०४. अब्राहम-आयझॅक की परीक्षा; आयझॅकपुत्र जेकब परंपरा का अधिकारी

भगवान ने अब्राहम की कई बार परीक्षा ली होने का उल्लेख भी ज्यू धर्मियों के धर्मग्रंथ में आता है। उनमें से सबसे कठिन परीक्षा यह होने की बात बतायी जाती है, जब भगवान ने अब्राहम के बेटे की – आयझॅक की बलि चढ़ाने की आज्ञा अब्राहम को की। दरअसल इस आयझॅक के ज़रिये ही आगे चलकर अब्राहम का वंश अबाधित रहनेवाला था और भगवान ने अब्राहम को दिया दृष्टान्त सच साबित होनेवाला था। मूलतः आयझॅक का जन्म ही इतने प्रदीर्घ समय बाद और महत्प्रयासों के बाद हुआ था और… अब… उसी की बलि…?

लेकिन उन ईश्‍वर पर दृढ़ विश्‍वास होनेवाले अब्राहम के दिल को ऐसा विचार छुआ तक नहीं। ‘यह बच्चा ईश्‍वर ने ही दिया है, अतः उसपर ईश्‍वर का ही अधिकार है’ यह सोचकर अब्राहम और सारा दोनों ने भी ईश्‍वर की आज्ञा पर अमल करने की तैयारी शुरू की। एक विशिष्ट स्थान पर यानी ‘माऊंट मोरिया’ पर्वत पर जाकर यह बलि चढ़ानी थी। आयझॅक की उम्र उस समय ३७ वर्ष की थी, ऐसा बताया जाता है। लेकिन जब उसे इस वास्तव का पता चल गया, तब उसके मन में भी पलभर के लिए भी कश्मकश नहीं हुई और वह तत्काल अपने पिता के साथ बलिस्थान पर जाने के लिए तैयार हो गया।

परीक्षा

वहाँ जाकर अब्राहम ने बलि चढ़ाने की तैयारी शुरू की। आयझॅक की बलि चढ़ाने के लिए उसने खंजर निकाला। आयझॅक को बलिस्थान पर लेटने के लिए कहा और अब उसकी गर्दन पर वह खंजर से प्रहार करने ही वाला था कि तभी…

…तभी एक देवदूत ने वहाँ पर प्रकट होकर उसे बीच में ही रोका। वहीं की झाड़ियों में फ़ँसा एक  बक़रा उसे दिखाया और आयझॅक के बदले उसकी ही बलि चढ़ाने के लिए अब्राहम से कहा। (यह घटना अब्राहम और इश्मेल के साथ घटित हुई है, ऐसा कई इस्लाम के अभ्यासकों का कहना है।)
ईश्‍वर की परीक्षा पूरी हो चुकी थी और अब्राहम एवं आयझॅक दोनों भी उस परीक्षा में पूरी तरह सफल हो चुके थे!
ईश्‍वर द्वारा ली गयी इस अब्राहम-आयझॅक की परीक्षा के बाद जब अब्राहम पुनः घर लौट आया, तब उसे पता चला कि सारा इस दुनिया से चल बसी है। मृत्यु के समय सारा की उम्र १२७ वर्षों की होने का उल्लेख ज्यू ग्रंथों में पाया जाता है। ‘अपने प्रिय बेटे आयझॅक की बलि न दी गयी होकर, वह सुरक्षित है’ इस बात की बेहद खुशी शायद उसका दिल सह न सका और उसकी मृत्यु हुई, ऐसा भी उल्लेख कुछ जगहों पर पाया जाता है।
अपनी प्रिय पत्नी की मृत्यु से अब्राहम के मन पर गहरा आघात हो चुका था। केवल वह ही नहीं, बल्कि उसके सारे आप्त एवं समर्थक भी दुख से रो रहे थे। अब्राहम ने उसकी क़ब्र के लिए हेब्रॉन प्रदेश स्थित ‘माकपेलाह’ गुफ़ा, उस प्रदेश के मालिक ‘एफ़्रॉन’ से खरीद ली। सारा के मृतदेह को बड़े सम्मान के साथ उस क़ब्र में दफ़नाया गया।
ऐसे तीन साल बीत गये। अब आयझॅक ४० वर्ष का हो चुका था, तो अब्राहम १४० वर्ष का! अब आयझॅक के लिए सुयोग्य पत्नी की खोज करने की अब्राहम ने शुरुआत की। कॅनान के आसपास के परिसर में उसकी विचारधारा का विरोध करनेवाले लोग ही भरे थे। इसलिए उनमें से एक भी लड़की उसे बतौर बहू पसन्द नहीं आयी। फिर उसने उसका गृहप्रबंधक एलिझर को मेसोपोटेमिया में, जहाँ अब्राहम का एक भाई नाहोर बसता था, उसके घर सुयोग्य लड़की की तलाश में भेजा।
एलिझर ने वहाँ पहुँचने के तुरन्त बाद नाहोर की पोती रिबेका को देखा और उसका सुशील चालचलन देखकर उसे ही अब्राहम की बहू के तौर पर पसन्द किया। यथावकाश आयझॅक एवं रिबेका का विवाह संपन्न हुआ।
आयझॅक और रिबेका की गृहस्थी सुखचैन के साथ शुरू हुई। रिबेका का सुशील एवं मिलनसार आचरण देखकर, आयझॅक की पत्नी के रूप में रिबेका को चुनकर मैंने कोई ग़लती नहीं की, यह एहसास अब्राहम को कदम कदम पर होता था। लेकिन उनकी गृहस्थी के पेड़ पर फूल खिलने के लिए पूरे बीस सालों की प्रतीक्षा करनी पड़ी।
वीस साल बाद आयझॅक और रिबेका के घर ‘एसाऊ’ एवं ‘जेकब’ इन जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ। उनमें एसाऊ ‘बड़ा’ माना जाता था। उनमें से जेकब यह अपने दादा अब्राहम और पिता आयझॅक के नक़्शेकदम पर चलकर ईश्‍वर का निस्सीम भक्त बन गया; वहीं, एसाऊ पूरा दिन मटरगश्ती करता रहता था, ऐसा उल्लेख कई जगहों पर पाया जाता है।
इसी दौरान, सारा की मृत्यु के बाद अब्राहम ने तीसरी शादी की। उसकी इस पत्नी का नाम ‘केतुरा’ था। इस पत्नी से उसे छः बच्चें हुए, जो पॅलेस्टाईन की दक्षिणी एवं पूर्व की ओर रहनेवालीं कुछ अरब ज्ञातियों के पूर्वज माने जाते हैं। लेकिन अब्राहम ने सारा के कहने पर घर से दूर भेज दी हुई ‘हॅगर’ (हाजर) और यह ‘केतुरा’ एक ही हैं, ऐसा भी कुछ अभ्यासकों का मानना है।
अब्राहम ने लगाया हुआ, ‘एक-ईश्‍वर’ संकल्पना पर विश्‍वास रहनेवालों के धर्म का पौधा अब धीरे धीरे ब़ढ़ता चला जा रहा था। अपनी परंपरा को आगे ले जाने के लिए अपना बेटा आयझॅक अब क़ाबिल बन चुका है, इसका उसे यक़ीन हो गया था। एक दिन अब्राहम ने कृतार्थ मन से इस दुनिया से विदा ली। मृत्यु के समय उसकी उम्र १७५ साल की थी। आयझॅक और इश्मेल ने सम्मानपूर्वक अपने पिता के मृतदेह को माकपेलाह गुफा में ही, सारा की क़ब्र के पास ही क़ब्र खोदकर वहाँ पर दफन किया। यह गुफा आज भी ज्यू धर्मियों के सर्वोच्च श्रद्धास्थानों में से एक मानी जाती है।

अब्राहम की मृत्यु के कुछ दिन बाद कॅनान प्रदेश को पहले जैसे ही भीषण सूखे का सामना करना पड़ा और आयझॅक भी अब्राहम की तरह ही इजिप्त की दिशा में जाने निकला। लेकिन ईश्‍वर ने उसे दृष्टान्त देकर शुरू में ही रोका और कॅनान में ही रहने के लिए उसे कहा। ईश्‍वर की आज्ञा को सिरआँखो पर रखकर आयझॅक वापस लौट आया।

इसी बीच, आयझॅक ने फिलिस्तिन का दौरा किया। वहाँ के राजा ने आयझॅक की योग्यता को पहचानकर उसके साथ मित्रता का समझौता किया। तत्कालीन पद्धति के अनुसार, बीरशेवा इस स्थान पर रहनेवाले कुँए के पानी की बूँदों को साक्षी मानकर यह क़रारनामा हुआ। पहले अब्राहम ने भी इसी कुँए के पानी को साक्षी मानकर तत्कालीन राजा के साथ क़रारनामा किया था। इस कारण ज्यूधर्मियों में इस बीरशेवा स्थित कुँए को भी किसी तीर्थक्षेत्र जितना ही महत्त्व है।

जेकब और एसाऊ धीरे धीरे बड़े हो रहे थे; वहीं, आयझॅक की मार्गक्रमणा बूढ़ापे की ओर हो रही थी। उसकी दृष्टि भी अब चल बसी थी। वह दिनभर अपने घर में ही बैठा रहता था। इस कारण एसाऊ के कारनामें उस तक नहीं पहुँच रहे थे। अपनी अंतिम घड़ी अब किसी भी वक़्त आ सकती है, यह जानकर ‘घराने की परंपरा को आगे ले जाने का अधिकार’ बहाल करने की औपचारिक घरेलु विधि करने हेतु अपने बड़े बेटे को – एसाऊ को उसने बुलाया। लेकिन एसाऊ तथा जेकब दोनों को भी उनकी मॉं रिबेका अच्छी तरह से पहचानती थी और जेकब ही अब्राहम की परंपरा आगे ले जाने के क़ाबिल है, उसके बारे में उसके मन में कोई सन्देह नहीं था। इस कारण, एसाऊ जब इस विधि की तैयारी करने के लिए गया था, तब उसने चोरीछिपे जेकब को ही ‘एसाऊ’ बताकर आयझॅक के सामने खड़ा किया। जेकब इस तरह पिता के साथ छलकपट करने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन ‘ऐसा करना अब्राहम की परंपरा को अबाधित रखने के लिए ज़रूरी है’ ऐसा कहते हुए रिबेका ने इस झूठ की सारी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले ली। इस कारण जेकब अनिच्छापूर्वक तैयार हो गया और आयझॅक का उत्तराधिकारी बनने का सम्मान जेकब को प्राप्त हुआ। लेकिन – ‘आयझॅक का उत्तराधिकारी जेकब ही बननेवाला था’ ऐसा ईश्‍वर ने बताया होने का उल्लेख भी ग्रंथों में पाया जाता है। ख़ैर! एसाऊ को लौटने के बाद सारी बात का पता चल गया और उसने गुस्सा होकर का़फी उधम मचाया। यह सारा वाक़या ज्ञात होने के बाद आयझॅक ने उसे भी आशीर्वाद दिये और कुछ शर्तों पर अन्य कुछ अधिकार बहाल करने के लिए वह राज़ी हो गया। लेकिन उससे एसाऊ की तसल्ली नहीं हुई और वह जेकब से बदला लेने का मौक़ा ढूँढ़ने लगा।  (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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