चेन्नई भाग – २

chennai

‘चेन्नापटणम्’ या ‘मद्रासपटणम्’ इन नामों के द्वारा प्राचीन समय में जाना जानेवाला गाँव ही आज का चेन्नई है। दमर्ला वेंकटाद्री/वेंकटपथी नायकुडू नामक नायक से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब इस जगह को प्राप्त किया, तब वह मह़ज तीन मील का प्रदेश था और उस प्रदेश में एवं उसके इर्द-गिर्द बसी आबादी के कारण चेन्नई को उसका आज का स्वरूप प्राप्त हुआ है।

इस प्रदेश में अंग्रे़जों ने सेंट जॉर्ज फोर्ट (क़िले) का निर्माण किया और उनका जमीन सम्बन्धित क़रारनामा दो साल बाद समाप्त होने के पश्चात् अंग्रे़जों ने चन्द्रगिरी के राजा के पास जाकर उसी जमीन से सम्बन्धित नया क़रारनामा बनाया। इस नये क़रारनामे पर चन्द्रगिरी की राजगद्दी पर पूर्व राजा के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किये गए श्रीरंगरायुलु इस नये राजा ने और अंग्रे़जों की ओर से डॉक्टर ग्रीनहिल नामक अधिकारी ने दस्तख़त किए। यह नया क़रारनामा इसवी १६४२ में किया गया। लेकिन इस नये क़रारनामे के कारण अंग्रे़जों के दो फायदे हुए – पहली बात यह है कि उस प्रदेश की जनता को न्याय देने का अधिकार तथा जमीन का कुछ हिस्सा भी उन्हें प्राप्त हुआ।

अंग्रे़जों द्वारा निर्मित सेंट जॉर्ज क़िले के इर्द-गिर्द बसा गाँव ‘चेन्नापटणम्’ इस नाम से जाना जाने लगा, वहीं उसकी उत्तरी दिशा में बसी पुरानी बस्ती ‘मद्रासपटणम्’ इस नाम से परिचित थी। जब अंग्रे़जों ने वहाँ कारोबार के उद्देश्य से उपनिवेशों का निर्माण शुरू कर दिया, तब वे दो अलग-अलग गाँव न रहते हुए एक बड़े गाँव के रूप में विकसित हुए।

इस तरह अंग्रे़जों को इस गाँव में अधिकार तथा अतिरिक्त जमीन प्राप्त हुई। साधारण तौर पर इसवी १६४६ में गोवलकोंडा राज्य की फौज ने मद्रास पर आक्रमण करके वह गाँव एवं उसके आस-पास के प्रदेश पर कब़्जा जमा लिया। इसवी १६८७ में गोवलकोंडा राज्य के अस्त के साथ-साथ मद्रास पर होनेवाली उनकी सत्ता भी समाप्त हुई। गोवलकोंडा राज्य के अस्त के बाद दिल्ली के मुघलों ने इसपर कब़्जा किया, लेकिन अंग्रे़जों को पहले से ही मिल चुके अधिकारों को उन्होंने बरक़रार रखा। इस तरह वहाँ पर अंग्रे़जों की ही हुकुमत जारी रही।

इसवी १६८७ में मद्रास के गवर्नर एलिही येल ने इस शहर के लिए एक महत्त्वपूर्ण काम किया। उन्होंने इस शहर की नागरी सुविधाओं की व्यवस्था के लिए मेयर एवं महानगरपालिका की स्थापना की। इसवी १६९३ में स्थानिक नवाब ने तोंडीयारपेट, पुरुसावालकम् एवं इग्मोर इन गाँवों को अंग्रे़जों को इनाम के रूप में दिया। इसवी १६९८ में इस शहर के गवर्नर बने थॉमस पीट ने ११ वर्षों तक शासन किया और उसके कार्यकाल में व्यापार के क्षेत्र में चेन्नई ने का़फी तरक्की की। इसवी १७४४-१७४६ के बीच निकोलस मोर्स चेन्नई का गवर्नर था। इसी कालावधि में अंग्रे़ज और फ्रान्सीसी (फ्रेन्च) इनके बीच सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हुआ। इसवी १७४६ में ङ्ग्रान्सीसियों ने ‘ला बोर्डोनाइस’ इस मॉरिशस के गवर्नर के अधिपत्य में सेंट जॉर्ज फोर्ट और चेन्नई पर अपना कब़्जा जमा लिया। लेकिन इसवी १७४९ में ‘एक्स-ला-चॅपल’ इस सुलह के कारण अंग्रे़जों को चेन्नई एवं सेंट जॉर्ज फोर्ट पुनः प्राप्त हुए। इससे सबक सीखकर इसके बाद अंग्रे़जों ने भविष्यकालीन आक्रमणों का सामना करने के उद्देश्य से सेंट जॉर्ज फोर्ट का विस्तार किया तथा  उसे और भी मजबूत बनाया। आगे चलकर इस क़िले एवं शहर पर फ्रान्सीसी तथा हैदर अली ने आक्रमण किये।

१८वी सदी के उत्तरार्ध में चेन्नई शहर यह अंग्रे़जों का एक महत्त्वपूर्ण नौसैनिकी अड्डा बना। अंग्रे़जों ने फ्रान्सीसियों को परास्त कर दिया। हालाँकि अंग्रे़जो को कर्नाटक प्रान्त का शासन चलाने का अधिकार तो पहले ही मिल चुका था, लेकिन टिपू सुल्तान के कारण उन्हें अपने इस अधिकार का उपयोग करना नामुमक़िन था। आखिर १८वी सदी के अन्त में टिपू सुल्तान मारा गया और कर्नाटकसहित सारा दक्षिणी भारत अंग्रे़जों के क़ब़्जे में आ गया।

इसवी १६४० में चंद तीन मील की लम्बाई के इस भूप्रदेश पर अंग्रे़जों ने जमाये हुए पैर ही अल्प समय में समूचे दक्षिणी भारत को निगलने में उनके लिए मददगार साबित हुए।

अब मह़ज चेन्नई शहर पर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण दक्षिणी भारत पर अंग्रे़जों की हुकूमत थी। १९वी सदी में अंग्रे़जों ने चेन्नई शहर को विकसित करना शुरू किया। इसी प्रक्रिया में चेन्नई में विभिन्न महाविद्यालयों, विश्‍वविद्यालयों की स्थापना की गयी। व्यापार के नाम पर यहाँ आये अंग्रे़जों ने यहाँ रेल्वे की शुरुआत करके बन्दरगाहों का भी निर्माण किया। इस तरह अंग्रे़जों ने चेन्नई को एक गाँव से लेकर एक शहर तक विकसित करके उसका नक़्शा ही बदल दिया।

अंग्रे़जों ने मद्रास शहर को उनके ‘मद्रास प्रेसिडेन्सी’ या ‘मद्रास प्रोव्हिन्स’ अर्थात् मद्रास प्रान्त की राजधानी का दर्जा दिया।

शासनव्यवस्था की सहुलियत के लिए अंग्रे़जों ने भारत के विभिन्न प्रान्तों को एकत्रित करके उन्हें ‘प्रेसिडन्सी’ या ‘प्रोव्हिन्स’ यह नाम दिया। अंग्रे़जों की इस मद्रास प्रेसिडन्सी में आज का तमिलनाडू राज्य, उत्तरी केरल का मलबार प्रान्त, लक्षद्वीप द्वीपसमूह, आंध्रप्रदेश का तटवर्ती इलाका, आंध्रप्रदेश का रायलसीमा विभाग, बेल्लारी, दक्षिणी कन्नडा, उडुपी एवं गंजम इन विभागों का समावेश था। अंग्रे़जों ने इन प्रान्तों को एक ही समय नहीं, बल्कि विभिन्न कालखण्डों में हासिल किया था।

इसवी १९११ में मद्रास प्रेसिडन्सी का विभाजन २४ जिलों में किया गया और हर एक जिले का कारोबार कलेक्टर और उसके साथ सब-कलेक्टर एवं अन्य सहायक इनके जिम्मे कर दिया गया। हर एक जिले में तहसीलों एवं गाँवों का समावेश था। इस तरह एक जिले में कईं तहसील तथा कईं गाँव होते थें और उनका कारोबार चलाने के लिए अधिकारी नियुक्त किये जाते थें। इस मद्रास प्रेसिडन्सी में ५ वैभवशाली राज्यों का समावेश था। यहाँ के राजा केवल नामधारी थें और कारोबार के सारे सूत्र तो अंग्रे़जों के पास ही थें। ये पाँच राज्य थें – त्रावणकोर, कोचीन, बंगणपल्ले, संडूर और पुडुकोट्टाई।

अंग्रे़जों की दृष्टि से चेन्नई कितनी अहमियत रखता था, इस बात का एहसास दिलाना, यही इस पूरी जानकारी को यहाँ पर प्रस्तुत करने का उद्देश्य है और यही कारण है कि ऊपर उल्लेखित कईं प्रान्तों की राजधानी का दर्जा उन्होंने चेन्नई को दिया था। जिस एक गाँव ने समूचे दक्षिणी भारत पर कब़्जा करने में अंग्रे़जों की सहायता की, उसे न भूलते हुए, उन्होंने उस छोटेसे गाँव को शहर के रूप में विकसित कर दिया, इस बात पर भी हमें ग़ौर करना चाहिए।

अंग्रे़जों के व्यापार के कारण चेन्नई का विकास का़फी अच्छा हुआ। इसी दौरान चेन्नई शहर में कईं नयी कंपनियों तथा बैंकों की स्थापना हुई। इस शहर में कईं वित्तसंस्थाओं की भी स्थापना की गयी। मद्रास चेंबर ऑफ कॉमर्स, मद्रास स्टॉक एक्सेंज, मद्रास ट्रेड असोसिएशन इनजैसी संस्थाओं की भी स्थापना की गयी।

आख़िर इसवी १९४७  में भारत को आ़जादी मिलने के बाद मद्रास प्रेसिडन्सी की पुनर्रचना की गयी और उसका नामकरण ‘मद्रास राज्य’ किया गया।

इसवी १९५३  में रायलसीमा और आन्ध्रप्रदेश का तटवर्ती इलाक़ा इनका समावेश आन्ध्रप्रदेश इस नये राज्य में किया गया। बेल्लारी का समावेश म्हैसूर राज्य में किया गया। इसवी १९५६ में दक्षिणी कन्नडा भी म्हैसूर राज्य में प्रविष्ट हुआ। वहीं मलबार प्रान्त को केरल इस नये राज्य में दाखिल किया गया और गंजम को उड़िसा में। इस प्रकार अंग्रे़जों की मद्रास प्रेसिडन्सी और स्वतन्त्र भारत का मद्रास राज्य ये दोनों ही पूरी तरह भिन्न हैं और आख़िर इस मद्रास राज्य का नाम भी बदलकर ‘तमिलनाडू’ किया गया। इस तरह इसवी १९६८ में मद्रास राज्य तमिलनाडू राज्य इस नाम से जाना जाने लगा।

किसी भी स्थान का एक गाँव से लेकर एक शहर तक का प्रवास कतई आसान नहीं होता। स्थान तो वही होता है, बदलते हैं स़िर्फ रूप और रंग।

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