पुणे (भाग-२)

Fergussion Collage Pune
फर्ग्युसन कॉलेज पुणे

पुणे पर कब़्जा जमाते ही अंग्रे़जों ने अन्य महत्त्वपूर्ण शहरों में जिस तरह से अपनी फौ़जी छावनियों का निर्माण किया, उसी तरह पुणे में भी उन्होंने बहुत बड़ी लष्करी छावनी का निर्माण किया। कारोबार के उद्देश्य का दिखावा करके भारत में घुसे अंग्रे़जों ने दरअसल लगभग सारे भारत में अपनी फौ़जी छावनियों का ही निर्माण किया और उसी फौ़जी ताकत के बल पर उन्होंने भारत पर हुकूमत की।

अंग्रे़जों के अनगिनत अत्याचार और जुल्म इनके कारण पीड़ित भारतीयों ने फिर इसी अंग्रे़जी हुकूमत के खिलाफ़ जंग छेड़ दी। भारत के इस स्वतन्त्रतासंग्राम में पुणे का बहुत बड़ा योगदान है। पुणे ने सामाजिक, वैचारिक क्रान्ति की नींव रखी। इसमें अग्रसर नाम है – लोकमान्य टिळकजी का। श्री. बाळ गंगाधर टिळकजी को ‘लोकमान्य’ यह उपाधि प्राप्त हुई। अंग्रे़जों के खिलाफ़ कड़ा संघर्ष करने के लिए भारतीयों की एकता जरूरी थी, क्योंकि सामूहिक शक्ति ही कड़ा संघर्ष कर सकती है। साथ ही, समाज का वैचारिक प्रबोधन होना भी जरूरी था और इस प्रबोधन के लिए शिक्षा और अख़बार इन दो माध्यमों का उपयोग लोकमान्य ने किया। स्वयं लोकमान्य ने न्यायशास्त्र का अध्ययन किया था और कुछ समय तक वे इस विषय का अध्यापन भी करते थें। अख़बार इस माध्यम के द्वारा अधिक से अधिक लोगों तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। इसीलिए जनजागरण के उद्देश्य से लोकमान्य ने पुणे में ‘केसरी’ और ‘मराठा’ इन दो अख़बारों को प्रकाशित करना शुरू किया। इनमें से ‘केसरी मराठी भाषा में और ‘मराठा’ अंग्रे़जी भाषा में प्रकाशित होते थें। इन अख़बारों का प्रमुख कार्य था, अंग्रे़जों के जुल्म के बारे में समाजप्रबोधन का कार्य करना। केसरी का अर्थ है, सिंह और इस नाम के अनुसार ही टिळकजी ने इस अख़बार के द्वारा अपने विचारों को प्रखरतापूर्वक प्रस्तुत करके सोये हुए समाज को जागृत करने का कार्य शुरू किया।

अख़बार और शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक जागरण के लिए लोकमान्य ने बुद्धिदाता गणेशजी के गणेशोत्सव को सार्वजनिक तौर पर मनाने की शुरुआत की। इस गणेशोत्सव के माध्यम के द्वारा एकत्रित हुए स्त्री-पुरुषों में वैचारिक एवं सामाजिक परिवर्तन कराना, यही उद्देश्य था। बुद्धि की जितनी जरूरत है, उतनी ही शौर्य की भी है, इसीलिए उन्होंने गणेशोत्सव के साथ-साथ शिवजयन्ती को भी सार्वजनिक तौर पर मनाने की शुरुआत की।

दस दिन तक चलनेवाला गणेशोत्सव, यह आज भी पुणे की ख़ासियत है और विशेषता भी। इन दस दिनों में सारा पुणे शहर पूरी तरह से गणपतिमय बन जाता है। इसवी १८९४ में लोकमान्य ने पुणे में बोये हुए सार्वजनिक गणेशोत्सव के इस बीज का आज एक बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।

इसी पुणे में भांडारकरजी, गोपाळ कृष्ण गोखलेजी, महर्षि विठ्ठल रामजी शिंदेजी तथा ज्योतिबा फुलेजी जैसे समाजप्रबोधक हो चुके हैं। इन्होंने शिक्षा का उपयोग समाजप्रबोधन के एक प्रभावी अस्त्र के रूप में किया। पुराने जमाने में महिलाओं को शिक्षा से वंचित किया गया था। स्त्री का शिक्षित बन जाना, केवल उसके घर के लिए ही नहीं, बल्कि सारे समाज के लिए जरूरी है। स्त्री-शिक्षा के लिए फुले पति-पत्नी ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।

इस तरह से स्वतन्त्रतासंग्राम में शिक्षा यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण माध्यम सिद्ध हुआ और इसी के द्वारा पुणे में कईं शिक्षासंस्थाओं की नींव रखी गई, उनका विस्तार होता रहा और आज भी वे शिक्षासंस्थाएँ शिक्षा के महत्त्वपूर्ण कार्य को कर रही हैं। इसीलिए पुणे की पहचान ‘विद्या का नैहर’ इस रूप में बनी थी और साथ-साथ पुणे को ‘ऑक्सफर्ड ऑफ ईस्ट’ या ‘ऑक्सफर्ड ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता था।

पुणे में सिर्फ़ पाठशाला या महाविद्यालय की शिक्षा ही नहीं, बल्कि फौ़जी, फिल्म और दूरदर्शन से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान करनेवाली प्रमुख शिक्षासंस्थाएँ विद्यमान हैं। इतना ही नहीं, बल्कि भाषासम्बन्धित शिक्षा में भी पुणे अग्रसर है। जापानी भाषा की शिक्षा का अर्थात् जापानी भाषा सीखने के लिए आज पुणे यह महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। जापानी के साथ-साथ जर्मन और फ्रेंच भाषा सीखने-सिखाने के क्षेत्र में पुणे का स्थान अग्रणी है। इन सब बातों से हम समझ सकते हैं कि पुणे में शिक्षा की व्याख्या कितनी व्यापक है।

फर्ग्युसन कॉलेज, डेक्कन कॉलेज, न्यू इंग्लिश स्कूल, कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग, पुणे इन तथा इनके जैसी कईं विख्यात शिक्षासंस्थाएँ पुणे में हैं।

कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग यह पुणे का सबसे पुराना और मशहूर कॉलेज है।

६ अक्तूबर १८२१ को जिसकी स्थापना हुई, वह डेक्कन कॉलेज भारत की आधुनिक शिक्षा का सबसे पुराना केन्द्र माना जाता है। इस कॉलेज की नींव रखी थी माऊण्टस्टुअर्ट एलफिन्स्टन ने और उनकी इच्छा के अनुसार यहॉं पर डिग्री और डिप्लोमा पाठ्यक्रम के छात्रों को आधुनिक शिक्षा प्रदान की जाती थी।

सर जेम्स फर्ग्युसनजी का नाम जिसे प्राप्त हुआ है, वह फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे के पुराने कॉलेजों में से एक है। इसवी १८८५ में इसकी स्थापना हुई। कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग यह पुणे का सबसे पुराना कॉलेज है, वहीं फर्ग्युसन कॉलेज यह उसके बाद का। फर्ग्युसन कॉलेज यह पुणे का सायन्स और फाइन आर्ट का पहला कॉलेज।

इन ऊपर उल्लेखित शिक्षासंस्थाओं के साथ पुणे की एक और महत्त्वपूर्ण संस्था है, ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’। अंग्रे़जी हुकूमत को झटका देने के लिए शिक्षा यह एक प्रभावी माध्यम है, इस पर यक़ीन करनेवाले भारतीयों ने इस संस्था की स्थापना की। लोकमान्य टिळकजी, विष्णुशास्त्री चिपळूणकरजी, आगरकरजी और उनके सहकर्मियों ने एकसाथ मिलकर १ जनवरी १८८० को पुणे में ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ की स्थापना की। स्कूल की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज की शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से इसवी १८८४ में डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी की स्थापना की गई और २ जनवरी १८८५ को फर्ग्युसन कॉलेज की शुरुआत हुई।

नॅशनल डिफेन्स ऍकॅडमी (एन.डी.ए.) यह नाम हमने कईं बार सुना या पढ़ा होगा। मातृभूमि अर्थात् हमारी भारतमाता की रक्षा के लिए जल, वायु और भूमि इन स्तरों पर हमारी सेना कड़ी निगरानी करती रहती है। इन सैनिकों की प्रारंभिक शिक्षा की नींव रखनेवाली एन.डी.ए. यह संस्था पुणे के करीब ही ‘खडकवासला’ में है। आर्मी (भूदल), नेव्ही (नौसेना) और एअरफोर्स (वायुसेना) इन भिन्न-भिन्न तीन स्तरों पर काम करनेवाले सभी सैनिकों को इसी संस्था में एकत्रित रूप से प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाती है और यहीं से फिर वे अपने सम्बन्धित अंग का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।

भारत के पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरूजी ने ६ अक्तूबर १९४९ को इस संस्था की नींव रखी।

शिक्षा के माध्यम से भावी नागरिकों को उचित संस्कारों के साथ सम्पन्न बनाना और भावी सैनिकों का निर्माण करना, इन कार्यों को पुणे की ये ख्यातनाम संस्थाएँ कर रही हैं।

हमारे फौ़िजयों के इलाज के लिए डॉक्टर्स के सुसज्जित पथक का रहना भी जरूरी है। इस तरह की डॉक्टरी शिक्षा प्रदान करनेवाला कॉलेज भी पुणे में है। ‘आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज’ इस नाम से मशहूर यह कॉलेज फौ़िजयों का इलाज करनेवाले भावी डॉक्टरों का निर्माण करता है। इसके अलावा सुरक्षाक्षेत्र से सम्बन्धित कईं शिक्षासंस्थाएँ पुणे में हैं। द आर्मामेन्ट रिसर्च अँड डेव्हलपमेन्ट एस्टॅब्लिशमेंट, डिफेन्स इन्स्टिट्यूट ऑफ आर्मामेन्ट टेक्नॉलॉजी, आर्मी इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी ये संस्थाएँ सुरक्षाक्षेत्र से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान करनेवाली अन्य संस्थाएँ हैं।

भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट इस संस्था की स्थापना पुणे में इसवी १९१७ में हुई। यहॉं संस्कृत और मराठी के पुराने हस्तलिखितों का संग्रह है।

जिस तरह पुणे यह शिक्षा का नैहर है, उसी तरह सांस्कृतिक केन्द्र भी है। कला से सम्बन्धित कईं संस्थाएँ यहॉं कार्य कर रही हैं। फिल्में और टेलिव्हिजन ये भारतीयों के मनोरंजन के साधन हैं। आम आदमी से लेकर करोड़पति तक सभी को इनमें दिलचस्पी रहती है। फिल्म और दूरदर्शन इन मनोरंजन के माध्यमों से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान करनेवाली ‘फिल्म अँड टेलिव्हिजन इन्स्टिट्यूट’ यह संस्था भी पुणे में है

नॅशनल फिल्म अर्काइव्ह्ज ऑफ इंडिया का मुख्यालय पुणे में हैं। फिल्मों का इतिहास और पुरानी फिल्मों के जतन से सम्बन्धित विषयों में यह संस्था कार्य करती है और साथ ही, फिल्मों के निर्माण की शिक्षा भी प्रदान करती है। इस संस्था के पासलगभग १०,००० फिल्में, १०,००० किताबें और लगभग ५०,००० छायाचित्रों का संग्रह है।

कला क्षेत्र की पुणे की एक और विशेषता है, संगीत महोत्सव। सवाई गन्धर्व संगीत महोत्सव की शुरुआत १९५२ में हुई। सवाई गन्धर्वजी की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर इसकी शुरुआत हुई। भारतीय शास्त्रीय संगीत, विभिन्न वाद्यों के वादक और नृत्यक्षेत्र के निपुण इन सबका यह तीन दिन का उत्सव पुणे में हर वर्ष दिसम्बर में सम्पन्न होता है।

कला के साथ-साथ क्रीडा क्षेत्र में भी पुणे अग्रसर है। बॅडमिंटन इस खेल के सर्वप्रथम नियमों का लेखन अंग्रे़जों ने इसवी १८७३ में पुणे में ही किया था।

इतिहास के गतवैभव की स्मृति का जिस पुणे शहर ने जतन किया, वहीं पुणें आज के आधुनिक भारत को अधिक से अधिक विकसित करने में भी अग्रसर है।

पुणे भाग १ 

Leave a Reply

Your email address will not be published.