०८. जोसेफ़ की इजिप्त के कारागृह से रिहाई; राजा के सपनों का अर्थ बताया

इस प्रकार इजिप्त में बतौर ग़ुलाम बेचे गये जोसेफ़ की रवानगी आख़िरकार कारागृह में हुई। लेकिन यहाँ पर भी उसका ईश्‍वर उसकी रक्षा कर ही रहा था। यहाँ कारागृह में भी उसे अधिक दिक्कतें सहनी न पड़ते हुए, अल्प-अवधि में ही उसके स्वभाव से तथा बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर कारागृह के अधिकारी ने उसकी नियुक्ति अन्य क़ैदियों पर देखरेख करने के काम पर कर दी।

आगे का घटनाक्रम धीरे धीरे अपना मार्ग चल ही रहा था! कुछ ही दिनों में, राजमहल के सेवकप्रमुख एवं रसोइये के हाथों कुछ गुनाह हो जाने के कारण राजा की उनपर ग़ैरमर्ज़ी हुई और राजा ने उन दोनों की रवानगी इस कारागृह में की। यहाँ क़ैदियों पर देखरेख का काम देख रहे जोसेफ़ से उन दोनों की अच्छीख़ासी दोस्ती हो गयी।

एक बार हररोज़ की तरह ही जोसेफ़ जब उनकी कोठरी में गया, तब वे दोनों उसे चिन्ताक्रान्त नज़र आये। जोसेफ़ द्वारा कारण पूछा जाने पर उन्होंने उसे बताया कि उन्हें कुछ विचित्र सपने आये हैं।

जोसेफ़ ने उनके सपनों को ठीक से सुन लिया। सपनों का सूचक अर्थ जानने की ईश्‍वरीय देन उसे प्राप्त थी ही। उसने सेवकप्रमुख को यह बताया कि ‘तीन दिनों में तुम यहाँ से रिहा होकर राजमहल में होनेवाला तुम्हारा पहला ही स्थान प्राप्त करोगे’। साथ ही, उसने सेवकप्रमुख से यह भी दऱख्वास्त की कि ‘मुझे मत भूलना और मौक़ा मिलने पर मेरी अन्यायपूर्ण सज़ा के बारे में राजा को बताकर राजा के पास मेरी स़िफ़ारिश करना।’ लेकिन उसी के साथ रसोइये का सपना सुनकर जोसेफ़ ने उसे स्पष्ट रूप में कहा कि ‘तीन दिनों में तुम्हें मौत की सज़ा दी जायेगी।’

….और ठीक वैसा ही घटित हुआ! तीन दिन बाद राजा का जन्मदिन था। उसके उपलक्ष्य में राजा ने, कारागृह के किन क़ैदियों को सार्वत्रिक मा़फ़ी दी जा सकती है यह देखने के लिए उनकी सूचि मँगवायी। उसमें इन दोनों की पुनः तहकिक़ात हुई। लेकिन हर एक के हाथों हुए गुनाहों की तीव्रता के अनुसार राजा ने सेवकप्रमुख को रिहा किया; वहीं, रसोइये को मौत की सज़ा देने की आज्ञा दी।

सेवकप्रमुख कृतज्ञतापूर्वक जोसेफ़ से विदा लेकर वहाँ से निकला; लेकिन….कारागृह से रिहा होने की खुशी में और अपने काम के झमेले में धीरे धीरे वह जोसेफ़ को भूल गया।

ऐसे दो साल बीत गये। जोसेफ़ उसने न किये गुनाह के लिए कारावास भुगत ही रहा था।

लेकिन जोसेफ़ के लिए निर्धारित किया गया घटनाक्रम अपना मार्ग चल ही रहा था। अब यहाँ राजा फ़ारोह को विचित्र सपने आये। एक सपने में उसने देखा कि नाईल नदी में से सात धष्टपुष्ट गौएँ बाहर आयीं और चरागाहों में चरने लगीं। उनके पीछे पीछे सात एकदम कृश, थकी हुईं गौएँ नाईल नदी में से बाहर आयीं। लेकिन ये कृश गौएँ उन धष्टपुष्ट गौओं को निगल गयीं। उसीके साथ उसे एक और सपना आया, जिसमें उसने देखा कि मक्कई के एक पौधे पर दानों से खचाखच भरे सात भुट्टें हैं। वहीं, दूसरे पौधे पर कुछ ख़ास दानें न होनेवाले सात खाली पतले भुट्टें हैं। उन खाली भुट्टों ने उन दानेवाले भुट्टों को वैसे ही निगल लिया।

हड़बड़ाकर फ़ारोह की नींद पूरी तरह खुल गयी। इन सपनों का, ख़ासकर उनमें रहनेवाले सूचक ७ आँकड़े का अर्थ उसकी समझ में नहीं आ रहा था। उसने सारे राज्य में ढिंढोरा पीटकर, ज्ञानी माने जानेवाले सभी लोगों को सपनों का अर्थ बताने का आवाहन किया। लेकिन कोई भी उसका सन्तोषजनक अर्थ नहीं बता सका।

फ़ारोह के इन सपनों के चर्चे राजमहल में शुरू ही थे कि तभी उस सेवकप्रमुख को अचानक जोसेफ़ की याद आयी और फ़ौरन ही राजा के पास जाकर उसने सपनों का अचूक अर्थ बताने की जो शक्ति जोसेफ़ में थी, उसके बारे में राजा को बताया। तुरन्त ही जोसेफ़ को रिहा करके उसे राजा के सामने प्रस्तुत किया गया। उस समय जोसेफ़ की उम्र तक़रीबन ३० साल थी।

राजा ने, सपने का अचूक अर्थ बताने की जो शक्ति जोसेफ़ में थी, उसके बारे में मुझे पता चल गया है यह जोसेफ़ को बताकर, उसे आये सपनों का अर्थ बताने के लिए जोसेफ़ से कहा।

जोसेफ़ ने विनम्रतापूर्वक, यह ईश्‍वरीय देन यानी केवल ईश्‍वरीय कृपा है ऐसा राजा को बताया और फ़ारोह के सपनों को सुनना शुरू किया। सपने सुनने के बाद जोसेफ़ ने उनका अर्थ बताना शुरू किया – ‘महाराज! आपके इन सपनों से मुझे यह पता चल रहा है कि अगले सात साल आपके राज्य में उत्तम बरसात होकर बहुत ही आबादी-आबाद रहेगी और प्रजाजनों के साथ साथ राज्य भी का़फ़ी तरक्की करेगा। लेकिन उसके बाद के सात साल ये बहुत ही भीषण सूखे के, अकाल के होंगे। इतने भीषण कि पहले के सात सालों में हुई आबादी-आबाद का नामोनिशान तक इन अगले सात सालों में नहीं दिखायी देगा। प्रजाजन हलाखी में दिन काटेंगे और अनाज के दाने दाने के लिए मोहताज होंगे।’

पहले सात सालों का भविष्यकथन सुनकर हर्षित हुआ राजा फ़ारोह अब बहुत ही चिन्ता में पड़ गया था। जोसेफ़ का भविष्यकथन उसे हूबहू मान्य हुआ था। लेकिन उसपर उपाय क्या करना है, यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था। फ़िर राजा ने जोसेफ़ को ही उसपर उपाय बताने के लिए कहा। उसपर – ‘पहले ७ सालों की आबादीआबाद के कारण फ़ज़ूलखर्ची न करते हुए, केवल ज़रूरत के जितना ही खर्च करके, बाकी अनाज आदि चीज़ो को सुचारु रूप से संग्रहित कर रखना चाहिए; जिन्हें बाद के ७ सालों में उपयोग में लाया जाकर अकाल की तीव्रता को कम किया जा सकता है। लेकिन उस काम के लिए बहुत ही होशियार एवं नेक़ अधिकारी की आवश्यकता है’ ऐसा जोसेफ़ ने राजा फ़ारोह को बताया।

उसपर, ‘ऐसा कोई अधिकारी अपनी नज़र में नहीं है’ ऐसा जोसेफ़ को बताकर, राजा फ़ारोह ने जोसेफ़ से ही यह ज़िम्मेदारी उठाने के लिए कहा और जोसेफ़ को अपना वज़ीर बना दिया। अब सत्ता के मामले में जोसेफ़ राजा के बाद दूसरे नंबर का अधिकारी बन गया था।

जोसेफ़ ने बड़ी ही तेज़ी से इस काम की शुरुआत की। सबसे पहले उसने प्रचंड बड़े बड़े गोदामों का निर्माण किया। वहाँ पर अनाज बरबाद न होकर उसे प्रदीर्घ समय तक संग्रहित किया जा सकें, ऐसी व्यवस्था की। उसके बाद उसने राज्य में जितना भी अतिरिक्त अनाज उगा था, वह सब ख़रीदकर उसे संग्रहित करने की अच्छे से व्यवस्था की। इसी दौरान उसने अपना जनसंपर्क भी जारी रखा ही था और उसके माध्यम से उसने लोगों को इस अनाज संग्रह की ज़रूरत का एहसास करा दिया। लोगों ने भी मितव्ययिता से अनाज इस्तेमाल करते हुए खुद के लिए भी निजी तौर पर थोड़ेबहुत अनाज का संग्रह करना शुरू किया।

इस प्रकार सात वर्षों के अन्त तक सभी सरकारी गोदाम अनाज से खचाखच भरे थे। पूरे इजिप्त की सात सालों की ज़रूरत पूरी होकर भी भारी मात्रा में अनाज शेष बचें, इतना अनाज जमा हो गया था। अब सूखे के साल शुरू हुए। लोगों ने थोड़ाबहुत संग्रहित किया हुआ अनाज कुछ ही दिनों में ख़त्म हुआ। अब लोग सरकारी अनाज के संग्रह पर ही निर्भर रहनेवाले थे। अब सरकारी गोदामों से ही लोगों को अनाज बेचा जाने लगा। पास के पैसे ख़त्म होने के बाद लोगों ने अपने जानवर तथा अन्य मालमत्ता के बदले अनाज लेना शुरू किया। इस प्रकार, ‘अकाल के सात वर्षों में जोसेफ़ की इन उपाययोजनाओं के कारण ही हमारी जान बची’ इसलिए लोग जोसेफ़ पर खुश हुए और इन वर्षों में फ़ारोह अब इजिप्त में होनेवालीं लगभग सभी चीज़वस्तुओं का मालिक बन चुका था, इसलिए वह भी जोसेफ़ पर खुश था। इसी दौरान जोसेफ़ की एक इजिप्शियन अधिकारी की ‘अ‍ॅसेनथ’ नामक बेटी से शादी हुई और उन्हें ‘मनाशे’ तथा ‘एफ़्रैम’ ये दो बच्चें भी हुए थे।

यह अकाल केवळ इजिप्त तक ही सीमित न रहकर, आसपास के प्रदेश में भी फ़ैला था। अब वहाँ से भी लोग अनाज ख़रीदने के लिए इजिप्त आने लगे। अपने भाई भी कभी न कभी अनाज ख़रीदने आयेंगे यह जोसेफ़ जानता था। इसलिए उसने बाहर से इजिप्त आनेवाले अभ्यागतों के नाम सीमा पर ही बाक़ायदा दर्ज करना शुरू किया।

इजिप्त में अनाज बेचा जा रहा है, इसकी ख़बर जेकब तक पहुँची और उसने अपने बेटों को अनाज ले आने इजिप्त भेजा। लेकिन सबसे छोटे बेंजामिन को उसने अपने पास ही रख लिया था। अब बाक़ी के भाई इजिप्त पहुँच गये।

इतने सालों बाद अपने भाइयों को देखकर जोसेफ़ से रहा नहीं जा रहा था। लेकिन मन को लगाम डालकर उसने उनकी परीक्षा लेने का तय किया। वे आमनेसामने आने के बाद भी भाइयों ने, इस बदले हुए हुलिये में जोसेफ़ को नहीं पहचाना और जोसेफ़ ने भी दुभाषिये के ज़रिये ही उनके साथ वार्तालाप जारी रखा। उसने कड़े शब्दों में भाइयों पर, वे जासूस होने का आरोप किया। तब वे सभी भाई जोसेफ़ के कदमों में गिरकर, ‘हम जासूस नहीं, बल्कि केवल अनाज ख़रीदने कॅनान से आये हैं। हम कुल मिलाकर बारह भाई होकर, उनमें से एक बचपन में ही हमसे बिछड़ गया और एक को पिताजी ने अपने पास ही रखा है। हमें आपके ग़ुलाम ही समझिए’ ऐसा गिड़गिड़ाने लगे। यह नज़ारा देखकर जोसेफ़ को अपना सपना याद आया, जो सच हुआ दिखायी दे रहा था। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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