२३. ज्यूधर्मियों का कॅनान प्रान्त के स्थापितों के साथ संघर्ष; आख़िर विजय

जॉर्डन नदी पार करने के बाद ज्यूधर्मियों ने अपना पड़ाव गिल्गाल में जमाया था। इस स्थान पर जोशुआ ने बनवाये, बारह पत्थरों के उस स्मारक के साथ ही उसने, पिछले चालीस साल में ज्यूधर्मीय जो रेगिस्तान में मारे-मारे फिरते रहे उस दौरान ‘ईश्‍वर हमारे साथ ही है’ यह एहसास ज्यूधर्मियों को दिलानेवाले टॅबरनॅकल का भी गिल्गाल में अस्थायी रूप में प्रतिष्ठापन किया था, जो अगले सात साल – कॅनान प्रान्त पूरी तरह ज्यूधर्मियों के कब्ज़े में आने तक – वहीं पर रहनेवाला था।

कॅनान में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले, जोशुआ द्वारा भेजे गये गुप्तचर जहाँ ठहरे थे उस जेरिको नगरी पर ही आक्रमण करने का जोशुआ ने तय किया। इस जेरिको नगरी के चहुँ ओर मज़बूत चहारदीवारी थी। इस नगरी को ज्यूधर्मियों ने घेर लिया। यह मज़बूत चहारदीवारी को तोड़कर भीतर कैसे जायें, इस बारे में विचार करते हुए ईश्‍वर ने ही मार्ग बताया। ईश्‍वर के बतायेनुसार, ‘आर्क ऑफ कॉव्हेनन्ट’ को लेकर धर्मोपदेशकों ने रणसिंघों की कर्कश ध्वनि के साथ अगले सात दिन, आगे और पीछे होनेवाली ज्यूधर्मियों की सेना के संरक्षण में, हररोज़ एक बार ऐसी नगरी की परिक्रमाएँ कीं। फिर पुनः सातवें दिन, एक ही दिन में सात ऐसी ही परिक्रमाएँ कीं। उसके बाद धर्मोपदेशकों द्वारा आख़िरी एक बार रणसिंघों की प्रदीर्घ ध्वनि की जाते ही, सेना ने ईश्‍वर द्वारा बतायेनुसार ज़ोरों से गर्जन किया….और क्या आश्‍चर्य! सात दिन ईश्‍वर द्वारा बतायी गयी यह विधि करने के बाद यह मज़बूत चहारदीवारी अपने आप ही ढ़हकर नीचे गिर गयी और ज्यूधर्मियों के नगरी में प्रवेश करने के आड़े आनेवाला रोड़ा हट गया, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।
टेन कमांडमेंट्स
उसके बाद ज्यूधर्मियों ने नगरी में घुसकर, राजा एवं उसकी सेना के साथ ही, ज्यूधर्मियों का विरोध करनेवाले हर एक को मार दिया। लेकिन जोशुआ के उन दो गुप्तचरों ने पहले ही अभिवचन दियेनुसार, रहाब के घर को ज्यूधर्मियों ने हाथ तक नहीं लगाया। कॅनान प्रान्त में प्रवेश करने के बाद ज्यूधर्मियों को मिली यह पहली सफलता थी।

‘इस नगरी पर कब्ज़ा करते समय जो कुछ भी क़ीमती वस्तुएँ हाथ लगेंगी, उनमें से एक भी वस्तु कोई ज्यूधर्मीय व्यक्तिगत रूप में अपने पास नहीं रखेगा, बल्कि मध्यवर्ती ख़ज़ाने में जमा करेगा’ ऐसा जोशुआ ने सबको जताकर कहा था। लेकिन उनमें से ‘एकॅन’ नामक एक ज्यूधर्मीय के मन में उनमें से कुछ चीज़ों का लालच उत्पन्न हुआ और उसने कुछ सोने-चांदी की वस्तुएँ एवं मूल्यवान् वस्त्र चुराकर छिपा दिये। इस बात का पता उस समय तो किसी को नहीं चला, लेकिन ईश्‍वर को यह अप्रामाणिकता रास नहीं आयी और उसका फल ज्यूधर्मियों को जल्द ही भुगतना पड़ा, ऐसा यह कथा बताती है।

जेरिको के बाद वहीं पास की एक ‘अई’ नामक नगरी पर ज्यूधर्मियों की नज़र पड़ी। इस नगरी की चारों ओर भी मज़बूत चहारदीवारी थी। लेकिन इस नगरी को जीतना जेरिको जितना मुश्किल नहीं है, ऐसा गुप्तचरों द्वारा बताये जाने के कारण, सारी सेना भेजने के बजाय जोशुआ ने वहाँ अपने केवल तीन हज़ार सैनिक भेजे। लेकिन ये सैनिक अई नगरी की सेना द्वारा अच्छीख़ासी मार खाकर लौट आये। ३६ ज्यूधर्मीय सैनिक मारे भी गये।

‘यह तुममें से एक की अप्रामाणिकता की तुम्हें सज़ा है’, ऐसा ईश्‍वर ने जोशुआ से कहा। उसपर गुस्सा होकर जोशुआ ने इस सारे वाक़ये की जड़ तक जाने का तय किया। वह ईश्‍वर की सहायता से, चिठ्ठियों का उपयोग करते करते एकॅन तक पहुँच ही गया। एकॅन द्वारा गुनाह क़बूल किये जाते ही, उसने चुरायीं हुईं सारी वस्तुओं को ज़ब्त कर उसे मार दिया गया।

उसके बाद अधिक सेना साथ लेकर अधिक आत्मविश्‍वास के साथ जोशुआ ने पुनः अई नगरी पर धावा बोल दिया। इस समय व्यूहरचना बदलकर, उसने नगरी की दोनों ओर अपनी सेना तैयार रखी। एक ओर की सेना ने चुनौती देने के बाद अई के राजा की सेना ने उनपर आक्रमण किया। थोड़ी देर लड़ने के बाद इस ओर की सेना ने, ‘वह पीछे हट रही है’ ऐसा दिखाते हुए, पीछे पीछे जाना शुरू किया। अई की सेना अधिक जोश में आकर उनके पीछे आने लगी। अब वे अपनी नगरी से बहुत दूर आ चुके थे। एक पूर्वनियोजित घड़ी पर, पहले तय कियेनुसार संकेत भेजते ही, अई नगरी के पीछे की ओर तैयार रहनेवाली जोशुआ की सेना अब अई की सेना पर पीछे से टूट पड़ी और अई की सेना को राजा के साथ मार दिया। अब एक और महत्त्वपूर्ण प्रदेश ज्यूधर्मियों के कब्ज़े में आया था।


इसी दौरान, जोशुआ को कुछ लोग आकर मिले। वे बहुत ही थकेमाँदे लग रहे थे और उनके कपड़े भी फटे हुए थे। ‘हम बहुत दूर से आये हैं और इस्रायल के साथ शांतिसमझौता एवं मित्रता करने की हमारी इच्छा है’ ऐसा उन्होंने जोशुआ को बताया। उन्हें अभयदान देते हुए जोशुआ ने उनके साथ समझौता किया। लेकिन उनके जाने के बाद जोशुआ को पता चला कि वे कहीं दूर से नहीं, बल्कि ज्यूधर्मियों के आक्रमण के डर से अई के पास ही के जिबिऑन प्रान्त से आये हुए थे। फिर भी अपना वचन निभाने का जोशुआ ने निश्‍चय किया।

जेरिको तथा अई की पराजय हुई है और जिबिऑन प्रान्त ने ज्यूधर्मियों के साथ मित्रताक़रार किया है, इस बात का पता चल जाते ही कॅनान प्रान्त के अन्य कुछ राजाओं ने ग़ुस्सा होकर, जेरुसलेम के राजा के नेतृत्व में जिबिऑन पर धावा बोल दिया। जिबिऑन ने मित्रताक़रार के प्रावधानों के अनुसार जोशुआ से सहायता की माँग की। वचन दियेनुसार जोशुआ अपनी चुनिन्दा सेना साथ लेकर जिबिऑन की सहायता के लिए दौड़ा। एक पूरी रात प्रवास कर भोर के समय जिबिऑन पहुँचते ही, असावधान शत्रुसेना पर जोशुआ ने क़रारा आक्रमण किया। दिनभर घमासान युद्ध जारी था। उस दिन शत्रुसेना पर अचानक ओले का वर्षाव भी हुआ, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है। इसका अर्थ, ईश्‍वर ज्यूधर्मियों को सहायता कर ही रहा था, लेकिन उसीके साथ एक और चमत्कार होने की बात यह कथा बताती है। वह दिन था शुक्रवार का और हालाँकि धीरे धीरे ज्यूधर्मियों का पल्ड़ा भारी हो रहा था, लेकिन युद्ध के जल्दी समाप्त होने का कोई भी लक्षण दिखायी नहीं दे रहा था। कहीं युद्ध सब्बाथकाल शुरू होने तक (शुक्रवार सूर्यास्त तक) तो नहीं चलेगा, ऐसा डर जोशुआ को लगने लगा और उसने लड़ते लड़ते ही ईश्‍वर से प्रार्थना करना शुरू किया। उसके बाद चमत्कार हुआ….उसके बाद पूरे २४ घण्टे सूरज ढला ही नहीं; वह ढला, ठेंठ ज्यूधर्मियों की संपूर्ण विजय होने के बाद ही, अर्थात् शत्रु पूरी तरह परास्त होने के बाद ही….और ज्यूधर्मीय सूर्यास्त के समय से शान्ति से सब्बाथ का पालन कर सके, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।
सिनाई पर्वतशिखर

इस लड़ाई में जोशुआ की सेना ने लगभग ३१ कॅनानप्रान्तीय राजाओं को परास्त कर दिया था और उनके राज्य अब ज्यूधर्मियों के कब्ज़े में आये थे।

ऐसे अगले सात साल, ज्यूधर्मियों पर आक्रमण करनेवाले शत्रुराज्यों के साथ ज्यूधर्मियों के युद्ध चलते रहे, ज्यूधर्मीय उन्हें जीतते गये और ‘प्रॉमिस्ड लँड’ कॅनान का अधिक से अधिक प्रदेश ज्यूधर्मियों के अधिपत्य में आता गया।

सात साल बाद कॅनान प्रान्त का बहुत सारा भाग ज्यूधर्मियों के अधिकार में आया था। लेकिन अभी भी काफ़ी बड़ा हिस्सा जीतना बाक़ी रह गया था। जीते हुए भाग का सुचारु रूप में व्यवस्थापन करने की दृष्टि से जोशुआ ने उस प्रदेश को इस्रायल की मूल बारह ज्ञातियों में बाँट दिया। रुबेन एवं गॅड ज्ञातियों को, उनके पास पालतू जानवरों को सबसे बड़े झुँड़ होने के कारण, बड़े बड़े हरेभरे घास मैदान होनेवाले अ‍ॅमोरी तथा बशन ये सर्वप्रथम जीते हुए प्रान्त पहले ही मोझेस ने बहाल किये थे और इन ज्ञातियों के प्रमुखों ने मोझेस को दिये हुए – ‘कॅनान प्रान्त कब्ज़े में आने तक हम यहाँ पर कदम तक नहीं रखेंगे और अन्य ज्यूबान्धवों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे’ इस वचन को इन ज्ञातियों के लड़ाकू पुरुषों ने प्रामाणिकता से निभाया था। इस कारण जोशुआ भी उनसे खुश था। उसने खुशी से इन ज्ञातियों के ज्यूधर्मियों को उन प्रान्तों में जाने की अनुमति दी।

लेकिन प्रान्त का यह बँटवारा केवल सहूलियत के लिए है, वास्तव में पूरे कॅनान प्रान्त के ज्यूधर्मीय एक ही हैं, ऐसा जोशुआ ने बताया और इन सभी ज्ञातियों की – एक-दूसरे के साथ और उन ज्ञातियों की केंद्रीय नेतृत्व के साथ संपर्कव्यवस्था सुव्यवस्थित रूप में बनायी।

इस प्रकार, ईश्‍वर ने लगभग छःसौ-सातसौ साल पहले ज्यूधर्मियों के आद्यपूर्वज अब्राहम को और बाद में उसके वंशजों को दृष्टान्तों में से दिये हुए अभिवचन को सच किया था और ज्यूधर्मीय कई सदियों की तकली़फें सहने के बाद ईश्‍वरप्रदत्त ‘प्रॉमिस्ड लँड’ में अर्थात् कॅनान प्रान्त में आकर सुस्थिर हो गये थे।

यह लगभग ईसापूर्व १३वीं सदी की बात मानी जाती है।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

Leave a Reply

Your email address will not be published.