बीकानेर भाग – १

गगन में से आग बरसाता सूरज और पैरों तले दूर दूर तक फैला हुआ गरम रेत का सागर! तो आइए! आज इस रेत के सागर की यानि कि रेगिस्तान की सफ़र करने निकलते हैं।

इस वर्णन से आप यह समझ ही गये होंगे कि आज हम सफ़र करने निकले हैं, राजस्थान की। जी हाँ! आपका अनुमान बिलकुल सही है। आज हम रेगिस्तान में बसे एक शहर को देखनेवाले हैं।

राजस्थान कहते ही हमारी आँखों के सामने आ जाता है, रेगिस्तान और उसमें भी थर के रेगिस्तान के बारे में हम स्कूल में पढ़ ही चुके होते हैं। राजस्थान के इस मरुप्रदेश में सदियों पहले कुछ नगर बसाये गये, जो आज भी वहाँ पर मौजूद हैं।

थर का रेगिस्तान कहने पर हमारी आँखों के सामने आता है, किसी ङ्गिल्म में देखा हुआ रेगिस्तान का कोई दृश्य (सीन)! कई मीलों तक फैली हुई रेत, रेत के टीलें, सागर पर उठनेवाली लहरों की तरह हवा के तेज़ झोंकों से इस रेत पर उठनेवाली अनोखी ऩक़्क़ाशियाँ, रेगिस्तानी तूफ़ान और इन हालातों में इस प्रदेश में से हमें इच्छित स्थल तक ले जानेवाला एकमात्र जानवर यानि कि ‘ऊँट’! आइए, इस ऊँट पर सवार होकर हम भी चलते हैं, बीकानेर!

बीकानेर, थर के रेगिस्तान में बसा राजस्थान का एक शहर। आज बीकानेर जाने के लिए रेल जैसा यातायात का आसान साधन उपलब्ध है। इसलिए आज बीकानेर जाने के लिए ऊँट पर सवार होने की आवश्यकता नहीं है; केवल अपूर्वता की दृष्टि से ऊँट का उल्लेख किया है। दर असल राजस्थान और ऊँट इनके बीच एक अटूट रिश्ता है; मग़र उसमें भी बीकानेर के साथ ऊँट का काफ़ी गहरा और पुराना नाता है।

रेत का सागर

इतिहासकारों की राय से इस प्रदेश में प्राचीन समय में सरस्वती नदी के तट पर एक महान संस्कृति बस रही थी। आगे चलकर समय के किसी आघात ने इसका अन्त कर दिया या फिर रेत के किसी तूफ़ान ने इसे निगलकर ख़त्म कर दिया यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन इस संस्कृति के अवशेष रेत के नीचे दफ़ान हो गये।

किसी समय इस प्रदेश पर गुप्त राजाओं का शासन था, गुप्त साम्राज्य का अस्त हो जाने के बाद यहाँ पर गुर्जरप्रतीहार, चौहान, भाटी, राजपूत और राठोड इन शासकों का राज रहा।

कहा जाता है कि पुराने समय में ‘बीकानेर’ यह व्यापारी मार्ग का एक प्रमुख थाना हुआ करता था। मध्य अथवा पश्‍चिमी एशिया से आनेवाले व्यापारियों के लिए यह एक बहुत बड़ा व्यापार केंद्र था। इससे हम समझ सकते हैं कि बीकानेर यह शहर पुराने समय से अस्तित्व में था।

इतिहासकारों की राय है कि हज़ारों वर्ष पूर्व सरस्वती नदी इस प्रदेश में से बहती थी और उसके तीर पर ही यहाँ की संस्कृति विकसित हुई। लेकिन आगे चलकर सरस्वती का प्रवाह सूखता चला गया और यह प्रदेश मरुस्थल में रूपान्तरित हो गया। यहाँ के लोग फिर स्थलान्तरित होकर आसपास के इलाकों में बस गये।

यह काफ़ी पुराना इतिहास है। बीकानेर का इतिहास उसके ‘राव बीका’ नामक संस्थापक से शुरू होता है, ऐसा माना जाता है।

बीकानेर के इतिहास में झाँकने से पहले हमें उसकी भौगोलिक स्थिति के बारे में जानना आवश्यक है। जोधपुर की उत्तरी दिशा में ‘बीकानेर’ बसा है। वह भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेल तथा सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।

बीकानेर यह शहर और उसके आसपास का इलाक़ा पुराने ज़माने में ‘जांगल प्रदेश’ के रूप में जाना जाता था। जांगल देश इस संज्ञा को जानने के लिए हमें आयुर्वेद का सहारा लेना होगा। जहाँ पर पेड़पौधें और जल का प्रमाण अल्प रहता है, काँटेंयुक्त वनस्पतियाँ रहती हैं, बारिश की औसत बहुत ही कम रहती है, छोटे टीलें रहते हैं, तेज़ हवाओं का तथा धूप का प्रमाण अत्यधिक रहता है, हवाएँ गरम रहती हैं, उस प्रदेश को जांगल प्रदेश कहा जाता है। मग़र इसके बावजूद भी यहाँ के लोग बार बार बीमार नहीं पड़तें। इस वर्णन से हमारी समझ में यह आ ही गया होगा कि बीकानेर को जांगल प्रदेश क्यों कहा गया है।

तो ऐसे इस जांगल प्रदेश में १५वीं सदी में ‘राव बीका’ ने ‘बीकानेर’ इस शहर की स्थापना की। राव बीका ये ‘राव जोधा’ के पुत्र थे। राव जोधा ने जोधपुर की स्थापना की थी और वे मारवाड के राजा थे।

अब यह आपकी समझ में आ ही गया होगा कि इस शहर के ‘बीकानेर’ इस नाम की वजह उसके संस्थापक का नाम ही है। राव बीका द्वारा बसाया गया यह शहर उसीके नाम से ‘बीकानेर’ इस तरह जाना जाने लगा। कुछ लोगों की राय में ‘राव बीका’ ने जब इस शहर की स्थापना की, तब यहाँ पर ‘नेर/नैरा’ नाम धारण करनेवाले लोग बस रहे थे। उनका ‘नेर’ यह नाम राव बीका के ‘बीका’ इस नाम के साथ जुड़कर इसका नाम ‘बीकानेर’ हो गया।

साधारणत: १५वीं सदी के उत्तरार्ध में इस शहर का निर्माण होना शुरू हुआ। राव बीका ने उनके कुछ गिनेचुने साथियों के साथ मिलकर मारवाड में से बाहर निकल कर इस प्रदेश में प्रवेश किया और यहाँ पर अपना शासन स्थापित कर स्वतन्त्र राज्य का निर्माण किया। इस प्रदेश पर अधिकार जमाते ही उन्होंने एक छोटे से क़ीले का निर्माण किया, जिसे ‘राती घाटी’ कहा जाता है।

एक दंतकथा कही जाती है कि किसी ज्योतिषी ने इस शहर पर राव बीका के वंशज ४५० वर्ष तक राज करेंगे, ऐसी भविष्यवाणी की थी।

साधारणत: १४८८-८९ में बीकानेर शहर की स्थापना हुई। कहा जाता है कि किसी कारणवश मारवाड में से बाहर निकलकर राव बीका ने इस स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की थी। राव जोधा की यानि कि मारवाड के शासक की मृत्यु के बाद बीकानेर और मारवाड इनके बीच एक प्रदीर्घ सत्तासंघर्ष शुरू हो गया।

लगभग सौ वर्ष तक बीकानेर यह एक स्वतंत्र राज्य था; लेकिन आगे चलकर उसपर मुग़लों तथा अंग्रेज़ों की हुकूमत रही।

मुग़लों के प्रारंभिक आक्रमण के समय यहाँ के शासकों ने उन्हें मुँहतोड़ जवाब दिया था। लेकिन बाद में यहाँ के शासकों की छठी पीढ़ी से लेकर उनके बाद के शासक मुग़लों के मांडलिक थे और उनकी इस मित्रता का रूपान्तरण आगे चलकर रिश्तों नातों के रूप में भी दृढ़ होता रहा। बीकानेर के राजा मुग़लों की विभिन्न मुहिमों में शामिल होते रहे और उनकी बहादुरी के अनुसार उन्हें मुग़ल दरबार में मनसबदारी मिलती रही।

इसी दौरान बीकानेर और मारवाड के बीच का सत्तासंघर्ष कभी कभी ज़ोर पकड़ लेता था और इसी कारण अंग्रेज़ों को यहाँ पर दखलअंदाज़ी करने में कामयाबी मिली।

म़ुगल साम्राज्य की समाप्ति के साथ साथ बीकानेर से रहनेवाला उनका रिश्ता टूट गया और फिर एक बार मारवाड के साथ बीकानेर का संघर्ष शुरू हो गया।

१९वीं सदी के प्रारंभ में ऐसी ही एक जंग के दौरान व्यापार के लिए काबूल जा रहे और इसी सिलसिले में बीकानेर पधारे ‘माऊंटस्टुअर्ट एलफिस्टन’ नामक व्यक्ति से यहाँ के शासकों ने मदद माँगी। हालाँकि अंग्रेज़ों ने उस समय तो इस मामले में उनकी सहायता करने से इनकार कर दिया था; लेकिन आगे चलकर किसी एक जंग में ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बीकानेर के शासकों के साथ संधि कर सैनिकी सहायता प्रदान की।

इस संधि के साथ ही अंग्रेज़ों ने बीकानेर में कदम रख दिये। अंग्रेज़ों के पॉलिटिकल एजंट का स्थान बीकानेर में मुकर्रर किया गया और इस तरह मदद करने के बहाने से यहाँ पर घुसे अंग्रेज़ों ने स्थानीय शासकों को कठपुतली बनाकर अपनी हुकूमत स्थापित की।

लेकिन यहाँ के शासकों का अपनी प्रजा को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ मुहैया करवाने पर विशेष ध्यान था। इसी वजह से अंग्रेज़ों के भारत आने के साथ साथ भारत में शुरू हो चुकीं रेल, डाक, तार, बिजली इन सेवाओं का यहाँ की जनता को लाभ हुआ और इस तरह बिजली की सेवा प्रदान की जानेवाली बीकानेर यह भारत की पहली रियासत बनी। इतना ही नहीं, बल्कि यहाँ के शासक रेलमार्ग का विस्तार कर उसे जोधपुर से बीकानेर तक ले आये और फिर उस रेलमार्ग को आगे पंजाब तक बढ़ाया गया। डाक, रेल इन सेवाओं के साथ साथ यहाँ पर सड़क, अस्पताल, शिक्षा, मलनिस्सारण इन मूलभूत आवश्यक सेवाओं को भी उपलब्ध कराया गया।

भारत के आज़ाद हो जाने के बाद अंग्रेज़ों का शासन समाप्त हो गया और बीकानेर भी आज़ाद भारत में शामिल हो गया।

बड़ा लंबा चौड़ा इतिहास होनेवाले इस शहर के शासक यक़ीनन कला के प्रेमी तथा सुन्दरता के उपासक थे; क्योंकि उन शासकों ने उनके अपने शासनकाल में यहाँ पर कुछ बेहतरीन वास्तुओं का निर्माण किया।

इस इतिहास को पढ़कर शायद आप थक गये होंगे। तो फिर थोड़ी देर हम भी आराम करते हैं और हमारे ऊँट को भी विश्राम करने देते हैं।

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