श्रीनगर भाग-४

से तो हर एक ऋतु में श्रीनगर का रूप अपने आप में कुछ अनोखा सा ही होता है। मग़र फिर भी सबसे सुन्दर होता है, यहाँ का वसंत ॠतु! क्योंकि ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ यहाँ की सृष्टी नयी नवेली दुलहन की तरह सजती है। बहार के आ जाते ही यहाँ की हर एक कली खिल उठती है। छोटे से बनफूल, गुलाब के फूल से लेकर सुन्दर कमलों तक के सभी फूल खिल उठते हैं और श्रीनगर की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं।

बरफ़ की चादर के हट जाते ही इस श्रीनगर में रंगों और खुशबुओं की एक शानदार महिफ़ल ही शुरू हो जाती है। पिछले लेख में हमने श्रीनगर के ‘ट्युलिप्स गार्डन’ के बारे में पढ़ा। इन ट्युलिप्स गार्डन की एक ख़ासियत यह भी बतायी जाती है कि यह एशिया का सबसे बड़ा ट्युलिप्स गार्डन है। यहाँ की ज़मीन और आबोहवा भी ट्युलिप्स की उपज के लिए अनुकूल है। साथ ही इन ट्युलिप्स को यहाँ पर खिलाने में हज़ारों लोगों की कड़ी मेहनत भी है।

श्रीनगर में खिलनेवालें फूलों के रंग भी अनगिनत हैं। इनकी सुन्दरता तो बस आँखों से स्वयं महसूस की जा सकती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। आप सोच रहे होंगे कि इन तरह तरह के फूलों को देखने के लिए श्रीनगर में हमें कहाँ जाना चाहिए?

इन रंगबिरंगे फूलों को और कुदरत की लाजवाब खूबसूरती को देखने के लिए आइए चलते हैं, श्रीनगर के ‘मुग़ल गार्डन्स्’ में।

‘मुग़ल गार्डन्स्’ यह नाम ही इन बग़ीचों के निर्माणकर्ताओं से हमें परिचित कराता है। जब श्रीनगर पर मुग़लों की हुकूमत थी, तब उन्होंने यहाँ पर कईं बग़ीचों (गार्डन्स) का निर्माण किया। इन्हीं बग़ीचों को मुग़ल गार्डन्स कहा जाता है। श्रीनगर के अलावा आग्रा, दिल्ली इत्यादि कईं जगहों पर इस तरह के मुग़ल गार्डन्स हैं।

श्रीनगर और मुग़ल गार्डन्स कहने पर दो नाम फौरन याद आते हैं – शालिमार और निशात। सत्तर के दशक के हिंदी फ़िल्मी गीतों में इनमें से किसी न किसी बग़ीचे के दृश्य तो अवश्य दिखाये जाते थे।

श्रीनगर का वर्णन करते हुए हिंदी सिनेमा के संदर्भ का उल्लेख किया जाना यह तो स्वाभाविक बात ही है। इसकी वजह यह है कि सत्तर के दशक की हिंदी फ़िल्मों का केवल श्रीनगर ही नहीं, बल्कि कश्मीर के साथ भी एक अटूट रिश्ता बन गया था। कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन श्रीनगर और कश्मीर के खूबसूरत नज़ारों से आम दर्शकों के दिल को रिझाने का काम इन्हीं हिन्दी फ़िल्मों ने किया था।

श्रीनगर की प्राकृतिक सुन्दरता और फ़िल्मों के विषय से आइए फिर मुड़ते हैं, मुग़ल गार्डन्स की ओर।

इन बग़ीचों की रचना पर्शियन उद्यानशैली से विशेष प्रभावित है, ऐसा कहा जाता है। इन बग़ीचों में कईं फव्वारें, छम छम करती हुई बहनेवालीं नहरें, कुछ झीलें, कुछ बाग़ों में बनाये गये मंडप, बड़े बड़े पेड़, कईं प्रकार के ङ्गलों के पेड़ और फुलवारियाँ इनका समावेश है। बड़े बड़े गुलाब के फूल यह तो श्रीनगर के इन बाग़ों की ख़ासियत ही है। हाथ के जितने आकार के खिले हुए बड़े गुलाबों का वर्णन भी मैंने श्रीनगर जाकर वापस लौटे सैलानियों से सुना है।

श्रीनगर के इन मुग़ल गार्डन्स में उपरोक्त रचना के साथ साथ एक और विशेष रचना भी पायी जाती है, वह है – एक के ऊपर एक इस तरह से बनायी गयी अटारियों (टेरेस) जैसी रचना। इन्हें अब हम ‘टेरेस’ ही कहेंगे। सारांश, यह रचना यानि कि इस बाग़ में एक के ऊपर एक इस तरह से बनाये गये विभिन्न धरातल। इस प्रत्येक धरातल पर विभिन्न रचना की गयी है और एक धरातल से दूसरे धरातल तक जाने के लिए सीढ़ियों की व्यवस्था भी की गयी है।

कईं मुग़ल शासकों ने उनके शासनकाल में बग़ीचों का निर्माण कर इस उद्यानकला को जतन किया। इन मुग़ल शासकों से संबंधित दस्तावेज़ों से उस समय के मुग़ल गार्डन्स की जानकारी प्राप्त होती है। मुग़लों के बाद आये अँग्रेज़ों ने भी इस संदर्भ में लिखा है। इनमें विल्लियर्स – स्टुअर्ट नामक एक अँग्रेज़ महिला द्वारा किया गया वर्णन ब्योरेवार और महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

विशाल, नीले, सा़ङ्ग आसमान के नीचे दूर दूर तक ङ्गैला हुआ बग़ीचा। उसमें प्रवेश करते ही मन को उल्हसित करनेवाला बहता जल और ठण्डी पवन का झोंका, जो पत्तों और फूलों के साथ साथ हमारे मन को भी छू लेता है। लेकिन हम आये कहाँ पर हैं?

ऐसे मन को रिझानेवाले आह्लादक माहौल में हम प्रवेश कर चुके हैं, ‘शालिमार गार्डन’ में। दर असल इस शालिमार गार्डन के कईं नाम हैं; लेकिन यह पहचाना जाता है, शालिमार इस नाम से ही।

शालमार, फ़राह ब़क़्श, फ़ैज ब़क़्श ये भी शालिमार गार्डन के नाम हैं।

१७वीं सदी के पूर्वार्ध में जहांगीर नामक मुग़ल शासक ने उसकी बीवी के लिए इस बग़ीचे का निर्माण किया, ऐसा कहा जाता है। इतिहास यह भी कहता है कि श्रीनगर की स्थापना करनेवाले प्रवरसेन नामक राजा ने इसी जगह उसके निवास के लिए एक वास्तु का निर्माण किया था और उस समय इस जगह का नाम ‘शालिमार’ था। आगे चलकर राजा द्वारा बनायी गयी वास्तु तो ढह गयी, लेकिन इस जगह का नाम वही रहा और फिर इसी जगह पर ‘शालिमार गार्डन’ का निर्माण किया गया।

जहांगीर नामक मुग़ल शासक और उसकी बीवी को यहाँ की कुदरती खूबसूरती ने इतना मोह लिया था कि गर्मियों में वे अपना डेरा यहीं जमाते थे।

मुग़ल गार्डन्स की रचना हालाँकि पर्शियन उद्यान रचना से प्रभावित है; मग़र फिरभी श्रीनगर भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर ही इसकी रचना की गयी है।

इस बग़ीचे में जल का प्रवाह सबसे ऊपरि टेरेस से नीचे तक बहता है। इस पूरे बग़ीचे में कुल तीन टेरेस हैं, ऐसा कहा जाता है।

पुराने ज़माने में पहली टेरेस पर आम लोग टहलने के लिए जा सकते थे। इस टेरेस पर मंडप के आकार की एक रचना भी है।

दूसरी टेरेस के दो छोटे उपस्तर हैं। यहाँ पर बनाये गये मंडप में केवल राजा के मंत्रीमंडल के सदस्य और राजा के मेहमान ही प्रवेश कर सकते थे।

तीसरी टेरेस तो बहुत ही ख़ास है। यहाँ पर सिर्फ़ राजघराने की महिलाओं को ही प्रवेश दिया जाता था। राजघराने की महिला सदस्यों के लिए दर असल यह ख़ास इंतज़ाम किया गया था। उस समय की समाजपद्धति और महिलाओं के जीवन को ध्यान में रखकर ही इस तीसरी टेरेस को बनाया गया था।

पूरे बग़ीचे में बहता हुआ जल, कईं फव्वारें, कईं तरह के पेड़पौधें, हरी नर्म मुलायम घास, तरह तरह के फूल इनके साथ साथ चिनार के कईं ऊँचें ऊँचें पेड़ यह सब शालिमार गार्डन की ख़ासियत है।

टेरेस की रचना आज भी शालिमार गार्डन में मौजूद है; लेकिन व़क़्त के साथ साथ सब कुछ बदलते रहता है और आज पहली टेरेस से लेकर तीसरी टेरेस तक की सभी टेरेसेस् पर सभी के लिए मुक्त प्रवेश है।

शालिमार में होनेवाला ऋतुराज वसंत का आगमन जितना मनमोहक है, उतना ही शिशिर की पतझड़ शुरू होने से पहले आनेवाला यहाँ का शरद ॠतु भी लुभावना है। क्योंकि यह अपने साथ कई रंग लेकर आता है और पेड़पौधों के पत्तों को अनोखे ही रंगों में रंग देता है और एक दिन फिर उन सभी पत्तों को अपने साथ ले जाता है।

रंग और खुशबू की यह महिफ़ल इसी तरह सजती है, ‘निशात बाग़’ में भी। मुग़ल गार्डन का ही एक और पहलू!

इस बाग़ की रचना भी लगभग ऊपरोक्त वर्णन के अनुसार ही है। बहता हुआ जल, झीलें, कईं फव्वारें, बड़े बड़े पेड़ और विभिन्न प्रकार के फूल एवं फल यहाँ पर भी देखने मिलते हैं। लेकिन इस निशात बाग़ में एक-दो नहीं, बल्कि कुल बारह टेरेसेस् हैं।

१७वीं सदी में आसिफ़ खान ने इस बाग़ का निर्माण किया। निशात की हर एक टेरेस का, यहाँ की नहरों की गहराई का, यहाँ की छोटी-बड़ी हर बात का ब्योरा पुराने समय से रखा गया है।

इस बग़ीचे की बारह टेरेस बारह राशियों का प्रतीक ही है, ऐसा कुछ लोगों का मानना है। प्रत्येक टेरेस पर ख़ास रचना की गयी है। इन टेरेस का निर्माण करने के बाद उनका तफ़सील के साथ वर्ण न कर उसे जतन किया गया है।

पहली टेरेस पर एक छोटा सा तालाब है, जिसमें बग़ीचे के दोतरफ़ा बहकर आनेवाला जल इकट्ठा होता है। दूसरी टेरेस पर फव्वारें हैं। तीसरी टेरेस पर एक वास्तुरचना है। चौथी टेरेस पर चौकोर तालाब तथा नहरें भी हैं। अब इतने ऊपर तक चढ़कर आने के बाद आप थोड़ा सा थक गये होंगे। पाँचवीं टेरेस पर विश्राम करने के लिए कुछ बेंच रखे गये हैं। लेकिन ये कोई मामूली बेंच नहीं हैं, बल्कि ये सभी पत्थरों में से तराशे गये बेंच हैं। एक एक टेरेस पर चढ़ते चढ़ते और हर टेरेस की विशेषता को निहारते निहारते हम बारहवी यानि कि आख़िरी टेरेस पर पहुँच जाते हैं।

जिस समय इस बग़ीचे का निर्माण किया गया उस ज़माने के रीतिरिवाज़ों के अनुसार इस बारहवी टेरेस का निर्माण ख़ास कर राजस्त्रियों के लिए किया गया था। लेकिन आज इन सभी टेरेस की सैर हम सब कर सकते हैं।

शालिमार और निशात की सैर करते करते आँखों के साथ साथ मन को भी सुकून मिल गया। अब शान्ति से निशात में ही किसी बेंच पर बैठ जाते हैं। निशात की पार्श्‍वभूमि बनी पहाड़ियों के शिखर भी यहाँ से साफ़ साफ़ दिखायी दे रहे हैं और दूर का वह दल लेक भी। बग़ीचे में लोगों की आवाजाही भी कुछ कम सी हो गयी है। तो आइए, चैन से प्राकृतिक संगीत का लु़फ़्त उठाते हुए कुछ देर तक यहीं पर आराम करते हैं।

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