०१. इस्रायल : एक प्रवास – प्रदीर्घ, लेकिन सफल!

‘‘इस्रायल यह ऐसी भूमि है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की कमी ही है। लेकिन इसलिए, हमारे पास जो नहीं है उसका दुख न करते हुए, हम इस्रायली लोगों ने, हमारे पास जो था यानी हमारे राष्ट्रभक्तिप्रेरित मन और लगन – उन्हीं को राष्ट्रकारण के लिए उपयोग में लाने का निश्‍चय किया! हमारे पास होनेवाले इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए, दायरे से हटकर सोच अपनाते हुए, हमने सर्जनशीलतापूर्वक हमारी भूमि के बंजर रेगिस्तान में नंदनवन का निर्माण किया, विज्ञान-तंत्रज्ञान क्षेत्रों में नये नये मुक़ाम हासिल किये।’’

– शिमॉन पेरेस

अपने पूरे सत्तर वर्ष के प्रदीर्घ राजनीतिक कार्यकाल में कई बार इस्रायल के अस्थायी प्रधानमंत्री रह चुके, साथ ही इस्रायल के प्रधानमंत्री एवं राष्ट्राध्यक्ष ये दोनों सर्वोच्च पद विभूषित किये हुए इस्रायली नेता शिमॉन पेरेस ने इस्रायल के बारे में कहे उपरोक्त आशय के ये शब्द यानी इस्रायल का यथोचित वर्णन है, ऐसा कहें तो अनुचित नहीं होगा।

केवल २० हज़ार सातसौ वर्ग किलोमीटर के आसपास क्षेत्रफल रहनेवाले इस छोटे-से देश ने, निरंतर प्रतिकूल हालातों का ही सामना करते हुए एक दुर्दम्य लगन के साथ आज प्रगति एवं विकास का जो मुक़ाम हासिल किया है, वह पेरेस के इस वक्तव्य का प्रमाण है।

आज अमरीका जैसी ताकतवर महासत्ता को भी इस्रायल से मित्रता रखने की ज़रूरत महसूस हो रही है, यह बात इस्रायल का आज का जागतिक स्थान अधोरेखित कर रही है।

वैसे देखा जाये, तो इस्रायल यह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भले ही लगभग ७० साल पहले अस्तित्व में आया हों; मग़र फिर भी इस्रायली लोगों का, अर्थात् ज्यूधर्मियों का लगभग सर्वमान्य होनेवाला अभिलिखित इतिहास यह पूरे ४ हज़ार वर्षों का है, जिनमें से पहले दो हज़ार वर्षों में घटित लक्षणीय घटनाओं का ज़िक्र तो, ईसाईधर्मियों का सर्वोच्च पवित्र धर्मग्रंथ ‘बायबल’ में भी पाया जाता है।

‘एक ही ईश्‍वर, एक धर्म, एक भूमि’ इस तत्त्व पर ज्यू धर्म अस्तित्व में आया। ‘लगभग ४ हज़ार वर्ष पूर्व हमारा आद्य पूर्वज अब्राहम (मूल नाम ‘अ‍ॅबराम’) को ईश्‍वरी दृष्टांत हुआ; जिसके द्वारा ईश्‍वर ने उसे – ‘ईश्‍वर मूलतः एक ही है’ इस सिद्धांत पर विश्‍वास रखनेवालों को एकत्रित करके उनका धर्म स्थापित करने का आदेश दिया और उन्हें रहने के लिए ‘पॅलेस्टाईन’ यह भूमि प्रदान की’ इस मूलभूत संकल्पना को केंद्रस्थान में रखकर ज्यू धर्म की संरचना हुई है और इस एक ही संकल्पना पर का दृढ़विश्‍वास गत ४ हज़ार वर्ष ज्यू धर्मियों की एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक प्रवास करता रहा और यह धर्म बढ़ता गया। लेकिन इस संकल्पना का ‘पॅलेस्टाईन’ यानी केवल विद्यमान रहनेवाला पॅलेस्टाईन न होकर, उस ज़माने में हाल का पूरा इस्रायल और आसपास के प्रदेश को ही ‘पॅलेस्टाईन’ बुलाते थे।

लेकिन इस इतने प्रदीर्घ समय में मुस्लिम, अरब, रोमन ऐसे कई आक्रमकों ने कई बार तत्कालीन पॅलेस्टाईन भूभाग पर आक्रमण कर ज्यूधर्मियों को वहाँ से निकाल बाहर कर दिया। वहाँ से विस्थापित हुआ ज्यू समाज फिर दुनियाभर में बिखेर गया। लेकिन शुरू से ही अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होने के कारण, वास्तविकता का भान सदैव रहनेवाले और उसके अनुसार हमेशा व्यावहारिक दृष्टिकोण रखनेवाले इस ज्यू समाज ने, वे जहाँ कहीं भी गये, वहाँ के समाजजीवन में अपनी मेहनत और लगन से पैर जमाना शुरू किया, वहाँ पर भी प्रगति करनी शुरू की।

जागतिक मंच पर कई क्षेत्रों में सफलता की बुलंदियाँ हासिल किये ज्यूवंशीय हमें देखने को मिलते हैं। महान वैज्ञानिक आल्बर्ट आईनस्टाईन, कार्ल सागान, नील्स बोहर; विख्यात अमरिकी राजनीतिक हेन्री किसिंजर; आंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के दिलों पर राज करनेवाले अभिनेता हॅरिसन फोर्ड, पॉल न्यूमन, एलिझाबेथ टेलर, बार्बारा स्ट्रीसन्ड, बेन किंग्जले; निर्माता-निर्देशक स्टीवन स्पिलबर्ग, मेल ब्रुक्स, वुडी अ‍ॅलन; आंतर्राष्ट्रीय ख्याति के संगीतकार-व्हायोलिनवादक यहुदी मेनहीन; फॅशन डिझायनर्स केल्विन क्लेन, लेवी स्ट्रॉस; दुनिया की चन्द गिनीचुनी महिला प्रधानमंत्रियों में से एक गोल्डा मायर; …. ऐसे एक-दो नहीं, बल्कि अनगिनत नाम हमारे सामने आते हैं। इन लोगों के मातापिता के स्थलांतरण के अनुसार इन व्यक्तित्वों का जन्म भले ही किसी भी देश में हुआ हो, लेकिन ‘मनस्वी स्वभाव’ इस ज्यूवंशियों के, आसानी से नज़र में आनेवाले स्वभावविशेष के कारण ये दिग्गज अपने अपने क्षेत्र में सर्वोच्च मुक़ाम हासिल करते गये।

लेकिन पॅलेस्टाईन में से विस्थापित किये गये हर एक ज्यूवंशीय के मन में सदियों से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही भावना निरंतर धधकती रही कि ‘हमें ईश्‍वर ने प्रदान की हुई हमारे हक़ की भूमि हम पुनः हासिल करके ही रहेंगे’; और फिर उनका हर एक कदम इसी दिशा में बढ़ता रहा, हर कृति इसी दिशा में होती रही। उनकी नाल इस्रायल की मूल भूमि के साथ जुड़ी ही रही।

इस प्रकार, पॅलेस्टाईन से ज़बरदस्ती से हदपार किये गये ज्यूधर्मीय जिस प्रकार दुनियाभर में बिखेरे गये, वैसे वे भारत में भी आये। भारत में लगभग दो हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से ज्यूधर्मियों का बसेरा है, ऐसा कहा जाता है। भारत में ज्यूधर्मीय कई पीढ़ियों से रह रहे होने की बात, हम कई विख्यात विदेशी व्यापारी यात्रियों के वर्णनों में पढ़ते हैं। इसवी १३वीं सदी में भारत तथा अन्य एशियाई देशों की यात्रा पर आये विख्यात इटालियन व्यापारी मार्को पोलो (जिसके प्रवासवर्णन के द्वारा युरोपीय जनता को पहली ही बार भारत के बारे में, भारत के वैभव के बारे में पता चला और जिसके प्रवासवर्णन ने आगे चलकर ख्रिस्तोफर कोलंबस को भारत का स़फर करने की प्रेरणा दी, ऐसा कहा जाता है) के प्रवासवर्णन में, भारत के पश्‍चिमी तटवर्ती प्रदेश में अनेक ज्यू बस्तियाँ कई पीढ़ियों से बसी होने का और उनमें से कई ज्यू परिवार मेहनत से व्यापार आदि करके अच्छेखासे धनवान् हुए होने का ज़िक्र है।

अर्थात् भारत और इस्रायल के अनौपचारिक संबंध इतने पुराने ज़माने से चलते आये हैं। दोनों संस्कृतियाँ बहुत ही पुरातनकाल से अस्तित्व में हैं और दोनों संस्कृतियों में प्राचीन काल से संबंध होने के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं। भारत एवं इस्रायल में कई समानताएँ भी हैं। दोनों देशों ने परतंत्रता का अपार दुख सहा है। आतंकवाद की चुनौति का तो ये दोनों राष्ट्र शुरू से ही मुक़ाबला करते आये हैं। लेकिन फिर भी दोनों देशों ने जी-जान से जनतंत्र का रास्ता दृढ़तापूर्वक अपनाया है। दरअसल, खाड़ीप्रदेश में पूर्णतः जनतांत्रिक शासनव्यवस्था को अपनाया हुआ इस्रायल यह शायद एकमात्र देश होगा।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने सन २०१७ के जुलाई महीने में इस्रायल का दौरा किया। इस्रायल के साथ भारत के राजनैतिक संबंध स्थापित होने के २५ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में भारतीय प्रधानमंत्री का यह इस्रायल दौरा आयोजित किया गया था।

दरअसल भारत और आधुनिक इस्रायल ये लगभग केवल ९ महीनों के फर्क़ से आज़ादी प्राप्त किये राष्ट्र हैं। यानी दोनों देशों को स्वतंत्रता प्राप्त किये लगभग ७० साल हो चुके हैं। ऐसा होने के बावजूद भी – दोनों देशों के इस ७० वर्षों के स्वतंत्रता के दौर में भी, इस्रायल का दौरा करनेवाले मोदी ये पहले ही भारतीय प्रधानमंत्री थे। ऐसा क्यों हुआ होगा, इसके कारण ढूँढ़ने की कोशिश हम आगे चलकर यथोचित जगह करेंगे ही।

एक ही समय आज़ाद हुए भारत और इस्रायल इन दो देशों ने आज एकत्रित होकर उनके सामने होनेवालीं चुनौतियों का मिलकर सामना करना, यह अब वक़्त का तकाज़ा बन गया है।

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

इस लेखमाला की लेखिका शुलमिथ पेणकर-निगरेकर ये भारत में जन्मीं ज्यूवंशीय हैं। गत ४२ वर्षों से उनका निवास इस्रायल में होकर, इस्रायल की एक अग्रसर कंपनी में वे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं।

One Response to "०१. इस्रायल : एक प्रवास – प्रदीर्घ, लेकिन सफल!"

  1. Nikhil   September 30, 2017 at 5:42 pm

    Definitely nteresting series. Will be worth reading.

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