५०. पहला ज्यूइश-रोमन युद्ध; दूसरे होली टेंपल का ध्वंस

इसवीसन ६६ में पहले ज्यूइश-रोमन युद्ध की शुरुआत हुई, लेकिन उसके बीज इसवीसन ६ में ही बोये गये थे। स्थानीय रोमन अधिकारियों का दमनतन्त्र और उनका भ्रष्टाचार तथा रोमन शासकों का ज्यूधर्मतत्त्वों को मनाही करनेवाला रवैया इनके कारण दिनबदिन ज्यूधर्मियों में असंतोष बढ़ता ही जा रहा था।

गॅमला के ज्युडास के बाद इस बग़ावत का नेतृत्व सँभालनेवाले तत्कालीन नेताओं ने, ज्यूधर्मियों में जागृत हुई यह राष्ट्रीयता की, स्व-त्व की भावना जागृत रखी थी।

कई साल यह चालू था। इसी बीच रोमन साम्राज्य का पहला सम्राट ऑगस्टस के, इसवीसन १४ में हुए निधन के पश्‍चात् टायबेरियस, कॅलिगुला, क्लॉडियस और नीरो ऐसे चार सम्राट एक के बाद एक करके रोमन साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठे थे और उन्होंने ज्यूधर्मियों के प्रति प्रायः विद्वेष का ही रवैया अपनाया था।

बीच का लगभग चार साल का, यानी इसवीसन ४१ से ४४ यह कालावधि ज्यूधर्मियों की दृष्टि से अच्छा और स्थिरता का गया। इसी दौर में, राजा हेरॉड का पोता ‘अ‍ॅग्रीपा-१’ यह, तत्कालीन रोमन सम्राट क्लॉडियस के साथ अच्छे संबंध होने के कारण ज्युडियाचा राजा बना था। ज़ुलमी राजा हेरॉड ने, केवल अपने खिलाफ़ साज़िश रच रहे होने के शक़ पर अपने ही दो बेटों को मार दिया था, उनमें से एक का यह बेटा था।

अ‍ॅग्रीपा यह जन्म से ज्यूधर्मीय न होकर भी ज्यूधर्मियों के प्रति हमदर्दी रखनेवाला था। उसने ज्यूधर्मतत्त्वों का पालन करने की सहूलियत तो ज्यूधर्मियों को दी ही; साथ ही, बतौर ‘ज्यूधर्मियों का राजा’, वह खुद भी ज्यूधर्मतत्त्वों का पालन अचूकता से करता था। उसके कार्यकाल में ज्यूधर्मियों की तरक्की हुई और उन्हें स्थिरता भी नसीब हुई।

लेकिन इसवीसन ४४ में अचानक हुई अ‍ॅग्रीपा की रहस्यमय मृत्यु के बाद, उसका पुत्र छोटा होने के कारण पुनः रोमन सम्राट ने वहाँ पर अपना राज्याधिकारी नियुक्त किया और हालात ज्यूधर्मियों के लिए पुनः संगीन बनने लगे। इसके बाद के रोमन राज्याधिकारी, ये पहले के अधिकारियों से भी बदतर थे – अधिक भ्रष्ट और अधिक अमानुष!

लेकिन इन सबसे ऊपर, क्रूरता की हदें पार कर दी, वह इसवीसन ६४ में ज्युडिया पर नियुक्त किये गये राज्याधिकारी ‘फ्लोरस’ ने! कार्यभार सँभालते ही उसने ज्यूधर्मियों को उक़साने की शुरुआत की। किसी अन्याय्य हुक़्म के कारण ज्यूधर्मियों का ग़ुस्सा असहनीय होकर यदि हिंसाचार की मामूली घटना भी यदि कहीं घटित हुई, तो उसकी आड़ लेकर वह वहाँ के ज्यूधर्मियों पर अनन्वित अत्याचार शुरू कर देता था। दो ही सालों में इस्रायली लोगों की सहनशक्ति ख़त्म हुई और जगह जगह पर रोमन साम्राज्य का विरोध उनसे किया जाने लगा। इस विद्रोह को कुचल देने के लिए तत्कालीन रोमन सम्राट नीरो ने इसवीसन ६६ में अपना सेनापति व्हेस्पॅशियन को भेज दिया और पहले ज्युइश-रोमन युद्ध की शुरुआत हुई।

शुरू शुरू के स़ख्त प्रतिकार के कारण ज्यूधर्मियों की जगह जगह पर जीत हो रही दिखायी देने लगी थी। लेकिन उनके पास ना तो सैनिकी प्रशिक्षण था, ना सैनिकी अनुशासन, ना अच्छे शस्त्र, ना ही अच्छे नेता। इस कारण, शुरुआती दौर में ज्यूधर्मियों ने हासिल की बढ़त अब धीरे धीरे कम होने लगी।

साथ ही, इस रोमन आक्रमण का सामना ज्यूधर्मियों ने एक होकर किया ऐसा नहीं था। ज्यूधर्मियों में भी गुट थे ही। इनमें से ‘सदूकी’ यह मुख्य रूप में अमीर एवं उच्चभ्रू ज्यूधर्मियों की भर्ती होनेवाला गुट, रोमन साम्राज्य में रहने के लिए अनुकूल था; क्योंकि इनमें से अधिकांश लोग रोमन राजदरबार की तथा सरदारों की मर्ज़ी सँभालकर विभिन्न फ़ायदें उठाकर अमीर बने थे। इस कारण, रोमन साम्राज्य जाना उन्हें रास नहीं आनेवाला था। ‘फरिसीज्’ इस मध्यममार्ग के गुट को रोमन साम्राज्य नहीं चाहिए था और वे ज्यूधर्मियों के लिए आज़ादी भी यक़ीनन ही चाहते थे; लेकिन ताकतवर रोमन साम्राज्य का मुक़ाबला करने की ताकत फिलहाल अपने पास नहीं है, इसका एहसास उन्हें था और अपर्याप्त ताकत से लड़कर मर जाने से अच्छा है कि फिलहाल धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लें और फिर राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए लड़ें, इस मत के ये लोग थे। वहीं, तीसरा एक गुट, ‘किसी भी हालात में और किसी भी क़ीमत पर ज्यूधर्मियों को रोमनों से आज़ादी हासिल करनी ही चाहिए’ इस मत का था। इन्हें ‘झीलॉट्स’ कहकर बुलाते थे और ज़ाहिर है, रोमन साम्राज्य चाहनेवाले सदूकीज़् इनपर गुस्सा करते थे। इसी रोमन आक्रमण के दौरान ही सदूकी एवं झीलॉट्स में संघर्ष शुरू हुआ। इस अलगाव का भी फ़ायदा रोमन सेना को मिला।

इतने में इसवीसन ६८ में रोमन सम्राट नीरो की ही मृत्यु हुई। नीरो का कोई वारिस न होने के कारण और उसने भी कोई उत्तराधिकारी न चुना होने के कारण, अब रोमन साम्राज्य में सत्तासंघर्ष शुरू होगा यह ध्यान में रखकर व्हेस्पॅशियन ने, जेरुसलेम मुहिम की बागड़ोर अपने बेटे टायटस के हाथ में सौंपकर फ़ौरन राजधानी की ओर प्रयाण किया।

व्हेस्पॅशियन का अँदाज़ा सही निकला। इसवीसन ६९ इस एक साल ने एक के बाद एक एक – गॅल्ब, ऑथो, व्हायटेलियस, व्हेस्पॅशियन ऐसे चार सम्राट देखे, उनमें से पहले ती तो अत्यल्प कार्यकाल के थे। उन तीनों में से दो सम्राट तो अपने पहले के सम्राटों को मारकर ही राजगद्दी पर बैठे थे, वहीं, एक सम्राट ने खुदखुशी कर ली थी। चौथा सम्राट स्वयं व्हेस्पॅशियन ही था और इस सत्तासंघर्ष के कारण मची अराजकता का फ़ायदा उठाते हुए उसने तीसरे सम्राट को ख़त्म कर रोमन साम्राज्य के सूत्र अपने हाथ में लिये थे। व्हेस्पॅशियन ने रोमन साम्राज्य पर की ‘फ्लॅवियन’ घराने की सत्ता की शुरुआत की।

इसी दौरान यहाँ व्हेस्पॅशियन के पुत्र टायटस ने जेरुसलेम की घेराबंदी की थी और एक के बाद एक ज्यूधर्मियों का दानापानी तोड़ने की शुरुआत की थी।

आख़िरकार कई महीनों की घेराबंदी के बाद इसवीसन ७० में जेरुसलेम की मज़बूत चहारदीवारी तोड़ने में रोमन सेना को क़ामयाबी मिली और रोमन सेना जेरुसलेम में घुस गयी। इस रोमन सैेना ने नगरी में अभूतपूर्व ऐसी लूटपाट, आगज़नी, साथ ही, बिलकुल भी दया न दिखाते हुए, सामने आये ज्यूधर्मियों का अमानुषता से क़त्लेआम शुरू किया। ऐसे लाखों ज्यूधर्मीय मारे गये और उसीके साथ, तक़रीबन १ लाख ज्यूधर्मियों को बंदी बनाकर रोमन साम्राज्य में जगह जगह पर बतौर गुलाम भेजा गया।

कुछ ही समय में होली टेंपल में भी रोमन सेना घुस गयी और ज्यूधर्मियों के कड़े विरोध की परवाह न करते हुए उसे भी रोमनों ने लूट लिया और उसे तहसनहस कर देते हुए लगभग पूरी तरह ज़मीनदोस्त कर दिया – केवल पश्‍चिमी ओर की चहारदीवारी की दीवार (‘वेस्टर्न वॉल’) ही कुछ हद तक बची थी, जो अभी तक टिकी होकर, आज भी लाखो ज्यूधर्मियों की श्रद्धा का स्थान है।

इस प्रकार, राजा सॉलोमन ने निर्माण किया पहला टेंपल (‘सॉलोमन्स टेंपल’) इसवीसनपूर्व छठी सदी में बॅबिलोनियनों द्वारा ध्वस्त किया जाने पर, उसके स्थान पर पर्शियन सम्राट सायरस की मदद से इसवीसनपूर्व ५१७-१६ में निर्माण किया गया और बाद में राजा हेरॉड ने विस्तारित किया हुआ यह ‘दूसरा होली टेंपल’ भी अब ध्वस्त हो चुका था।

यह दूसरे होली टेंपल का इस तरह ध्वस्त हो जाना, यह ज्यूधर्मियों के दिल पर का गहरा ज़़ख्म है और वे अभी तक – गत तक़रीबन दोन हज़ार साल उस स्थान पर पुनः (तीसरा) होली टेंपल का निर्माण किया जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

(अर्थात् यह तीसरे होली टेंपल का निर्माण कब किया जायेगा, इसके बारे में भी ज्यू धर्मग्रंथों में संकेत दिये हुए बताये जाते हैं। इस टेंपल का निर्माण होने का समय नज़दीक आने लगा कि क्या संकेत घटित होंगे, इसके बारे में भी ‘भविष्यवाणी’ इन ग्रंथों में बतायी गयी है। उदाहरण के तौर पर – इन संकेतों में से एक है – ‘रेड हेफर’ का जन्म। ‘रेड हेफर’ यानी लाल मिट्टी के रंग की, शरीर पर कोई भी धब्बा न रहनेवाली गाय। लेकिन इसके साथ ही यह गाय और भी बहुत सारे लक्षणों से युक्त होनी चाहिए। हाल ही में इस्रायल में ऐसी गाय का जन्म हुआ होने की ख़बर ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया है। क्या यह गाय ‘वैसी’ है, इसपर फिलहाल इस्रायल में संशोधन चालू है। इसके बारे में ज्यू धर्मग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि ऐसी गाय का जन्म यह तीसरे होली टेंपलनिर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई होने का संकेत होगा।)(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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