चंबा भाग-१

चंबा, इतिहास, अतुलनिय भारत, बर्फ़ीली पर्वतशृंखलाएँ, हिमाचल प्रदेश, भारत, भाग-१

गर्मियों के मौसम की शुरुआत होते ही हिमालय की बहुत याद आती है और आज कल के जैसी तपतपाती गर्मी में तो हिमालय से मिलने जाने का मन अवश्य करता है।

हिमालय! एक छोर से दूसरे छोर तक अपने बदन पर बर्फ़ की चादर लपेटे हुए खड़ा नगाधिराज! उत्तरी भारत में आप जहाँ से भी हिमालय को देखेंगे, उसके अनोखेपन का एहसास आपको अवश्य होगा। कहीं पर दूर दूर तक फैली हुईं बर्फ़ीली पर्वतशृंखलाएँ दिखायी देती हैं, कहीं माथे पर बर्फ़ का मुकुट पहनी हुईं काली पहाड़ियाँ दिखायी देती हैं, तो कहीं यह हिमालय अपनी गोद में हरे भरे जंगल, तेज़ी से बहनेवालीं नदियाँ और नाज़ुक से झरनें इन्हें सँभाले हुए अपनी ही धुन में मगन रहता है।

हिमालय का यह तीसरा अनोखा रूप हिमाचल प्रदेश में कईं स्थानों पर दिखायी देता है। चलिए, तो आज ऐसे ही एक खूबसूरत जगह की सैर करते हैं।

चंबा! हिमाचल प्रदेश का यह शहर रावी और साल इन नदियों के संगम पर बसा है।

इस पुरातन शहर का इतिहास लगभग हज़ार वर्षों का है और खास बात यह है कि उस प्राचीन इतिहास का सुव्यवस्थित रूप से जतन किया गया है। पुराने ज़माने के शिलालेख, ताम्रपट और साथ ही यहाँ के राजवंश का इतिहास इन बातों से इस प्रदेश का इतिहास ज्ञात होता है।

समुद्री सतह से लगभग सव्वातीन हज़ार फीट की ऊँचाई पर बसा हुआ यह शहर ‘चंबा’ इस ज़िले का मुख्यालय है। जिस तरह चंबा यह एक शहर का नाम है, उसी तरह वह शहर जिसमें बसा है, उस ज़िले का नाम भी चंबा ही है।

हिमालय की ऊँची ऊँची पहाड़ियों की पार्श्‍वभूमि, पास ही से बहती हुई रावी नदी और उसमें आ मिलनेवाली साल नदी, हरियाली और तेज़ गर्मियों के मौसम में भी दिल को सुकून देनेवाली आबोहवा इन बातों ने चंबा को एक शानदार हिल स्टेशन बना दिया है। चंबा शहर का परिचय यह महज़ एक खूबसूरत जगह का परिचय नहीं है, बल्कि वह एक संस्कृति का परिचय है।

चलिए, तो परिचय की शुरुआत करते हैं, इस शहर के नाम से।

चंबा की एक खासियत का यहाँ पर ज़िक्र करना ज़रूरी है, चंबा यह नगरी यहाँ के मन्दिरों और राजमहलों के लिए मशहूर है। यहाँ पर विभिन्न सदियों में विभिन्न वास्तुशैलियों में निर्मित कईं मन्दिर एवं राजमहल भी हैं।

चंबा यह ‘चम्पावती’ इस शब्द का अपभ्रंश है, ऐसा माना जाता है। १०वीं सदी के प्रारंभ में साहिल वर्मा (साहिल्ल वर्मा) नामक राजा ने उसकी नयी राजधानी की स्थापना की और उस नगरी को अपनी लाड़ली बेटी का ‘चम्पावती’ यह नाम दे दिया। इस तरह साहिल वर्मा नामक राजा की यह नयी राजधानी ‘चम्पावती’ इस नाम से जानी जाने लगी; आगे चलकर ‘चम्पावती’ इस शब्द का रूप ‘चंबा’ हो गया और वही प्रचलित हुआ।

इस नगरी के नाम के संदर्भ में इन्हीं साहिल वर्मा नामक राजा की एक कथा भी प्रचलित है।

ये साहिल वर्मा नामक राजा ‘ब्रह्मपुर’ या ‘ब्रह्मौर’ में राज कर रहे थे। यह ‘ब्रह्मपुर’ या ‘ब्रह्मौर’ आज ‘भरमौर’ इस नाम से जाना जाता है। चंबा शहर से यह ‘भरमौर’ लगभग ७५ कि. मी. की दूरी पर है। तो इस ब्रह्मपूर पर राज करनेवाले साहिल वर्मा निपुत्रिक थे। उन्हें दस बेटे और एक बेटी होगी, ऐसा वरदान प्राप्त हुआ था। उनकी ‘चंपावती’ नामक बेटी की इच्छा के अनुसार उन्होंने अपनी राजधानी नयी जगह पर स्थापित की और उस स्थान को अपनी बेटी ‘चम्पावती’ का नाम दिया। समय के चलते जिसका रूपांतरण ‘चंबा’ इस प्रकार हुआ।

अन्य एक मत के अनुसार सज्जन वर्मा नामक राजा ने ‘चंपका’ नामक नगर की स्थापना की। आगे चलकर इसी ‘चंपका’ शब्द का अपभ्रंश ‘चंबा’ इस प्रकार हुआ और यह नगर ‘चंबा’ इस नाम से जाना जाने लगा। इन सज्जन वर्मा ने इस नूतन शहर को राजधानी का दर्जा प्रदान किया।

खैर, चम्पावती अथवा चंपका इस शब्द में काल के अनुसार परिवर्तन होकर ‘चंबा’ इस नाम का जन्म हुआ।

प्राचीन समय में इस स्थान पर ‘कोलियन’ नामक लोग रहा करते थे। उनके बाद यहाँ पर ‘खस’ नामक लोग आकर बस गये। ये खस नामक लोग मध्य आशिया से हिमालय के रास्ते इस प्रदेश में दाखिल हुए थे और हिमालय का विस्तार जहाँ जहाँ था, उस प्रदेश में भी ये लोग बस गये। इनके पश्‍चात् ‘औदुंबर’ नाम से जाने जानेवाले लोगों ने इस प्रदेश पर शासन किया। यह लगभग दूसरीं सदी का समय माना जाता है।
चौथीं सदी में यानि की गुप्त शासन काल में इस प्रदेश पर ठाकुरों और राणाओं का राज था।

इस दौरान चंबा और उसके आसपास के इलाकों पर भले ही विभिन्न राजाओं ने शासन किया हो, मगर तब भी चंबा इस शहर का जन्म उस समय नहीं हुआ था। उस समय ब्रह्मपुर या ब्रह्मौर यानि की आज का भरमौर ही राजकीय गतिविधियों का प्रमुख केंद्र और राजधानी का शहर था।

सातवीं सदी से इस स्थान पर प्रतीहारों का या राजपूतों का शासन था। इस वंश के ‘मारु’ नामक राजा की ब्रह्मपुर यह राजधानी थी। इसी ‘राजा मारु’ से वर्मा राजवंश का उदय माना जाता है। इस राजवंश ने इस स्थान पर लगभग ३०० वर्षों तक शासन किया। इस राजा मारु से लेकर वर्मा राजवंश के ६७ राजाओं ने यहाँ पर शासन किया। इनकी वंशावली में सुवर्ण वर्मा, लक्ष्मी वर्मा, मूशण वर्मा, हंस वर्मा, सार वर्मा आदि राजाओं का उल्लेख प्राप्त होता है।

इसी वंश के साहिल वर्मा नामक राजा ने दसवीं सदी की शुरुआत में ही चम्पावती नगर की स्थापना की, जो आज चंबा नाम से जाना जाता है। इसके बाद ब्रह्मपुर के बजाय चंबा यह राजधानी का शहर बन गया।

कुछ अन्य मतों के अनुसार यह चंबा नाम यहाँ पर स्थापित चंपावती के मंदिर के कारण प्राप्त हुआ। यहाँ के शासनकर्ता राजा ने चंपावती के मंदिर की स्थापना की। दर असल यह चंपावती इस राजा की ही बेटी थी। राजा के मन में उसके बारे में संदेह उत्पन्न हुआ। वह नित्य नियम से एक आश्रम में जाती थी। उसके प्रति होनेवाला राजा का संदेह जब मिट गया, तब उस राजा ने उसी आश्रम का रूपांतरण एक मंदिर में किया, जो उसकी बेटी के ही नाम से जाना जाने लगा और इस मंदिर के आसपास जिस शहर का निर्माण हुआ, वह शहर ‘चंबा’ इस नाम से मशहूर हुआ।

संक्षेपत: चंबा इस नाम का संबंध अधिकांश कथाओं के माध्यम से ‘चम्पावती’ नामक राजकन्या के साथ ही जुड़ा हुआ है।

चंबा नगर की स्थापना करनेवाले साहिल वर्मा नामक राजा बहुत पराक्रमी थे, ऐसा कहा जाता है। उन्होंने कई उपाधियों को धारण किया था, ऐसी जानकारी भी प्राप्त होती है। उन्होंने आसपास के इला़के के अन्य राजाओं तथा विदेशियों को भी परास्त किया था।

वर्मा राजवंश का चंबा पर लगभग ३०० वर्षों तक शासन रहा। मुग़लों ने जब भारत पर आक्रमण किया, तब काफ़ी कोशिशों के बाद भी वे चंबा को जीत नहीं पाये।

१७वीं सदी तक का चंबा का इतिहास कुछ इसप्रकार है। १८वीं सदी से आगे का समय चंबा के लिए काफ़ी धूम-धाम भरा रहा।

१८वीं सदी में यहाँ पर महाराजा रणजीतसिंह का शासन स्थापित हुआ और उन्होंने अपनी फ़ौज को वहाँ पर नियुक्त कर दिया था। लेकिन महाराजा रणजीतसिंह के पश्‍चात् इस प्रदेश की देखभाल करनेवाला कोई न रहा। उस समय तक भारत में व्यापार करने हेतु दाखिल हो चुकी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना जाल बिछाना शुरू कर ही दिया था। इसी जाल में उसने चंबा को भी आसानी से फाँस लिया और उसके बाद चंबा पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया।

लेकिन अंग्रेजों के इस शासन का कुछ हद तक इस प्रदेश को फ़ायदा भी हुआ। स्वास्थ्य, शिक्षा और यातायात जैसी बुनियादी सुविधाएँ अंग्रेजों ने इस प्रदेश को प्रदान की। इसवी १८६३ में यहाँ पर पहला डाक घर खुल गया और साथ ही एक प्रायमरी स्कूल भी शुरू हो गया। दिसम्बर १८६६ में यहाँ पर एक अस्पताल भी खोला गया। इसवी १८६० के अंत तक यहाँ दो नयी सड़कों का निर्माण किया गया। इस प्रकार सड़क और डाक जैसी सुविधाओं के माध्यम से चंबा का बाकी दुनिया के साथ संपर्क स्थापित किया गया। शिक्षा की सुविधा के कारण विकास का अवसर भी प्राप्त हुआ और अस्पताल के खुलने से लोगों की स्वास्थ्यविषयक चिंता भी दूर कर दी गयी। अपने अतीत को अच्छी तरह दर्ज करके रखनेवाला चंबा अब नये युग में एक आत्मनिर्भर एवं समर्थ चंबा के रूप में उभरने लगा।

भारत के स्वतंत्र हो जाते ही अँग्रेज़ यहाँ से चले गये और चंबा रियासत का भी स्वतंत्र भारत में विलिनीकरण हो गया। हिमाचल प्रदेश की स्थापना के पश्‍चात् चंबा उसका एक घटक बन गया।

अभी अभी तो इस पहाड़ी इला़के के साथ हमारी थोड़ीसी जान-पहचान हुई है। इससे पूरी तरह परिचित होने के लिए हमें धीरे धीरे आगे बढ़ना होगा।

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