०९. जेकब का इजिप्त में आगमन तथा मृत्यु; जोसेफ़ की मृत्यु

अपने भाइयों को अपने पैर पकड़कर गिड़गिड़ाते हुए देखकर जोसेफ़ गद्गद हो उठा, लेकिन उसने अपना कड़ा रूख़ क़ायम रखते हुए अपने भाइयों को कारागृह भेज दिया। लेकिन कारावास में अपने भाइयों का संभाषण गुप्त रूप से सुनते हुए उसे यह एहसास हुआ कि अपने भाई अब बदल चुके हैं। ख़ासकर, ‘हमपर लगाया गया यह इल्ज़ाम, यह कारावास यानी हम हमारे भाई जोसेफ़ के साथ जो इतना निर्दयतापूर्वक पेश आये थे, उसी की सज़ा हमें भगवान ने दी है’ ऐसी बातें वे आपस में कर रहे थे। जोसेफ़ से आँसू रोके नहीं गये।

तीन दिन बाद फ़ारोह के वज़ीर ने (जोसेफ़ ने) उन्हें छोड़ दिया; लेकिन उनमें से शिमॉन को अपने पास बंधक बनाकर रखा और ‘यदि शिमॉन को छुड़ाना चाहते हो, तो अगली बार तुम्हारे उस आख़िरी भाई को (बेंजामिन को) लेकर आओ’ ऐसी जोसेफ़ ने उन्हें चेतावनी दी।

अन्य भाई घर जाने निकले। साथ में उन्होंने ख़रीदा हुआ अनाज जानवरों की पीठ पर लदा हुआ था। लेकिन उनके अनजाने में जोसेफ़ ने, यह अनाज खरीदने के लिए उनके द्वारा दिये गये पैसे चुपचाप पुनः उनकी गठरियों में ड़ालकर रखे थे।

ये भाई कॅनान पहुँचे। उन्होंने जेकब से सारी हक़ीक़त बयान की और साथ लायीं अनाज की गठरियाँ खोलकर दिखायीं। तभी हर एक की गठरी में से पैसे नीचे गिर गये। ये पैसे वहाँ कैसे आये, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। अब उनपर चोरी का इल्ज़ाम लगाया जायेगा, इसलिए वे डर गये थे। जेकब ने उन्हें शान्त किया और ‘जब फ़िर से अनाज लाने जाओगे तब उनके पैसे लौटा देना’ यह उनसे अनुरोधपूर्वक कहा।

कुछ महीनों बाद, लाया हुआ अनाज ख़त्म होने पर पुनः अनाज ले आने के लिए वे जेकब की आज्ञा से इजिप्त के लिए रवाना हुए। लेकिन जैसा कि फ़ारोह के उस वज़ीर ने (जोसेफ़ ने) कहा था, उसके अनुसार शिमॉन को छुड़ाकर ले आने के लिए उन्होंने इस बार बेंजामिन को भी अपने साथ ले लिया था।

Joseph receives Benjamin and other brothers

सभी भाई इजिप्त पहुँचे। जोसेफ़ तक उनके आने की ख़बर पहुँचने पर उसने अपने अधिकारी को भेजकर उन्हें अपने महल में ही बुला लिया। अपने सगे छोटे भाई को – बेंजामिन को देखकर जोसेफ़ गद्गद हो उठा, लेकिन उसने अपने आपको सँभाला। उसके पास बंधक रहनेवाले अपने भाई-शिमॉन को ज़िन्दा देखकर अन्य भाइयों के मन का भय भी दूर हुआ।

फ़िर जोसेफ़ ने सबकी ख़ातिरदारी की और उन्हें जो चाहिए था, वह अनाज दिया। लेकिन अब जोसेफ़ ने उनकी ज़रासी अलग तरीके से परीक्षा ली। पिछली बार की तरह ही उसने इस अनाज के पैसे भी चुपचाप पुनः उनकी गठरियों में रखे ही थे, लेकिन इस बार अपने राजमहल का एक क़ीमती चषक ख़ु़फ़िया तरी़के से बेंजामिन की गठरी में रखा।

हम सब भाई सुरक्षित हैं, इसकी खुशी मनाते हुए ये लोग जब कॅनान की ओर रवाना हुए, तभी एक सेनाअधिकारी उनका पीछा करते हुए आया और उसने – ‘राजमहल का क़ीमती चषक चोरी हुआ है और वज़ीर को आप लोगों पर शक़ है’ ऐसा इन भाइयों से कहा। उनके पैरों तले की ज़मीन ही मानो खिसक गयी। अहम बात यानी जब उनकी तलाशी ली गयी, तब बेंजामिन की गठरी में वह चषक पाया जाने के बाद तो उनकी बोलती ही बन्द हुई थी। लेकिन जैसा कि जोसेफ़ ने पहले से ही सूचना दे रखी थी, उसके अनुसार सेनाअधिकारी ने – ‘इस लड़के की गठरी में चषक मिला इसलिए मैं स़िर्फ़ इसे ही गिरफ़्तार कर रहा हूँ। तुम बाक़ी लोग जा सकते हो’ ऐसा उनसे कहा। लेकिन अब स्वभाव में ज़मीन-आसमान का बदलाव हो चुके उन भाइयों को यह बात मंज़ूर होना हरगिज़ संभव नहीं था। ‘जो कुछ होगा वह हम सभी भाइयों का एकसाथ होगा। या तो हम सबको गिरफ़्तार कर दो या फ़िर बेंजामिन को छोड़ दो’ ऐसा ही वे बारबार जोसेफ़ से कह रहे थे।

Joseph's cup found in Benjamin's sackभाइयों में आया यह बदलाव देखकर जोसेफ़ गद्गद हो गया। अब उससे रहा नहीं जा रहा था। उसने अपने इजिप्शियन कर्मचारियों को दालान से बाहर भेज दिया और अपने भाइयों को आख़िर अपना परिचय दे दिया।‘यह फ़ारोह का वज़ीर यानी हम जिसके साथ इतनी बेरहमी से पेश आये थे, वही हमारा भाई जोसेफ़ है’ यह जान जाने के बाद तो उनके तोते ही उड़ गये। लेकिन जोसेफ़ ने उन्हें आश्‍वस्त किया। फ़िर पुनर्मिलन की खुशी में वे सारे बहुत समय तक एकदूसरे को गले लगाकर रो रहे ते, भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। अहम बात यानी आज कई सालों के बाद वे सभी के सभी बारह भाई एकसाथ खाना खाने बैठे थे।

फ़िर जोसेफ़ ने अपने पिता का हाल पूछा और उन्हें यहीं पर ले आने के लिए भाइयों से कहा। ‘पिताजी के साथ तुम सब भी यहीं रहने आ जाओ। मैं राजा को बताकर तुम्हारे उदरनिर्वाह का इन्तज़ाम करता हूँ’ ऐसा कहकर जोसेफ़ ने उत्तम से उत्तम नज़रानें देकर उन्हें बिदा किया।

वे सभी भाई आनंदपूर्वक कॅनान आकर पिताजी से मिले और उन्हें सारीं बातें बयान की। अपना प्रिय जोसेफ़ मरा नहीं, बल्कि अब तक ज़िन्दा है, यह जानने के बाद जेकब खुशी के मारे रोने लगा। अब वह जोसेफ़ से मिलने के लिए बेताब हुआ था।

इसी बीच, जोसेफ़ ने राजा फ़ारोह तक यह सारा विवरण पहुँचाया ही था। जोसेफ़ पर राजा की ख़ास मर्ज़ी होने के कारण, ‘जोसेफ़ के पिताजी और अन्य परिजन आ रहे हैं’ यह सुनकर वह भी खुश हुआ और उसने उन्हें अपने दरबार में ही समारोहपूर्वक ले आने के लिए कहा। सबसे अहम बात यह थी कि अपने राज्य स्थित नाईल नदी के मुखप्रदेश से सटा, सबसे ऊपजाऊ ज़मीन होनेवाला गोशेन प्रदेश राजा ने उन्हें बहाल कर दिया।

यहाँ पर जोसेफ़ के भाइयों ने अपनी अपनी चीज़वस्तुओं तथा परिवारों को लेकर पिता जेकब के साथ इजिप्त में स्थलांतरण किया। लेकिन आने से पहले जेकब ने अनुरोधपूर्वक बीरशेबा जाकर ईश्‍वर का शुक्रिया अदा किया। इजिप्त में उनका शानदार स्वागत हुआ। इतने सालों बाद जोसेफ़ को अपने गले लगाते हुए जेकब खुशी से फ़ूले नहीं समा रहा था। राजा ने जेकब के साथ अपने पिता की तरह ही सुलूक़ करके उसका बड़ा सम्मान किया।

Joseph receives his father and brothers in Egypt

ये लोग अब उन्हें बहाल किये गये प्रदेश में रहने लगे। फ़ारोह के स्वप्नदृष्टांत के जोसेफ़ ने बताये अर्थ के अनुसार जो अकाल के साल थे, उनके ख़त्म होने पर तो उस उपजाऊ ज़मीन में भारी मात्रा में अनाज उगने लगा। धीरे धीरे ये लोग वहाँ के अमीर लोग बन गये और स्थानीय इजिप्शियन लोगों में घुलमिल गये। ‘अब्राहम-आयझॅक-जेकब’ इस वंशपरंपरा में प्राप्त हुआ ज्ञान आगे चलकर सभी ज्यूधर्मियों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी जेकबपुत्र लेव्ही ने अपने कंधे पर उठायी थी। अपने बेटों की यह तरक्की देखकर जेकब को खुशी हो रही थी। ख़ासकर जोसेफ़ के दोनों बेटों पर जेकब का विशेष प्रेम था। जोसेफ़ ने सारा ज्ञान ग्रहण करने के लिए अपने बेटों को जेकब के साथ रहने के लिए भेजा। जेकब ने आगे चलकर जोसेफ़ के दोनों बेटों को भी अपनी जायदाद के बँटवारे में समाविष्ट कर, उन्हें जोसेफ़ के भाइयों की बराबरी का ही दर्जा दिया।

कुछ साल बाद जेकब ने सार्थक मन से इस दुनिया से विदा ली। जोसेफ़ सारे इजिप्त का ही लाड़ला होने के कारण, उसके पिता के – जेकब के गुज़र जाने से सारे इजिप्त पर ही शोक का माहौल छा गया था। जाने से पहले जेकब ने, ‘अपने पूर्वजों को जिस मॅकपेलाह गुफ़ा में द़फ़नाया गया था, उस गुफ़ा में ही मुझे द़फ़नाया जाये’ ऐसी इच्छा प्रदर्शित की होने के कारण; इजिप्त से लेकर कॅनान तक उसकी अंतिमयात्रा आयोजित कर, उसे मॅकपेलाह गुफ़ा में बड़े सम्मान के साथ द़फ़नाया गया। मृत्यु के समय जेकब की उम्र १४७ साल बतायी जाती है।

अब जोसेफ़ ही ‘अब्राहम-आयझॅक-जेकब’ परंपरा का उत्तराधिकारी बन चुका था। जाने से पहले जेकब ने अपने बेटों से – ‘किसी भी हालत में एक-दूसरे का दृढ़तापूर्वक साथ निभाने का तथा हमें आख़िर ईश्‍वरप्रदत्त कॅनान की भूमि में जाना है इस बात को कभी भी न भूलने का’ अभिवचन लिया था। कुछ साल बाद राजा फ़ारोह ने भी इस दुनिया से विदा ली। उसके रहते और उसके बाद भी कुछ समय तक राजा की ओर से जोसेफ़ ही राज्य का कारोबार देख रहा था। तब तक इन लोगों का सबकुछ अच्छाख़ासा चल रहा था। ये लोग राजदरबार में तथा अन्य समाजजीवन में भी अहम पदों पर विराजमान हुए थे। लेकिन यह उनकी तरक्की स्थानीय लोगों की आँखों में चुभने लगी थी।

कुछ साल बाद जोसेफ़ ने भी इस दुनिया से विदा ली। जाने से पहले उसने – ‘मेरी अस्थियों को जतन किया जाये और जब हमारे वंशज इजिप्त से पुनः अपनी ईश्‍वरप्रदत्त भूमि में चले जायेंगे, तब मेरी अस्थियाँ साथ ले जाकर अपनी भूमि में द़फ़नायीं जायें’ ऐसी इच्छा अपने भाइयों के पास ज़ाहिर की थी। उसके अनुसार उसका मृतदेह एक शवपेटिका में जतन कर रखा गया था। मृत्यु के समय जोसेफ़ की उम्र ११० साल थी।

इस प्रकार, ज्यूधर्मियों के – आद्यपूर्वज अब्राहम से शुरू हुए और आयझॅक-जेकब-जोसेफ़ ऐसे पड़ाव पार करते हुए आगे बढ़ रहे इतिहास का पहला खंड समाप्त हो चुका था और ईश्‍वरप्रदत्त भूमि में सुस्थिर होने के लिए किये जा रहे अपने प्रवास के दौरान ज्यूधर्मीय इजिप्त आकर पहुँच गये थे। तब तक विभिन्न प्रदेशों में बिखरे हुए ज्यूधर्मीय ‘एक राष्ट्र’ के रूप में एकत्रित होने की शुरुआत हुई थी। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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