चंबा भाग-२

चंबा, इतिहास, अतुलनिय भारत, मंदिर, हिमाचल प्रदेश, भारत, भाग-२

हिमालय की पार्श्‍वभूमि पर बसा चंबा यह शहर सर्दियों में तो ठिठुर जाता ही है, लेकिन गर्मियों में भी यहाँ की कुछ पहाड़ियों की चोटियों पर बर्फ़ जमी रहती है। सारांश, तपतपाती गर्मी से चंबा हमें यक़ीनन राहत दिलाता है।

गत लेख में हम देख ही चुके हैं कि चंबा यह शहर चंबा नाम के जिले में ही बसा है और चंबा घाटी में भी। यहाँ पर सर्दियों के साथ साथ गर्मियों में भी बरसात होती है।

आज भारत के हर प्रमुख शहर से आप चंबा जा सकते हैं। रेल, सड़क और हवाई मार्ग इनके द्वारा आप चंबा जा सकते हैं। रेल से यात्रा करते हुए आपको पठाणकोठ रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहाँ से सड़क मार्ग से आगे जाना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश में रहनेवाले सभी छोटे बड़े गाँव और शहर संपूर्ण भारत से सड़क द्वारा जुड़े हुए हैं। इसीलिए हिमाचल प्रदेश में सफ़र करने के लिए सड़क का उपयोग करना पड़ता है।

इस चंबा नगरी की स्थापना लगभग हज़ार वर्ष पूर्व हुई, ऐसा इतिहास कहता है और उससे संबंधित दस्तावेज़ भी मिलते हैं।

चंबा और उसके आसपास के इलाक़े में विभिन्न राजाओं द्वारा उनके शासनकाल में विभिन्न वास्तुओं का निर्माण किया, जिनमें प्रमुख थे – मंदिर। आज भी इनमें से कईं मंदिर सुस्थिति में हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि उनकी स्थापना से लेकर आज तक इन मंदिरों के आराध्य देवताओं की पूजा नित्यनियमित रूप से चल रही है। इनमें से अधिकांश मंदिरों की जानकारी उनसे संबंधित ताम्रपटों द्वारा प्राप्त होती है, जिनमें उन मंदिरों का निर्माण किसने किया, कब किया आदि बातों का उल्लेख किया गया है।

ये मंदिर उनकी अनोखी वास्तुशैली के कारण भी मशहूर हैं। हिमाचल प्रदेश का सफ़र करते हुए कुछ ख़ास बातें हमें दिखायी देती हैं। उनमें से एक है – यहाँ की कुछ वास्तुओं पर बना ‘स्लेट’ का छप्पर। ‘स्लेट’ यानि कि जिससे लिखने की पाटी बनायी जाती है, वह पत्थर। चंबा की कुछ वास्तुओं पर बने ‘स्लेट’ के छप्पर आज भी दिखायी देते हैं। आज समय के साथ साथ स्लेट का इस्तेमाल करके छप्पर बनाने की पद्धति लगभग समाप्त हो चुकी है। चंबा के मंदिरों की चर्चा करते हुए अचानक हमारी गाड़ी स्लेट के छप्परों तक पहुँच गयी। ख़ैर, अब फिर एक बार रुख करते हैं, हमारे मूल विषय की ओर।

चंबा, इतिहास, अतुलनिय भारत, मंदिर, हिमाचल प्रदेश, भारत, भाग-२हम बात कर रहे थे, चंबा के मंदिरों की ख़ास वास्तुरचना के बारे में। चंबा के इन अनोखे मंदिरों को ‘शिखर’ पद्धति के मंदिर कहा जाता है। दर असल शिखर यानि कि मंदिर का सबसे ऊपरि हिस्सा यानि कि कलश का हिस्सा। अन्य मंदिरों की रचना में गर्भगृह पर इस हिस्से का निर्माण किया जाता है। लेकिन ‘शिखर’ पद्धति के मंदिरों में गर्भगृह ही शिखर की रचना का होता है। इस रचना का निर्माण संपूर्णत: पत्थरों से किया जाता है। दर्शनी हिस्से में देवीदेवताओं की विभिन्न आकृतियाँ अंकित की गयी हुई होती हैं। पत्थर के साथ साथ इन मंदिरों के निर्माण में लकड़ी का भी इस्तेमाल किया हुआ होता है। इनमें से कुछ मंदिरों का सबसे ऊपरि हिस्सा ढालवाँ (स्लांटींग) रहता है, तो कुछ का गोलाकार। ढालवाँ छप्परों की लंबाई और चौड़ाई अधिक रहती है; तो गोलाकार छप्परों की लंबाई-चौड़ाई बहुत ही कम रहती है। हालाँकि आज स्लेट का इस्तेमाल न भी किया जाता हो, मग़र जिस समय इन मंदिरों का निर्माण किया गया, तब यहाँ पर स्लेट का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता होगा। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ पर उपलब्ध रहनेवाली सामग्री का उपयोग ही इन निर्माणकार्यों में किया गया। इससे यह ज्ञात होता है कि पुराने ज़माने में यहाँ पर पत्थर, स्लेट का पत्थर और लकड़ियाँ ये आसानी से और बड़े पैमाने पर उपलब्ध थे।

हम बार बार स्लेट के छप्परों के बारे में बात कर रहे हैं और ये ख़ास छप्पर हिमाचल प्रदेश में ही पाये जाते हैं। स्लेट के पत्थर के बारे में जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता आपके मन में भी जागृत हो ही चुकी हुई होगी। स्कूल में काले रंग की पाटी पर लिखा जाता है। पुराने ज़माने में तो इस स्लेट पर ही स्कूल की पढ़ाई की जाती थी। अब आप स्लेट के पत्थर के स्वरूप के बारे में जान ही चुके होंगे। स्लेट के छप्पर दूर से देखनेवाले के मन में भी कुतूहल जागृत करते हैं। जब इन काले रंग के स्लेट से बने छप्परों पर सूर्य की किरनें पड़ती हैं, तब वह छप्पर चमकने लगता है और यह नज़ारा दूर से देखनेवाले का मन मोह लेता है।

चंबा शहर की वास्तुओं के समय की दृष्टि से मुख्य तीन विभाग होते हैं। पहला है – चंबा की स्थापना से लेकर १९वीं सदी के मध्य तक यानि कि अँग्रेज़ों का चंबा में प्रवेश होने तक। दूसरा है – उसके बाद अँग्रेज़ों के समय की वास्तुएँ और फिर तीसरा है – भारत को आज़ादी मिलने के बाद निर्माण की गयी वास्तुएँ।

चंबा की स्थापना से लेकर १९वीं सदी के मध्य तक का समय यह एक विशाल कालखण्ड है। इसी दौरान यहाँ पर विभिन्न राजओं द्वारा बनायी गयी वास्तुओं पर उस उस समय की वास्तुशैली का प्रभाव साफ़ साफ़ दिखायी देता है। अँग्रेज़ों के ज़माने की वास्तुओं का निर्माण उनकी शैली में किया गया है और स्वतन्त्रता मिलने के बाद की वास्तुओं की अपनी एक अलग पहचान है।

इतनी चर्चा करने के बाद, आइए अब इन वास्तुओं को देखने चलते हैं। इन वास्तुओं में सबसे पहले उन जगन्नियन्ता के लिए निर्माण की गयी वास्तुओं को यानि कि मंदिरों को देखते हैं।

चंबा के मंदिरों का निर्माण ऊपरोक्त ‘शिखर’ पद्धति की वास्तुशैली में किया गया है। मानो किसी मंदिर के कलश या शिखर को हलके से ज़मीन पर रखा गया हो, ऐसा ही इन्हें देखने के बाद लगता है। दर्शनी भाग में एवं अन्तर्भाग में भी अलंकृत रहनेवाले इन मंदिरों के दर्शन करने से एक ही पल में पवित्रता, प्रसन्नता, शांति और सौम्यता इन विभिन्न रंगों से मन भर जाता है।

इनमें से अधिकांश मंदिरों का निर्माण राजा साहिल वर्मा ने किया है, ऐसा कहा जाता है। उन्होंने ही इस ‘चंबा’ नगर की स्थापना की, ऐसा भी माना जाता है। इन मंदिरों में से चम्पावती मंदिर, लक्ष्मी-नारायण मंदिर और चामुण्डा देवी मंदिर ये प्रमुख मंदिर माने जाते हैं।

चंबा, इतिहास, अतुलनिय भारत, मंदिर, हिमाचल प्रदेश, भारत, भाग-२जिस चम्पावती नामक राजकन्या की ज़िद से अथवा इच्छा से उसके पिता ने इस चंबा नगर की स्थापना की, उसीकी याद में इस चम्पावती के मंदिर का निर्माण उसीके पिता ने किया ऐसा माना जाता है। इस मंदिर को उसीके नाम से यानि कि ‘चम्पावती मंदिर’ इस नाम से जाना जाता है।

दर असल इस मंदिर की प्रमुख आराध्य देवता हैं- ‘देवी महिषासुरमर्दिनी’। शिखर पद्धति से बनाये गये इस मंदिर का छप्पर गोलाकार है। मंदिर के संपूर्ण दर्शनी भाग में विभिन्न देवताओं की मूर्तियों को अंकित किया गया है। राजा साहिल वर्मा ने इस मंदिर का निर्माण किया, ऐसा कहा जाता है यानि कि इसका निर्माण शायद १०वीं सदी में किया गया है और तब से लेकर आज तक यह मंदिर सुस्थिति में है।

इन्हीं राजा साहिल वर्मा ने १०वीं सदी में ‘लक्ष्मी-नारायण’ मंदिर का निर्माण किया। यह ‘लक्ष्मी-नारायण मंदिर’ कईं मंदिरों का समूह है। इस मंदिर की रचना भी शिखर पद्धति की है। मुख्य मंदिर के निर्माण के बाद विभिन्न समय में यहाँ पर विभिन्न मंदिरों का निर्माण किया गया और उनका एक समूह बन गया। चंबा पर राज करनेवाले राजाओं ने उनके शासनकाल में इन मंदिरों की संख्या बढ़ायी और साथ ही कुछ महत्त्वपूर्ण काम भी किये। इनमें एक महत्त्वपूर्ण बात कही जाती है, छत्रसिंह नाम के राजा के बारे में। इन्होंने यहाँ के मंदिर पर स्वर्ण का कलश स्थापित किया और वह भी विदेशी शासक के इस मंदिर के संदर्भ में रहनेवाले विशिष्ट आदेश को ठुकराकर।

इस मंदिर में प्रवेश करते ही मुख्य प्रवेशद्वार के सामने स्थित स्तंभ पर स्थापित किये हुए गरुडजी के दर्शन होते हैं।

इस संपूर्ण मंदिरसमूह में राधा-कृष्ण, शिव और गौरी-शंकर इनके विभिन्न मंदिर हैं।

यह ऐसा एक मंदिरसमूह है, जिसमें मुख्य मंदिर का यानि कि पहले मंदिर का निर्माण होने के बाद कईं छोटे बड़े मंदिरों एवं वास्तुओं तथा प्रतीकों का समावेश होता ही रहा।

दर असल जिस तरह हिमाचल रंगबिरंगी है यानि कि सफ़ेद पर्वत, हरी वदियाँ, नीली नदियाँ और नीला आसमान इनसे भरा हुआ है, उसी तरह उसी हिमालय का एक हिस्सा रहनेवाला चंबा शहर भी रंगबिरंगी ही है, जो आँखों को ठण्डक पहुँचाता है और मन को सुकून। तो ऐसे इस सुंदर चंबा नगरी की सुन्दरता को हम देखेंगे, एक ‘ब्रेक’ के बाद।

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