१९. ‘एक्झोडस्’- ‘टेन कमांडमेंट्स’

ज्यूधर्मीय पर्वतशिखर पर अग्नि के रूप में विराजमान हुए ईश्‍वर के दर्शन करते समय जो तुरही की आवाज़ अव्याहत रूप में शुरू थी, वह आवाज़ बढ़ती जाकर एक पल बन्द हो गयी….वहाँ शांति का माहौल फैल गया और ज्यूधर्मियों को ईश्‍वर की घनगंभीर आवाज़ सुनायी देने लगी। उसके बाद उन्हें ईश्‍वर के जो पहले दस वचन सुनायी दिये, वे ज्यूधर्मियों में ‘टेन कमांडमेंट्स’ (‘दस आज्ञाएँ’) के रूप में सर्वोच्च मान्यताप्राप्त हैं और जिन्हें ज्यू धर्म का मानो केंद्र ही कहा जा सकता है। ये महज़ आज्ञाएँ न होकर, ज्यूधर्मियों के लिए आदर्श जीवनपद्धति आरेखित करनेवाले मार्गदर्शक तत्त्व ही हैं।

ये ‘टेन कमांडमेंट्स’ निम्नलिखित आशय के थे –

  1.  मैं देवाधिदेव हूँ, तुम्हारा ईश्‍वर हूँ, जिसने तुम्हें इजिप्त की ग़ुलामी से रिहा किया।
  2. दूसरे किसी भी देवता का पूजन या उसकी सेवा तुम हरगिज़ नहीं करोगे। वैसे, आकाश, ज़मीन या पानी इनमें पाये जानेवाली किसी भी वस्तु या प्राणि की प्रतिमा बनाकर उसका पूजन नहीं करोगे।
    जो मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं और मुझसे प्रेम करते हैं, ऐसों की हज़ारों पीढ़ियों पर मेरी कृपादृष्टि रहती है; वहीं, जो मुझसे नफ़रत करते हैं, मेरे नियमों के खिलाफ़ आचरण करते हैं, ऐसे लोगों में बाप के पाप के फल मैं उसके बच्चों को ही नहीं, बल्कि उसकी आगे की ३-४ पीढ़ियों को (यदि वे पापी होंगी तो) भी भुगतने पर मजबूर करता हूँ।
  3. ईश्‍वर के नाम का ग़लत काम के लिए इस्तेमाल मत करोगे। ऐसा करने पर मेरी नज़र में तुम दोषी बन जाओगे।
  4.  तुम सब्बाथ के दिन की पवित्रता का पालन करोगे। हफ़्ते के बाक़ी के छः दिन तुम अवश्य मेहनत करोगे। लेकिन सातवाँ दिन यह ईश्‍वर का सब्बाथ का दिन है; अतः तुम, तुम्हारे बच्चें, नौकरचाकर, मवेशी, इतना ही नहीं, बल्कि तुम्हारे गाँव में पधारा हुआ कोई बाहर का व्यक्ति भी उस दिन कुछ काम नहीं करेगा। क्योंकि ईश्‍वर ने छः दिनों में यह आकाश, यह पृथ्वी, ज़मीन, पानी सबकुछ निर्माण किया और सातवें दिन उसने विश्राम किया। इस कारण?तुम्हें ईश्‍वर ने यह पवित्र सब्बाथ का दिन प्रदान किया है।
  5.  अपने माता-पिता का उचित सम्मान करो। उसीसे तुम्हारा, ईश्‍वर ने तुम्हें बहाल किया राज्य दीर्घकाल टिका रहेगा।
  6.  तुम किसी का खून नहीं करोगे।
  7.  तुम व्यभिचार नहीं करोगे।
  8.  तुम चोरी नहीं करोगे।
  9.  तुम किसी के खिलाफ़ झूठी गवाही नहीं दोगे।
  10.  तुम दूसरे का घर, दूसरे की पत्नी, दूसरे के नौकरचाकर, दूसरे के जानवर; दरअसल दूसरे की किसी भी चीज़ का लालच नहीं करोगे।इस प्रकार ‘टेन कमांडमेंट्स’ इस दुनिया में अवतरित हुए थे।

टेन कमांडमेंट्सकुल मिलाकर ईश्‍वर का यह रौद्र रूप देखकर सभी ज्यूधर्मियों के रोंगटे खड़े हुए थे। ‘ये पहलीं दस आज्ञाओं को सुनते समय हमारी यह हालत हो गयी, तो फिर ‘ईश्‍वर का संपूर्ण क़ानून’ (‘टोराह’) भला हम कैसे सुन पायेंगे’ ऐसा वे सोच रहे थे। उन्होंने फिर मोझेस को ही तहे दिल से विनति की कि ‘ईश्‍वर और हमारे बीच तुम मध्यस्थ बनकर रहो। ईश्‍वर का शब्द ठेंठ और प्रत्यक्ष रूप में सुनने की क्षमता अभी तक हममें नहीं आयी है।’ तब मोझेस ने उन्हें समझाया कि ‘ईश्‍वर ने अपना यह जो रौद्र रूप दिखाया है, वह हमें डराने के लिए नहीं, बल्कि हमारे मन में धाक उत्पन्न करने के लिए, ताकि हम पाप करने के लिए प्रवृत्त न हों।’

ज्यूधर्मियों द्वारा यह डर ज़ाहिर किये जाने के बाद ईश्‍वर ने मोझेस को अकेले को ही पर्वत पर बुला लिया और मोझेस को संपूर्ण ‘टोराह’ (ईश्‍वर का संपूर्ण क़ानून), उसके अर्थ के साथ विशद किया और उसे ‘इस्रायल की सन्तानों को’ समझाकर बताने की मोझेस को आज्ञा दी।

मोझेस पूरे चालीस दिन और चालीस रातों तक भूख़-प्यास और नीन्द भूलकर, कुछ भी न खातेपीते, न सोते हुए ईश्‍वर के सामने खड़ा रहकर यह सब ग्रहण कर रहा था।

अन्त में, ईश्‍वर ने चालीस दिन पहले ज्यूधर्मियों के सामने प्रसारित किये ‘टेन कमांडमेंट्स’ (‘दस आज्ञाएँ’) जिनपर अपने हाथों से लिखे हैं, ऐसे दो लंबे चौकोराकार पत्थर (टॅब्लेट्स) मोझेस के हवाले कर दिए, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।

उसीके साथ, इस समय ईश्‍वर ने, उसका वास्तव्य निरन्तर ज्यूधर्मियों के साथ होने का एहसास उन्हें सदैव रहें, वे नैवेद्य आदि अर्पण कर सकें इसके लिए एक गर्भगृह (‘टॅबरनॅकल्’) का निर्माण करने की आज्ञा दी। यह गर्भगृह कहीं पर भी स्थलांतरित किया जा सकनेवाला था, ताकि ज्यूधर्मीय चाहे कहीं भी जायें, वे उसे अपने साथ ले जा सकते थे। उसकी संरचना कैसी होगी, उसके विभिन्न घटक किससे तैयार करने हैं, उनके नाप, नैवेद्य आदि अर्पण करने के लिए होनेवाला चबुतरा आदि सारा विवरण ईश्‍वर ने ही सुस्पष्टतापूर्वक और बारिक़ी से दिया था।

सिनाई पर्वतशिखरयहाँ पर्वत की तलहटी पर अलग ही वाक़या घटित हो रहा था। चालीस दिन हो जाने पर भी मोझेस नहीं लौटा है, यह देखकर ज्यूधर्मियों के मन में पुनः कश्मकश शुरू हुई। उसे और बढ़ावा दिया, वह इन ज्यूधर्मियों के साथ इजिप्त से निकले इजिप्तवासियों में से कुछ लोगों ने! इन इजिप्तवासियों में सभी लोग अच्छे नहीं थे। उनमें से कुछ लोग, ज्यूधर्मियों के उज्ज्वल भविष्यकाल को जानकर, उससे केवल अपना फ़ायदा कराने के लिए भी आये थे। इन चालाक़ इजिप्शियनों ने उन ज्यूधर्मियों का ऐसा बुद्धिभेद करने की शुरुआत की कि ‘यह जो ‘एक ही ईश्‍वर’ इस संकल्पना पर विश्‍वास रखकर तुम इजिप्त से बाहर निकले हो, उससे तुम्हारा कल्याण होने के बजाय तुमपर संकटों की मालिका ही बरस रही है। अब भी होश मे आओ और इस ‘एक-ईश्‍वर’ संकल्पना को छोड़ दो।’

इस बुद्धिभेद का धीरे धीरे उन ज्यूधर्मियों पर असर होने लगा और चंद चालीस दिन पहले उन्होंने मोझेस के ज़रिये ईश्‍वर को दिये हुए – ‘तुम्हारे हर एक शब्द का हम बिनाशर्त पालन करेंगे’ इस अभिवचन को वे भूलने लगे। उन चालाक़ इजिप्शियनों के गुट ने, ‘यहाँ पर तुम लोगों को पूजन आदि करने के लिए किसी एक देवता का तो प्रतीक होना आवश्यक है’ यह बात उनके गले उतार दी।

सभी ज्यूधर्मीय मोझेस की अनुपस्थिति में, उनके लिए मोझेस के बाद आदरणीय होनेवाले आरॉन (मोझेस का बड़ा भाई और उनका मुख्य धर्मोपदेशक) के पास गये और किसी देवता के प्रतीक की स्थापना करने के लिए वे हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गये। मोझेस यक़ीनन ही आयेगा, यह जाननेवाले आरॉन ने, कुछ न कुछ बहाने बनाते हुए काफ़ी देर तक टालमटोल की; लेकिन इस बात के विरोध में प्रतिपादन करनेवाले, आरॉन एवं मोझेस के भाँजे को ग़ुस्से में आकर ज्यूधर्मियों ने मार देने के बाद, आख़िरकार मजबूरन् आरॉन ने इस बात के लिए ‘हाँ’ कह दी।

उसने ज्यूधर्मियों को उनके घर की महिला सदस्यों के सोने के कर्णभूषण लाने के लिए कहा। इस प्रकार भरपूर सोना जमा होने के बाद आरॉन ने उसे पिघलाया, जिसमें से, इजिप्त में पूजे जानेवाले प्राणियों में से एक की मूर्ति तैयार हुई। ज्यूधर्मियों में से कुछ लोगों ने उस प्राणि की मूर्ति का पूजन शुरू भी किया।

इस प्रकार उन ज्यूधर्मियों ने उस ईश्‍वर के इतने सारे चमत्कारों का एवं प्रेम का अनुभव किया होने के बावजूद भी अविचारपूर्वक ‘एक-ईश्‍वर’ संकल्पना से मुँह फेर लिया था।

 (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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