३१. समर्थ केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता

फ़िलिस्तिनियों ने युद्ध में हस्तगत किये हुए ‘आर्क ऑफ़ कोव्हेनन्ट’ को उन्होंने अपने सर्वोच्च दैवत के मुख्य मंदिर में रखने के बाद हुई घटना को दर्शानेवाला भित्तिचित्र

इसी दौरान ज्यूधर्मियों से फ़िलिस्तिनियों ने हस्तगत किया ज्यूधर्मियों का श्रद्धास्थान – ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’, फ़िलिस्तिनियों ने समारोहपूर्वक ले जाकर अपने सर्वोच्च दैवत के मुख्य मंदिर में रखा था। लेकिन सुबह उठकर जब देखा, तो उस देवता की मूर्ति उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ के सामने इस तरह झुकी थी कि मानो उसकी शरण में चली गयी हो। उस मूर्ति को पुनः उठाकर खड़ा कर रखा, तो दूसरे दिन भी वैसी ही घटना घटित हुई। लेकिन इस बार उस मूर्ति का सिर तथा हाथ टूटकर उसके देह से अलग हो चुके थे। उसीके साथ, जिस प्रान्त में यह मंदिर था, उस प्रान्त के लोगों के पूरे बदन पर बड़े बड़े फ़ोड़ें-फ़ूसियाँ दिखायी दे रहे थे। उनमें से कुछ विचारक लोगों को यह एहसास हुआ कि हम जो यह ज्यूधर्मियों का श्रद्धास्थान उठाकर ले आये हैं, उसी की यह सज़ा हमें मिल रही है।

फ़िर उन्होंने उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ को उन्हीं के दूसरे एक प्रान्त में भेजा, तब भी ऐसा ही वाक़या घटित हुआ। जिस जिस प्रान्त में उसे भेजा गया, उस प्रान्त में ऐसा ही – वहाँ के निवासियों के बदन पर फ़ोड़ें-फ़ूसियाँ दिखायी देने का वाक़या देखा गया। आख़िरकार मजबूरन् फ़िलिस्तिनियों ने उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ को उनके प्रदेश से दूर भेजने का फ़ैसला किया। एक बैलगाड़ी मेे उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ को डालकर उन्होंने अपने प्रान्त से बाहर जानेवाले मुख्य राजमार्ग पर उस बैलगाड़ी को खुला छोड़ दिया और ‘वह जहाँ जायेगी, वहाँ उसे जाने दिया जायें, बिलकुल भी न रोकें’ ऐसा हुक़्म अपने सभी प्रान्तों को दे दिया। लेकिन फ़िलिस्तिनियों के शासक कौतुहलवश् उस बैलगाड़ी के पीछे पीछे कुछ दूरी रखकर चल रहे थे।

हैरानी की बात यह थी कि वह बैलगाड़ी यहाँ-वहाँ कहीं पर भी न मुड़ते हुए ठेंठ ज्यूधर्मियों के प्रान्त में – बेथ-शेमेश इस जेरुसलेम प्रदेशस्थित स्थान में आकर रुकी, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।

वहाँ के खेतों में काम करनेवाले ज्यूधर्मियों ने उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ को देखा और वे खुशी से फ़ूले नहीं समा रहे थे। बाद में यह ख़बर मिलते ही सभी ज्यूधर्मियों ने आनंदोत्सव मनाया। उसके बाद उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ को ‘किरयाथ जेअरिम’ नामक स्थान पर सुरक्षित रखा गया, जो आगे चलकर इस्रायली लोगों के राजा डेव्हिड ने मंदिर बनाने तक वहीं पर था।

लेकिन इस सारे घटनाक्रम ने, ख़ासकर ‘आर्क ऑफ़ कोव्हेनन्ट’ के इस तरह चमत्कृतिपूर्ण रूप में वापस आने से ज्यूधर्मियों की विचारधारा में काड़ी बदलाव आया था और अधिकांश ज्यूधर्मीय अपने ईश्‍वर के साथ ही ईमान रखने का निश्‍चय?कर रहे थे। मुख्य रूप से – ‘जब जब हम ईश्‍वर के मार्ग पर से भटक जाते हैं या ईश्‍वर की ओर पीठ फ़ेर देते हैं, तब तब हमपर संकट आ जाते हैं’ यह बात वे समझ चुके थे।

लेकिन कई ज्यूधर्मीय ऐसे भी थे, जो सर्वोच्च ईश्‍वर के साथ ईमान रखने का निश्‍चय करके भी, उन प्रान्तों में प्रचलित होनेवाले विभिन्नदैवतपूजन का त्याग करना नहीं चाहते थे।

ऐसी परिस्थिति में एली के मृत्युपश्‍चात् ज्यूधर्मियों के नेतृत्व की बागड़ोर सॅम्युएल के हाथ में आयी। सॅम्युएल ज्यूधर्मियों में एकता और एक-दूसरे के प्रति भाईचारा निर्माण करना चाहता था, इस्रायलियों के लिए शान्ति एवं सुरक्षा का निर्माण करना चाहता था; साथ ही, उन्हें विभिन्नदैवतपूजनों से परावृत्त कर – ‘एक सर्वोच्च ईश्‍वर’ के प्रति उनकी निष्ठाओं का मोड़ना चाहता था, क्योंकि मूलतः सॅम्युएल को यह दोगलापन पसन्द नहीं था। जब हमने ठान ही ली है कि उस सर्वोच्च ईश्‍वर के साथ ही ईमान रखेंगे और जब हमें पता चल ही चुका है कि ‘वह अकेला ही हमारा बोझ उठाता है’, तब अन्य दस दैवतों के पीछे क्यों दौड़ें, ऐसा वह तहे दिल से सोचता था। अत एव, उसके हाथ में नेतृत्व की बागड़ोर आने के बाद उसने सर्वप्रथम – सर्वोच्च ईश्‍वर के साथ ईमान रखने के लिए और अन्य अनिष्ट रूढ़ियाँ-प्रथाएँ-परंपराओं का त्याग करने के लिए ज्यूधर्मियों का प्रबोधन करने का काम हाथ में ले लिया। इसके लिए उसने हर साल कॅनान के विभिन्न प्रान्तों के दौरे कर, संपूर्ण कॅनान प्रान्त का प्रबोधन किया।

समर्थ केंद्रीय नेतृत्व, हुक़्म, आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट, ज्यूधर्मिय, प्रार्थना, कॅनान, फ़िलिस्तिनि
सॅम्युएल के हाथ में ज्यूधर्मियों के नेतृत्व की बागड़ोर आने के बाद उसने सबसे पहले कॅनान के विभिन्न प्रान्तों के दौरे कर, केवल सर्वोच्च ईश्‍वर के साथ ईमान रखने के लिए और अन्य अनिष्ट रूढ़ियाँ-प्रथाएँ-परंपराओं का त्याग करने के लिए ज्यूधर्मियों का प्रबोधन किया।

उसके बाद उसने कॅनान प्रान्त के सभी ज्यूधर्मियों को एकसाथ बुलाकर उन्हें तहे दिल से समझाया, उन्हें खरी खरी भी सुनायी। ज्यूधर्मियों की वैभवशाली धरोहर का वास्ता देते हुए ‘हमारा एक सर्वोच्च ईश्‍वर होने के बावजूद हम अन्य देवताओं के पीछे क्यों दौड़ रहे हैं’ ऐसा सच्ची लगन से पूछा। सबसे अहम बात – ‘जब जब ज्यूधर्मियों ने अपने ‘एक सर्वोच्च ईश्‍वर’ का मार्ग छोड़कर अन्य मार्ग पर चलने की कोशिश की, तब तब ज्यूधर्मियों पर अनगिनत संकट आ पड़े’ यह उनके मन पर सॅम्युएल ने अंकित किया।

सॅम्युएल के ईमानदारी एवं लगन से भरे निवेदन का धीरे धीरे ज्यूधर्मियों पर असर होने लगा और उसकी बात ख़त्म होने तक तो वहाँ पर उपस्थित हर एक ज्यूधर्मीय गद्गद हो उठा था। ज्यूधर्मियों ने फ़िर अपने अपने घर में होनेवालीं अन्य स्थानीय विभिन्नदैवतों की मूर्तियों से, स्थानीय रूढ़ि-परंपराओं से नाता तोड़ दिया। फ़िर उन सबने अपने ‘एक सर्वोच्च ईश्‍वर’ को नैवेद्य अर्पण कर उसकी प्रार्थना की।

इस स्थान पर जब यह सब चल रहा था, तभी ‘इतनी बड़ी संख्या में ज्यूधर्मीय यहाँ पर प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए हैं’ ख़बर फ़िलिस्तिनियों तक पहुँची और ज्यूधर्मियों का बदला लेने का यह अच्छाख़ासा मौका है, ऐसा मानकर वे प्रचंड बड़ी सेना लेकर ज्यूधर्मियों पर आक्रमण करने आने लगे।

ज्यूधर्मीय प्रार्थना के लिए एकत्रित हुए होने की ख़बर फ़िलिस्तिनियों को लगते ही उन्होंने प्रचंड बड़ी सेना लेकर ज्यूधर्मियों पर आक्रमण किया; तब सॅम्युएल ने ईश्‍वर से रहम की माँग कर ज्यूधर्मियों को सहायता करने की प्रार्थना ईश्‍वर से की।

यह ख़बर सुनते ही ज्यूधर्मियों ने घबराकर सॅम्युएल को ईश्‍वर से रहम की माँग करने की विनति की। सॅम्युएल ने वैसा कर ज्यूधर्मियों को सहायता करने की प्रार्थना ईश्‍वर से की।

तब तक फ़िलिस्तिनियों की सेना बिलकुल क़रीब आ गयी। अब वे ज्यूधर्मियों पर हमला करने ही वाले थे कि तभी कैसे हुआ क्या पता, लेकिन फ़िलिस्तिनी सेना पर ज़ोर का तू़फ़ान तथा भारी बरसात ने आक्रमण किया, जिसमें से सँवरते सँवरते फ़िलिस्तिनियों की नाक में दम आ गया। यह मौका पाकर ज्यूधर्मियों ने फ़िलिस्तिनियों पर चरमसीमा का हमला किया। कई फ़िलिस्तिनियों को मार डाला और बाक़ी लोगों को कॅनान प्रान्त से बाहर खदेड़ दिया।

यह अनुभव फ़िलिस्तिनियों के लिए इतना बुरा था कि उसके बाद सॅम्युएल की पूरी ज़िन्दगी में उन्होंने पुनः ज्यूधर्मियों की ओर नज़र उठाकर नहीं देखा।

लेकिन सॅम्युएल धीरे धीरे बूढ़ा होता जा रहा था और ‘उसके बाद ज्यूधर्मियों का नेता कौन?’ यह प्रश्‍न अनुत्तरित ही रह गया था। सॅम्युएल ने अस्थायी व्यवस्था के रूप में, अपने दोनों बेटों को अपने पश्‍चात् के ‘जज्ज’ के तौर पर नियुक्त किया था। लेकिन एली के बेटों जैसे ही, सॅम्युएल के बेटे भी इस पद के लिए क़ाबिल नहीं थे, ऐसा बताया जाता है।

इस कारण, अब बदलते हालातों में ज्यूधर्मियों के लिए किसी मज़बूत केंद्रीय नेतृत्व की ज़रूरत अब ज़ोरों से महसूस होने लगी थी। ऐसा केंद्रीय नेतृत्व, जो स्वयं ‘एक सर्वोच्च ईश्‍वर’ के साथ एकनिष्ठ होगा, जो ज्यूधर्मियों की बाहरी दुश्मनों से रक्षा करेगा, उन्हें एकसंध रखेगा और ज्यूधर्मियों के द्वारा ज्यूधर्मतत्त्वों का बारिक़ी से पालन करा लेगा।

ज्यूधर्मियों में से कुछ अनुभवी एवं विचारशील बुज़ुर्गों ने सॅम्युएल से मिलकर यह निवेदन किया और ज्यूधर्मियों के लिए कोई स्थायी राजा की ख़ोज करने के लिए उसे कहा। लेकिन आसपास के प्रदेशों के ज़ुल्मी राजाओं के उदाहरण आँखों के सामने होनेवाला सॅम्युअल, ‘राजा’पद का निर्माण करने के लिए कुछ ख़ास अनुकूल नहीं था। वैसा उसने उस प्रतिनिधिमंडल को समझाकर भी बताया, लेकिन अब लगातार की लड़ाइयों एवं संकटों से ऊब चुके ज्यूधर्मीय ‘मज़बूत केंद्रीय नेतृत्व के बग़ैर और कोई चारा नहीं है’ इस राय तक आ पहुँचे थे।

अतः मजबूरन् सॅम्युएल ने ईश्‍वर से ही प्रश्‍न पूछा। उसका उत्तर – ‘राजा चुना जायें’ ऐसा मिला और वे लोग सन्तोषपूर्वक अपने अपने घर लौट गये।

इस्रायली लोगों के पहले नियत राजा की जल्द ही सॅम्युएल से मुलाक़ात होनेवाली थी!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

Leave a Reply

Your email address will not be published.