मदुराई भाग – १

हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, उसका निर्माण कब हुआ, यह तो भगवान ही जानते होंगे। हमारी इस पृथ्वी पर कई देश और कई शहर बहुत ही प्राचीन समय से बसे हुए हैं, इसका इतिहास गवाह है। उन्हीं कुछ विकसित और वैभवशाली नगरों में से एक है ‘मदुराई’।

मदुराई

वैगई नदी के तट पर बसे हुए तमिलनाडु के इस शहर में प्राचीन समय से मानव का निवास रहा है। ‘मदुराई’ यह प्राचीन समय से एक पुण्यक्षेत्र माना जाता है। ‘स्थलपुराण’ नामक पुराण में दक्षिण के इस ‘मदुरा’ अर्थात् ‘मदुराई’ क्षेत्र की महिमा प्रतिपादित की गयी है। इस पुराण के अनुसार कदम्ब वृक्षों का वन यह सबसे पवित्र तीर्थस्थल है और इसी वन के पास ‘मदुरा’ नाम की नगरी बसी हुई है। इस वर्णन से यह बात निश्चित रूप से हमें ज्ञात होती है कि मदुराई नगरी का अस्तित्व पुराणों के निर्माणकाल से (जब पुराणों की रचना की गयी, उस समय से) है।

प्राचीन समय से यह नगरी विभिन्न राजवंशों की राजधानी रह चुकी है। इस शहर की रचना वहाँ के ‘मीनाक्षी-सुन्दरेश्‍वरर’ इस सुविख्यात मन्दिर को केन्द्र में रखकर की गयी है। यहाँ तक कि शहर के रास्ते भी मन्दिर के तट को समान्तर बनाये गये हैं। प्राचीन समय में इस शहर के चारों ओर बहुत ही ऊँची चहारदीवारी का और उसके बाहर बड़े खन्दक का निर्माण किया गया था। नगर में प्रवेश करने के लिए चारों दिशाओं में चार दरवा़जे बनाये गये थे और वैगई नदी में से भी नगर में प्रवेश किया जा सकता था। लेकिन आज ना तो वह चहारदीवारी रही और ना ही वह खन्दक।

इतिहास कहता है कि रामायणकाल से यहाँ पर पांड्य राजवंश के राजा राज करते थे। मदुराई उनकी राजधानी थी। उस समय में भी सत्ता हासिल करने के लिए संघर्ष होते ही रहते थे। इन राजाओं के शासनकाल में भी कुछ कालावधि के लिए पांड्य वंश की इस राजधानी को दूसरे राजाओं द्वारा जीते जाने के उल्लेख भी मिलते हैं। साथ ही पांड्य राजाओं ने उसे पुनः जीतकर उसपर अपनी सत्ता प्रस्थापित करने के उल्लेख भी मिलते हैं।

देखा जाये, तो मदुराई के ज्ञात इतिहास में पांड्य राजवंश यह शायद पहला राजवंश होगा। लेकिन मदुराई का नाम लेते ही फौरन याद आती है, नायक राजवंश की। मदुराई और नायक राजवंश को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।

लेकिन मदुराई और नायक राजवंश के इतिहास का अध्ययन करने से पहले हम मदुराई और एक तमिल महाकाव्य के सन्दर्भ में जानकारी हासिल करते हैं।

तमिल के पंचमहाकाव्यों में से एक है ‘शिलप्पधिकारम्’। यह महाकाव्य बहुत ही प्राचीन माना जाता है। विशेषज्ञों की राय में दूसरी सदी में इसकी रचना की गयी। इस महाकाव्य में एक लोककथा प्रतिपादित की गयी है। वह कुछ इस तरह है – चोळ राजाओं की राजधानी में एक अमीर व्यापारी का बेटा था, जिसका नाम था कोवलन। उसी राजधानी के दूसरे एक व्यापारी मानाय्यन को एक बेटी थी, जिसका नाम था कण्णकी। यथावकाश कोवलन और कण्णकी का विवाह हुआ। कुछ समय बाद कोवलन माधवी नाम की नृत्यांगना पर लट्टू हो गया, मग़र बाद में उसे अपने किये का पछतावा होने के कारण उसने कण्णकी से मा़फी भी माँगी।

फिर व्यापार के सिलसिले में कोवलन कण्णकी के साथ मदुराई गया। वहाँ जब कोई भी उसे व्यापार के लिए उधार के तौर पर पैसे देने के लिए तैयार नहीं था, तब उसने कण्णकी का नूपुर (पैरों में पहना जानेवाला एक गहना) बेचने का फैसला कर लिया। कोवलन उसे राजा के सुनार के पास ले गया। कुछ ही दिन पहले वहाँ की रानी का नूपुर भी खो गया था और दरअसल उसे राजा के उसी सुनार ने चुराया था। जब सुनार ने कोवलन द्वारा लाये गये हुबहू वैसे ही नूपुर को देखा, तब वह कोवलन को सीधा राजा के पास लेके गया और राजा ने कोवलन को मौत की सजा दे दी। कण्णकी को इस बात का पता चलते ही वह क्रुद्ध होकर राजा के पास गयी और अपने पति को बिनावजह स़जा देने का राजा को क्या हक़ है, यह सवाल उसने राजा से पूछा। साथ ही उसने सबूत के तौर पर अपना दूसरा नूपुर भी राजा के सामने पेश किया और रानी से यह भी पूछा कि उनके नूपुर के भीतर क्या था? रानी के नूपुर में मोती थे, यह सुनते ही उसने अपने नूपुर को तोड़कर दिखाया, तो उसमें से माणिक निकले। इस घटना के कारण राजा-रानी दुखी हो गये, लेकिन क्रुद्ध कण्णकी ने सारी मदुरा नगरी को जलाकर राख कर दिया।

इस लोककथा की चर्चा करना यह हमारा विषय नहीं है, मग़र यहाँ पर इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर ग़ौर करना जरूरी है कि जिस समय में इस महाकाव्य की रचना की गयी, उस समय मदुराई यह एक बहुत ही विख्यात और वैभवशाली नगर रहा होगा।
मदुराई को ‘अथेन्स ऑङ्ग ईस्ट’ ऐसा भी कहा जाता है। प्राचीन समय से कारोबार का शहर इस नाम से वह मशहूर था। ग्रीक, रोमन और युरोपीय देशों के साथ मदुराई से व्यापार किया जाता था। ३री सदी में मॅगस्थेनिस मदुराई आया था और उसके बाद रोमन और ग्रीक साम्राज्य के लोग भी मदुराई आने लगे। लेकिन मदुराई यह मात्र एक व्यापारी शहर के रूप में विकसित नहीं हुआ, बल्कि एक बहुत बड़े विद्याकेन्द्र के रूप में वह मशहूर था। कई प्राचीन विकसित शहरों के सन्दर्भ में ये दोनों बातें दिखायी देती ही हैं। जिस तरह उत्तर में काशी यह व्यापार की नगरी होने के साथ साथ विद्यानगरी भी थी, उसी तरह दक्षिण में मदुराई थी।

लेख के प्रारंभ में जिन नायक राजाओं का उल्लेख कर हम महाकाव्य की ओर मुड़ गये थे, अब उन्हीं नायक राजाओं के इतिहास को देखते हैं।

पांड्य राजवंश के बाद मदुराई में नायक राजवंश की सत्ता का उदय हुआ। दरअसल ‘नायक’ ये विजयनगर के सम्राट द्वारा नियुक्त किये गये अधिकारी थे। जैसे जैसे विजयनगर के साम्राज्य का विस्तार होता रहा और नये नये प्रदेशों का समावेश उसमें होने लगा, वैसे वैसे शासनव्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिए विजयनगर के सम्राट ने नायक, गौड और ओडेयर नामक अधिकारियों को नियुक्त किया। राजकुमार, राजघराने के पराक्रमी व्यक्ति, मन्त्री अथवा सेना के अधिकारी इनमें से इनका चयन किया जाता था और उन्हें ‘नायक’ यह उपाधि बहाल की जाती थी। नायकों को उस संबंधित प्रदेश का राजा ही माना जाता था। हालाँकि उनके पास अपनी सेना तो होती थी, लेकिन संग्रामकाल में वे विजयनगर के राजा को सभी प्रकार की आवश्यक सहायता प्रदान करते थे। राजस्व (जनता से अर्जित टॅक्स) का तीसरा हिस्सा वे सम्राट को देते थे।

मदुराई पर नायकों की सत्ता प्रस्थापित होने की वजह बना, पांड्य और चोळ राजाओं के बीच का सियासती संघर्ष। उस समय पर विजयनगर पर कृष्णदेवराय का राज था। चोळ राजा वीरशेखर ने मदुराई पर हमला बोल दिया और वहाँ के पांड्य राजा चन्द्रशेखर को परास्त कर मदुराई पर कब़्जा कर लिया। दरअसल ये दोनों भी विजयनगर के सम्राट के मांडलिक थे। मदुराई पर चोळ राजा की सत्ता स्थापित हो जाते ही विजयनगर के राजा ने पांड्य राजा को मदुराई की सत्ता पुनः प्रदान करने के लिए ‘नागम नायक’ नाम के अपने सरदार को भेज दिया। उसने चोळ राजा को परास्त कर हुकूमत अपने हाथ में ले तो ली, लेकिन पांड्य राजा को राजगद्दी सौंपने के लिए वह तैयार नहीं था। पांडय राजा ने इसकी शिकायत विजयनगर के सम्राट के पास करते ही उन्होंने नागम नायक के बेटे ‘विश्‍वनाथ नायक’ को ही सेना के साथ मदुराई भेज दिया। हालाँकि उसने अपने पिता को मनाकर पांड्य राजा चन्द्रशेखर को पुनः गद्दी पर तो बिठाया, मग़र सत्ता की बाग़डोर अपने ही हाथ में रखी। आगे चलकर पांड्य राजा चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद विश्‍वनाथ नायक स्वयं ही मदुराई का राजा बन गया। इस तरह पांड्य राजवंश का अस्त और नायक राजवंश का उदय दोनों की गवाह है, यह मदुराई।

इसके बाद ङ्गिर मदुराई पर नायकों का शासन रहा। मदुराई के नायकों की तरह ही जिंजी के नायक, तंजाऊर के नायक और इक्केरी के नायक भी मशहूर हैं।

मदुराई पर सत्ता स्थापित करनेवाला विश्‍वनाथ नायक एक बहुत ही पराक्रमी, कुशल संघटक और उत्तम प्रशासक था। लेकिन वह आजीवन विजयनगर की गद्दी के साथ व़फादार रहा और हमेशा विजयनगर के सम्राट के सेवक के रूप में ही काम करता रहा। विश्‍वनाथ नायक के बाद कई राजाओं ने मदुराई पर शासन किया।

इस तरह नायकों के अधिपत्य में मदुराई का विकास हो रहा था। नायक राजाओं ने मदुराई तथा उसके आसपास के इला़के में कईं मन्दिरों का निर्माण किया। ऐसी इस विकसित नगरी को कई बार विदेशी आक्रमणों का मुक़ाबला करना पड़ा। १४वी सदी में मुग़लों ने हमला करके मदुराई नगरी में लूटपाट की।  इस वैभवशाली नगरी की कई बहुमूल्य एवं दुष्प्राप्य ची़जों को लूटकर वे साथ ले गये। १७वी सदी में फिर एक बार विजयनगर साम्राज्य और मदुराई के नायकों के बीच के टकराव के दरमियान मुग़लों ने मदुराई में प्रवेश किया और उसके बाद बहुत ही थोड़े समय तक नायकों का मदुराई पर शासन रहा।

इस नायक राजवंश की अन्तिम शासक, जिसने मदुराई पर शासन किया, उनका नाम था रानी मीनाक्षी। उन्हें बेटा नहीं था, इसीलिए पति की मृत्यु के बाद उन्होंने एक बच्चे को गोद लेकर राज्य के सूत्र भी अपने हाथ में ले लिये। लेकिन दुर्भाग्यवश इन्हीं के कार्यकाल में मुगलों ने मदुराई की सत्ता को छीन लिया और नायक राजवंश के सत्तासूर्य का मीनाक्षी रानी के शासनकाल के साथ ही अस्त हो गया। इसके बाद मदुराई और नायक यह दृढ़ समीकरण भी समाप्त हो गया। १८वी सदी के उत्तरार्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में अंग्रे़ज यहाँ घुस गये और भारत को आ़जादी मिलने तक वे जोंक की तरह चिपके रहे। और तो और, बिना राजा की इस नगरी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसवी १७८१ में अपनी ओर से एक कलेक्टर की नियुक्ति भी कर दी और उनका विरोध करनेवाले किसी भी शासक के न होने के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी से शुरू हो चुकी अंग्रे़जी हुकूमत भारत की आ़जादी तक चलती रही।

अभी तक हमने मदुराई की प्रारंभिक जानकारी ही प्राप्त की है। विद्या और कला इन मदुराई के दो बलस्थानों के बारे में हम जानकारी प्राप्त करेंगे, अगले लेख में।

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