने पिता के यज्ञ को देखने की इच्छा सति के मन मे उत्पन्न हुई। उन्होंने उसे शिवजी के पास ज़ाहिर किया, लेकिन शिवजी को वह मंजूर नहीं था। मग़र सति के द्वारा का़फ़ी आग्रह किये जाने पर अंत में शिवजी ने उन्हें उनके पिता दक्ष के पास जाने की अनुमति दे दी। फ़ीर सति पिता के घर गई, लेकिन शिवजी उनके साथ नहीं गये। मायके में किसीने भी उनकी ओर ध्यान तक नहीं दिया, उल्टे उनके पिता दक्ष ने उनके समक्ष ही उनके पति की निंदा करना शुरु कर दिया। अपने पति की निंदा भला सति कैसे सुन सकती थीं? सति के लिए पतिनिन्दा सुनना बर्दाश्त से बाहर हो गया और वे यज्ञकुण्ड में कूद पड़ीं। इस वार्ता को पाते ही शिवजी वहाँ पधारे और उन्होंने दक्ष तथा उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। उसके बाद सति के शरीर को अपने हाथ में उठाकर वे यहाँ वहाँ विचरण करने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शनचक्र द्वारा सति के अंग-प्रत्यंग को अलग अलग कर दिया। सति के वे सभी अंग-प्रत्यंग विभिन्न स्थानों पर जा गिरे, ऐसा कहा जाता है। उनके नयन या नैन जिस जगह तालाब (ताल) में जा गिरे, वह स्थान फ़ीर ‘नैनीताल’ इस नाम से जाना जाने लगा।

स्कंद पुराण के मानसखंड में नैनीताल के बारे में एक और अलग ही कथा कही गयी है। इस कथा के अनुसार नैनीताल यानि कि नैनी नाम का सरोवर ‘त्रि-ऋषि-सरोवर’ इस नाम से जाना जाता है। अत्रि, पुलस्त्य और पुलह नामक तीन ऋषि एक बार यहाँ पधारे थे, लेकिन उन्हें यहाँ पीने के लिए पानी नहीं मिला। फ़ीर प्यास बुझाने के लिए उन्होंने जमीन में एक गड्ढा बनाया और उसे मानससरोवर के जल से भर दिया। अत एव यह सरोवर या तालाब ‘त्रि-ऋषि-सरोवर’ के नाम से भी जाना जाता है।

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सति की आँखें यहाँ गिरने के कारण औैर तीनों ऋषियों द्वारा यहाँ मानससरोवर के जल से सरोवर का निर्माण किया जाने के कारण इस स्थान को पवित्र स्थान माना जाता है।

दरअसल ऐसी अनगिनत कथाएँ, लोककथाएँ, दन्तकथाएँ पुराने समय से चली आ रही हैं। हिमालय के पहाड़ी इला़के में तो इस प्रकार की अनगिनत कथाएँ प्रचलित हैं। नैनीताल का समावेश होता है, कुमाऊँ के पहाड़ी इला़के में।

कुमाऊँ के इस पहाड़ी इला़के पर का़फ़ी पुराने समय से विभिन्न राजाओं ने शासन किया। खश, किन्नर, किरात, नाग इस तरह के कईं साम्राज्यों ने कुमाऊँ के इस इला़के पर शासन किया। मग़र फ़ीर भी कुमाऊँ की पहाड़ियों में बसे इस नैनीताल का उल्लेख पुराणों में मिलता है और उसके बाद फ़ीर अंग्रे़जों के जमाने में।

आसपास के ऊँचे ऊँचे पहाड़ और उनके बीच स्थित नैनी नाम का ताल और इस ताल (तालाब/सरोवर) के इर्द-गिर्द बसा हुआ नैनीताल नाम का हिल स्टेशन।

नीले आसमान के नीचे फ़ैले हुए ऊँचे ऊँचे पहाड़, उसी आसमान के नीले रंग को बिखेरनेवाला नैनी नाम का सरोवर और गर्मियों में भी होनेवाली सुखद शीतलता, यह है नैनीताल की एक पहचान। वहीं सर्दियों में ब़र्ङ्ग की स़ङ्गेद चादर ओढ़कर सो जानेवाले ऊँचे ऊँचे पहाड़, आसमान से जल के बजाय गिरनेवाली ब़र्ङ्ग और इसी कारण ऊनी कपड़ों को लपेटने के लिए मजबूर करनेवाली ठण्ड, यह नैनीताल की दूसरी पहचान है।

दरअसल हिल स्टेशन इस ख़िताब को धारण करनेवाले नैनीताल में गर्मियों में पर्यटक का़फ़ी संख्या में आते हैं। इस हिल स्टेशन नामक संकल्पना की नींव तो दरअसल अंग्रे़जों ने रखी। इसकी प्रमुख और सुविदित वजह है, उनसे बर्दाश्त न होनेवाली यहाँ की गर्मियाँ। अंग्रे़जों द्वारा प्रतिवर्ष गर्मियों में इन हिल स्टेशन्स पर जाकर रहने की शुरुआत करने के बाद हिल स्टेशन्स मशहूर होने लगे। अंग्रे़जों ने इन स्थानों का वर्णन लिखित रूप में जतन किया और वहाँ पर जीवनावश्यक सुविधाएँ उपलब्ध करायीं।

नैनीताल का ही उदाहरण देखें, तो कईं अंग्रे़ज लेखकों की कथाएँ-उपन्यास और वर्णनों में नैनीताल का उल्लेख मिलता है। रुडयार्ड किपलिंग, जिम कॉर्बेट जैसों के साथ साथ मुन्शी प्रेमचंद जैसे विख्यात हिन्दी साहित्यिक के साहित्य में भी नैनीताल की झलक मिलती है।

संक्षेप में, नैनीताल ने केवल पर्यटकों को ही नहीं, बल्कि साहित्यिकों को भी मोहित किया है।

तो ऐसे इस नैनीताल का इतिहास शुरू होता है, अंग्रेजों के यहाँ पर बस जाने के बाद ही।

अंग्रे़ज और नेपाल इनके बीच हुई जंग में अंग्रे़जों ने कुमाऊँ की पहाड़ियों पर कब़्जा किया। यह घटना थी साधारणतः इसवी १८१४ से लेकर १८१६ की कालावधि की। कुमाऊँ के इला़के पर कब़्जा करने के बाद अंग्रे़जों ने गार्डिनर नामक कमिशनर को नियुक्त किया और उसके बाद ट्रेल को कशिनर के रूप में नियुक्त किया। यह ट्रेल नाम का अंग्रे़ज कमिशनर नैनीताल आया था, लेकिन उसकी इस भेंट के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती।

साधारणतः इसवी १८३९-४० के आसपास बरोन नाम का अंग्रे़ज व्यावसायिक अपने मित्र के साथ नैनीताल जा पहुँचा। नैनीताल की अप्रतिम सुन्दरता ने उसे मोहित कर दिया और उसने नैनीताल में वास्तव्य करने के हेतु से वहाँ पहले घर का निर्माण किया। यहीं से आगे चलकर अप्रतिम सुन्दर हिल स्टेशन के रूप में नैनीताल प्रसिद्ध होने लगा।

इसवी १८४६ में नैनीताल में गया हुआ बंगाल आर्टिलरी का कॅप्टन कहता है कि वहाँ अब घरों की संख्या बढ़ना शुरू हो गया है। इससे हम अँदा़जा लगा सकते हैं कि कितने थोड़े समय में नैनीताल में लोगों की संख्या बढ़ना शुरू हुआ।

आगे चलकर गर्मी के दिनों में ब्रिटीश सरकार का कामकाज यहाँ से होने लगा। लगभग इसवी १८६२ के आसपास नॉर्थ वेस्ट प्रोव्हिन्स का कामकाज नैनीताल से होने लगा।

गर्मी के दिनों में सरकारी कामकाज नैनीताल से होने के कारण यहाँ की आबादी और साथ ही कईं व्यवसाय भी बढ़ने लगे।

नैनीताल आगे चलकर नॉर्थ वेस्ट प्रोव्हिन्स की गर्मियों की राजधानी बन गई और साथ ही वहाँ पर घर, बंगले, दूकानें, मार्केट तथा मनोरंजन के साधनों का ते़जी से निर्माण होने लगा।

लेकिन इसवी १८८० में यहाँ एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई। का़फ़ी ऊँचाई पर होने के कारण नैनीताल में बारिश भी विपुल मात्रा में होती है। १८८० के सितम्बर महीने में दो दिन लगातार बारिश हो रही थी। इस लगातार बारिश के कारण पहाड़ों से नीचे की ओर बहनेवाले पानी के साथ १८ सितम्बर १८८० के दोपहर में पहाड़ी का कुछ हिस्सा भी ढहकर नीचे आ गया। इस घटना में सैंकड़ो लोगों की जानें गयीं, साथ ही व्हिक्टोरिया हॉटेल, बेल्स् शॉप जैसे कुछ वास्तुओं का बहुत भारी मात्रा में नुकसान भी हुआ। इससे पहले इसवी १८६६ और १८७९ में ऐसी भू-स्खलन (लँड-स्लीप) की घटनाएँ हुई थीं।

अंग्रे़जों के यहाँ आने के बाद भारत के विभिन्न प्रान्त से लोग इस हिल स्टेशन पर आने लगे और एक अत्यधिक सुन्दर पर्यटन स्थल के रूप में नैनीताल प्रसिद्ध हो गया।

भारत की स्वतन्त्रता के बाद नैनीताल का समावेश उत्तर प्रदेश में किया गया और हाल ही में इसवी २००० में निर्मित उत्तराखण्ड राज्य में अब नैनीताल का समावेश किया गया है।

चलते चलते नैनीताल की एक और पहचान हम देखते हैं। वह है कि इसे तालाबों का जिला कहा जाता है। मग़र इन तालाबों की सैर हम करेंगे अगले भाग में।

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