२०. ‘एक्झोडस्’- मोझेस के १२ गुप्तचर; ज्यूधर्मियों का चालीस साल रेगिस्तान में भटकना; मोझेस की ‘ग़लती’ और ईश्‍वर की ‘सज़ा’

पर्वत की तलहटी पर जब यह सबकुछ चल रहा था, तब वहाँ पर्वत पर ईश्‍वर ने, तलहटी पर घटित हो रहे इस वाक़ये के बारे में मोझेस को बताया और ग़ुस्सा होकर, इन सभी ज्यूधर्मियों को मार देने का और मोझेस के वंशजों से पुनः नये सिरे से ज्यूधर्म की शुरुआत करने का अपना मन्तव्य मोझेस को बताया। उसपर मोझेस ने ईश्‍वर से रहम की याचना की और अब्राहम-आयझॅक-जेकब के साथ ईश्‍वर ने किये क़रारनामे का वास्ता देकर, इस एक बार के लिए ज्यूधर्मियों को क्षमा करने की प्रार्थना की।

धीरे धीरे ईश्‍वर का ग़ुस्सा ठण्ड़ा हो गया और उसने ज्यूधर्मियों को ठीक से समझाकर बताने के लिए कहकर, मोझेस को वापस भेज दिया। मोझेस ‘टेन कमांडमेंट्स’ गुदायी हुईं वे दो चौकोर पत्थर (स्टोन टॅबलेट्स) तथा अन्य सामग्री साथ लेकर मायूस होकर लौट गया। वह जब पर्वत उतरकर नीचे आया, तब सामने दिखायी देनेवाला दृश्य देखकर वह आगबबूला हो गया। उस प्राणि की मूर्ति की स्थापना कर कुछ ज्यूधर्मीय उस मूर्ति का पूजन-अर्चन तथा उसके पश्‍चात् बलि वगैरा चढ़ाकर, दावतें खाने में मश्गुल थे। यह सारा वाक़या देखकर मोझेस ने बेहद ग़ुस्से से, हाथ में होनेवाले, ईश्‍वर द्वारा दिये गये ‘टेन कमांडमेंट्स’ के टॅबलेट्स नीचे पटक पटककर फ़ोड़ दिये! अचानक आये हुए मोझेस का वह रूप देखकर, उस वाक़ये में सहभागी होनेवाले ज्यूधर्मियों के पैरों तले की तो मानो ज़मीन ही खिसक गयी।
टेन कमांडमेंट्स

उसके बाद मोझेस ने सीधे वह प्राणि की मूर्ति उसके चबुतरे से नीचे खींची और पटक पटककर उसके टुकड़ें टुकड़ें कर दिए। उसके बाद, यह साज़िश रचे हुए इजिप्शियनों के गुट को और साज़िश में सहभागी हुए ज्यूधर्मियों को सज़ा देकर, मोझेस पुनः चालीस दिन प्रायश्‍चित्तात्मक तपश्‍चर्या करने के लिए पर्वत पर गया। फिर ईश्‍वर ने उसे पुनः नये से ‘टेन कमांडमेंट्स’ अंकित की हुईं स्टोन टॅबलेट्स दीं।

इसी वर्ष में, ईश्‍वर ने शुरू से लेकर अन्त तक सारा विवरण निश्‍चित करके बताये हुए गर्भगृह का – ‘टॅबरनॅकल’ का भी निर्माण पूरा हुआ। जब ज्यूधर्मियों का निवास एक जगह रहता था, तब यह टॅबरनॅकल बादलों के उस स्तंभ में (रात को अग्निस्तंभ में) संरक्षित रहता था। बादलों का स्तंभ जब टॅबरनॅकल पर से हिल जाता था, तब ज्यूधर्मियों को पता चलता था कि उन्हें अब आगे के प्रवास की तैयारी करनी है।

सिनाई पर्वत की तलहटी में ज्यूधर्मियों का लगभग एक साल तक निवास था। वहाँ से कॅनान का प्रदेश कुछ ख़ास दूर नहीं था। अतः इस कालावधि में मोझेस ने, इस ‘प्रॉमिस्ड लँड’ में उन्हें किन बातों का सामना करना पड़ेगा इसका अँदाज़ा प्राप्त करने के लिए अपने १२ गुप्तचर कॅनान में भेजे, जो इस्रायल की मूल ‘बारह ज्ञातियाँ’ माने जानेवाले समूहों में से एक-एक ऐसे चुने गये थे। जोशुआ की अगुआई में इन सबने कॅनान प्रांत में जाकर गुप्त रूप में मुआयना किया। वहाँ की संस्कृति, वहाँ के निवासी कैसे हैं, ज्यूधर्मियों को वहाँ कितना विरोध होगा, वहाँ पर क्या क्या उगता है/बनता है, ऐसा सर्वसमावेशक ब्योरा लाने के लिए इस गुप्तचरों से कहा गया था।

पूरे चालीस दिन कॅनान प्रदेश में दिनरात मेहनत करके इन गुप्तचरों ने जानकारी इकट्ठा की। कॅनान का प्रदेश अत्यधिक ऊपजाऊ (‘लँड ऑफ मिल्क अँड हनी’) था। लेकिन वहाँ के निवासियों के बारे में मिलीं ख़बरें कुछ ख़ास आशादायी नहीं थीं। किसी एक टोली के लोग शरीर से बहुत ही हट्टेकट्टे एवं खूंखार थे; वहीं, एक टोली के लोग बहुत ही हिंसक एवं जंगली थे। यह सब देखकर उन गुप्तचरों में से जोशुआ तथा ‘कॅलेब’ नामक एक अन्य गुप्तचर (मिरियम का पति), ये दो छोड़कर औरों के पसीने छूट गये और उन्होंने – ‘इन लोगों पर विजय प्राप्त करना हमारे लिए नामुमक़िन है, अतः इजिप्त लौट जाना ही हमारे लिए योग्य है’ ऐसा अपना निष्कर्ष मोझेस को बताया। लेकिन जोशुआ एवं कॅलेब का ईश्‍वर पर अटूट विश्‍वास था कि चाहे कुछ भी हो, ईश्‍वर हमें, दिये अभिवचन के अनुसार कॅनान में ले जायेंगे ही।

सिनाई पर्वतशिखरइन गुप्तचरों का ब्योरा सुनकर ज्यूधर्मियों का अविश्‍वास पुनः जागृत हो गया और उन्होंने मोझेस को दूषण देना शुरू किया। जोशुआ एवं कॅलेब ने उन्हें यह समझाने की हर संभव कोशिश की कि ‘दुनिया की किसी भी सेना तथा शस्त्रों की अपेक्षा ईश्‍वर का शब्द अधिक ताकतवर है’; लेकिन वे नहीं माने। तब मोझेस ने उद्विग्न होकर ईश्‍वर से प्रार्थना की। इस समय ईश्‍वर ने उसे बताया कि ‘इतना सबकुछ होने के बावजूद भी जब ये लोग मुझपर अविश्‍वास दिखा रहे हैं, तब वे कॅनान जाने के लायक नहीं हैं। ये तुम्हारे गुप्तचर मुआयना करने के लिए चालीस दिन वहाँ गये थे; उसी तरह ये ज्यूधर्मीय, उन गुप्तचरों के वहाँ पर बिताये एक एक दिन के लिए एक एक साल, इस तरह चालीस साल इस रेगिस्तान में भटकते रहेंगे। यह मुझपर अविश्‍वास दिखानेवाली पीढ़ी कॅनान में जा ही नहीं सकेगी। इसके बाद की पीढ़ी ही वहाँ जायेगी। इन गुप्तचरों में से भी केवल जोशुआ एवं कॅलेब ही कॅनान में कदम रख पायेंगे।’

ईश्‍वर के कहे का प्रत्यंतर जल्द ही सभी को हुआ। अगले एक-दो नहीं, बल्कि पूरे चालीस साल वे ज्यूधर्मीय, वह बादलों का स्तंभ जहाँ ले जाता था, उसके पीछे रेगिस्तान में गोल गोल भटकते रहे। इन चालीस सालों में कई बार परीक्षा के, मोझेस के खिलाफ़ बग़ावत करने कई वाक़ये हुए, जिनमें से मोझेस और भी निखरकर बाहर निकला। इन चालीस वर्षों में मोझेस ने ‘टोराह’ (‘ईश्‍वर का संपूर्ण क़ानून’)- प्रथम आरॉन को, फिर आरॉन के बेटों को, उसके बाद ज्यूधर्मियों में से ईश्‍वर द्वारा चुने गये ७० प्रगल्भ बुद्धि के वरिष्ठ नागरिकों को और उनके बाद सभी ज्यूधर्मियों को; इस क्रमानुसार सिखाया। इस कालावधि में ज्यूधर्मियों की एक पीढ़ी ने, उम्र हो जाने से इस दुनिया से बिदा ली। अब उसके बाद की पीढ़ी के ज्यूधर्मीय और रेगिस्तान में पैदा हुई उनकी नयी पीढ़ी ये ही कॅनान में प्रवेश करनेवाले थे।

रेगिस्तान के प्रवास के आख़िरी साल में मोझेस की बहन मिरियम की मृत्यु हुई। झिन के रेगिस्तान स्थित कादेश में हुई मिरियम की मृत्यु के बाद एक अलग ही घटना घटित हुई। कुछ साल पहले रेगिस्तान स्थित रेफिदिम में जब ज्यूधर्मियों को पानी की कमी महसूस हुई थी, तब ईश्‍वर की आज्ञा के अनुसार मोझेस ने, वहाँ के एक पत्थर पर अपनी लाठी से प्रहार करते ही उस पत्थर में से पानी बहने लगा था, जिससे ज्यूधर्मियों की प्यास बुझी थी, यह वर्णन हमने पढ़ा। हैरानी की बात यह थी कि ये हे ज्यूधर्मीय उसके बाद अपने रेगिस्तान के प्रवास में जहाँ कहीं भी गये, वहाँ वहाँ यह पानी की आपूर्ति करनेवाला पत्थर उन्हें दिखायी देता था और उसमें से उनकी आवश्यकतानुसार उन्हें पानी भी मिलता था, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है। लेकिन मिरियम की मृत्यु के पश्‍चात् उस पत्थर में से पानी बहना बन्द हो गया। ज़ाहिर है, ज्यूधर्मियों को पानी की कमी महसूस होने लगी। हमेशा की तरह वे मोझेस पर ग़ुस्सा हुए। उसने जब ईश्‍वर की प्रार्थना की, तभी ईश्‍वर ने, सभी ज्यूधर्मियों को एकत्रित करके उनके समक्ष, पानी देने के लिए उस पत्थर से बात करने के लिए मोझेस से कहा।

लेकिन हर बार ऐसा संकट आने पर ज्यूधर्मिय मोझेस को ही जलीकटी कहें, यह बात इस बार मोझेस की बर्दाश्त से बाहर हो गयी थी। अत एव ग़ुस्से में आकर उसने, पहले जैसा रेफिदिम में किया था उसी प्रकार उस पत्थर पर अपनी लाठी से ज़ोर से आघात किया। तभी पहले जैसा ही धो धो पानी बहने लगा। ज्यूधर्मियों की प्यास तो बुझ गयी, लेकिन यहाँ पर मोझेस के हाथों ‘ग़लती’ हुई थी। ईश्‍वर के शब्द का उससे भंग हो गया था। ईश्‍वर ने ‘पत्थर से बात करो’ ऐसा जो उसे कहा था, वह भूलकर उसने उस पत्थर पर आघात किया था।

यह ग़लती किसी को वैसे साधारण प्रतीत हो सकती है। लेकिन मोझेस जितनी ऊँचाई हासिल किये इन्सान के लिए साधारण सी ग़लती भी अक्षम्य साबित हो सकती है, क्योंकि ऐसे लोगों के सम्पूर्ण जीवन को ही आम लोग ‘आदर्श उदाहरण’ के तौर पर देखते हैं। इसलिए ईश्‍वर के शब्द को सुयोग्य महत्त्व न देने की इस ग़लती की ‘सज़ा’ ईश्‍वर ने मोझेस को सुनायी – ‘कॅनान प्रान्त में प्रवेश करते समय इन ज्यूधर्मियों का नेतृत्व तुम नहीं करोगे; दरअसल तुम कॅनान प्रान्त में प्रवेश ही नहीं कर सकोगे!’(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

Leave a Reply

Your email address will not be published.