४८. ज्यूधर्मियों पर रोमन लोगों का शासन

मॅथॅटियस ने सेल्युसिड साम्राज्य के साथ शुरू की हुई, ज्यूधर्मियों पर लगाये गये धार्मिक निर्बन्धों के खिलाफ़ की लड़ाई को उसके बेटे ज्युडास ने अंजाम दे दिया; इतना ही नहीं, बल्कि ज्युडास के भाइयों ने तथा भतीजे ने अगले २५ साल – सेल्युसिड्स के साथ भी और अपनों में ही रहनेवाले ग्रीकपरस्त ज्यूधर्मियों से भी – लड़ाई कर ज्यूधर्मियों को राजनीतिक स्वतन्त्रता भी प्राप्त करा दी और ज्यूधर्म में प्रविष्ट हुईं अनिष्ट वृत्तियों को भी लगभग नष्ट कर दिया|

अब राजा डेव्हिड एवं राजा सॉलोमन के कार्यकाल की तरह ही, ज्यूराष्ट्र किसी भी विदेशी सत्ता का अधीन राज्य न रहते हुए आज़ाद हुआ था| इसवीसनपूर्व १४० में पॅलेस्टाईन पर ‘हॅस्मोनियन’ शासकों का राज सुरू हुआ था, वह लगभग ७७ साल यानी इसवीसनपूर्व ६३ तक अबाधित रहा|

लेकिन इसी दौर में ग्रीक साम्राज्य कुल मिलाकर दुर्बल बनने लगा था और रोमन संघराज्य ताकतवर बनने लगा था और जगह जगह पर उनकी ग्रीक साम्राज्य के साथ लड़ाइयॉं शुरू थीं|

यहॉं जेरुसलेम में, ज्यूधर्मियों का स्वतंत्र राज्य स्थापित किये हॅस्मोनियन घराने का ही शासन था| इस घराने के राजाओं के पास – ‘राजा’पद, ‘प्रमुख धर्मोपदेशक’पद व ‘सेनापति’पद अर्थात् राजनीतिक, धार्मिक तथा लष्करी नेतृत्व एकसाथ आया हुआ था| इस घराने के कार्यकाल के शुरुआती दौर में ज्यू साम्राज्य – राजा डेव्हिड के कार्यकाल की तरह ही संपन्नता की बुलंदी पर पहुँच गया था| इस दौर में वैभवाच्या शिखरावर गेले होते. ह्या काळात ज्यूधर्मियों की उनके एक-सर्वोच्च-ईश्‍वर पर की श्रद्धा हालॉंकि काफ़ी हद तक अटूट रही थी, मग़र अन्य क्षेत्रों में, ख़ासकर सांस्कृतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में ग्रीकीकरण शुरू ही था|

लेकिन ईश्‍वर पर श्रद्धा होनेवाले ज्यूधर्मियों में भी तीन प्रमुख गुट पड़ चुके थे| ‘एक-सर्वोच्च-ईश्‍वर पर विश्‍वास’ इस मुद्दे पर हालॉंकि उनमें निर्विवाद रूप में एकमत था, उनकी भूमिकाएँ अलग अलग थीं|

एक गुट केवल ‘लिखित टोराह’ को माननेवाला था| इन्हें ‘सदूकी’ यह नामाभिधान था| ये लोग आत्मा का अमरत्व, पुनर्जन्म आदि बातों पर विश्‍वास नहीं करते थे| इस गुट के लोग प्रायः उच्चभ्रू वर्ग से थे और टेंपल का, साथ ही, जेरुसलेम की अन्य प्रमुख धार्मिक संस्थाओं का कारोबार इसी गुट के नियन्त्रण में था| लेकिन सर्वसाधारण ज्यूधर्मीय इनपर ग़ुस्सा करते थे| आगे चलकर इसवीसन शुरू होने के कुछ ही साल बाद इन लोगों का महत्त्व ख़त्म हुआ|

वहीं, दूसरे एक गुट का मत था कि ‘लिखित टोराह’ मोझेस के दौर में लिखा गया था और उसके बाद परिस्थितियों में काफ़ी बदलाव आ चुका है और समय समय पर मार्गदर्शन करते हुए ईश्‍वर ने या तो ठेंठ या फिर द्रष्टे धर्मोपदेशकों के ज़रिये मौखिक रूप में ज्यूधर्मियों को जो जो मार्गदर्शन किया, उसे भी ‘टोराह’ का ही भाग समझकर उतनी ही अहमियत दी जानी चाहिये और ‘लिखित एवं मौखिक’ ऐसे दोनों को मिलाकर ‘टोराह’ माना जाना चाहिए| इस मत के लोगों को ‘फरिसीज्’ कहा जाता था| आत्मा का अमरत्व, पुनर्जन्म की संकल्पना आदि बातों पर इस गुट के लोग विश्‍वास करते थे| पश्‍चात्समय में मुख्य रूप में इस विचारधारा का पुरस्कार करने वाले ज्यूधर्मियों की बहुसंख्या हुई|

तीसरा गुट, सर्वसंगपरित्याग कर केवल ईश्‍वरभक्ति में और ईश्‍वर के अध्ययन में जीवन बिताना चाहिए, इस मत का था| ये लोग सुनसान जगहों पर एकसाथ रहते-खाते थे| इन्हें ‘एसेनीज्’ कहा जाता था|

हॅस्मोनियनों के कार्यकाल में हर एक राजा अपनी अपनी विचारधारा के अनुसार और ज़रूरत के अनुसार कभी सदुकियों को, तो कभी फरिसीज् को महत्त्व देता था|

लेकिन शुरुआती दौर में निष्ठावान और प्रजाहितदक्ष रहनेवाले इस हॅस्मोनियन घराने का, बाद की पीढ़ियों में अधःपतन होने लगा| इसवीसनपूर्व ७० से परिवार में सत्ताकलह बढ़ गया, घराने के विभिन्न सदस्यों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ़ बढ़ती मात्रा में षड्यन्त्र रचे जाने लगें|

इस दौर में सत्ताविस्तार के अथक प्रयास करनेवाले रोमन शासक जेरुसलेम पर भी नज़र रखे हुए थे| इतिहास के सर्वोत्तम सेनानियों में से एक माने गये रोमन सेनानी पोम्पेई को – ज्यूधर्मियों के इस सत्ताकलह में, जेरुसलेम में प्रवेश करने का मौक़ा दिखायी देने लगा था!

इसवीसनपूर्व ६३ में ही पोम्पेई ने जेरुसलेम की घेराबंदी कर दी| लेकिन जेरुसलेम की मज़बूत चहारदीवारी को देखते हुए, इस नगरी को जीत पाना यह बहुत ही मुश्किल है, इसका उसे पता चला| तब राजसत्ता के लिए जूझनेवाले हायरकॅनस-द्वितीय और ऍरिस्टोब्युलस-द्वितीय इन दो राजपुत्रों में से हायरकॅनस के लोगों ने, ऍरिस्टोब्युलस को सबक सीखाने के लिए पोम्पेई की सेना के लिए रात के अन्धेरे में गुप्त रूप से नगरी के दरवाज़ें खोल दिये| अब जेरुसलेम पर रोमन सेना ने कब्ज़ा कर लिया| होली टेंपल में भी रोमन सेना घुस गयी; लेकिन वहॉं का कुल मिलाकर पवित्र वातावरण का अनुभव करने पर रोमन सेनानी पीछे हट गया, इतना ही नहीं, बल्कि उसने टेंपल का शुद्धीकरण करा लेने का भी हुक़्म किया, ऐसा कहा जाता है|

अब ज्युडिआ प्रांत (पहले का ज्युडाह प्रांत) रोमन संघराज्य के कब्ज़े में आया था|

रोमनों ने हालॉंकि ज्युडिआ प्रांत की स्वायत्तता बरक़रार रखी थी, मग़र फिर भी ज्यूधर्मियों को उन्हें भारी कर अदा करना पड़नेवाला था| साथ ही, ज्युडिआ प्रांत के कई हिस्सों को रोमन संघराज्य से ठेंठ जोड़ा गया| उदा. ज्यूधर्मियों को भूमध्य समुद्र के किनारी भाग पर का हक़ त्यागना पड़ा| समारिया आदि अन्य भी कुछ नगर ज्यूधर्मियों के हाथ से निकल गये| उसीके साथ, ज्युडिया प्रांत के कुछ ऐसे नगर, जिनमें ग्रीकीकरण बहुत ही भारी मात्रा में हुआ था, उन्हें ज्युडिया प्रांत से अलग कर उनका एक गुट बनाया गया| ज़ाहिर है, ज्युडिआ प्रांत का आकार बहुत ही कम हो गया|

हायरकॅनस ने पोम्पेइ की की हुई सहायता का उसे बक्षीस मिला| उसे प्रमुख धर्मोपदेशक बनाया गया|

लेकिन कुछ ही महीनों में रोमन संघराज्य की स्थिति में परिवर्तन हो गया| पोम्पेई के अजोय माने जानेवाले स्थान को धक्का लगा| उसके और ज्युलियस सीझर के बीच के संघर्ष में पोम्पेई की सेना की हार हुई और वह भाग गया| ज्युलियस सीझर रोमन संघराज्य का सर्वेसर्वा बन गया| इस पोम्पेई-सीझर संघर्ष में हायरकॅनस ने सीझर की सहायता की थी|

इस कारण हायरकॅनस ने सीझर की मर्ज़ी संपादन की थी| लेकिन वह केवल नाममात्र होकर, असली सूत्रधार तो उसका एक सहकर्मी अँटिपॅटर ही था| सीझर की सहायता करने की योजना भी अँटिपॅटर की ही थी| इसलिए सीझर ने हायरकॅनस को ज्युडिआ का राजा न बनाते हुए, अँटिपॅटर को ज्युडिआ प्रांत का प्रमुख राज्याधिकारी नियुक्त किया|

इसी अँटिपॅटर के बेटे ने – ‘हेरॉड’ ने आगे चलकर होली टेंपल का सुशोभीकरण और विस्तार किया| इस कारण वह आगे चलकर ‘हेरॉड द्वारा निर्मित टेंपल’ के नाम से भी पहचाना जाने लगा|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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