१८. ‘एक्झोडस्’ – सिनाई पर्वतशिखर से ज्यूधर्मियों को ईश्‍वर के दर्शन

इस प्रकार जेथरो के मशवरे के अनुसार दैनंदिन कामों के बँटवारे की व्यवस्था करने के बाद, मोझेस पर होनेवाला बोझ काफ़ी हल्का हो चुका था और सर्वसाधारण ज्यूधर्मियों में भी धीरे धीरे निर्णयक्षमता विकसित होने की दिशा में अब उनका पहला कदम पड़ा था।

एक्झोडस् के बाद ज्यूधर्मियों पर धावा बोले पहले मानवी संकट का – आमलेकी टोलीवालों के हमले का सफलतापूर्वक प्रतिकार करने के बाद ज्यूधर्मियों में लड़ाकू बाना भी अब विकसित होने लगा था, उनका आत्मविश्‍वास भी बढ़ने लगा था।

मुख्य रूप में, अब न्यायव्यवस्था भी स्थानिक स्तर तक विकसित होने लगी थी। छोटेमोटे झगड़े सुलझाने के लिए छोटे न्यायालय, उसमें झगड़े का हल न निकलने पर उनके ऊपर के (अपील) न्यायालय, कुछ महत्त्वपूर्ण झगड़ों का यदि वहाँ पर भी निर्णय न हो सका, तो उनके ऊपर के न्यायालय ऐसी व्यवस्था विकसित होने लगी थी। ऐसे झगड़ों में से यदि कुछ उतने ही महत्त्वपूर्ण झगड़ें हों, जिनमें किये निर्णयों के दूरगामी, नीतिगत परिणाम हो सकते हैं, ऐसे ही झगड़ें केवल मोझेस तक आते थे और ईश्‍वर की आज्ञा से मोझेस जो निर्णय करता था, वही उस सन्दर्भ में क़ानून बन जाता था। संक्षेप में, ज्यूधर्मियों की जीवनपद्धति अब अधिक सुसंस्कारित समाज बनने की दिशा में मार्गक्रमणा करने लगी थी।

इतना ही नहीं, बल्कि अब गत कुछ महीनों में अनुभव किये घटनाक्रम के कारण उनका ईश्‍वर पर का विश्‍वास भी वृद्धिंगत होने लगा था। कुछ सदियों पूर्व, अपने पूर्वज अब्राहम के साथ किये हुए क़रारनामे (‘कॉवेनन्ट’) को न भूलते हुए, उसके वंशजों की यानी हमारी (ज्यूधर्मियों की) इजिप्शियन लोगों की सैंकड़ों वर्षों की ग़ुलामी के चंगुल से, इजिप्शियन लोगों पर एक के बाद एक ऐसीं दस आपत्तियाँ भेजकर की हुई रिहाई; लालसमुद्र विभाजित कर ज्यूधर्मियों का फारोह की सेना से किया हुआ बचाव; रेगिस्तान की स़ख्त मार्गक्रमणा में भी ज्यूधर्मियों का फूल की तरह खयाल रखना; रेगिस्तान में हररोज़ ‘मन्ना और क्वेल’ यह दैवी खाना ज्यूधर्मियों के लिए भेजना; खारा पानी मीठा होकर पीने के पानी का इन्तज़ाम होना; पत्थर में से पानी की धारा बहना शुरू होना; क्रूर आमलेकी टोलीवालों के साथ हुए पहले युद्ध में ज्यूधर्मियों की विजय होना – ये इतने सारे चमत्कार अनुभव करने के बाद – ‘यह ईश्‍वर हमारा अपना है, जागृत है और हमारा पालनहार है’ इसपर ज्यूधर्मियों का विश्‍वास अटूट होने लगा था। ईश्‍वर की सक्रियता का एहसास मन में उत्पन्न होने के कारण और वह दृढ़ करनेवाले सबूत निरन्तर मिलते होने के कारण उनमें दैवभीरुता तथा नीतिमत्ता भी बढ़ने लगी थी।

यहाँ कामों के बँटवारे की व्यवस्था सुचारु रूप से कार्यरत हो जाने के बाद जेथरो पुनः अपने गाँव चला गया। अब ये ज्यूधर्मीय लोग रेफिदिम से अगले प्रवास के लिए रवाना हुए। मार्ग दिखाने के लिए वह बादलों का/आग का स्तंभ आगे चल ही रहा था। अब प्रवास सिनाई के रेगिस्तान में शुरू हुआ था।

इजिप्त छोड़े अब दो महीने पूरे होकर तीसरा महीना शुरू हो चुका था। ये लोग सिनाई के रेगिस्तान में प्रवास करते हुए सिनाई पर्वत की तलहटी तक पहुँच गये थे। वहीं पर उनका अगला पड़ाव जम गया।

यहाँ पर पुनः ईश्‍वर ने मोझेस को पर्वत पर बुला लिया और कहा – ‘‘जेकब के वंशज रहनेवालीं, इन इस्रायल की सन्तानों तक तुम मेरा संदेश पहुँचाओ – उनपर ज़ुल्म ढानेवाले इजिप्शियन लोगों की मैंने क्या हालत बना दी, यह उन्होंने देखा। इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों में से मैं कैसे उनका फूलों की तरह खयाल रखते हुए मेरे पास ले आया, यह भी वे देख रहे हैं। इसीलिए यदि वे मेरी आज्ञा का पालन करते हैं और (अब्राहम के साथ मैंने किये हुए) ‘क़रारनामे’ (‘कॉवेनन्ट’) का पालन करते हैं, तो वे पूरी दुनिया में मेरे विशेष प्रिय लोग बन जायेंगे, क्योंकि सारा विश्‍व ही मेरा है। मुख्य रूप से, उनका राष्ट्र (जैसा कि उन्होंने इजिप्त में अनुभव किया था, उस प्रकार) ग़ुलामी पर अधिष्ठित राष्ट्र न होते हुए, धर्माधिष्ठित राज्य – धर्मभीरू लोगों का, धर्मोपदेशकों का राष्ट्र, पवित्र राष्ट्र बनेगा। ये मेरे शब्द तुम उनतक पहुँचाओ।’’

ईश्‍वर की आज्ञा के अनुसार मोझेस ने पर्वत पर से नीचे उतरकर ज्यूधर्मियों के वरिष्ठ लोगों की सभा बुलायी और ईश्‍वर का संदेश उनतक पहुँचाया। तभी उपस्थित जन एकमुख से – ‘हम ईश्‍वर द्वारा उच्चारित हर शब्द का पालन करेंगे ही’ ऐसा कहने लगे। ईश्‍वर के शब्द का, बिना कोई सवाल पूछे, ‘ज्यों का त्यों’ स्वीकार करने के लिए उनकी मनोभूमिका अब तैयार हो चुकी थी।

लोगों का यह जवाब मोझेस ने पुनः ईश्‍वर तक पहुँचाया।

तब आनंदित होकर ईश्‍वर ने मोझेस से कहा कि ‘‘आज से तीन दिन बाद मैं इस सिनाई पर्वत के शिखर पर से ज्यूधर्मियों को अग्नि के रूप में दर्शन दूँगा। उसके लिए आज और कल तुम उनका प्रबोधन करना (इस दर्शन का महत्त्व उनके मन पर अंकित करना) और परसो सुबह धोये हुए वस्त्र पहनकर उन्हें इस पर्वत की तलहटी तक ले आना। लेकिन वे तलहटी से थोड़ी दूरी पर खड़े रहेंगे। तुम उनके लिए सीमारेखा तय करो। वह सीमारेखा लाँघकर यदि उन्होंने पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की, तो फिर वह चाहे मनुष्य हो या प्राणि, उसकी मृत्यु निश्‍चित है।’’

सिनाई पर्वतशिखरतीसरे दिन की भोर, ज़ोर से तुरही बजने की आवाज़ के साथ हुई, जिससे सारे ज्यूधर्मीय नीन्द से जग गये। वह आवाज़ इतनी कर्कश थी कि उससे ज़मीन और पर्वत भी थर्रा रहे थे। उसीके साथ बिजलियाँ भी कड़क रहीं थीं।

कुल मिलाकर सारा माहौल ही भारित हो गया था।

जैसा कि सूचित किया गया था, उसके अनुसार मोझेस ज्यूधर्मियों को उनकी छावनी में से सिनाई पर्वत की तलहटी तक ले आया। बताये गयेनुसार सभी ने धोये हुए कपड़े पहने थे।

सारे पर्वत की ओर देखते हैं, तो पूरा पर्वत धूल एवं बादलों से आच्छादित हो चुका था। लेकिन ईश्‍वर द्वारा पहले ही बताये गयेनुसार, पर्वत के शिखर पर अग्नि प्रज्वलित हुई दिखायी दे रही थी। वही जो उन अब्राहम-आयझॅक-जेकब का ईश्‍वर था, उसके लोग आँखें फ़ाड़फ़ाड़कर अग्निरूप में दर्शन कर रहे थे।

तुरही की आवाज़ अब अधिक ही बढ़ गयी थी, जिससे कि वह पर्वत एवं ज़मीन कंपित हो रहे थे।

यह तुरही की आवाज़ काफ़ी समय तक बढ़ते बढ़ते एक ऊँचाई पर पहुँच गयी और अचानक बंद हो गयी। सभी ओर अचानक सन्नाटा फैल गया और सभी ज्यूधर्मियों को ईश्‍वर की घनगंभीर आवाज़ सुनायी देने लगी….

 (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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