४५. ग्रीक संस्कृति का आकर्षण

ग्रीक सम्राट ‘अलेक्झांडर द ग्रेट’ के असामयिक निधन के बाद उसके उत्तराधिकारी का सवाल उपस्थित हुआ, क्योंकि उसने कोई उत्तराधिकारी को चुना ही नहीं था| इस कारण, अब तक उसके साथ सभी मुहिमों पर उसके कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े रहे उसके सेना-अधिकारियों में, ग्रीक साम्राज्य पर – ख़ासकर उसमें अलेक्झांडर ने जीतकर समाविष्ट किये हुए पहले के पर्शियन साम्राज्य के भाग पर कब्ज़ा करने के लिए संघर्ष शुरू हुआ| इसवीसनपूर्व ३२२ से लेकर इसवीसनपूर्व २७५ तक कुल मिलाकर यह संघर्ष शुरू ही था|

इसवीसनपूर्व ३०६-३०५ तक, ग्रीस के साथ ही भूमध्य समुद्र से लेकर सिंधु नदी तक फैले अलेक्झांडर के ग्रीक साम्राज्य के प्रायः तीन टुकड़े पड़ चुके थे – इजिप्त एवं आसपास का प्रदेश; ग्रीस एवं मॅसेडोनिया; और आशिया मायनर का एवं उसकी पूर्व की ओर का प्रदेश|

अलेक्झांडर के बाद इजिप्त एवं आसपास के भाग के ‘सरदार’ के तौर पर नियुक्त किये हुए, अलेक्झांडर के ही ‘टोलेमी’ नामक सेनाधिकारी ने, प्रखर संघर्ष के बाद इसवीसनपूर्व ३०१ तक उस भाग पर खुद का ही एकछत्री अमल स्थापित किया| इसने ‘टोलेमी-१’ ऐसा खुद का नामकरण कर, इस भाग पर अब ‘टोलेमी’ वंश का राज्य स्थापित हुआ होने की घोषणा की|

इजिप्त का फारोह बने टोलेमी का ब्रिटिश म्युझियमस्थित शिल्प

इस सत्ताहस्तांतरण के कारण, इस प्रदेश का हिस्सा होनेवाला ज्यूधर्मियों का ज्युडाह प्रान्त भी अब टोलेमियों के कब्ज़े में आ गया और ज्यूधर्मियों का ग्रीकवंशियों से होनेवाला आदानप्रदान कई गुना बढ़ गया| अलेक्झांडर ने जीते हुए प्रदेशों में ग्रीक स्थापत्यशैली का एवं ग्रीक समाजजीवन का आविष्कार दर्शानेवाली कई नयीं नगरियों का निर्माण किया था| उनमें, ख़ासकर अलेक्झांडर ने इजिप्त के पास निर्माण की हुई अलेक्झांड्रिया नगरी में अब ज्यूधर्मियों का नियमित रूप में आना जाना शुरू हुआ| वहॉं का बहुत ही प्रगत समाजजीवन देखकर, वहॉं गये ज्यूधर्मीय अवाक् हो जाते थे| उनके ज्युडाह लौटने पर उन्होंने किये हुए अलेक्झांड्रिया के प्रगत जीवन के वर्णन अन्य ज्यूधर्मियों को भी आकर्षित करने लगे|

ज्यूधर्मीय मेहनती थे, लेकिन उन्होंने गत कुछ-सौ साल अत्यधिक ग़रिबी में बिताये थे, अपने छोटे छोटे मूलभूत हक़ों के लिए भी उन्हें लड़ना पड़ा था| इतना ही नहीं, बल्कि लगातार आये विदेशी आक्रमणों के कारण उन्हें अपनी मूल भूमि को छोड़कर जाना पड़ा था| इन सबसे ऊब चुके ज्यूधर्मियों को इस कारण यह साहित्य, गणित, विज्ञान, कला, स्थापत्यशास्त्र, क्रीडा के शिखर पर होनेवाली – प्रायः नागरी (शहरी) ऐसी चमचमाती ग्रीक संस्कृति आकर्षित करने लगी|

टोलेमियों ने इजिप्त में बड़ी बड़ी वास्तुओं का निर्माण किया, उनके अवशेष आज भी देखने को मिलते हैं।

सम्पन्नता के शिखर पर होने के कारण, ‘रोटी-कपड़ा-मक़ान’ इन मूलभूत ज़रूरतों की आपूर्ति से परे यह ग्रीक संस्कृति जा चुकी थी और संसाधनों की विपुलता के कारण उसे ज़रासा भोगवादी स्वरूप भी प्राप्त हो चुका था| इस कारण ज्यूधर्मियों में से ख़ासकर युवाओं को अब यह भोगवादी संस्कृति भाने लगी| धीरे धीरे उनके भेस ग्रीकों जैसे होने लगे| ग्रीक संस्कृति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होनेवाले व्यायामशालाओं (जिम्नॅशियम्स) में जाकर उन्होंने अपना शरीरसौष्ठव ग्रीकों की तरह बनाना शुरू किया| साथ ही, उन्होंने अपने मनोरंजन के मार्ग भी ग्रीकों से अपनाये, ग्रीक नाम भी अपनाये| वैसे ही, ग्रीक देवता भी अब उन्हें नजदीकी प्रतीत होने लगे| ज्यूधर्मीय संस्कृति ग्रीक संस्कृति में घुलमिल जाने लगी, जिसे ही आगे चलकर ‘हेलेनिस्टिक ज्युडाईझम’ यह नाम अभ्यासकों ने दिया|

इस तरह, टोराह के विरोध में जानेवालीं बातों का त्याग करने के बजाय, तत्कालीन कई युवा ज्यूधर्मियों ने, उन्मुक्त ग्रीक जीवनशैली के लिए उन्हें रोड़ा प्रतीत होनेवालीं धार्मिक बातों का ही त्याग करने की शुरुआत की| यह सबकुछ खुली आँखों से देखनेवाले, लेकिन इस बात को रोक न सकनेवाले बुज़ुर्ग, अनुभवी ज्यूधर्मीय – ‘इतनी बार सबक सीखकर भी नयी पीढ़ी को अक़्ल क्यों नहीं आ रही है’ इस विचार से मायूस हो रहे थे; ‘टोराह का सखोल अध्ययन करनेवाली और टोराह अपने जीवन में उतारने के प्रयास सच्ची लगन से करनेवाली हमारी पीढ़ी, क्या वैसे प्रयास करनेवाली आख़िरी पीढ़ी है’ इस विचार से दुखी हो रहे थे|

शरीरसौष्ठव बनाने का मार्गदर्शन करने के साथ ही, सार्वजनिक ग्रीक व्यायामशालाएँ बौद्धिक एवं तात्त्विक चर्चाओं के केन्द्र भी बनने के कारण युवावर्ग वहाँ भारी मात्रा में आकृष्ट हो रहा था।

लेकिन जितना युवा ज्यूधर्मियों को इस ग्रीक संस्कृति का आकर्षण लग रहा था, उतनी ही ‘एक-सर्वोच्च-ईश्‍वर’ इस संकल्पना को केन्द्रस्थान में रखकर दृढ़तापूर्वक बुनी गयी ज्यू संस्कृति भी अन्य लोगों को, ख़ासकर टोलेमी राज्यकर्ताओं को आकर्षित कर रही थी| टोलेमी-१ के बाद इसवीसनपूर्व २७२ में इजिप्त तथा आसपास के प्रान्त की राजगद्दी पर बैठे उसके पुत्र टोलेमी-२ ‘फिलाडेल्फस’ को ज्यूधर्मीय साहित्य के बारे में, ख़ासकर टोराह के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न हुई| इस पवित्र टोराह को ग्रीक भाषा में अनुवादित किया जाये, ऐसा उसने ठान लिया| उसने ग्रीक भाषा जाननेवाले ७२ ज्यूधर्मीय भविष्यवेत्ता द्रष्टा विचारवंतों को अपनी राजधानी में बुलाया| लेकिन यहॉं उसने उनकी परीक्षा भी ली| मुझतक जो अनुवाद आयेगा, उसकी सत्य-असत्यता का प्रमाण क्या है, ऐसा आशंका उसके मन में उठी| फिर इसपर ‘उपाय’ के तौर पर, उसने सीधे जाकर इन ७२ लोगों को अलग अलग स्थान पर एकान्त में बिठाया और सभी को स्वतंत्र रूप में टोराह को ग्रीक भाषा में अनुवादित करने के लिए कहा|

लेकिन ‘ईश्‍वर की लीला’ इतनी अगाध थी कि जब इन ७२ लोगों ने स्वतंत्र रूप से किये अनुवादों को उसने एकदूसरे से मिलाकर देखा, तब वे हूबहू एक जैसे निकले|

इसवीसनपूर्व २०० के समय का टोलेमियों का साम्राज्य

‘ईश्‍वर की लीला’ इस बात के साथ ही इसका एक और मुख्य कारण ऐसा बताया जाता है कि कुल मिलाकर तब तक टोराह आदि दैवी साहित्य के प्रति ज्यूधर्मियों में सम्मान की भावना थी और उसका बाक़ायदा गहराई से अध्ययन किया जाता था| उसमें के मुद्दों पर चर्चासत्र आयोजित किये जाते थे, जिनमें ज्ञानी लोगों से आशंकाओं का निरसन किया जाता था, साथ ही, उनके द्वारा टोराह आमजनता को समझाकर बताया भी जाता था|

….और यही कारण था, जिसकी वजह से ये ज्ञानी ज्यूधर्मीय, टोराह को ग्रीक भाषा में अथवा अन्य किसी भी भाषा में अनुवादित करने के लिए विरोध कर रहे थे| क्योंकि वे जानते थे कि जिस किसी भी भाषा में टोराह को अनुवादित किया जायेगा, उस भाषा के लोग – उन्हें ज्यूधर्म की संकल्पना, पार्श्‍वभूमि, इतिहास आदि कुछ भी मालूम न होने के कारण – केवल उस अनुवादित सरलार्थ पर ही निर्भर रहेंगे, सखोल मथितार्थ को वे नहीं जान पायेंगे; इस कारण कई बार ग़लत अर्थ निकाला जा सकता है|

लेकिन आम ज्यूधर्मीय, ख़ासकर ग्रीक संस्कृति का आकर्षण प्रतीत होनेवाले युवा ज्यूधर्मीय इस बात से खुश ही हो रहे थे कि ‘हमारा धर्मग्रंथ ग्रीकों की मॉंग पर ग्रीक भाषा में अनुवादित किया जा रहा है|’

यहॉं अलेक्झांडर की मृत्यु के बाद जिस तरह टोलेमी ने इजिप्त तथा आसपास के भाग पर कब्ज़ा स्थापित कर खुद का साम्राज्य घोषित किया था, उसी तरह पूर्वी प्रान्त में ‘सेल्युकस’ नामक दूसरे एक सिरियन-ग्रीक सरदार ने इसवीसनपूर्व ३१५ तक अपना ‘सेल्युसिड’ साम्राज्य स्थापित किया था, जो स्वाभाविक रूप में टोलेमी के साम्राज्य पर नियंत्रण पाने के लिए जानतोड़ कोशिश कर रहा था|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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