३७ . डेव्हिड इस्रायल का नया राजा; डेव्हिड की राजधानी जेरुसलेम

गाथ प्रान्त की झिकलॅग नगरी में पनाह प्राप्त करने के बाद, डेव्हिड ने वहॉं से आमलेकी जैसे, इस्रायल के अन्य शत्रुओं से लड़ाइयॉं शुरू कीं| थोड़े ही समय में उसने गाथ के फिलिस्तिनी राजा एकिथ का भरोसा संपादन किया| लेकिन कुछ ही समय में फिलिस्तिनियों के सभी प्रान्तों के राजाओं ने एक होकर पुनः इस्रायलियों पर हमला करने के उद्देश्य से आक्रमण किया|

वहॉं पर मत्सर जैसे दुर्गुणों के कारण आत्मविश्‍वास और सारासारबुद्धि खो चुका सौल फिलिस्तिनियों के इस प्रचंड आक्रमण से अधिक ही घबरा गया था| उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था|

डेव्हिड

उसने ईश्‍वर से कौल (निर्णयसंकेत) मॉंगा| लेकिन अब ईश्‍वर से कुछ भी जवाब नहीं मिल रहा था| तब घबराकर उसने एक अलग ही मार्ग चुनाजादू टोना की सहायता लेने का!

दरअसल ज्यूधर्मियों केटोराहइस क़ानून के अनुसार, धर्म से ही जादू टोना पर पाबन्दी थी| लेकिन सौल सारासारविचारशक्ति खो बैठा था| एक तत्कालीन कुविख्यात ड़ायन की सहायता लेकर सौल ने उसे सॅम्युएल की आत्मा को बुलाने के लिए कहा| लेकिन सॅम्युएल की आत्मा ने आकर, इस युद्ध में इस्रायलियों का पराजय होगा और सौल एवं उसके बेटों की मृत्यु होगी, ऐसी स्पष्ट भविष्यवाणी का उच्चारण किया ऐसा यह कथा बताती है|

युद्धभूमि पर भी वैसे ही घटित हुआ| उस निर्णायक युद्ध में फिलिस्तिनियों ने इस्रायलियों को पूरी तरह मात दे दी| केवल एक पुत्र को छोड़कर, सौल के जोनाथनसहित सारे पुत्र मारे गये और स्वयं सौल भी दुश्मनों के बाणों से बहुत ज़़ख्मी हो चुका था| निराश सौल ने अपनी ही तलवार अपने शरीर में भोंककर आत्महत्या की|

आख़िरकार सौल कीइस्रायलियों के पहले राजा की, लगभग चालीस साल इस्रायलियों का नेतृत्व करने के बाद इस तरह दुर्भागपूर्ण मृत्यु हुई थी!

अपने राजा की ही मृत्यु हुई देखकर बचीकुची इस्रायली सेना भागने लगी| एक ही जल्लोष करते हुए फिलिस्तिनियों ने सौल का देह पास ही के बेथशान गॉंव की सरहद पर टॉंग दिया| लेकिन वहीं पास की जाबेशगिलियाड नगरी के बहादुर ज्यूधर्मीय उसी रात जाकर सौल का देह छुड़ाकर ले आये और उन्होंने सम्मानपूर्वक अंत्यसंस्कार किये|

यहॉं झिकलॅग में यह ख़बर सुनकर डेव्हिड और उसके सहकर्मी अपरंपार शोक में डूब गये| सौल हालॉंकि डेव्हिड की जान लेने हेतु उसके पीछे कितना भी हाथ धोकर क्यों न पड़ा हो, मग़र फिर भी डेव्हिड के दिल में सौल के प्रति – ‘ईश्‍वर ने नियुक्त किया हुआ हम इस्रायलियों का राजायही भावना थी| इस कारण सौल की मृत्यु से वाक़ई डेव्हिड को दारुण शोक हुआ और यह शोकभावना उसके द्वारा एक उत्कट शोकगीत के ज़रिये व्यक्त की गयी|

सौल की मृत्यु के बाद, ‘अब इस्रायलियों का नेतृत्व मुझे सँभालना होगा, क्योंकिराजा के बिना राज्ययह परिस्थिति घातक साबित हो सकती हैइसका एहसास डेव्हिड को हुआ| वैसे भी, उसेइस्रायलियों के अगले राजाके रूप में नियुक्त किया गया ही था और सॅम्युएल ने उसके लिए आवश्यक होनेवालीं सभी पवित्र विधियॉं भी की थीं| अतः वह ज्युडाह प्रान्त की हेब्रॉन नगरी में पहुँचने के बाद वहॉं के ज्यूधर्मियों ने उसेइस्रायल के राजाके रूप में घोषित किया| महान शूरवीर योद्धा, कवी, ज़रूरत होने पर धर्मोपदेशक ऐसे विभिन्न गुणों से युक्त डेव्हिड ही उन्हें उस समय के मुश्किल दौर में बतौरराजाउचित लग रहा था|

इस तरह डेव्हिड काइस्रायल के दूसरे राजा का कार्यकाल शुरू हो चुका था|

डेव्हिड

लेकिन डेव्हिड को अगला राजा नियुक्त किया गया होने की जानकारी बहुत लोगों को न होने के कारण, सौल के साथ एकनिष्ठ होनेवाले दरबार के लोगों ने बग़ावत कर, सौल के जीवित बचे पुत्र कोइशबोशेथ को राजा बनाने की कोशिश की| परिणामस्वरूप कॅनान के कुछ प्रदेश पर डेव्हिड का शासन, तो कुछ प्रदेश पर इशबोशेथ का शासन ऐसी परिस्थिति निर्माण हुई| लेकिन दो ही सालों में, मूलतः ही दुर्बल होनेवाले इशबोशेथ का अंतर्गत दुश्मनी के चलते खून हुआ| धीरे धीरे लोगों को इस सच का भी पता चला किअगले राजा के तौर पर डेव्हिड को ही नियुक्त किया गया था’; और उन्होंने डेव्हिड का एकछत्री नेतृत्व मान्य किया था| अब कॅनान प्रांत में से ज्यूधर्मियों के कब्ज़े में होनेवाला पूरा ही हिस्सा डेव्हिड के नियंत्रण में आया था|

डेव्हिड इस्रायलियों में अत्यधिक लोकप्रिय भी था और उनका अच्छी तरह से खयाल भी रखता था|

डेव्हिड ने अगले सात साल हेब्रॉन से राज्य का शासन चलाया| लेकिन बतौरराजधानीउसकी आँखों के सामने थी, वहजेरुसलेमनगरी!

ज्युडाह तथा बेंजामिन ज्ञातियों को प्रदान कियों प्रदेशों की सामायिक सीमारेखा पर ही जेरुसलेम होने के कारण वह सुरक्षित भी थी और रणनीति की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भी थी| इनमें से ज्युडाह प्रदेश की ओर के आधे भाग को ज्युडाह ज्ञाति ने अपने कब्ज़े में कर लिया था; वहीं, दूसरे आधे भाग पर अभी भी जेबुसी (जेबुसाईट्स) लोगों का ही अमल था और एक मज़बूत चहारदीवारी के क़िले में (‘सिटाडेल ऑफ झायॉनमें) उन लोगों का वास्तव्य था|

डेव्हिड इस नगरी को जीत लेने की ठान लेकर अपनी चुनिन्दा सेना के साथ वहॉं धावा बोल दिया| अपने क़िले की चहारदीवारी यह अभेद्य है, ऐसा मानकर चलनेवाले जेबुसी लोगों ने डेव्हिड के इस आक्रमण को कुछ ख़ास अहमियत नहीं दी| लेकिन डेव्हिड ने जेरुसलेम जीतने का निश्‍चय किया ही था| उसकी सेना के कई कड़े एवं लड़ाकू सैनिकों ने उस चहारदीवारी पर चढ़कर वह क़िला जीत लिया|

डेव्हिड

अब डेव्हिड ने अपनी राजधानी जेरुसलेम में स्थानांतरित की| दिनबदिन इस्रायली लोगों का उत्कर्ष होने लगा| धीरे धीरे इस क़िले का रूपान्तरण एक नगरी में हुआ और यह नगरी धीरे धीरे विस्तारित होती ही गयी| डेव्हिड ने इस नगरी की चहारदीवारी को भी मज़बूत बना लिया| यह लगभग ईसापूर्व ९वीं१०वीं सदी का कालखंड बताया जाता है|

इसी दौरान इस्रायल के पड़ोसी प्रान्तों में होनेवाले कई दुश्मनों ने, ख़ासकर उनके जानी दुश्मन फिलिस्तिनियों ने कई बार उनपर हमला करने की कोशिश की| लेकिन डेव्हिड की सेना ने हर बार उन्हें परास्त किया|

राजा डेव्हिड जेरुसलेम को केवल इस्रायल की राजधानी ही बनाना नहीं चाहता था, बल्कि वह उसे ज्यूधर्मियों का सर्वोच्च धार्मिक केंद्र भी बनाना चाहता था| समय की धारा में कई मुश्किलों के कारणटॅबरनॅकल, आर्क ऑफ कॉवेनन्ट इन जैसे ज्यूधर्मियों के सर्वोच्च धार्मिक प्रतीकों को कॅनान प्रान्त के विभिन्न स्थानों में स्थापित करना पड़ा था, उन सबको डेव्हिड इस एक ही स्थान में एकत्रित स्थापित करना चाहता था|

लेकिन उसकी सबसे बड़ी इच्छाज्यूधर्मियों के कायमस्वरूपी पवित्र मंदिर’ (‘होली टेंपल’) के निर्माण करने की थी, जिसमेंआर्क ऑफ कॉवेनन्टस्थापित किया जानेवाला था|

मग़र तब तक हमेशा डेव्हिड की सहायता करनेवाले ईश्‍वर ने इस बात की अनुमति नहीं दी| हालॉंकियह काम तुम्हारे हाथों नहीं, बल्कि तुम्हारे बेटे ओर वारिससॉलोमनके हाथों होनेवाला हैऐसा यक़ीन उसे दिलाया!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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