उदयपुर भाग- २

दर असल इस ‘लेक सिटी’ को कई वर्ष पहले से ही सैलानियों ने अव्वल नंबर दिया था। इस ख़ूबसूरत शहर में कई फ़िल्मों की शूटिंग हुई है। स़िर्फ़ बॉलीवूड ही नहीं, बल्कि हॉलीवूड की भी कई फ़िल्मों की शूटिंग यहाँ पर हुई है। टि. व्ही. का छोटा परदा भी इस मामले में पीछे नहीं है। इस शहर ने तो ‘रुडयार्ड किपलींग’ जैसे लेखक का भी मन मोह लिया। उनके द्वारा लिखित ‘जंगल बुक’ में उदयपुर का ज़िक्र किया गया है।
संक्षेप में, उदयपुर के ये राजमहल और झीलें स़िर्फ़ छोटे ही नहीं बल्कि बड़े परदे द्वारा भी लोगों तक कब के पहुँच ही चुके हैं।

उदयपुर के प्रमुख आकर्षण के रूप में जिस ‘पिचोला लेक’ का ज़िक्र किया जाता है, उसीसे हम आज के इस स़फ़र की शुरुआत करते हैं।

प्रमुख उदयपूर शहर का ‘पिचोला लेक’ यह एक मानवनिर्मित झील है। १४वी सदी के उत्तरार्ध में एक लमाण व्यापारी द्वारा इसका निर्माण किया गया। इस झील का नाम ‘पिचोला’ क्यों है, इस बारे में एक राय यह है कि जिसने इस झील का निर्माण किया उस व्यापारी के नाम से इसका नाम ‘पिचोला’ हुआ। दूसरी राय ऐसी भी है कि जहाँ पर इस झील की खोदाई हुई वहाँ पड़ोस में ही ‘पिचोली’ नाम का एक गाँव था और इसीलिए इसका नाम ‘पिचोला’ है।

‘लेक पॅलेस’

दर असल झील और वह भी मानवनिर्मित झील, इतना कहने से हम इस झील के विस्तार का अँदाज़ा नहीं लगा सकते। इस झील के किनारे पर खड़े रहकर देखा जाये तो दूर दूर तक स़िर्फ़ पानी ही दिखायी देता है। अब शायद आपको इसके विस्तार का थोड़ाबहुत अँदाज़ा आ ही चुका होगा। इसकी लंबाई है ४ कि.मी. और चौड़ाई है ३ कि. मी.। महाराजा उदयसिंहजी ने जब इस शहर की स्थापना की, तब भी इस झील का अस्तित्व था ही। उन्होंने इसका विस्तार बढ़ाया ऐसा कहा जाता है। इस झील की पार्श्‍वभूमि बनी हैं, अरवली की पहाड़ियाँ और इस झील के किनारे पर स्थित हैं कई मंदिर और राजमहल। इतना ही नहीं बल्कि इस झील में नहाने की सुविधा के लिए पुराने ज़माने में ही कुछ घाट बनवाये गये हैं। इस विशाल झील में भी दूर से ही नज़र आता है, झील के बीचों बीच स्थित स़फ़ेद ‘लेक पॅलेस’। अब शायद आप इस सोच में पड़ गये होंगे कि इस विशाल झील के बीचों बीच इस महल का निर्माण भला कैसे किया गया होगा?

हालाँकि यह झील मानवनिर्मित है, लेकिन उसमें कुदरती करिश्मा जिसे हम कह सकते हैं ऐसे दो बड़े ज़मीनी विभाग हैं। मानो जैसे दो छोटे द्वीप ही हो। दर असल इस झील में कई छोटे छोटे भूभाग हैं, लेकिन उनमें से इन दो बड़े भूभागों पर दो राजमहलों का निर्माण किया गया है। उनमें से ही एक है यह ‘लेक पॅलेस’, जिसे ‘जग निवास’ भी कहते हैं और दूसरा है ‘जग मंदिर’। दर असल इस झील की सुंदरता इन महलों से बढ़ती है, या फ़िर इन महलों की सुंदरता झील से, यह तो देखनेवाले पर निर्भर करता है। इनमें से किसी भी महल में जाना हो तो आपको नौका से ही जाना पड़ता है।

पिचोला झील की उत्तरी दिशा में इस तरह की एक और मानवनिर्मित झील है, जिसका नाम है – ‘फ़तेसागर’- फ़तेह सागर। यह उदयपूर शहर में ही है। १७वी सदी के उत्तरार्द्ध में जयसिंहजी महाराज ने इसका निर्माण किया, ऐसा कहा जाता है। लेकिन उसके बाद ‘फ़तेहसिंहजी’ महाराज ने इसके विस्तार को बढ़ाया और आगे चलकर यह झील उनके ही नाम से जानी जाने लगी।

इस झील की लंबाई है २.४ कि.मी., चौड़ाई है १.६ कि.मी और गहराई है ११.५ मीटर्स। फ़तेसागर और पिचोला इन दोनों को एक नहर द्वारा जोड़ा गया है। पिचोला झील की तरह इस झील में भी द्वीप जैसे कुछ छोटे छोटे कुदरती भूभाग हैं। इनमें से तीन भूभागों पर मानवनिर्मित रचनाएँ हैं। इनमें से दो भूभागों पर एक एक उद्यान है और तीसरे पर है, एक ‘सोलर ऑब्झर्व्हेटरी’। आकाश निरीक्षण के लिए भला इससे बेहतर जगह कौनसी होगी!

ये रहीं उदयपूर शहर की दो प्रमुख झीलें। दोनों भी मानवनिर्मित हैं और कुछ ही सदियों पूर्व इनका निर्माण किया गया है। इन झीलों में रहनेवाले जल का प्रमुख स्रोत है बारिश का पानी। आज की ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या का सामना इन दो झीलों को भी करना पड़ रहा है। एक तो रेगिस्तान और उसमें भी ग्लोबल वॉर्मिंग की यह नयी समस्या! इस वजह से यहाँ की बारिश भी अनियमित हो गयी है। बारिश की अनियमितता और बेतहाशा गर्मी इनकी वजह से झीलें सूखती जा रही हैं। गर्मियों के मौसम में तो यह समस्या अधिक उग्र बन जाती है। बारिश में थोड़ीबहुत राहत मिलती तो है, लेकिन जलवायु की इस समस्या का परिणाम पर्यटन व्यवसाय पर हो रहा है।

साथ ही इन झीलों की दूसरी समस्या है, इन झीलों में तलछट में इकट्ठा होनेवाली मिट्टी, कूड़ाकचरा आदि। दर असल पुराने ज़माने में पिने, उपयोग में लाने तथा खेती के और अन्य उद्योगों के लिए भी जल की आपूर्ति करने के उद्देश्य से इन झीलों का निर्माण किया गया था। यह सफ़ल भी रहा है। लेकिन प्रदूषण बढ़ने की समस्या इन झीलों को सुखा रही है। मनुष्य के प्रज्ञापराधों के कारण ही उसे इस मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

लेकिन इससे प्रभावित हो रही है इन झीलों में बसनेवाली वनस्पतियाँ और जीवजन्तु। जलस्तर के घटने के कारण उनका जीवन खतरे में पड़ गया है। साथ ही शहर की सुन्दरता पर भी असर हो रहा है।

लेकिन आशा की किरन आज भी बाकी है। इस तरह की मुसीबत में मनुष्य की बुद्धि ही तो उसे सही राह दिखाती है। सतर्क नागरिक और सरकार ने अब इन झीलों की सुरक्षा की दृष्टि से कई कदम उठाये हैं, जिनसे इन झीलों की आत्मा रहनेवाला जल सुरक्षित रह सकेगा। इस दिशा में कुछ उपाययोजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है। इन सब प्रयासों से हम यक़ीनन यह आशा कर सकते हैं कि उदयपुर की सुन्दरता बनी रहेगी।

इन दो प्रमुख झीलों के साथ ही उदयपुर से कुछ ही दूरी पर और तीन झीलें हैं।

इनमें से उदयपुर के सब से क़रीब है- ‘उदयसागर लेक’।

इसके नाम से ही आप यह जान गये होंगे कि उदयपुर की स्थापना करनेवाले महाराणा उदयसिंहजी ने ही इसका निर्माण किया था।

‘बेराच’ नाम की नदी पर बनाये गये बाँध (डॅम) के द्वारा ही इस उदयसागर लेक का निर्माण किया गया। इस बाँध को बनाने का उद्देश्य था, जनता के लिए जल की व्यवस्था करना। १६वीं सदी में बनायी गयी ऊपरोक्त दो झीलों की अपेक्षा यह झील कुछ छोटी लग सकती है। इसकी लंबाई ४ कि.मी, चौड़ाई २.५ कि.मी और गहराई अंदाज़न् ९ मीटर्स है।

अब ज़रा उदयपुर से थोड़ा सा दूर चलते हैं, ‘जयसमंद लेक’ की ओर। तब ही जाकर हम देख सकेंगे आशिया खंड के विस्तार की दृष्टि से दूसरे नंबर का ‘जयसमंद लेक’। इजिप्त के आस्वान बाँध का काम पूरा हो जाने तक यही झील आशिया की अव्वल नंबर की सबसे बड़ी मानवनिर्मित झील थी। ऊपरोक्त बाँध का निर्माण हो जाने के बाद ‘जयसमंद लेक’ का नंबर दूसरा हो गया। इस ‘जयसमंद लेक’ को ‘ढेबर’ भी कहते हैं। लगभग १०२ फ़ीट गहरा और ३० मील चौड़ा इतना इसका विस्तार है।

महाराजा जयसिंहजी ने गोमती नदी पर बाँध बनाते हुए इस जयसमंद लेक का निर्माण किया। यह भी मानवनिर्मित यानि कि कृत्रिम झील है। इस झील में कुल सात द्वीप हैं और उनमें से एक द्वीप पर अब भी भीलों की बस्ती है ऐसा कहा जाता है। इस झील में उतरने के लिए पुराने समय में ही संगेमर्मर की सीढ़ियाँ बनायी गयी हैं।

दर असल पूरे राजस्थान में ही संगेमर्मर का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है और उदयपुर भी इसमें अपवाद नहीं है। यही कारण है कि यहाँ की किसी झील में उतरने के लिए भी संगेमर्मर की सीढ़ियाँ बनायी गयी आपको दिखायी देती हैं।

आख़िरी झील है – ‘राजसमंद लेक’। इसे ‘राजसमुद्र’ भी कहते हैं। राजसिंह नाम के राजा ने १७वीं सदी में इसका निर्माण किया था। लगभग ४ मील लंबी, २.७५ मील चौड़ी और ६० फ़ीट गहरी यह राजसमंद झील औरों से कुछ ख़ास ही है।

यह झील गोमती नदी के साथ जुड़ी हुई है, यह भी इसकी ख़ासियत का एक कारण हम कह सकते हैं। इस झील के किनारे पर बहुत ही सुन्दर स्वागतद्वार दिखायी देते हैं। यहाँ की बाँध पर राजस्थान की चित्रकला साकार की गयी है। मेवाड़ का इतिहास भी ‘राज प्रशस्ती’ इस नाम से अंकित किया गया है और इन सब बातों के कारण राजसमंद बाक़ी सबसे कुछ अनोखा सा नज़र आता है।

इन झीलों का स़फ़र करते हुए हम उदयपुर से का़फ़ी दूर चले आये। अब हमें फ़िर उदयपुर लौटना चाहिए; क्योंकि वहाँ के राजमहल हमारे लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं।

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