०७. जोसेफ़ की इजिप्त में रवानगी, वहाँ से कारागृह में

कई साल अपने मामा – लॅबान की ग़ुलामी में रहकर जेकब अपने घर कॅनान लौटा था। उसने अपने भेड़ों के बड़े बड़े झुँड़ों के चरने हेतु, पास ही की शेकेम नगरी में अच्छीख़ासी ज़मीन ख़रीद ली। उसके बेटे अब वहाँ की व्यवस्था देखने लगे और वह स्वयं हिब्रॉन में अपने पिता के घर रहने लगा।

यहाँ शेकेम में वहाँ के राजा के बेटे ‘शेकेम’ की नज़र जेकब की बेटी दिनाह पर पड़ी और उसपर लट्टू हो जाने के कारण उसने दिनाह का अपहरण करके उसपर ज़बरदस्ती की। दिनाह के भाइयों को इसका पता चल जाते ही वे क्रोधित हो उठे। उनमें से ख़ासकर शिमॉन एवं लेव्ही का ग़ुस्सा चरमसीमा तक गया और उन्होंने राजा तथा उसके बेटे को तो मार ही दिया, साथ ही, उस शहर के सारे पुरुषों का भी क़त्लेआम कर दिया और अपनी बहन को छुड़ा ले आये।

जेकब को इस बात का पता चल जाते ही उसने उन दोनों को दूषण दिया कि ‘एक इन्सान के गुनाह के बदले में सारे शहर को क्यों सज़ा दी?’

लेकिन तब तक कॅनान प्रान्त के अन्य राजाओं ने एक होकर उनपर हमला बोला था। जेकब ने इस उद्भवित परिस्थिति में से मार्ग दिखाने की ईश्‍वर से प्रार्थना की। उसके बाद प्रत्यक्ष युद्ध होने से पहले ही किसी अज्ञात कारणवश उन सभी राजाओं के मन में भय उत्पन्न होकर वे युद्धभूमि से भाग गये, ऐसा यह कथा बताती है।

कुछ साल बाद जब पुनः इन सारे राजाओं ने एकत्रित होकर अधिक सेना के साथ जेकब के बेटों पर आक्रमण किया, तब जेकब तथा उसके बेटों ने, जेकब का चौथा बेटा ज्युडाह के नेतृत्व में अपनी छोटी-सी सेना के साथ, उन सभी राजाओं की सेना से कड़ा मुक़ाबला करके उन्हें परास्त कर दिया। अब वे सारे राजा जेकब की शरण में आये थे। सभी ने जेकब के बेटों से सुलह की। अब ईश्‍वर ने अब्राहम को अभिवचन दी हुई कॅनान की भूमि में से थोड़ी और भूमि उनके अधिकार में आयी थी।

उसके बाद जेकब हिब्रॉन लौट गया और उसके बेटे शेकेम में उनके भेड़ों के झुँड़ों का खयाल रखते हुए वहीं पर बस गये। जेकब पहुँचने के कुछ समय बाद उसके पिता आयझॅक की भी मृत्यु हो गयी। बहुत ही दुखी मन से जेकब एवं एसाऊ ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया और आयझॅक के मृतदेह को भी उस मॅकपेलाह गुफ़ा में ही क़बर खोदकर द़फ़नाया गया।

अब अपने बिवीबच्चों के साथ कॅनान में बसेरा कर चुका जेकब ही ‘अब्राहम-आयझॅक’ परंपरा की अगली कड़ी बन चुका था।

जेकब को हालाँकि उसके सभी बच्चें एकसमान ही थे, मग़र फ़िर भी उसे राचेल से हुआ बड़ा बेटा जोसेफ़ थोड़ा अधिक प्रिय था। उसकी वजह यह थी कि जोसेफ़ यह शान्त, विचारशील, स्थिरबुद्धि एवं पवित्र मन का है, यह बात उसकी समझ में आयी थी। इस कारण, ‘मुझे विरासत में प्राप्त हुई ‘अब्राहम-आयझॅक’ की परंपरा को मेरे बाद जोसेफ़ ही आगे ले जायेगा’ इस बात को लेकर उसके मन में कोई सन्देह नहीं था। जोसेफ़ १७ साल का हो जाने के बाद जेकब ने उसके लिए, उस ज़माने में विशेष माना जानेवाला एक लंबा रंगबिरंगी कोट भी सिला लिया था, जो बात उसके भाइयों के मन में उसके प्रति और भी मत्सर उत्पन्न करनेवाली साबित हुई।

धीरे धीरे जेकब ने जोसेफ़ को, अपने पिता आयझॅक तथा दादा अब्राहम से ग्रहण किया हुआ सारा ज्ञान प्रदान करने की शुरुआत की, जिसे उसने बहुत ही दिल लगाकर और तेज़ी से आत्मसात किया। लेकिन हमारे पिता जेकब हमसे ज़्यादा जोसेफ़ को पसन्द करते हैं, यह बात जोसेफ़ के अन्य भाइयों की भी समझ में आयी थी और जोसेफ़ के ये भाई धीरे धीरे जोसेफ़ का विद्वेष करने लगे थे।

इसी दौरान जोसेफ़ को कुछ सूचक सपने आये। जोसेफ़ में होनेवाले अन्य गुणों के साथ ही, सूचक सपनों का अर्थ बताने की एक विलक्षण ईश्‍वरीय देन जोसेफ़ को प्राप्त थी। इन सपनों के द्वारा ऐसा ध्वनित हो रहा था कि जोसेफ़ की श्रेष्ठता को उसके भाइयों ने क़बूल कर लिया है। उसने बोलते बोलते सहज ही अपने भाइयों एवं पिता के पास इन सपनों का ज़िक्र किया। जेकब हालाँकि यह जानता था कि यह सच है, मग़र फ़िर भी, जोसेफ़ के भाइयों के मन में उसके प्रति जो ईर्ष्या की आग भड़क उठी थी, उसमें मानो तेल ही डाला गया और वे उसे रास्ते से हटाने की साज़िश करने लगे। जल्द ही उन्हें वैसा मौक़ा मिला….

वह हुआ यूँ – पिता से ज्ञान ग्रहण करने के उपलक्ष्य में जोसेफ़ का वास्तव्य कई बार हिब्रॉन में जेकब के घर में ही होता था। एक बार बहुत दिनों से अपने बेटों से कुछ भी ख़बर नहीं आयी, इससे चिन्तित होकर जेकब ने, शेकेम जाकर भाइयों का समाचार ले आने के लिए जोसेफ़ से कहा।

तब तक जोसेफ़ के भाइयों को उसके प्रति होनेवाली ईर्ष्या हद से गुज़र चुकी थी; इस कारण जोसेफ़ को अकेला आया देखकर, ‘उसे अपने रास्ते से हटाने का यह अच्छाख़ासा मौका चला आया है’ ऐसा उन्हें लगा और उन्होंने उसपर हमला किया। उसे जान से मार देने का ही उनका विचार था। लेकिन उनके सबसे बड़े भाई – रुबेन के दिल में उसके प्रति दया उत्पन्न हुई और उसने भाइयों को जोसेफ़ की जान लेने से परावृत्त कर दिया।

इश्मेली व्यापारियों के गिरोह को बतौर ‘गुलाम’ बेचा गया जोसेफ़
इश्मेली व्यापारियों के गिरोह को बतौर ‘गुलाम’ बेचा गया जोसेफ़

लेकिन उतने में भाइयों को कुछ इश्मेली व्यापारियों का एक गिरोह इजिप्त की दिशा में जाता दिखायी दिया। उन्हें देखकर जोसेफ़ के भाइयों के मन में एक खयाल आया और उन्होंने जोसेफ़ को २० रौप्यमुद्राओं के बदले में उस गिरोह को बतौर ‘गुलाम’ बेच दिया। लेकिन बेचने से पहले उन्होंने उसका वह लंबा रंगबिरंगी कोट निकाल लिया था।

लेकिन ग़ुस्से की ज्वाला ठण्डी हो जाने के बाद ‘अब पिताजी को क्या मुँह दिखायेंगे’ यह प्रश्‍न उनके मन में उठा। उन्होंने वहीं पर एक जानवर को मारकर उसके खून में जोसेफ़ के उस कोट को भिगोया और वह खून से लतपत कोट अपने पिता को दिखाकर – ‘यह जोसेफ़ का कोट इस अवस्था में हमें जंगल में मिला’ ऐसा उन्होंने जेकब से कहा।

कारागृह
जोसेफ़ का कोट जेकब के पास लाया गया

कोट की वह खूनभरी अवस्था देखकर, ‘जोसेफ़ को यक़ीनन ही किसी ख़ूँख्वार जानवर ने फ़ाड़कर खाया होगा’ इस कल्पना से जेकब बहुत ही शोकाकुल हुआ। जोसेफ़ की मृत्यु के खयाल से उसका सारा भावविश्‍व ही ध्वस्त हो चुका था। ज्यूधर्मियों की मान्यता के अनुसार यह तक़रीबन इसापूर्व १५४४ की घटना मानी जाती है।

इस प्रकार इश्मेली व्यापारियों के गिरोह को बतौर ‘गुलाम’ बेचा गया जोसेफ़ उन व्यापारियों के साथ इजिप्त जा पहुँचा। वहाँ पर उन व्यापारियों ने जोसेफ़ को, वहाँ के राजा फ़ारोह के राजमहल के प्रमुख सुरक्षाअधिकारी (पोटीफ़र) को ‘गुलाम’ के रूप में बेच दिया।

पोटीफ़र जोसेफ़ को घर ले आया और उसे घर में नौकर के रूप में नियुक्त किया। लेकिन उसके विनयशील, विचारी स्वभाव एवं बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर पोटीफ़र ने जल्द ही उसकी अपने गृहव्यवस्थापक के रूप में बढ़ती (तरक्की) की। ऐसे ही कुछ साल बीत गये।

लेकिन पोटीफ़र की बिवी जोसेफ़ पर बहुत ही फ़िदा हो चुकी थी और उसे अपनी ओर आकर्षित करने की वह हमेशा कोशिश करती रहती थी। लेकिन जोसेफ़ उसे नज़रअन्दाज़ कर देता था। एक दिन घर में अन्य कोई भी न होने का मौका मिलते ही उसने जोसेफ़ के साथ ज़्यादती करने की कोशिश की। लेकिन जोसेफ़ को यह बात मंज़ूर होना संभव ही नहीं था। इस कारण उसे दुतकारकर जोसेफ़ वहाँ से चला गया।

इस अपमान से ग़ुस्सा होने के कारण और जोसेफ़ कहीं किसी के पास इस घटना की वाच्यता न कर जायें, इस डर के कारण उसने ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’ इस न्याय से, ‘जोसेफ़ ने ही मेरे साथ ज़्यादती किया’ ऐसी झूठी शिक़ायत की। लेकिन जोसेफ़ के स्वभाव को भली-भाँति जाननेवाले पोटीफ़र को दरअसल, जोसेफ़ ऐसा कुछ करेगा इस बात पर यक़ीन ही नहीं हुआ। अपनी बीवी झूठ बोल रही है ऐसा शक उसे हो गया। लेकिन सबके सामने रोना-चिल्लाना करनेवाली बीवी की बात रखने के सिवा उसके पास और कोई चारा ही नहीं था। इसलिए आख़िरकार मजबूरन् पोटीफ़र ने जोसेफ़ को कारागृह भेज दिया। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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