पुणे (भाग-३)

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खेती के उद्देश्य से बसायी गई इस ‘पुन्नक’ नाम की नगरी का काल के प्रवाह में पुणे शहर में रूपान्तरण हो गया।

हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज, अटक नगर से परे ध्वजा लहरानेवाले पेशवा और भारत की स्वतन्त्रता के लिए जंग छेडनेवाले देशभक्त इन्होंने पुणे में एक वैभवशाली और गौरवशाली इतिहास रचा।

बढ़नेवाले पुणे शहर के वाड़ें और पैंठें ये पुणे के समाजजीवन का एक अविभाज्य अंग था। पुराने जमाने के पुणे की बहुतसी आबादी वाड़ों में ही बसती थी और एक वाड़े में कईं परिवार बड़ी खुशी से रहते थें। पुणे को इन वाड़ों पर गर्व था। आज की बदलती संस्कृति में पुणे की पैंठें तो वहीं पर हैं, लेकिन वाड़ों के स्थान पर अब बिल्डिंगें बन गई हैं। इन पैठों में से ‘कसबा पेठ’ यह सबसे पुरानी और शहर में सबसे पहली बसी हुई पैंठ है। जहॉं जहॉं इन्सानों की बस्ती थी, उस उस विभाग को ‘पैंठ’ कहा जाता था। कसबा पैंठ को प्रायः १४वी सदी में बसाया गया, ऐसा माना जाता है। कसबा गणपति पुणे की ग्रामदेवता हैं और उनका निवास इसी पैंठ में है। इन सब पैंठों में से सबसे नयी पैंठ को ‘नवी पैंठ’ कहा जाता है।

‘मध्ययुगीन काल में पुणे का अस्तित्व था’ इस बात को दर्शानेवाला एक प्रमुख स्थान पुणे में है। पाताळेश्वर या पांचालेश्वर इस नाम से यह स्थान जाना जाता है। यहॉं पत्थर से तराशा गया मंदिर और गुफा है। इस स्थान का निर्माण ७वी या ८वी सदी में होने की सम्भावना कुछ लोगों के द्वारा व्यक्त की जाती है। लेकिन यह मंदिर अपूर्ण अवस्था में है।

गुहा और शिल्पकृतियॉं ये बातें जिस तरह से इतिहास को बयान करती हैं, उसी तरह से तलवारें, सिक्कें, हस्तलिखित, वस्त्र इनके जैसी कईं बातें उस समय के इतिहास को प्रतिपादित करती हैं। पुणे के डॉ. दिनकर केळकरजी ने इनजैसी कईं इतिहास को बयान करनेवाली सैंकड़ो वस्तुओं को संग्रहित किया और अपने एकलौते बेटे की स्मृति में ‘राजा केळकर म्युझियम’ की स्थापना की।

इसवी १९२० से डॉ. केळकरजी ने इन विभिन्न वस्तुओं का संग्रह करने की शुरुआत की। इस संग्रहकार्य में उनके अकेले के अपरिमित परिश्रम हैं। प्रायः इसवी १९६२ में उन्होंने लगभग १५,००० वस्तुओं का संग्रह किया था और इसवी १९६२ में उन्होने अपने इस संग्रह को भारत के पुरातत्त्व विभाग को सौंप दिया। आज इस म्युझियम में लगभग २५०० वस्तुओं को हम देख सकते हैं। ये वस्तुएँ प्रायः १८वी और १९वी सदी की हैं। इस म्युझियम में संगीत से सम्बन्धित वाद्यों का बहुत ही अच्छा संग्रह है।

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पर्वती और पुणे इनका बहुत ही करीबी रिश्ता है। पर्वती यह एक पहाड़ी है और उसपर कईं मंदिर हैं। चढ़कर ऊपर जाने के लिए यहॉं पत्थर की विशाल सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। ये सीढ़ियॉं इतनी विशाल हैं कि हाथी भी बड़ी आसानी से उनपर चढ़कर ऊपर जा सकता है। नानासाहब पेशवा ने पर्वती पर विभिन्न मंदिरों की स्थापना की।

पुणे का अध्ययन करते हुए सिंहगड़ को हम नहीं भूल सकते। तानाजी मालुसरे की अतुलनीय शूरता के कारण ‘कोंढाणा’ का ‘सिंहगड़’ बन गया। कोंढाणा इस नाम से जाना जानेवाले इस क़िले का हमारे स्वराज में शामिल होना जरूरी है, यह शिवाजी महाराज की इच्छा थी। शिवाजी महाराज की इस इच्छा को सुनकर तानाजी कोंढाणा को जीतने की मुहिम पर निकले। दरअसल उनके बेटे रायबा की शादी में कुछ चंद दिन ही बचे थें, फिर भी अपने राजा की इच्छा की पूर्ति के लिए ‘आधी लगीन कोंढाण्याचं, मग लगीन रायबाचं’ (पहले कोंढाणा की शादी, रायबा की शादी उसके बाद।) इस निर्धार के साथ तानाजी तुरन्त ही मुहिम पर निकल पड़े। तानाजी और शेलारमामा अपनी सेना के साथ, जिसपर चढ़ना बहुत ही मुश्किल है, ऐसी खड़ी चट्टान पर चढ़कर क़िले पर जा पहुँचे और क़िले पर घनघोर संग्राम शुरू हुआ। मुगलों के खिलाफ के इस संघर्ष में जब मराठों की ताकत कम हो रही है यह प्रतीत होने लगा, तब सेना पीछे हटने लगी। उस समय वीर तानाजी ने सारे सैनिकों को स्पष्ट रूप से कहा, ‘‘वापसी के डोर तो मैं कबके काट चुका हूँ।’’ तानाजी के इस वचन से फिर उनकी सेना ने कमाल की बहादुरी दिखाई। आखिर इस जंग में मुघल हार गएँ, लेकिन इस युद्ध में अतुलनीय पराक्रम करनेवाले तानाजी मालुसरे वीरगति को प्राप्त हुए। कोंढाणा क़िले को जीतकर स्वराज में शामिल किया गया। शिवाजी महाराज को जब इस घटना की जानकारी मिली, तब तानाजी की मृत्यु के कारण महाराज बहुत ही दुखी हो गएँ और उन्होंने कहा, ‘‘गड आला पण माझा सिंह गेला’’ (क़िला तो जीत लिया, लेकिन मेरे शेर को मैंने गँवाया।) और तबसे शेरजैसे वीर एवं पराक्रमी तानाजी मालुसरे की वीरता की स्मृति में कोंढाणा ‘सिंहगड़’ के नाम से जाना जाने लगा।

इसवी १८९२ में पुणे में जिसका निर्माण हुआ, उस आगाखान पॅलेस के साथ गांधीजी का करीबी रिश्ता था। इसवी १९४२ में ‘चलेजाव’ आन्दोलन की शुरुआत गांधीजी ने यहीं से की और अंग्रे़जों ने गांधीजी को गिऱफ़्तार करके यहॉं पर ऩजरबन्दी बनाकर रखा। गांधीजी की पत्नी कस्तुरबा और गांधीजी के सचिव महादेवभाई देसाईजी ने यहीं पर आखरी सॉंस ली।

दरअसल पुणे मशहूर हुआ शिवाजी महाराज के समय से और आगे चलकर पुणे कई वीरता की गाथाओं का आधार बन गया। स्वराज्य से लेकर स्वतन्त्रता संग्राम तक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले पुणे में यद्यपि बड़े संग्राम न भी हुए हों, लेकिन दो प्राकृतिक आपत्तियों के कारण पुणे शहर का काफ़ी नुकसान हुआ – पुणे के समीप रहनेवाले पानशेत बॉंध के टूट जाने की घटना और कोयना-भूचाल।
पुणे यह शहर पुराने जमाने में अच्छी जलवायु के लिए मशहूर था।

आज का पुणे यह शहर आधुनिक भारत को विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान में महुमूल्य योगदान प्रदान करनेवाला शहर है। आय.टी. क्षेत्र के विकास में पुणे शहर का काफ़ी योगदान है। कईं आय.टी. पाकर्स, सॉफ्टवेअर टेक्नॉलॉजी पाकर्स पुणे में कार्य कर रहे हैं।

रसायनशास्त्र, प्राणियों की कोशिकाओं से सम्बन्धित अन्वेषण और विषाणुओं से सम्बन्धित अन्वेषण इन क्षेत्रों में कार्य करनेवाली संस्थाएँ पुणे में हैं।

बिझनेस मॅनेजमेंट का प्रशिक्षण देनेवालीं कईं संस्थाएँ पुणे के शिक्षा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

विज्ञान में हुए कईँ अनुसन्धानों के कारण आज मनुष्य को विभिन्न यन्त्र प्राप्त हो चुके हैं। साथ ही साथ, पहिये की खोज के कारण यन्त्र और पहिया इनके संयोग से मनुष्य ने वाहनों का निर्माण किया। इन वाहनों के निर्माण के कारण मनुष्य की अधिकाधिक प्रगति हुई। और वह पूरे जग के साथ आासानी से जोड़ा गया। वाहन दो पहियोंवाला हों या चार पहियोंवाला, उनका निर्माण फॅक्टरी में ही करना पड़ता है। और इन वाहनों का निर्माण करनेवालें शहरों में पुणे यह एक महत्त्वपूर्ण शहर है।

पुणे के बारे में जानकारी हासिल करते समय पुणे से प्रकाशित होनेवाले समाचारपत्रों के विषय में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। पुणे से प्रकाशित ‘मित्रोदय’ नामक पहला मराठी समाचारपत्र इसवी १८४४ में प्रकाशित हुआ। लेकिन यह समाचारपत्र लम्बे समय तक नहीं चला। बाद में पुणे से ही इसवी १८४९ में ‘ज्ञानप्रकाश’ नामक समाचारपत्र प्रकाशित होने लगा। यह समाचारपत्र शुरुआत में केवल सोमवार के दिन ही प्रकाशित होता था। आगे चलकर सोमवार और गुरुवार इस प्रकार दो दिन यह समाचारपत्र प्रकाशित होने लगा। यह समाचारपत्र इसवी १८६२ तक शिला पर छापा जाता था। यह समाचारपत्र कृष्णाजी त्रिंबक रानडे इन्होंने शुरू किया और वे ही इसके प्रथम सम्पादक (एडिटर) थें। इस समाचारपत्र में चिपळूणकरजी, लोकहितवादीजी आदि ख्यातनाम लोग लेख लिखते थें। इसवी १९०४ में यह समाचारपत्र हर रोज (दैनिक) प्रकाशित होने लगा। और इस दैनिक की पहली प्रती पर ह.ना.आपटे और वा.गो.आपटे इस प्रकार सम्पादकों के नाम थें।

बॅडमिंटन इस खेल के नियम अंग्रे़जों द्वारा सर्वप्रथम पुणे में लिखे गएँ।

महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जानेवाला पुणे आज भारत के विज्ञान और तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

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