३३. ‘राजा’ की परीक्षा


इस्रायल यह एकसंध देश बनने की दिशा में अब ज्यूधर्मियों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण कदम पड़ा था – उन्हें जो अत्यधिक जरूरी लग रहा था, वह उनका केंद्रीय मध्यवर्ती नेतृत्व, यानी उनका ‘पहला राजा’ अस्तित्व में आया था|

जल्द ही सॅम्युएल की देख़रेख़ में नये राजा का प्रशिक्षण शुरू हुआ| राजा का आचरण कैसा होना चाहिए, इसके बारे में मार्गदर्शन करते हुए सॅम्युएल ने, राजा के कर्तव्य सौल को ठीक से समझाकर बताये| लेकिन – ‘राजा भी ईश्‍वर का सेवक ही होगा और ईश्‍वर का ही राज वह विश्‍वस्तभावना (ट्रस्टीशिप) से चलायेगा और अपने इस्रायली बांधवों के साथ वह ‘राजा’ होने की मग़रूरी में नहीं पेश आयेगा, बल्कि बराबरी के नाते उनके साथ बर्ताव करेगा’ यह सौल के मन पर अंकित करना सॅम्युएल नहीं भूला| क्योंकि मूलतः, ज्यूधर्मियों को राजा लाने से परावृत्त करते समय सॅम्युएल ने उन्हें तिलमिलाकर कहा था कि ‘हम ज्यूधर्मियों को राजा की जरूरत नहीं है, ईश्‍वर ही हमारे राजा हैं|’ ज्यूधर्मियों ने की हुई राजा की मॉंग ईश्‍वर को भी उतनी रास नहीं आयी थी, मग़र फिर भी उसने अनुमति दी, ऐसा वर्णन भी इस कथा में आता है|

उसीके साथ ‘राजा पवित्र ‘टोराह’ – ईश्‍वर का सर्वोच्च क़ानून – निरन्तर अपने साथ रखें और उसका पठन एवं अध्ययन भी निरन्तर करता रहें और उसका सम्मान करके टोराह की सीख अपने जीवन में अधिक से अधिक उतारने के कड़े प्रयास करता रहें’, यह भी सॅम्युएल ने सौल से कहा|

सौल धीरे धीरे प्रशासन की ख़ूबियॉं सीखता जा रहा था| लेकिन जिस प्रमुख कारण के लिए ज्यूधर्मीय राजा चाहते थे – अर्थात् ‘विदेशी आक्रमकों से ज्यूधर्मियों की रक्षा करना’, उसकी परीक्षा लेनेवाला वाक़या तुरन्त ही घटित हुआ|

ज्यूधर्मियों का नया राजा कितने पानी में है, यह आज़माने के लिए पड़ोस के अमोनी प्रान्त का राजा नाकाश ने बहुत बड़ी सेना लेकर ज्यूधर्मियों पर आक्रमण किया और उनकी जाबेश-गिलिएड नगरी को घेर लिया| उसने इस नगरवासियों को एक शर्त बतायी कि ‘नगरी का हर एक नागरिक यदि अपनी एक एक आँख निकालकर देगा, तभी नगरवासियों को जीवनदान दिया जायेगा; लेकिन उन्हें अमोनियों के ग़ुलाम बनकर रहना पड़ेगा|’

नगरवासियों के दूत यह ख़बर लेकर गुप्त रूप से सौल को आ मिले| इस अपमानजनक शर्त को सुनते समय, ईश्‍वर के आशीर्वाद प्राप्त होनेवाले सौल के क्रोध का पारा धीरे धीरे चढ़ने लगा| उसने फ़ौरन सारे कॅनानप्रान्त में अपने दूत भेजे और ‘जो इस मुश्किल की घड़ी में संकट में फँसे अपने ज्यूबांधवों का साथ नहीं देंगे, उनके जानवरों के झुँड़ मार दिये जायेंगे’ ऐसी तेज़तर्रार चेतावनी उसने सारे ज्यूधर्मियों को दी| मूलतः सॅम्युएल ने अपनो दौरों के ज़रिये ज्यूधर्मियों को पहले से ही अच्छाख़ासा जागृत किया ही था| उसीमें यह चेतावनी भी बराबर अपना काम कर गयी और एक ही रात में इस्रायल की सभी ज्ञातियों में से कुल मिलाकर लगभग साढ़ेतीन हज़ार ज्यूधर्मीय बेझेक में इकट्ठा हुए| उसी रात सौल ने अमोनियों पर हमला करने का आदेश दिया| शीघ्रतापूर्वक हुए इस हमले के लिए अमोनियों की सेना सिद्ध नहीं थी| परिणामस्वरूप वे नेस्तनाबूद हो गये|

इस विजय के बाद सौल का ‘राजा’ के तौर पर स्थान अधिक ही मज़बूत हुआ| लेकिन उस दौरान फिलिस्तिनी लोग कॅनानप्रांत के बहुत हिस्सों पर कब्ज़ा कर बैठे थे और वहॉं के ज्यूधर्मियों से जुल्मपूर्वक सालाना कर आदि वसूलते थे|

उन्होंने इन प्रान्तों पर देख़रेख़ करने के लिए अपना एक राज्याधिकारी नियुक्त किया था| यह इतना स़ख्त था कि उसने, कहीं ये ज्यूर्धीय बग़ावत न कर दें इस डर से, ज्यूधर्मियों को कोई भी हथियार रखने की मनाही की थी| इतना ही नहीं,बल्कि उनकी खेती के औज़ार भी उन्हें गिनेचुने मान्यताप्राप्त फिलिस्तिनी आपूर्तिकारों से ही ख़रीदने पड़ते थे, जिनका देने से पहले बारिक़ी से मुआयना किया जाता था| ऐसे इन फिलिस्तिनियों का कॅनान प्रांत के बहुत बड़े भाग पर होनेवाला कब्ज़ा सौल से बर्दाश्त नहीं हो रहा था और अब इसके आगे का पड़ाव यानी ‘फिलिस्तिनियों से कॅनान प्रांत की रिहाई’ ऐसा उसने तय किया था|

वह अवसर जल्द ही आ गया| सौल के बेटे ने – जोनाथन ने बहुत ही पराक्रम कर गेबा में स्थित फिलिस्तिनी सेना पर विजय हासिल की| इस लड़ाई में फिलिस्तिनियों का वह राज्याधिकारी भी मारा गया था| यह ख़बर सुनते ही ख़ौलकर फिलिस्तिनियों ने लगभग ३० हज़ार लोहे के रथ और ६ हज़ार से अधिक सैनिक, इतनी बड़ी सेना लेकर ज्यूधर्मियों पर आक्रमण किया|

दुश्मन की इतनी बड़ी फ़ौज़ लेकर आ रही है, यह ख़बर सुनते ही सौल की सेना में से कुछ लोगों के तोते ही उड़ गये और वे सेना से भाग गये|

सौल फिलिस्तिनियों पर हमला करने का मौक़ा ही ढूँढ़ रहा था| लेकिन सॅम्युएल ने – ‘मेरे आने तक कोई भी कदम मत उठाना’ ऐसी स्पष्ट आज्ञा सौल को दी थी| इस कारण अब प्रतीक्षा करने के अलावा सौल के पास और कोई चारा नहीं था| सात दिन बीत गये, लेकिन सॅम्युएल नहीं आया| यहॉं फिलिस्तिनी सेना ज्यूधर्मियों के बिलकुल क़रीब आकर पहुँच गयी| धीरे धीरे ज्यूधर्मियों में से और भी कई लोगों का सब्र टूट गया और वे भाग निकलकर पर्वतगुफ़ाओं में-चट्टानों की आड़ में छिप गये| अब सौल के पास केवल छः सौ निष्ठावान् सैनिक बचे थे और उन्हें साथ लेकर फिलिस्तिनियों पर धावा बोलने के लिए वह बेसब्र हो रहा था| यदि अब और समय गँवाया, तो ये बचेकुचे सैनिक भी भाग जायेंगे, ऐसा डर उसे लग रहा था|

राजा
सौल ने ईश्‍वर की आज्ञा का भंग किया, यह जान जाते ही सॅम्युएल ने गुस्सा होकर – ‘ईश्‍वर की इच्छानुसार ही तुम्हारे पास चला आया ‘इस्रायल का राजा’ यह पद जल्द ही तुम्हारे हाथों से चला जायेगा’ ऐसी भविष्यवाणी का उच्चारण किया|

आख़िरकार सौल का भी सब्र टूट गया और उससे सॅम्युएल की आज्ञा का भंग हो गया| ज्यूधर्मियों की किसी भी मुहिम से पहले प्रमुख धर्मोपदेशक ईश्‍वर से प्रार्थना करके, नैवेद्य आदि अर्पण करके युद्ध में विजय प्राप्त होने के लिए उससे आशीर्वाद मॉंगा करते थे; वह विधि सौल ने सॅम्युएल के आने तक प्रतीक्षा न करते हुए, स्वयं ही धर्मोपदेशक की भूमिका में घुसकर किया| लेकिन वह जब उस विधि को कर रहा था, तभी सॅम्युएल आया और घटित हो रहा वाक़या देखकर वह आगबबूला हो गया| ‘तुमने ईश्‍वर की आज्ञा का भंग किया है, क्योंकि उसी की आज्ञा के अनुसार मैंने तुम्हें, मेरे आने तक रुकने के लिए कहा था| ईश्‍वर की इच्छानुसार ही ‘इस्रायल का राजा’ यह पद तुम्हारे पास चला आया था, वह जल्द ही तुम्हारे हाथों से निकल जायेगा’ ऐसी भविष्यवाणी का सॅम्युएल ने उच्चार किया|

सौल को अपनी ग़लती का एहसास हुआ था और उसके परिणामों का भी! इतनी ऊँचाई पर पहुँचे मनुष्य के लिए परीक्षाएँ भी उतनी ही कठिन होती हैं| सौल ने बिनातक़रार अपनी ग़लती मान ली और सॅम्युएल की भविष्यवाणी का भी स्वीकार किया|

सौल का बेटा जोनाथन यह सबकुछ देख रहा था| सैन्यबलों में इतना बड़ा फ़र्क़ होने के कारण हालात हालॉंकि निराशाजनक थे और ज्यूधर्मियों का सब्र टूटने लगा था, फिर भी उसका ईश्‍वर पर गहरा विश्‍वास था| इससे पहले भी ऐसी ही परिस्थितियों में, ऐसी ही लड़ाइयों में ज्यूधर्मियों का पक्ष दुर्बल होते हुए भी, ईश्‍वर ने हस्तक्षेप करके उन्हें विजय प्राप्त करा दी, आदि बातें उसने अपने बापदादाओं से सुनीं थीं और वैसा ही इस समय भी होगा इसके बारे में उसे यक़ीन था| वह रात के अँधेरे में, बिना किसी को बताये, अपने एक भरोसेमन्द सहकर्मी को साथ लेकर, पहाड़ी इलाक़े के फिसलते रास्ते पर से निकला और वहॉं पर तैनात की फिलिस्तिनियों की सेना की टुकड़ी पर अचानक हमला करके उस पूरी टुकड़ी को मार डाला|

फिलिस्तिनियों की जब यह समझ में आया, तब उन्हें – कैसे यह तो ईश्‍वर ही जानें – लेकिन एक अनामिक भय ने ग्रस्त किया और अचानक उनकी सेना पागलों जैसा बर्ताव करने लगी, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है|

यह ख़बर सुनकर उनपर आक्रमण करने का फ़ैसला सौल ने किया और उसने फिलिस्तिनियों पर धावा बोल दिया| वह देखकर, पहले भाग चुके लोगों में से और वहॉं पहाड़ी इलाके में छिपकर बैठे कई ज्यूधर्मीय भी आकर उनकी सेनामें भर्ती हो गये और उनकी सेना की संख्या बढ़ती ही गयी| सौल की सेना ने फिलिस्तिनियों को परास्त किया और भाग रहे फिलिस्तिनियों का पीछा करना शुरू किया| दिनभर पीछा करके और भी कई फिलिस्तिनियों को सौल की सेना ने मार दिया और बाक़ी बचे लोगों को कॅनान प्रांत से बाहर खदेड़कर, कॅनान प्रांत फिलिस्तिनियों के कब्ज़े में से मुक्त किया|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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