२२. ज्यूधर्मियों का कॅनान प्रान्त में प्रवेश

ज्यूधर्मियों को दुखसागर में छोड़कर मोझेस ने इस दुनिया से बिदा ली थी। अब मोझेस का स्थान, उसका विश्‍वसनीय सहकर्मी जोशुआ ने लिया था। ज्यूधर्मियों को ‘प्रॉमिस्ड लँड’ में ले जाने की ज़िम्मेदारी ८२ वर्षीय पराक्रमी जोशुआ के कन्धे पर आ पड़ी थी। ज्यूधर्मियों के इतने लाखो लोगों के विशाल समुदाय को सँभालते हुए एक प्रान्त से दूर के प्रान्त में ले जाने जैसा पर्वतप्राय कार्य करने के लिए, उनका नेता भी उतना ही महाकर्तबगार, पराक्रमी एवं संयमी होना चाहिए, जिसमें केवल सेनापति के ही नहीं, बल्कि दयालु मार्गदर्शक के भी गुण भरे होने चाहिए और जोशुआ बिलकुल वैसा ही था।

जोसेफ के दो पुत्रों में से एफ्रैम के वंशज होनेवाले जोशुआ का, ईश्‍वर पर का भरोसा मोझेस जितना ही था। ईश्‍वर के शब्दों के बाहर उसके लिए दुनिया नहीं थी। ईश्‍वर का संपूर्ण क़ानून ‘टोराह’ और ईश्‍वर द्वारा समय समय पर उच्चारित शब्द इनका यदि तहे दिल से पालन किया जाये, तो फिर सफलता हमारी ही है, यह जोशुआ अच्छी तरह जानता था। उसपर यह ज़िम्मेदारी सौंपते समय ईश्‍वर ने उसे दिया हुआ – ‘तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी में तुम्हारे सामने कोई भी दुश्मन टिक नहीं सकेगा’ यह ‘हमेशा अजेय ही रहने का’ अभिवचन, ईश्‍वर ने उसे उच्चारित किया होने के कारण झूठ नहीं हो सकता, यह उसका दृढ़ विश्‍वास था। इसीलिए उसने, सफलता मिलने का भरोसा दिल में रखते हुए ही, अगली योजना ध्यानपूर्वक बनाने की शुरुआत की।

परिपाटि के अनुसार महीने भर तक मोझेस की मृत्यु का शोक मनाने के बाद ज्यूधर्मीय ज़रासे सँवर गये थे। अब अगले प्रवास की सिद्धता हो चुकी थी।

जोशुआ ने, कॅनान में उन्हें कैसा प्रतिसाद मिलेगा इसका मुआयना करने के लिए कॅलेब एवं पिन्हास इन अपने दो अत्यंत विश्‍वसनीय सहकर्मियों को गुप्तचर के रूप में वहाँ पर भेजा। पूरा दिन आम लोगों में बिताने के बाद उनकी समझ में आ गया था कि ज्यूधर्मीय कॅनान प्रान्त पर आक्रमण करनेवाले हैं, यह ख़बर वहाँ पर सर्वत्र फैल गयी होकर, उससे आम लोगों में घबराहट का माहौल है।

शाम को कॅनान प्रदेश में होनेवाली जेरिको नगरी स्थित एक सराय में वे ठहरे। ‘रहाब’ नाम की एक स्त्री यह सराय चलाती थी। लेकिन इस सराय में दो ज्यूधर्मीय आकर ठहरे होने की ख़बर वहाँ के राजा तक पहुँची और उसने अपने सैनिकों को उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए भेजा। लेकिन उस सराय की मालकीन रहाब यह ज्यूधर्मियों को अनुकूल थी। उसने इन दोनों को सुरक्षित जगह में छिपाकर, उन्हें पकड़ने आये सैनिकों को गुमराह करके उन्हें दूर तीसरी ही दिशा में भेज दिया। सैनिकों को भगा देने के बाद उसने फटाफट इन दोनों को बाहर जाने का सुरक्षित मार्ग दिखाया। उन दोनों ने कृतज्ञतापूर्वक उसका शुक्रिया अदा किया और ‘हम इन एहसानों को कभी भी नहीं भूलेंगे’ ऐसा वचन उसे दिया। उस समय उसने उन्हें बताया कि ‘जब मैं दस साल की थी, तब ज्यूधर्मीय इजिप्त से बाहर निकले थे। उस समय घटित प्रचंड चमत्कारों की कथाएँ मैंने सुनी थीं। उसके बाद मैं किसी न किसी तरी़के से, पिछले चालीस सालों से रेगिस्तान में भटक रहे ज्यूधर्मियों की ख़बर रख रही हूँ। फिलहाल यहाँ पर तुम्हारे आक्रमण की चर्चा से लोग बहुत ही घबराये हुए हैं।’ उसीके साथ, ज्यूधर्मियों के ईश्‍वर के प्रति मेरे दिल में सम्मान की भावना है, ऐसा भी उसने उन्हें बताया। उसपर भावुक होकर उन दोनों ने उसे – ‘तुम तुम्हारी खिड़की को एक विशिष्ट रंग की रस्सी, बतौर संकेतचिह्न बाँधे रखना। ताकि ज्यूधर्मीय जब यहाँ पर आक्रमण करेंगे, तब उस संकेतचिह्न को देखकर तुम्हें और इस घर में वास्तव्य कर रहे तुम्हारे परिवार को परेशान नहीं करेंगे’ ऐसा बताया और उससे बिदा ली। उसके बाद उन दोनों ने आकर जोशुआ को पूरा विवरण दिया। उसीके साथ रहाब के बारे में बताकर, अधिकांश कॅनानप्रान्तीय ज्यूधर्मियों के आने की कल्पना से काँप रहे हैं, यह भी बताया।

उसके बाद जोशुआ ने कॅनान प्रान्त स्थित सभी इलाक़ों के राजाओं को, टोलीप्रमुखों को एवं आम जनता को – ‘हम ज्यूधर्मीय, ईश्‍वर ने हमें अभिवचन देकर बहाल की हुई हमारी भूमि में निवास करने आ रहे हैं। अतः हमसे सहयोग करें’ ऐसा निवेदन भेजा। उसमें उन सबको तीन विकल्प दिये गये थे – या तो तुम यह प्रान्त छोड़ चले जाना, या हमारी

शरण में आकर हमसे मित्रतापूर्वक संबंध रखना, या फिर हमारे साथ लड़ने के लिए तैयार रहना।

गत लगभग ४० साल से शुरू रहनेवाले ज्यूधर्मियों के ‘एक्झोडस्’ के बारे में यहाँ के लोगों ने सुना ही था और ‘एक्झोडस्’ के दौरान ईश्‍वर ने कई बार चमत्कार करते हुए, ज्यूधर्मियों की दुश्मनों से तथा अन्य आपत्तियों से रक्षा की होने की ख़बरें कॅनान प्रान्त में भी सर्वत्र फैलीं ही थीं। अतः ज्यूधर्मियों के वहाँ आने से, वहाँ के अधिकांश लोगों के दिलों में ख़ौंफ़ पैदा हुआ था। इस कारण उनमें से अधिकांश लोगों ने, कुछ राजाओं को छोड़कर, पहले या दूसरे विकल्प का स्वीकार करना पसन्द किया।

अब कॅनान प्रान्त में कदम रखने की घड़ी नज़दीक आयी थी। लेकिन बीच रास्ते में एक अड़चन थी – जॉर्डन नदी की। अब ज्यूधर्मियों के कॅनान प्रान्त में प्रवेश करने के आड़े केवल यह जॉर्डन नदी ही आ रही थी और वह भी पूरे ज़ोरों से बह रही थी।

लेकिन ईश्‍वर ने जोशुआ को, ‘मैं ज्यूधर्मियों को जॉर्डन नदी पार लेकर ही जाऊँगा’ ऐसा अभिवचन दिया; इस कारण ईश्‍वर पर अपरिमित भरोसा होनेवाले जोशुआ ने इस जॉर्डन नदी को पार करने का फैसला किया। सर्वप्रथम सर्वोच्च धर्मोपदेशक के साथ ‘आर्क ऑफ कॉव्हेनन्ट’ लेकर अन्य धर्मोपदेशक, फिर स्वयं जोशुआ एवं उसके अन्य सरदार-नेता और उनके बाद आम ज्यूधर्मीय ऐसी रचना जोशुआ ने ईश्‍वर के मार्गदर्शन के अनुसार तय की थी।

उसके अनुसार जोशुआ ने ईश्‍वर का स्मरण कर कूच करना आरंभ किया….

….और यहाँ पर भी, ४० साल पहले इजिप्त में से बाहर निकलने पर ‘रेड सी’ पार करते हुए ज्यूधर्मियों के लिए जिस तरह चमत्कार हुआ था, ठीक वैसा ही चमत्कार हुआ। जैसे ही धर्मोपदेशकों के कदम उस जॉर्डन नदी में पड़े, उसी क्षण ‘रेड सी’ की तरह ही जॉर्डन नदी भी विभाजित हुई और ज्यूधर्मियों को नदी पार करने के लिए रास्ता तैयार हुआ, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है। ईश्‍वर की इस लीला का ज्यूधर्मियों को एवं उनके वंशजों को भी हमेशा स्मरण रहें, इसलिए जोशुआ ने ईश्‍वर की सूचना के अनुसार, इस्रायल की बारा मूल ज्ञातियों के प्रमुखों को उस नदी तल में उनके लिए बने मार्ग पर का एक एक पत्थर अपने साथ लेने के लिए कहा।

ईश्‍वर के बतायेनुसार, इस समूह के अग्रभाग में रहनेवाले, ‘आर्क ऑफ कॉव्हेनन्ट’ उठाये हुए धर्मोपदेशक नदी के ठीक बीच में पहुँचते ही वहीं पर रुके थे; और अन्य सभी ज्यूधर्मियों के जॉर्डन नदी पार हो जाने के बाद, उन सबके बाद वे नदी पार कर गये। जिस पल आख़िरी धर्मोपदेशक के कदम उस पार के किनारे पर पड़े, उसी पल, विभाजित हुई नदी पुनः फिर से ज़ोरों से बहने लगी, ऐसा यह कथा बताती है।
उनका पहला पड़ाव ‘गिल्गाल’ इस स्थान पर पड़ा, जहाँ पर ईश्‍वर की आज्ञा के अनुसार जोशुआ ने, नदी में से इकट्ठा किये उन बारह पत्थरों को रखकर एक स्मारक का निर्माण किया।

इसी दौरान, इस्रायली लोग हर साल मनानेवाले ‘पासओव्हर’ उत्सव की शुरुआत हुई थी। ज्यूधर्मियों ने परिपाटि के अनुसार कच्चा पाव (ब्रेड़) और कॅनान प्रान्त में उगे अनाज से भोजन किया। उस दिन से, गत चालीस सालों से उन्हें हररोज़ अखंडित रूप में प्राप्त हो रहा दैवी खाना – ‘मन्ना’ उन्हें मिलना बन्द हो गया….अब उन्हें अपनी हक़ की भूमि में उगा खाना मिलनेवाला होने के कारण ‘मन्ना’ की ज़रूरत नहीं रही थी!

इस प्रकार ज्यूधर्मियों के कदम, उनकी हक़ की भूमि में – कॅनान प्रान्त में पड़े थे। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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