१०. ज्यूधर्मीय इजिप्त में सैंकड़ों वर्ष ग़ुलामी में; मोझेस का जन्म

इजिप्त में जेकब के साथ स्थानांतरित होते समय संख्या में केवल ७० (‘सेवन्टी सोल्स’) होनेवाले इन ज्यूधर्मियों की संख्या अगली कुछ पीढ़ियों में तेज़ी से बढ़ते हुए हज़ारों-लाखों की तादाद में गयी थी। ये लोग हालाँकि अब इजिप्शियन समाजजीवन में घुलमिल गये थे, मग़र फिर भी अपना धर्म, अपने आद्य पूर्वज अब्राहम को हुआ ईश्‍वरी साक्षात्कार, अपना ध्येय, अपनी हिब्रू भाषा इनके बारे में उनके मन में होनेवाला एहसास भली-भाँति जागृत था;

….और ठीक यही बात वहाँ के स्थानीय लोगों को रास नहीं आती थी। वहाँ के समाज में प्रचलित ‘अनेक-देवता-पूजन’ को ये लोग नहीं अपनाते और उनके आद्यपूर्वज को हुए किसी दृष्टांत के अनुसार एक ही ईश्‍वर को मानते हैं, यह ग़ुस्सा स्थानीय लोगों के मन में था। साथ ही, ज्यूधर्मियों की तरक्की देखकर भी वहाँ के स्थानीय लोग उनसे जलते थे।

जोसेफ को पनाह दिये फारोह के बाद सत्ता पर आये राजा भी, इन ‘बाहर से आये’ लोगों के लिए कतई अनुकूल नहीं थे। जोसेफ द्वारा इजिप्त में किया गया महत्कार्य, बाद की पीढ़ियों के लोग तथा राजा भूल चुके थे। ‘अब संख्या से लक्षणीय बन चुके ये ज्यूधर्मीय अपनी सत्ता हथिया लेंगे’ यह डर हमेशा इन राजाओं के मन में बसा रहता था। इस कारण इन राजाओं ने धीरे धीरे ज्यूधर्मिय लोगों के, बतौर ‘नागरिक’ सारे अधिकार छिनकर उन्हें अपना ग़ुलाम बना दिया।

मूलतः ही मेहनती रहनेवाले ज्यूधर्मिय परिश्रम करने से नहीं डरते थे, लेकिन वहाँ के राजाओं ने उनका, बतौर इन्सान जीना भी नामुमक़िन कर दिया था। उन्हें सभी अहम राजनीतिक, सामाजिक पदों पर से हटाया गया। उनपर बेशुमार कर (टॅक्सेस) थोंपे गये। सड़कों का निर्माण, घरों का निर्माण, सार्वजनिक स्वच्छता, घरेलु काम, बोझ उठाना आदि शारीरिक परिश्रमों के काम उनपर लादे गये थे।

ज्यूधर्मीयभगवान के आशीर्वाद होनेवाले समाज पर यह नौबत क्यों आयी, ऐसा प्रश्‍न किसी के मन में उठ सकता है। मूलतः इस ग़ुलामी की कालावधि की सूचना भी भगवान ने बहुत पहले ही, अब्राहम को दिये दृष्टांत के समय ही देकर रखी थी। फिर भगवान ने यह सबकुछ टाला क्यों नहीं, ऐसा प्रश्‍न कई बार पूछा जाता है। शायद ज्यूधर्मियों की भविष्यकालीन प्रगति के लिए यह ईश्‍वरप्रदत्त आवश्यक चरण होगा। क्योंकि इजिप्त में स्थानांतरित होने से पहले अधिकांश ज्यूधर्मीय अलग अलग प्रदेशों में बिखरे हुए थे। ‘एक धर्म’ ‘एक राष्ट्र’ की दिशा में उनका वास्तविक प्रवास शुरू हुआ, वह इजिप्त में आने के बाद ही। यहाँ आने से पहले हालाँकि ज्यूधर्मीय थोड़ीबहुत खेती कर लेते थे, मग़र फिर भी उनका प्रमुख व्यवसाय गड़रियों (चरवाहों) का ही था। यहाँ आने के बाद ही उनका वास्तविक रूप में, खेती के साथ बतौर ‘व्यवसाय’ परिचय हुआ। यहीं पर ज्यूधर्मीय ‘एक समाज’ के रूप में विकसित हुए। आगे चलकर तो, इजिप्त में उनकी ग़ुलामी की कुछ सदियों की कालावधि उन्हें एक-दूसरे के अधिक ही क़रीब ले आयी। अपने भगवान का-धर्म का-ध्येय का एहसास हर नयी पीढ़ी को करा देने का काम, इस ज्ञानदान के कार्य का स्वीकार किये ‘लेव्ही’ के वंशज कर ही रहे थे और उनका यह कार्य ‘धार्मिक’ माना जा रहा होने के कारण, ज्यूधर्मियों में से केवल वे लोग ही इजिप्शियन लोगों के गुस्से से बचे थे।

अब जोसेफ ने इस दुनिया से विदा लेकर कई साल बीत चुके थे। वहाँ के तत्कालीन राजा (फारोह) के ज्यूधर्मियों पर अत्याचार और भी बढ़ गये थे। उसीमें कुछ इजिप्शियन ज्योतिषियों ने राजा से कहा कि ‘इन ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी से मुक्त करनेवाला कोई जल्द ही जन्म लेनेवाला है।’ इस भविष्यवाणी का अर्थ – ‘ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी से मुक्त करनेवाला यानी मुझे सत्ताभ्रष्ट करके मेरे सिंहासन पर कब्ज़ा करनेवाला’ ऐसा लगाकर राजा ने ग़ुस्से में आकर हुक़्म जारी किया – ‘हर एक ज्यूधर्मीय नवजात पुरुष-बालक को जन्मते ही पानी में डुबोकर मारा जाये!’

इन नये हुक़्म से ज्यूधर्मियों में हाहाकार मच गया और उनमें इजिप्शियन राजा के ख़िला़फ बहुत ही असंतोष एवं ग़ुस्सा उबलने लगा।

ऐसे इस अस्थिर एवं अशांत माहौल में ही, लेव्ही का पोता अ‍ॅमराम तथा अ‍ॅमराम की पत्नी जोचबेद के यहाँ ‘मोझेस’ (मोशे) का जन्म हुआ। जोचबेद यह खुद भी उत्तम दाई के रूप में मशहूर थी। मोझेस यह अ‍ॅमराम-जोचबेद की तीसरी संतान थी – बड़ी बेटी मिरियम और मँझला बेटा आरॉन के बाद की। इन तीनों के हाथों ज्यूधर्मियों के लिए लोकोत्तर कार्य घटित होनेवाला था। मोझेस के जन्मते ही उनका घर एक दिव्य प्रकाश से दीप्तिमान हुआ, जिससे उसके अलौकिक होने का प्रमाण उसके मातापिता को मिला था, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।
राजा के नये हुक़्म के तहत राजा के सैनिक हमेशा ज्यूधर्मियों के घरों पर छापे मार देते थे। इस कारण नवजात मोझेस को छिपाकर हालाँकि उसकी माँ ने उसे राजा के सैनिकों से बचाया तो था, मग़र फिर भी बहुत समय तक उसे छिपाना मुश्किल है, यह जानकर उसने एक योजना बनायी।

Jochebed and Mosesवहीं से कुछ दूरी पर राजा की कन्या हररोज़ एक ही समय जलविहार करने नदी पर आ जाती है और वह सहृदय है, यह जोचबेद जानती थी। उसने कलेजे पर पत्थर रखकर मोझेस को, पानी में तैर सकें ऐसी एक टोकरी में रखकर, उसकी रक्षा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करके उसे हल्के से नाईल नदी की धारा में छोड़ दिया। उस टोकरी पर उसकी बेटी मिरियम किनारे से नज़र रखे हुए थी। जोचबेद के अनुमान के अनुसार वह टोकरी बहते बहते, नदी में जलविहार के लिए उतरी राजकन्या के हाथ लगी। इतना सुंदर बालक देखकर राजकन्या का मन वत्सलता से भर गया और ‘कुछ ही दिनों के इस बालक को राजा के हुक़्म से ख़तरा है’ यह जानकर वह उस बालक को चुपचाप अपने महल में ले गयी। लेकिन वह बालक रोता ही चला जा रहा था, वह महल की दाइयों से सँभाला नहीं जा रहा था। अब इस बालक का रोना कैसे रोका जाये, इस दुविधा में फँसी राजकन्या को – उस समय वहाँ आयी मिरियम ने, ‘मैं एक माहिर दाई को जानती हूँ’ ऐसा सूचित करके, जोचबेद का ही वहाँ प्रवेश करवाया। इस बालक का ‘मोझेस’ यह नाम इसी राजकन्या के द्वारा रखा जाने के उल्लेख पाये जाते हैं।

Finding of Moses

इसी बीच राजा के उन ज्योतिषियों ने भी – ‘अब तुम्हें होनेवाला ख़तरा टल गया है’ ऐसा राजा से कहने के कारण, उसने भी अब निश्‍चिंत होकर अपना ‘वह’ क्रूर हुक़्म रद कर दिया। इससे थोड़ीसी राहत पाकर राजकन्या ने भी उसे इस बालक के बारे में बताया। राजा को अब उसपर कोई भी ऐतराज़ नहीं था। इसलिए अब मोझेस बिना किसी संकोच के, राजा की गोद में भी खेलने-कूदने लगा और मानो राजकन्या का गोद लिया बच्चा ही हो, इस प्रकार राजमहल में ऐशोआराम में पला-बढ़ा। राजा को तो उससे बहुत ही लगाव था। मुख्य बात यह थी कि वह बड़ा होते समय राजा हर बात में उसके साथ सलाहमशवरा करता होने के कारण उसे कारोबार चलाने की शिक्षा भी अपने आप ही मिल रही थी।

मोझेस बड़ा होते समय, उसके लिए दाई के रूप में राजमहल में रहनेवाली उसकी माँ जोचबेद उसपर ज्यूधर्मियों के ही संस्कार कर रही थी। उसे सारी पारंपरिक ज्यूधर्मीय शिक्षा भी प्राप्त हुई। स्वाभाविक रूप से, तत्कालीन इजिप्शियन लोगों द्वारा उसके ज्यू बांधवों पर किया जानेवाला अन्याय उससे देखा नहीं जाता था। वह कई बार उनकी बस्तियों में जाकर उन्हीं के साथ रहता-खाता था। बूढ़े ज्यूबांधवों की उनके काम में सहायता कर उनका बोझ हल्का करने की कोशिशें भी करता था।

उसीके साथ मोझेस ने, राजा पर होनेवाले अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए, लेकिन उसे शक़ न हो इस प्रकार धीरे धीरे, ज्यूधर्मियों के लिए होनेवाले क्रूर क़ानूनों में थोड़े थोड़े बदलाव लाकर उन्हें कुछ हद तक सौम्य बनाया था।

उसके सद्गुणी स्वभाव के कारण वह ज्यूधर्मियों में बहुत लोकप्रिय बन चुका था….मानो उनका नायक ही बन चुका था! (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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